चौथे इमाम के जन्मदिवक से अवसर पर आपका संक्षिप्त जीवन परिचय
चौथे इमाम के जन्मदिवक से अवसर पर आपका संक्षिप्त जीवन परिचय
ईश्वरीय दूतों और उनके उत्तराधिकारियों की ज़िन्दगी सत्य पर अमल और ईश्वरीय आदेश के पालन का साक्षात रूप है। इन महापुरुषों ने लोगों को ईश्वर के मार्ग पर बुलाने के लिए अलग अलग तरह की शैलियां अपनायी हैं। इन महापुरूषों के जीवन पर थोड़ी सी नज़र डालने से इंसान का मन समीर की भांति आनंद का एहसास करता है। इन महापुरुषों के जन्म दिवस या जयंती से इंसान को इस बात का मौक़ा मिलता है कि वह उनके जीवन के बारे में चिंतन मनन करके अपने सामने नए क्षितिज खोले।
आज इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस है। 38 हिजरी क़मरी की पांच शाबान को जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे ज़ैनुल आबेदीन के जन्म की ख़बर सुनी तो अपना सिर आसमान की ओर करते हुए ईश्वर का आभार जताया और उस वक़्त अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम से श्रद्धा के तहत उनका नाम अली रखा। हज़रत अली बिन हुसैन अलैहिस्सलाम की बहुत सी उपाधियां हैं जिनमें ज़ैनुल आबेदीन भी है। हज़रत अली बिन हुसैन की एक मशहूर उपाधि सज्जाद है जिसका अर्थ है ईश्वर का बहुत ज़्यादा सजदा करने वाला। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कर्बला की हृदयविदारक घटना में अपने पिता इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद, कर्बला के अभियान को सफल बनाने में बहुत ही अहम भूमिका अदा किया। वे इस हृदयविदारक घटना के बाद 34 साल तक ज़िन्दा रहे और इस दौरान उन्होंने ईश्वर की ओर से जनता के मार्गदर्शन की ज़िम्मेदारी निभाई और विभिन्न शैलियों में अत्याचार व अज्ञानता के प्रतीकों के ख़िलाफ़ संघर्ष किया।
इन शैलियों में एक दुआ या प्रार्थना के रूप में लोगों का प्रशिक्षण करने की शैली भी है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की दुआओं का संकलन सहीफ़ए सज्जादिया के नाम से जाना जाता है। सहीफ़ए सज्जादिया इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की ज़बान से ईश्वर को पहचानने का मूल्यवान माध्यम है।
दुआ या प्रार्थना प्रशिक्षण की बेहतरीन शैलियों में शामिल है। इंसान की बुद्धि और भावना पर प्रभाव डालने वाली यह ज़बान, उसमें बहुत अच्छे बदलाव लाती है।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की दुआओं का संकलन सहीफ़ए सज्जादिया इंसान को ख़ुद पहचानने के लिए बहुत अच्छा साधन है। सहीफ़ए सज्जादिया में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने इंसान के प्रशिक्षण का अंतिम लक्ष्य अच्छाइयों के माध्यम उसे ईश्वर के निकट करना बताया है। इस पूरी किताब में हर जगह ईश्वर पर आस्था और उसकी याद का उल्लेख है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम प्रार्थना के रूप में ईश्वर से दिल की बात करने के माध्यम से इंसान के पूरे जीवन को ईश्वर की याद से सुशोभित करना चाहते हैं।
मूल रूप से दुआ इंसान का प्रशिक्षण करती है। दुआ से इंसान की आत्मा पवित्र होती है और ईश्वर तक पहुंचने के लिए मार्ग को आसान बनाती है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम विभिन्न दुआओं में ईश्वर से उसके क़रीब होने की प्रार्थना करते हैं। यह उच्च लक्ष्य हासिल हो सकता है। क्योंकि जो कोई भी ईश्वर से क़रीब होना चाहे तो उसकी याद के माध्यम से उसके निकट हो सकता है। सहीफ़ए सज्जादिया की दुआ नंबर 45 में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कहते हैं, “तू उसके क़रीब है जो तुझसे निकटता चाहता है।”
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम सहीफ़ए सज्जादिया में इंसान के मानसिक प्रशिक्षण पर बल देते हैं। इस प्रकार के प्रशिक्षण के बिना ईश्वर की बंदगी और उसकी प्रसन्नता की प्राप्ति के रास्ते पर आगे बढ़ना असंभव हो जाएगा क्योंकि इंसान की शिक्षा और प्रशिक्षण की प्रक्रिया में सबसे बड़ी रुकावट डालने वाला शैतान इंसान की क्षमताओं को निखरने से रोकेगा। इसी बिन्दु की ओर इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम मकारेमुल एख़लाक़ नामक दुआ में इशारा करते हुए ईश्वर से इस प्रकार दुआ करते हैं, “हे पालनहार! जो कुछ मेरे मन में शैतान झूठ, और ईर्ष्या की भावना को उभारने की कोशिश कर रहा है उसे तू अपनी महानता, अपनी शक्ति और अपनी दुश्मन से निपटने के बारे में सोच से बदल दे।”
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम इस दुआ में तीन चरण ईश्वर की याद, चिंतन मनन और मुक्ति की ओर संकेत कर रहे हैं, क्योंकि भूलना या लापरवाही का शिकार होना इंसान के स्वभाव में है। ईश्वर की याद, चिंतन मनन की भावना का नतीजा है। इसलिए इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ईश्वर की शक्ति के बारे में चिंतन मनन को शैतान की ओर से प्रलोभन से निपटने का मार्ग बताते हैं। स्पष्ट सी बात है कि सार्थक विचार के नतीजे में शैतान से निपटने का उपाय समझ में आएगा।
सहीफ़ए सज्जादिया में एक और महत्वपूर्ण बिन्दु ईश्वर की पहचान है। इसकी ईश्वर का सामिप्य हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका है। ईश्वर पर आस्था, भरोसा और उससे डर, ईश्वर की पहचान से संभव है। अलबत्ता अगर ईश्वर की पहचान मामूली स्तर की होगी तो ईश्वर और बंदे के बीच संबंध कमज़ोर होगा। यह पहचान जितनी मज़बूत होगी उतना ही ईश्वर और बंदे के बीच संबंध मज़बूत होगा। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अनेक दुआओं में ईश्वर की पहचान पर बल दिया है। जैसा कि सहीफ़ए सज्जादिया की पहली दुआ में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कहते हैं, “उस ईश्वर का आभार व्यक्त करता हूं जिसने स्वम को हमे पहचनवाया। उसने हमें अपना आभार व्यक्त करना बताया। उसने उस ज्ञान के द्वार हमारे लिए खोल दिये जिससे उसकी बंदगी की जाती है। एकेश्वरवाद और ख़ुद के अकेले होने की पहचान का मार्ग दिखाया और अपने अय्तित्व के बारे में हर प्रकार के संदेह से दूर रखा।”
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम सहीफ़ए सज्जादिया में ईश्वर को पहचानने की इंसानों के बीच संयुक्त स्वाभाविक भावना को उनके प्रशिक्षण के लिए उपयोग करते हैं। वह सहीफ़ए सज्जादिया में अनेक स्थान पर इंसान की उस आत्मिक शक्ति का उल्लेख करते हैं जो उसे ईश्वर की ओर खींचती है और इसी सुंदर भावना से मदद चाहते हैं। इसी प्रकार सहीफ़ए सज्जादिया में एक और भावना जिसे इंसान के प्रशिक्षण के लिए उपयोग करते हैं वह इंसान में ख़ुद से प्रेम की भावना है। क्योंकि बहुत से प्रेम व रुझान का स्रोत इंसान में यही भावना है।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की ख़ुद और रिश्तेदारों के लिए दुआ, बीमारी के समय शिफ़ा की दुआ, आपदाओं व कठिनाइयों को दूर करने की दुआ, सेहत के लिए दुआ, आजीविका बढ़ाने की दुआ और दुख को दूर करने सहित दूसरी दुआएं इंसान में ख़ुद से प्रेम की भावना को दर्शाती हैं। इस बात में शक नहीं कि अगर ख़ुद से प्रेम की भावना को सही ढंग से प्रशिक्षण के लिए उपयोग किया जाए तो इससे इंसान के लिए सम्मान, परिपूर्णतः और सौभाग्य का मार्ग समतल होगा और अगर इसी भावना को बुरे मार्ग पर लगा दिया जाए तो इंसान में घमन्ड और उद्दंडता आ जाएगी और इस प्रकार इंसान आत्मगुग्धता, घमन्ड और लालच के भंवर में फंस जाएगा।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने सहीफ़ए सज्जादिया में इंसान के प्रशिक्षण के लिए एक और शैली अपनायी है और वह लोगों को शुभसूचना देने तथा आशावान बनाने की शैली है। इस शैली के माध्यम से इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम इंसान से निराशा दूर करते हैं और उसे ईश्वर की कृपा, उसकी मेहरबानियों और उसकी अनुकंपाओं की शुभसूचना देते हैं। यह शैली इंसान को बुरे कर्म छोड़ने के लिए प्रेरित करती है और इस प्रकार वह अपने व्यवहार को बदलता है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम सहीफ़ए सज्जादिया की पचासवीं दुआ में पवित्र क़ुरआन के ज़ुमर सूरे की चौवनवीं आयत का उल्लेख करते हुए कहते हैं, “हे पालनहार! मैंने तेरी किताब में एक शुभसूचना पायी है कि जिसमें तूने कहा है, हे मेरे बंदो! अगर अपनी आत्मा पर अत्याचार किया है और सीमा को पार कर गए हो तब भी ईश्वर की कृपा से निराश मत हो कि ईश्वर सभी गुनाहों को माफ़ करता है।”
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम सहीफ़ए सज्जादिया में ईश्वर की ओर से बंदों को उनके पाप की सज़ा देने में विलंब के ज़रिए भी लोगों का मार्गदर्शन करते हैं। वह बंदे के पाप पर ईश्वर की ओर से दंडित किए जाने के बजाए विलंब जैसे मेहरबानी भरे व्यवहार के बारे में अपने आश्चर्य को सहीफ़ए सज्जादिया की सोलहवीं दुआ में इस प्रकार प्रकट करते हैं,“मुझे दंडित करने में जल्दी न करने का तेरा व्यवहार कितना प्रशंसनीय है। यह इसलिए नहीं है कि तेरे निक्ट मेरी इज़्ज़त है बल्कि यह तेरा मेहरबानी भरा व्यवहार है ताकि तुझे क्रोधित करने और अपमानित करने वाले पाप से ख़ुद को रोक लूं। यह इसलिए भी है कि तू मुझे पाप की सज़ा देने के बजाए उसे माफ़ करना ज़्यादा पसंद करता है।”
पापों का प्रायश्चित इंसान के अंदर सुधार लाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण तत्व है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की नज़र में सिर्फ़ पाप की स्थिति में प्रायश्चित करना काफ़ी नहीं है बल्कि हर उस कर्म पर प्रायश्चित करना चाहिए जो ईश्वर की प्रसन्नता से दूर करता है। जैसा कि सहीफ़ए सज्जादिया की 41वीं दुआ में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, “हे पालनहार! मैं मन के विचार, दृष्टि और ज़बान की उस बातचीत के संबंध में प्रायश्चित करता हूं जो तेरी इच्छा के ख़िलाफ़ या तेरी दोस्ती से दूर करती है।”
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के मूल्यवान उपदेश इंसान को हमेशा व्यवहार में संतुलन अपनाने, ईमान को मज़बूत बनाने, ईश्वर की पहचान बढ़ाने तथा आत्मा की शुद्धता के लिए प्रेरित करते हैं। हमें इन मूल्यवान उपदेशों के माध्यम से अपने चरित्र और आत्मा को पवित्र बनाने की कोशिश करनी चाहिए ताकि सच्ची बंदगी के मार्ग पर चल सकें।
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