यमन की अतुल्य सांस्कृतिक धरोहरों की लूटपाट
यमन की अतुल्य सांस्कृतिक धरोहरों की लूटपाट
तेरह मई को मिस्र की राजधानी क़ाहिरा में संयुक्त राष्ट्र संघ और ग्यारह अरब देशों की दो दिवसीय कांफ़्रेंस आयोजित हुई। इस कांफ़्रेंस के उद्घाटन समारोह में यूनेस्को की प्रबंधक एरिना बोकोवा ने कहा कि मध्यपूर्व में प्राचीन धरोहरों को तबाह करने के लिए चरमपंथी गुटों की कार्यवाहियों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। बोकोवा ने इन विध्वंसक कार्यवाहियों को मानवता के विरुद्ध अपराध बताया और कहा कि इन प्रकार की कार्यवाहियों का लक्ष्य, क्षेत्र के लोगों के मध्य भय उत्पन्न करना है। प्राचीन धरोहरों के लिए काम करने वाले के प्रमुख डिबोरा लेयर ने कहा कि यह कांफ़्रेंस उन लोगों के लिए आयोजित हुई है जो हमारी ऐतिहासिक धरोहरों को तबाह करना चाहते हैं।
प्राचीन अवशेषों का गठबंधन एक ऐसी संस्था है जिसमें विदेशी पुरातन वेत्ता और प्राचीन धरोहरों के विशेष शामिल हैं जिसका लक्ष्य, पूरी दुनिया में प्राचीन धरोहरों की रक्षा करना है। क़ाहिरा कांफ़्रेंस के उद्घाटन समारोह में, मिस्र के प्राचीन अवशेषों के मंत्री ने भी मध्यपूर्व की ऐतिहासिक धरोहरों के सामने मौजूद ख़तरों की ओर से सचेत किया।
रिपोर्टों के अनुसार, हालिया वर्षों में मध्यपूर्व विशेषकर अरब देशों की प्राचीन धरोहरों को तबाह करने की प्रक्रिया में काफ़ी तेज़ी आई है। उदाहरण स्वरूप आईएसआईएल के चरमपंथियों ने बुल्डोज़र द्वारा इराक़ में नमरूद नगर के एक बड़े भाग को तबाह कर दिया था। यह नगर, नौ शताब्दी ईसा पूर्व एसेरियन शासन श्रंखला के राजा एसेरियन नस्रपाल द्वितीय की राजधानी थी जिसमें सैकड़ों प्राचीन धरोहरें मौजूद थीं। आईएसआईएल के आतंकियों ने पहले इन धरोहरों की लूटपाट की और उसके बाद उन्हें तबाह कर दिया।
संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि हालिया कुछ वर्षों के दौरान सीरिया के 290 सांस्कृतिक धरोहरों के केन्द्र तबाह कर दिए गये या उन्हें भारी हानि पहुंची है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, इन केन्द्रों का एक बड़ा भाग लूटपाट का शिकार हो गया। यूएनआईटीएआर की रिपोर्ट के अनुसार, हलब, दमिश्क़, रक़्क़ह और सीरिया के अन्य शहरों को इस युद्ध के दौरान भारी क्षति का सामना करना पड़ा है।
यूएनआईटीएआर का कहना है कि यह परिणाम उसे सैटेलाइट से प्राप्त चित्रों पर शोध करने वाले एक कार्यक्रम के माध्यम से मिले हैं जिसमें सीरिया के 18 क्षेत्रों की समीक्षा की गयी थी। यूएनआईटीएआर का कहना है कि सैटेलाइट से प्राप्त चित्रों पर शोध करने से यह पता चलता है कि सीरिया की सांस्कृतिक धरोहरों के लिए वास्तव में यह एक ख़तरे की झड़ी है।
यमन, अरब प्रायद्वीप के दक्षिण में स्थित है और प्राकृतिक दृष्टि से, पांच भागों में विभाजित है। पर्वतीय, पठारी, तटवर्ती, मरुस्थल और द्वीप। यमन की धरती, आरंभिक अरबों की संस्कृति का पालना है और सूमेरियों, बेबीलोनिया, एसेरियन और प्राचीन मिस्र के लोग, इनसे बहुत लाभान्वित हुए।
जर्मनी के पूर्वी मामलों के प्रसिद्ध विशेषज्ञ मोरीटेज़ का मानना है कि यमन में पहली बार अक्षर देखे गये और इस बात के विपरीत कि अरबों के नाम से फ़ोनीशिया पंजीकृत है, लिपि के आविष्कारक यमनी थी और फ़ोनीशिया या कनानियों ने अपने लेखन का आधार, यमनी अरब लिपि को माना है। यमन, इस्लामी जगत में लिपियों का सबसे महत्त्वपूर्ण और सबसे बड़ा केन्द्र है। कहते हैं कि यमनी लिपि के नमूनों की संख्या, दस लाख तक पहुंचती है।
इसी प्रकार यमन में बहुत से पर्यटन और ऐतिहासिक स्थल हैं जिनमें प्राचीन सनआ में जामे कबीर नामक मस्जिद है जिसका निर्माण छठी शताब्दी हिजरी में हुआ और यह इस्लामी जगत की तीसरी सबसे प्राचीन मस्जिद समझी जाती है। यहां की मस्जिदे इमाम अली भी बहुत प्रसिद्ध है, यह वही मस्जिद है जहां पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने नमाज़ पढ़ाई थी। इस मस्जिद को यमनी विशेष महत्त्व देते हैं। इनके अतिरिक्त भी यमन में बहुत सी अन्य ऐतिहासिक धरोहरें पायी जाती हैं। राजधानी सनआ के निकट, पत्थरों पर बने महल और विभिन्न दुर्ग भी यहां की ऐतिहासिक धरोहरों में शामिल हैं। अलबत्ता इन समस्त धरोहरों में प्राचीन सनआ शहर को भी शामिल किया जा सकता है। सनआ शहर के दो भाग हैं, प्राचीन और नवीन। कहते हैं कि प्राचीन सनआ शहर को ईश्वरीय दूत हज़रत नूह के पुत्र साम ने बनाया था और यह चार हज़ार वर्ष से अधिक पुराना है। मारिब और सद्दे मारिब नामक शहर, प्राचीन सरवाह नगर, प्राचीन शबाम नगर और अदन की बंदरगाह, इस देश की अन्य प्राचीन धरोहरों के भाग हैं।
इराक़, सीरिया और लीबिया जैसे ऐतिहासिक व प्राचीन देशों की धरोहरों की लूटपाट और उन्हें तबाह व बर्बाद करने का समाचार सुने अभी अधिक समय नहीं हुआ कि विश्ववासियों को यमन की ऐतिहासिक धरोहरों की बर्बादी की चिंता सताने लगी। इस देश की ऐतिहासिक धरोहरें, हज़ारों साल पहले से बाक़ी हैं और सऊदी अरब के अंधाधुंध हमलों के कारण ख़तरे में पड़ी हुई हैं। इन ऐतिहासिक धरोहरों में राजधानी सनआ के केन्द्र में मौजूद बहुमंज़िला इमारतों की ओर संकेत किया जा सकता है जो कई हज़ार वर्ष पुरानी हैं और यह इमारतें मानव इतिहास की सबसे पहली गगन चुंबी इमारतें समझी जाती है। इसी प्रकार इस्लाम धर्म के उदय के समय की ऐतिहासिक मस्जिदें जो हज़ार वर्ष पुरानी हैं और उस्मानी शासन काल में बनी इमारतें हैं और अब भी मौजूद हैं, यहां कि ऐतिहासिक इमारतें हैं। यह इमारत और मस्जिदें यथावत अपनी पुरानी स्थिति पर बाक़ी हैं।
इसी संबंध में अलमनार टीवी चैनल ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि यमनी जनता के मध्य धार्मिक दृष्टि से यहया इब्ने हुसैन इब्ने क़ासिम नामक स्थान और मस्जिद, बहुत महत्त्व रखती है। सऊदी युद्धक विमानों ने यमन पर अतिक्रमण के आरंभ में इस ऐतिहासिक स्थान को लक्ष्य बनाया।
वास्तव में यह कहा जा सकता है कि धार्मिक स्थलों और मस्जिदों पर यह हमले, वही पुरानी अज्ञानता है जो ऐतिहासिक धरोहरों और प्राचीन मानवीय सभ्यता की निशानियों को स्वीकार नहीं करते और विभिन्न प्रकार से इसको तबाह व बर्बाद करने के प्रयास में है। दूसरी ओर यह अतिक्रमण आईएसआईएल द्वारा इराक़ और सीरिया में धार्मिक स्थलों, मस्जिदों और चर्चों को तबाह व बर्बाद करने की याद दिलाते हैं। वहाबी विचारधारा को प्रचलित करने वाला यह शासन, यमन के विभिन्न नगरों पर अपने हवाई हमलों में ऐतिहासिक अवशेषों और प्राचीन धरोहरों को निशाना बना रहा है। यमन पर सऊदी अरब के पाश्विक हमलों में तबाह होने वाली ऐतिहासिक धरोहरों में क़शला नामक दुर्ग की ओर संकेत किया जा सकता है जिसका निर्माण तीसरी हिजरी शताब्दी में किया गया था। इसी प्रकार अदन प्रांत का सैरा नामक ऐतिहासिक दुर्ग जो ग्यारहवीं हिजरी शताब्दी में बना था, इसी प्रकार मारिब प्रांत के प्राचीन उपासना स्थल हैं जो इस्लाम धर्म के उदय से पहले के हैं, इन की भी सऊदी हमले में नुक़सान पहुंचा है जबकि सनआ प्रांत में स्थित फ़ज अतान नामक ऐतिहासिक दुर्ग को भी सऊदी युद्धक विमानों ने निशाना बनाया है।
इसी प्रकार सऊदी अरब के अतिक्रमणकारी युद्धक विमानों ने सनआ प्रांत में स्थित हमरा क्षेत्र में अब्दुर्रहमान बिन हमाम सनआती, शैख़ अहमद बिन मुन्बील, सुफ़ियान बिन एनिया के मज़ारों को भी निशाना बनाया और इसी प्रकार सादा प्रांत की प्राचीन इमारतों और बाज़ार तथा अलहुदैदा प्रांत में ज़ुबैद नामक ऐतिहासिक शहर को भी निशाना बनाया। सऊदी अरब के पाश्विक हमलों में इन धरोहरों को भी निशाना बनाया गया।
यह बिन्दु कदापि भुलाया नहीं जा सकता कि सऊदी अरब यमन पर अपने पाश्विक हमलों के दौरान आम नागरिकों, मस्जिदों और पवित्र स्थलों को यथावत निशाना बना रहा है और यह ऐतिहासिक व मानवीय त्रासदी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। यह ऐसी स्थिति में है कि विश्व समुदाय और यूनेस्को सहित अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने इन कार्यवाहियों पर चेतावनी को ही पर्याप्त समझा और इन संस्थाओं ने आज तक इसको रुकवाने की कोई व्यवहारिक कार्यवाही नहीं की।
प्राचीन धरोहरों के लिए गठबंधन नामक कांफ़्रेंस में यूनेस्को की महासचिव बोकोवा ने सादा और सनआ सहित आवासीय क्षेत्रों पर सऊदी अरब के पाश्विक हमलों पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने इस संबंध में कहा कि इन हमलों से राजधानी में ऐतिहासिक इमारतों को बहुत अधिक नुक़सान पहुंचा है और इसी के साथ प्राचीन शहर सादा तथा प्राचीन नगर बराक़िश को भी भारी नुक़सान पहुंचा है। यह दोनों शहर इस्लाम धर्म के उदय से पहले के हैं।
बोकोवा ने इसी प्रकार कहा कि सऊदी अरब के हमलों से यमन की अद्वितीय सांस्कृतिक धरोहरें जो इस्लामी सभ्यता का ख़ज़ान और मानवीय इतिहास की पहचान है, ध्वस्त हो गयी हैं। हमको यह जान लेना चाहिए कि यह बयान ऐसी स्थिति में सामने आया है कि उक्त कांफ़्रेंस में भाग लेने वालों में सऊदी अरब भी था जो यमन में अपराधों और तबाही का मुख्य ज़िम्मेदार था और है।
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