वहाबियत, इस्लाम को मिटाने की एक बहुत बड़ी साज़िश

वहाबियत, इस्लाम को मिटाने की एक बहुत बड़ी साज़िश

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

यह वह दिन है कि जब वहाबियों के वहशी और बर्बर हमले यमन के कमज़ोर और पीड़ित लोगों पर जारी हैं, वह वहाबियत जिसका दावा सलफ़े सालेह का है लेकिन सच्चाई और वास्तविक्ता यह है कि यह आले यहूद और यहूदियों सी संतान हैं, जो अपराध और अत्याचार यह लोग कर रहे हैं, इसकी बानगी हमको जाहेलीयत के युग में भी देखने को नहीं मिलती है, हम जानते हैं कि जाहेलीयत के क़ानूनों में से एक जिसको इस्लाम ने भी वैधता दी है यह है कि जाहेलीत के युग में वह बद्दू अरब कुछ महीनों में युद्ध को वर्जित मसझते थे जिनमें से एक रजब का महीना है, लेकिन हम आज देख रहे हैं कि वह लोग जो अपने आप को ख़ादिमुल हरमैन कहते हैं जबकि वास्तविक्ता यह है कि वह ख़ाएनुल हरमैन है वह जो अपने आप को सऊद की संतान कहते हैं जबकि वास्तव में यहूदियों की संतान हैं और सच यह है कि इन लोगों ने मुसलमानों के दूसरे किब्ले पर क़ब्ज़ा कर लिया है रजब के महीने में उन लोगों पर भयानक हमले कर रहे हैं जिनके पास कुछ नहीं है वह अपनी सुरक्षा तक नहीं कर सकते हैं आवासों अस्पतालों, बच्चों महिलाओं पर बम बरसा रहे हैं।

आज मैं आपके सामने यह बयान करूँगा कि हम क्यों इनको यहूदियों की संतान या आले यहूद कहते हैं और यह वह बेहतरीन मौक़ा है जिसे हमें अल्लाह ने दिया है ताकि हम लोगों को उनका वास्तविक चेहरा दिखा सकें।

1.    जब हम इस्लामी पुस्तकों का अध्ययन करते हैं तो हमें कुछ रिवायतें दिखाई देते हैं जिनके बारे में सुन्नी विद्वानों का मत है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने यह भविष्यवाणी की है कि हिजाज़ की धरती से एक फ़ितना उठेगा और वहा से पूरे इस्लामी संसार को अपनी चपेट में ले लेगा, रिवायत यूँ बयान करती है सही बुखारी में रिवायत है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमायाः

اللهم بارك لنا في ‏ ‏شأمنا ‏ ‏اللهم بارك لنا في ‏ ‏يمننا!! ‏ ‏قالوا : يا رسول الله وفي ‏ ‏نجدنا؟ ‏ ‏قال : اللهم بارك لنا في ‏ ‏شأمنا ‏ ‏اللهم بارك لنا في ‏ ‏يمننا!! ‏ ‏قالوا : يا رسول الله وفي ‏ ‏نجدنا؟؟ ‏ ‏فأظنه قال في الثالثة هناك الزلازل والفتن وبها يطلع‏ قرن الشيطان

हे ईश्वर शाम और यमन को हमारे लिये मुबारक बना, सहाबियों ने कहाः नज्द के बारे में आपने क्यों नहीं कहा?

आपने अपनी बात को दोहराया और सहाबा ने अपने प्रश्न को आपने तीसरी बार में फ़रमायाः नज्द की धरती से फ़ितने और फ़साद उठेंगे और शैतान की सींघ निकलेगी।

दूसरी हदीस भी सही बुख़ारी में है पैग़म्बर फ़रमाते हैः

नज्द की धरती से कुछ लोग उठेंगे जो क़ुरआन पढ़ेंगे जब्कि उससे कोई लाभ नहीं उठाएंगे उनकी पहचान यह है कि वह अपने सरों को मूँडते हैं और दाढ़ी को छोड़ देते हैं।

मक्का शहरे के मुफ़्ती अहमद ज़हनी दहलान कहते हैं कि यह रिवायत बता रही है कि एक बिदअत पैदा करने वाला सम्प्रदाय पैदा होगा जो अपने सरों को मूँडेगा और दाढ़ी छोड़ देगा यह निशानी है कि पैग़म्बर ने बहुत पहले ही वहाबी सम्प्रदाय के बारे में ख़बर दी है।

2.    दूसरी बात यह है कि जब हम इस्लामी इतिहास का अध्ययन करते हैं तो हमें पता चलता है कि आले सऊद की नस्ल खैबर के यहूदियों तक पहुँचती है, और यह चीज़ अपने स्थान पर साबित हो चुकी है और क़ुरआन फ़रमाता है

لَتَجِدَنَّ أَشَدَّ النَّاسِ عَدَاوَةً لِّلَّذِينَ آمَنُواْ الْيَهُودَ

मुसलमानों के विरुद्ध सबसे अधिक शत्रुता रखने वाले यहूदी हैं।

इस सम्प्रदाय का आरम्भ मोहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब से है, मोहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब और मोहम्मद इब्ने सऊद आले सऊद जिसकी नस्ल से हैं एक दूसरे से हाथ मिलाते हैं

मोहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब और मोहम्मद इब्ने सऊद दो शक्तिया है जो साथ साथ चलती है जिहाज़ पर क़ब्ज़ा करते हैं, उस्मानी से युद्ध करते हैं और यहीं से अपनी शक्ति को बढ़ाते हुए एक हुकूमत बनाते हैं उसके बाद यूरोपियन आते हैं उस्मानी साम्राज्य को समाप्त करके छोटी छोटी हुकूमतों में बदल देते हैं जिसमें से एक सऊदी अरब है।

3.    बहुत संभव है कि कुछ लोगों को इतिहास के इस पन्ने के बारे में अधिक जानकारी न हो कि कैसे और कब यह हुआ कि वहाबी विचारधारा जो दूसरे सारे मुसलमानों को काफ़िर कहती है और अपने अतिरिक्त सभी के क़त्ल का आदेश देती है वह मुसलमान बन गई, रिवायत में है कि इस्लामी उम्मत 71 सम्प्रदाय में बटेगी जिसमें से केवल एक सही होगा, और हर सम्प्रदाय का यही मत है की वह हक़ पर है हमारा भी यही दावा है लेकिन इनमें से कोई भी सम्प्रदाय दूसरे की हत्या क़त्ल उनको दास या दासी बनाने का आदेश नहीं देता है लेकिन वहाबियत की विशेषता यही है कि वह कहती है कि मैं हक़ हू और दूसरे सभी के क़त्ल और हत्या का आदेश दिया जाता है।

यह बात सारे मुसलमानों को जाननी चाहिये कि एक समय था कि जब मोहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब ने अपनी बात को सबके सामने रखा तो सारे मुसलमानों ने इसने युद्ध किया जंग की और इनको इस्लाम से बाहर बताया।

लेकिन प्रश्न यह है कि आज दो सौ साल से भी कम की अवधि में हम मुसलमानों ने इन्ही वहाबियों को ख़ादिमुल हरमैन के रूप में स्वीकार कर लिया है? क्यों? क्या अहले सुन्नते के बुज़ुर्गों ने इब्ने तैमिया और अब्दुल वह्हाब से जंग नहीं की?   और वह लोग जो पैग़म्बर का अपमान करते हैं जिन्होंने पैग़म्बर के जन्म स्थान को गिराना चाहा पवित्र स्थलों को शौचालय बना दिया क्या उनके कुफ़्र का फ़तवा नहीं दिया। यह चिंतन का क्षण है।

4.    जैसा कि हमने बताया कि आले सऊद की नस्ल यहूदियों से मिलती है और यहूदी मुसलमानों के सबसे बड़े शत्रु हैं और मुनाफ़िक़ अपनी विचारधारा में या तो मुशरिकों से मिला हुआ है या फिर यहूदियों से और इन लोगों ने इस्लाम को समाप्त करने के लिये बड़े बड़े प्रोपगंडे किये फसाद फैलाया, इमाम ख़ुमैनी वहाबियत के बारे में फ़रमाते हैं कया मुसलमान नहीं जानते हैं कि आज वहाबियत के केन्द्र फ़ितने और जासूसी का केन्द्र बन चुके हैं। हमको नहीं भूलना चाहिके कि यही वहाबी थे जिन्होंने 1978 में मक्के की पवित्र धरती पर जहां एक मच्छर भी मारना पाप है हाजियों का कत्लेआम किया और खून की होली खेली, इस हत्याकांड का कमांडर एक यहूदी था जिसको जर्मनी से बुलाया गया और यह भयानक कार्य अंजाम दिया गया।

इमाम ख़ुमैनी वहाबियत के बारे में फ़रमाते हैं कया मुसलमान नहीं जानते हैं कि आज वहाबियत के केन्द्र फ़ितने और जासूसी का केन्द्र बन चुके हैं जो एक तरफ़ तो इस्लामे अशराफियत, इस्लामे अबू सुफ़यानी, अमरीकी इस्लाम और मानवीयत से दूर इस्लाम का प्रचार कर रहे हैं और दूसरी तरफ़ अमरीका के तलवे चाट रहे हैं।

आयतुल्लाह ख़ामनेई फ़रमाते हैं संसार की साम्राजिक शक्तियों ने वहाबियत को पैदा करके यह कोशिश की है कि इस्लामी दुनिया में अपने लिये छिपने का स्थान पैदा कर सके और आपको चाहिये कि लोगों को वहाबियत की साजिशों और लोगों के वीच मतभेद डालने की पालीसी से बारे में बताएं।

5.    अगर आपको पता लगाना है कि हम क्यों आले सऊदी को यहूदी नस्ल का कह रहे हैं तो बिर्टिश जासूस मिस्टर हेन्फेर की आपबीती को पढ़े तब पता चलेगा कि यह वहाबियत ब्रिटेन की देन और उनकी पैदा की हुई है।

आज इस संसार का हर मुसलमान जहां एक तरफ़ لااله الا الله कहता है वहीं दूसरी तरफ़ हर मुसलमान की विशेषता यह है कि वह भले ही अहलेबैत को इमाम या ख़लीफ़ा न माने लेकिन पैग़म्बर के परिजन मानते हुए उनका सम्मान अवश्य करता है, लेकिन इन वहाबियों ने पैग़म्बर के परिजनों के साथ क्या किया, अपनी पुस्तकों में जितना आरोप उनपर लगा सकते थे लगाया, जन्नतुल बक़ी में पैग़म्बर के परिजनों की पवित्र समाधियों को ध्वस्त कर दिया, इराक़ में सामर्रा और इसी प्रकार दूसरे स्थानों पर आज जो वह कर रहे हैं। लेकिन दूसरी तरफ़ यहूदियों और ईसाईयों की निशानियों को बचा कर रखा। और आज जहां हर मुसलमान यह मानता है कि हराम महीनों में जंग करना हराम है यह लोग मुसलमानों से जंग कर रहे हैं, औरतों और बच्चों पर बम बरसा रहे हैं।

मैं आपके सामने बिर्टिश जासूस मिस्टर हेनफेर की आपबीती की एक दस्तावेज़ पेश करना चाहता हूँ जिसका जानना हमारे लिये बहुत अवश्यक है वह कहता है कि 500 पेज की एक किताब में इस्लाम को समाप्त करने का एक प्लान लिखा गया था मैंने इसको पढ़ा इस किताब में नक़्शे, आंकड़े और इस्लाम को समाप्त करने के तरीक़ों को 14 घंडो में लिखा गया था।

पहला खंड यह है कि हम सारी शक्तियां जिनको इस्लाम से ख़तरा है एक होना चाहिये। जिसके बाद फ़्रांस, ब्रिटेन और रूस एक होते हैं जो इस समय की शक्ति थे और जिन्होंने ने इस दुनिया के अधिकतर देशों को अपने क़ब्ज़े में कर रखा था।

दूसरा खंड में भी यही कहता  है।

तीसरे खंड में यह है कि हमको युद्ध आरम्भ करना चाहिये क़ौमी, नस्ली और साम्प्रदायिक जंग, अगर हम देखों तो वहाबियों ने उस्मानियों के विरुद्ध जो जंग आरम्भ की वह एक दीनी जंग थी, इरान इराक़ की आठ साल की जंग, जंग का लाभ यह है कि जंग करने वाले देशों की शक्ति को कम कर देती है, हथियार बेचने वाले देशों के लिये एक बाज़ार तैयार करती है और यह यमन की जंग, ISIS का इराक़ और सीरिया में आना, अफ़गानिस्तान की अशांति यह सभी यूरोप की डूबती अर्थव्यवस्था के लिये एक सहारा है।

चौथाः इस्लामी देशों को ग़ैर मुसलमानों के हाथ में दिया जाए। मदीने को यहूदियों के हाथ में होना चाहिये, जो कि आज हो चुका है, इरान में रज़ा शाह जिसके अंदर इस्लाम की बू भी नहीं थी का आना, तुर्की जो एक समय में उस्मानी सत्ता का केन्द्र था अतातुर्क की हुकूमत आती है और वहां मस्जिदों को चर्चों में बदल दिया जाता है, पर्दा करना अपराध हो जाता है, लिपि बदल दी जाती है...।

पाँचवाः हमको बड़ी इस्लामी हुकूमतों को समाप्त करना चाहिये जैसे उस्मानी हुकूमत, बड़ी हुकूमतें का लाभ यह है कि अगर आपने बड़ी हुकूमत जिसमें मान लीजिये एक अरब लोग हों के एक भाग पर हमला किया तो उसका अर्थ यह है कि आपने एक अरब लोगों के साथ जंग का एलान किया है, लेकिन अगर इन्ही को छोटे छोटे हिस्सों में बांट दिया जाए तो दूसरी तरफ़ से कोई बोलने वाला नहीं होगा।

छठाः इस्लाम को समाप्त करने के लिये इस्लाम में फ़िरक़े बनाए जाएं, और यह एक बहुत बड़ी और ख़तरनाक साज़िश है, हर सम्प्रदाय का एक लीडर है और हर सम्प्रदाय दूसरे के मुक़ाबले में तअस्सुब और विशेष कट्टरता रखता है, जिसका अर्थ यह हुआ कि अगर आप एक सम्प्रदाय के विरुद्ध जंग करें तो दूसरा सम्प्रदाय उसपर प्रतिक्रिया नहीं दिखाएगा। जिसके बाद रूसी जासूस कीनियाज़ डाल कुर्की ने शियों में बहाईयत को पैदा किया और सुन्नियों से वहाबियत को पैदा किया जाता है।

सातवाः मुसलमानों के बीच, जिना, लवात, शराब, जुआ को रिवाज दिया जाए अगर यह चीज़ें मुसलमानों में पैदा कर दी गईं तो उनके अंदर बुराईयों से लड़ने का जोश समाप्त हो जाएगा, क्यों? क्योंकि इंसान लड़ता उस समय है कि जब उसको उस चीज़ पर विश्वास और ईमान होता है।

जिसके बाद 7000 ईसाई फादर इकट्ठा हुए और उन्होंने इस्लाम को समाप्त करने के लिये अपनी अपनी राय पेश की जिस्में से 700 को चुना गया उन 700 में से 70 को उन 70 में से 7 को और उसके बाद एक राय को चुना गया जिसमें कहा यह गया था कि हमको मुसलमानों के बीच बेहिजाबी और बेपर्दगी को रिवाज देना चाहिये। और आज अलग अलग बहानों से इसको फैलाया जा रहा है। फैशन के नाम पर फिल्मों से कार्टूनों से... और आज वहाबी यही कर रहे हैं जैसे कि कुछ वहाबी मौलवियों ने यह एलान किया है कि हम लवात एव समलैगिंता को हराम नहीं मानते हैं क्योंकि इसके बारे में क़ुरआन में कोई स्पष्ट आदेश नहीं है आज वहाबी पेशनमाज़ अपने समलैंगिक होने का एलान कर रहे हैं।

आठवाः भ्रष्टाचारी और बुरे सत्ताधारियों को पैदा करना जो साम्राजी शक्तियों की बातों को मानें और उनके अनुसार चलें जैसे ईरान में रज़ा शाह और मोहम्मद रज़ा शाह, तुर्की में अतातुर्क।

नवाः अरभी भाषा को रोकना और दूसरी भाषाओं को उसके स्थान पर रखना जैसे अगर आप आज भारत में देख ले तो बहुत संभव है कि एक मुसलमान युवक अंग्रेज़ी तो फर्राटे से बोल लेता हो लेकिन अरबी इतनी भी न जानता हो कि क़ुरआन भी पढ़ सके, यह लोग अपनी भाषा के माध्यम से अपने कल्चर को पहुँचा रहे हैं लेकिन अरबी को रोककर इस्लामी कल्चर से दूर कर रहे हैं।

दसवाः सत्ताधारियों एवं बादशाहों के आसपास जासूस लगाना और इन जासूसों को बड़े पदों पर पहुँचाना ताकि यह मुसलमानों की ख़ुफ़िया सूचनाओं को हम तक पहुँचा सकें।

ग्यारहवाः ईसाई प्रचारक यानी हमारे समाज के पढ़ेलिखे लोग फ़ादर हो यानी अगर कोई डाक्टर है तो यह लोग उससे कहते हैं कि तुम डाक्टरी तो कर रही रहे हो ईसा मसीह के नाम पर यह करो, ईसा की एक फोटो लगा लो ताकि एक ईसाई डाक्टर हो और जो लोग तुम्हारे पास आएं वह ईसाई बन सकें।

बारहवाः जवानों को उनके धर्म के संबंध में शंकाओं में डालना। और इसके लिये विभिन्न प्रकार की शंकाएं पैदा करते हैं और जवानों के दिलों में डालते हैं और अगर यह जवान उसका उत्तर न दे सके तो यह शंका उसके दिल में रह जाए और बाद में उसकों गुमराह किया जा सके।

तेरहवाः गृह युद्ध और और फ़साद फैलाना,

इसके बाद वाले प्रोग्राम में हम आपको बताएंगे कि जब यह साम्राजी शक्तियां मिली तो उन्होंने किस प्रकार अपने इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया और इस्लाम को किस किस प्रकार मिटाने की कोशिश की।

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