सैय्यदुश शोहदा के जन्मदिवस के अवसर पर विशेष
सैय्यदुश शोहदा के जन्मदिवस के अवसर पर विशेष
3 शाबान सन चार हिजरी क़मरी को मदीना शहर ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम के परिवार में एक बच्चे के आगमन का मेज़बान था। ऐसा परिवार जिसे ततहीर नामक आयत उतरने के बाद पैग़म्बरे इस्लाम बार बार ईश्वरीय दूत के परिजन कह कर संबोधित करते और सलाम करते थे। उस दिन पैग़म्बरे इस्लाम इमाम हुसैन के सूर्य समान वजूद के प्रकट होने का इंतेज़ार कर रहे थे। जिस वक़्त हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का कमरा इमाम हुसैन के वजूद से प्रकाशमान हो गया। उस वक़्त पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने आवाज़ दी, अस्मा मेरे बेटे को ले आओ। अस्मा ने कहा, हे ईश्वरीय दूत अभी हमने बच्चे को साफ़ भी नहीं किया है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने तअज्जुब से कहा, तुमने उसे साफ़ करने की बात कही? अस्मा चिंतित हो उठीं और उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम से हक़ीक़त को पता किया और फिर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को पैग़म्बरे इस्लाम के पास लेकर पहुंची। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को गोद में लेकर चूमा और धीरे धीरे उनसे बात करने लगे जिस तरह बच्चों से की जाती है।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को बहुत मानते थे। उनकी गोद में उन्हें सुकून मिलता था। पैग़म्बरे इस्लाम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को देख कर ख़ुश हो जाते थ। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का बचपन अपने नाना के साथ ख़ुशियों में बीता। पैग़म्बरे इस्लाम की गोद इमाम हुसैन के ख़ुश रहने का स्थान था। पैग़म्बरे इस्लाम बच्चों की ज़बान में उनसे बाते करते और अपने अनुयाइयों के बीच उनके चेहरे को चूमते थे। पैग़म्बरे इस्लाम इमाम हुसैन से अपने स्नेह को प्रकट करने में तनिक भी संकोच नहीं करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम इमाम हुसैन से इतना स्नेह करते थे कि उनके अनुयाइयों को हैरत होती थी। अपने अनुयाइयों की हैरत पर एक बार पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि उनसे मेरा छुपा हुआ स्नेह उससे कहीं ज़्यादा है जितना तुम प्रकट रूप में देख रहे हो। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी इस बात से सबका ध्यान इस हक़ीक़त की ओर मोड़ा कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से उनका स्नेह, आम स्नेह नहीं है जो एक नाना को अपने नवासे से होता है बल्कि यह ईश्वर की ओर से दी गयी भावना के कारण था। जैसा कि यह बात सब समझते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम आम लोगों की तरह नहीं थे। पवित्र क़ुरआन के नज्म सूरे की आयत नंबर 3 और 4 में यह बात स्पष्ट शब्दों में ज़िक्र है कि पैग़म्बरे इस्लाम की बातचीत और व्यवहार के पीछे उनकी व्यक्तिगत इच्छा नहीं होती बल्कि उनकी हर बात और व्यवहार ईश्वर की इच्छा के अधीन होता है। इसी प्रकार अहज़ाब सूरे की 21वीं आयत में इश्वर कह रहा है, उनका व्यवहार मोमिन लोगों के लिए आदर्श है। पैग़म्बरे इस्लाम को जितना स्नेह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से था वह स्नेह किसी से न था।
सुन्नी मत की ज़्यादातर किताबों में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से पैग़म्बरे इस्लाम के अथाह स्नेह का उल्लेख मिलता है। इतिहास में है कि एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम अपने अनुयाइयों के एक गुट के साथ किसी के यहां मेहमानी में जा रहे थे। पैग़म्बरे इस्लाम आगे आगे चल रहे थे। रास्ते में उन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को देखा। उन्हें गोद में लेना चाहते थे मगर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इधर उधर दौड़ रहे थे। इस हालत को देख कर पैग़म्बरे इस्लाम मुस्कुराए और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पीछे दौड़े यहां तक कि उन्हें गोद में उठा लिया और प्यार करने के बाद लोगों को संबोधित करते हुए कहा, “हे लोगो! जान लो कि हुसैन मुझसे हैं और मैं हुसैन से हूं। जो हुसैन को दोस्त रखे उसे ईश्वर दोस्त रखता है।”
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का व्यक्तित्व हर आयाम से प्रशंसनीय था।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम सभी मानवीय एवं नैतिक मूल्यों की नज़र से यहां तक कि उपासना की नज़र से भी सबसे अच्छे थे। इमाम हुसैन हमेशा ईश्वर की याद में रहते थे। यहां तक कि कर्बला की हृदयविदारक घटना के बाद जब उमवी कारिन्दों ने उनके पवित्र सिर को भाले पर उठाया उस वक़्त भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पवित्र क़ुरआन की तिलावत कर रहे थे।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम अपने पिता इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के बारे में कहते हैं, “मेरे पिता हुसैन बिन अली दिन रात ईश्वर की याद में गुज़ारते थे। हर रात बहुत ज़्यादा नमाज़ें पढ़ते थे।”
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम धार्मिक मूल्यों और पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण के संरक्षक थे। उन्होंने ईश्वरीय धर्म इस्लाम के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए किसी भी कोशिश में संकोच से काम न लिया यहां तक कि कर्बला में अपनी, अपने साथियों और परिजनों की जान का ईश्वर के मार्ग में बलिदान दे दिया। स्वतंत्रता और अत्याचार से नफ़रत उनकी अद्वितीय विशेषता है। वे न सिर्फ़ यह कि अत्याचार के साथ साठगांठ नहीं कर सकते थे बल्कि वे मानवीय एवं स्वतंत्रतापूर्ण जीवन शैली के संस्थापक हैं जिनका दुनिया के सभी स्वतंत्रताप्रेमियों को अनुसरण करना चाहिए। जिस वक़्त धर्म की आड़ में उमवी शासन के घोर अत्याचार के संकटमय दौर में उनके सामने दो रास्ते थे या तो अत्याचारी व्यवस्था के साथ मिल जाएं या उससे मुक़ाबला करते हुए शहीद हो जाएं तो उन्होंने ऐतिहासिक बात कही। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा, “नहीं! ऐसा हरगिज़ नहीं हो सकता। हुसैन अत्याचार के आगे नहीं झुकेगा।” इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम यह घोषणापत्र सबके सामने यादगार के तौर पर छोड़ गए, “नहीं! ईश्वर की सौगंध! न तो अतिक्रमणकारियों का अपमानजनक आज्ञापालन करुंगा और न ईश्वर के मार्ग में संघर्ष से फ़रार करुंगा जिस प्रकार दास फ़रार करते हैं।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम लोगों के व्यक्तित्व का सम्मान बहुत करते थे ताकि किसी को अपमान का एहसास न होने पाए। इस्लामी इतिहास में एक बहुत मशहूर घटना का उल्लेख मिलता है। वह यह कि एक दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने देखा कि एक व्यक्ति सही ढंग से वज़ू नहीं कर रहा है और उसे सही वज़ू करना सिखाना ज़रुरी है। उन्होंने उस व्यक्ति को सही वज़ू सिखाने का फ़ैसला किया लेकिन उन्हें जब यह महसूस हुआ कि कहीं वह व्यक्ति अपमान का एहसास न करे तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने बहुत ही सुंदर ढंग से उस वृद्ध व्यक्ति को वज़ू सिखाने की शैली अपनायी। उन्होंने उस बूढ़े व्यक्ति से कहा कि हम दो भाई वज़ू करते हैं और आप बताएं कि किसका वज़ू सही है। जब उस बूढ़े व्यक्ति ने इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहिस्लाम के वज़ू करने का तरीक़ा देखा तो समझ गया कि वह ख़ुद सही वज़ू नहीं करता और उसने कहा, आप दोनों ने सही वज़ू किया बल्कि यह मैं हूं जिसे अपना कर्तव्य सही ढंग से नहीं मालूम। आपने बहुत ही बुद्धिमत्ता से हमारा मार्गदर्शन किया।
लोगों के अधिकारों का सम्मान करना इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की एक और विशेषता थी। अब्दुर्रहमान नाम के एक व्यक्ति ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के एक बेटे को पवित्र क़ुरआन का हम्द सूरा सिखाया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उस व्यक्ति को एक हज़ार दीनार, एक हज़ार लेबास सहित, ज़िन्दगी की ज़रूरतों की दूसरी चीज़ें देते हुए कहा, “ये सब तुम्हारे काम के सामने कुछ नहीं है।”
लोगों से दोस्ती और दीन-दुखियों की मदद करना भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की एक और विशेषता थी। एक दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ओसामा बिन ज़ैद नामक व्यक्ति को देखने उनके घर गए। जब उन्हें परेशान देखा तो उसका कारण पूछा। ओसामा ने आह भर कर कहा, “मेरी गर्दन पर दूसरो के अधिकार हैं। मैं क़र्ज़दार हो गया हूं। चाहता हूं कि दुनिया से जाने से पहले लोगों के कर्ज़ लौटा दूं।” इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने तुरंत ओसामा का क़र्ज़ अदा करने का आदेश दिया और वह इस दुनिया से ख़ुशी ख़ुशी चले गए।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की एक और विशेषता दीन दुखियों, अपने पराए की लोगों के सामने और लोगों की नज़रों से छिप कर मदद करना भी थी। वह रात के वक़्त अनाथों, ग़रीबों और वंचितों के लिए खाद्य पदार्थ अपने कांधे पर लाद कर उनके घर पहुंचाते थे। जब आशूर के दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को शहीद कर दिया गया तो उनके कांधे पर भारी बोझ उठाने के निशान दिखाई दिए। जब इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम से कांधे पर पड़े निशान के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “यह ईश्वर के मार्ग में छिप पर उपहार देने और पुन्य करने के निशान हैं जिसे मेरे पिता रातों को अनाथों और ग़रीबों को बांटते थे।”
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के एक अनुयायी इस बारे में कहते हैं, वह कांधे और पीठ जो समाज के वंचित वर्ग की ज़रूरतों को रात में छिप कर ढोते थे, वे आशूर की शाम अत्याचारियों के अत्याचार से टूट गए।
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