मानवाधिकार इमाम अली (अ) की नज़र में

मानवाधिकार इमाम अली (अ) की नज़र में

मानवाधिकार एक एसा विषय है जिस पर वर्तमान समय में काफी बहस की जाती है। मानवाधिकार वह चीज़ है जो हर इंसान का मौलिक अधिकार है। इस आधार पर हर इंसान को समान अधिकार प्राप्त है चाहे वह काला हो या गोरा, महिला हो या पुरूष। इस संबंध में किसी को एक दूसरे पर कोई प्राथमिकता प्राप्त नहीं है। इस विषय के संदर्भ में हम हज़रत अली अलैहिस्सलाम के दृष्टिकोणों को बयान करेगें। कार्यक्रम में कृपया सदा की भांति हमारे साथ रहें।

अरब प्रायद्वीप में पैग़म्बरे इस्लाम के आगमन से मानवीय समाज में बड़ा परिवर्तन आरंभ हो गये। इन परिवर्तनों में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समस्त क्षेत्र शामिल थे। मानवाधिकार के संबंध में नये मूल्यों के आधार, इस परिवर्तन के स्पष्ट उदाहरण थे। पैग़म्बरे इस्लाम के काल में मानवाधिकार के संबंध में जिन मूल्यों की बुनियाद रखी गयी वे अद्वतीय हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने यहूदियों और ईसाईयों को इस्लामी समाज में स्वीकार करके राष्ट्रीय एकता की आधारशिला रखी। उन्होंने लड़कियों को सम्मान देकर अरब समाज में व्याप्त उस कुरीति का डटकर मुकाबला किया जिसके अंतर्गत लड़कियों को ज़िन्दा दफ्न कर दिया जाता था। इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम ने अरब समाज में व्याप्त दास प्रथा को समाप्त करने के लिए बहुत प्रयास किया। पैग़म्बरे इस्लाम दासों की आज़ादी के लिए अपने अनुयाईयों का प्रोत्साहन करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम के साथी गोला बनाकर बैठते थे और पैग़म्बरे इस्लाम उनके मध्य साधारण रूप से बैठते थे और इस कार्य को वे राजा- महाराजा के सिंहासन पर बैठने पर प्राथमिकता देते थे। यह सब पैग़म्बरे इस्लाम के पावन जीवन के मात्र कुछ उदाहरण थे परंतु यह कुछ चीज़ें भी मानवाधिकार के संबंध में इस्लाम के दृष्टिकोण को भलिभांति स्पष्ट करती हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जिन हस्तियों का पालन- पोषण इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार हुआ उनमें सर्वोपरि हज़रत अली अलैहिस्सलाम हैं और वे समस्त मानवता के लिए उत्कृष्ट आदर्श हैं।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की दृष्टि में सबसे पहला अधिकार जीवन का अधिकार है। इसका अर्थ यह है कि हर इंसान को जीने का अधिकार है और किसी को भी इंसान से यह अधिकार छीनने का अधिकार नहीं है। चूंकि जीवन के बिना किसी अधिकार का कोई अर्थ ही नहीं है इसलिए समस्त अधिकारों पर उसे प्राथमिकता प्राप्त है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के निकट यह अधिकार इतना महत्वपूर्ण है कि वे फरमाते हैं” मुझे पैग़म्बरे इस्लाम से दो किताबें विरासत में मिली हैं एक ईश्वरीय किताब और वह किताब जो मेरी तलवार की न्याम में है” लोगों ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से पूछा कि वह किताब क्या है जो तलवार की न्याम में है? आपने जवाब में फरमाया उस पर ईश्वर का धिक्कार हो जो ग़ैर हत्यारे की हत्या करे या उस व्यक्ति को मारे जिसने उसे नहीं मारा है”

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने यह बात कह कर बयान कर दिया कि तलवार का प्रयोग निर्दोष के विरुद्ध नहीं होना चाहिये। इसी कारण वे मिस्र में अपने गवर्नर मालिके अश्तर से कहते हैं” अवैध खून न बहाना क्योंकि नाहक खून बहाने जैसी कोई अन्य चीज़ इंसान को दंडित नहीं करती और पाप को बड़ा नहीं करती, अनुकंपा को हाथ से नहीं छीनती और जीवन की डोरी को नहीं काटती। इसी संबंध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम परलोक में मिलने वाले दंड की ओर संकेत करते हुए कहते हैं। प्रलय के दिन ईश्वर सबसे पहले जिस चीज़ का फैसला करेगा वह दूसरों के बहाये गये खून हैं” हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस बिन्दु की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि शासक को अपनी सरकार मज़बूत करने के लिए दूसरों का खून नहीं बहाना चाहिये” बड़े खेद की बात है कि इतिहास एसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जिसमें शासकों ने अपनी सरकार मज़बूत करने के लिए लोगों का खून बहाया है। इसी कारण मानवाधिकार के अंतर्राष्ट्रीय घोषणापत्र में जीवन के अधिकार को प्रथम अधिकार के रूप में स्थान दिया गया है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस बारे में फरमाते हैं अपनी सरकार को गलत का खून बहा कर शक्तिशाली न करो कि हराम खून बहाना शक्ति व सरकार को अक्षम बना देता है और सरकार उसके स्वामी के हाथ से दूसरे के पास चली जाती है।

आज़ादी इंसान के प्राथमिक अधिकारों में से है। आज़ादी का अर्थ यह है कि इंसान अपने इरादे का मालिक हो और उसे अपना भविष्य निर्धारित करने का अधिकार हो और किसी को उसकी जान- माल तथा इरादे को छीनने का अधिकार न हो। इस प्रकार की आज़ादी का उल्लेख मानवाधिकार के अंतर्राष्ट्रीय घोषणापत्र में किया गया है। यह वह आज़ादी है जिसे ईश्वरीय धर्म इस्लाम ने इंसानों को शताब्दियां पहले दे दिया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम आज़ादी विशेषकर व्यक्तिगत आज़ादी को विशेष महत्व देते थे। इस प्रकार की आज़ादी के सम्मान को हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पावन जीवन में भलिभांति देखा जा सकता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सरकार में विरोधियों और शत्रुओं को दूसरे लोगों की भांति किसी प्रकार के भेदभाव के बिना समान अधिकार प्राप्त था। एक दिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम के एक विरोधी ने भाषण देते समय उन्हें बुरा- भला कहा। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के चाहने वालों ने उस व्यक्ति को दंडित करना चाहा परंतु उन्होंने  अलैहिस्सलाम ने इस बात की अनुमति नहीं दी और फरमाया छोड़ो, बुरा- भला कहने का जवाब बुरा- भला कहना है या पाप से क्षमा कर देना है। इसी कारण हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने मुखर विरोधी व शत्रु खवारिज की ओर संकेत करते फरमाया उन सब के मेरी गर्दन में तीन अधिकार हैं। पहला अधिकार यह है कि उन्हें उपासना करने के लिए मस्जिद में जाने से न रोकूं। दूसरा अधिकार यह है कि जब तक उनके हाथ हमारे हाथ में हैं तब तक उन्हें माले गनीमत अर्थात युद्ध में प्राप्त होने वाले धन से वंचित न करूं और तीसरा व अंतिम अधिकार यह है कि जब तक वे हमसे युद्ध नहीं करते तब तक हम उनसे युद्ध न करें।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की एक विशेषता समस्त लोगों के साथ समान व्यवहार करना है। जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम सत्ता में थे तब बैतुल माल अर्थात राजकोष को लोगों के मध्य समान रूप से वितरित करते थे और सब को तीन दीनार देते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के एक अनुयाई सहल बिन हुनैफ ने उनसे कहा। यह व्यक्ति कल तक मेरा दास था और मैंने आज उसे स्वतंत्र कर दिया और आप उतना ही मुझे दे रहे हैं जितना उसे दे रहे हैं? इमाम ने उसके उत्तर में कहा हां तुम्हें भी उसी प्रकार दूंगा जिस तरह उसे दे रहा हूं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम की पावन शैली का अनुसरण करते थे और लोगों के मध्य हर प्रकार के भेदभाव को अन्याय समझते थे। इसी कारण जिस समय तलहा और ज़ुबैर ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से कहा कि आप हमारे माले ग़नीमत  और जो कुछ हमारी तलवारों एवं भालों ने हमें प्रदान किया है अर्थात उनसे हमें मिला है और दूसरों को बराबर- बराबर दे रहे हैं? उनके जवाब में हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया जान लो कि अतीत में कुछ लोगों ने इस्लाम स्वीकार करने में पहल की और उन लोगों ने इस्लाम की अपनी तलवारों एवं भालों से सहायता की परंतु माले ग़नीमत के बटवारे में पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें दूसरों पर प्राथमिकता नहीं दी और इस्लाम लाने में पहल के कारण उन्हें विशेष दृष्टि से नहीं देखा”

हज़रत अली अलैहिस्सलाम बैतुलमाल और माले ग़नीमत के वितरण में हर प्रकार के भेदभाव से दूर रहते थे। जिन लोगों से कोई ग़लती भी हो जाती थी तब भी उन्हें उनका पूरा अधिकार देते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते थे पैग़म्बरे इस्लाम पापियों को उनके पापों के कारण दंडित करते थे परंतु इस्लाम में उन्हें उनके अधिकारों से वंचित नहीं करते थे और उनके नामों को इस्लाम से नहीं हटाते थे“

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने विभिन्न स्थानों पर धार्मिक अल्प संख्यकों के अधिकारों की बात की है और अपनी कुछ वर्षों की सत्ता में यहूदी एवं ईसाई अल्प संख्यकों के अधिकारों पर बल दिया है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने गवर्नर मालिके अश्तर को संबोधित करते हुए कहते हैं लोगों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार से पेश आओ क्योंकि लोग दो प्रकार के हैं कुछ तुम्हारे धार्मिक भाई और मुसलमान हैं और कुछ सृष्टि में तुम्हारे जैसे हैं।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने इस छोटे से मूल्यवान वाक्य के माध्यम से यह समझा दिया कि समस्त इंसान इंसानियत में बराबर हैं और सबको समान अधिकार प्राप्त हैं। यहां तक कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम की दृष्टि में बैतुल माल में इस्लामी शासक और जनता को समान अधिकार प्राप्त है। एसा नहीं है कि शासक को जनता से अधिक अधिकार प्राप्त है क्योंकि वह शासक है बल्कि उसे भी उतना ही अधिकार प्राप्त है जितना कि आम जनता को।

इतिहास में आया है  कि एक बार हज़रत अली अलैहिस्सलाम की कवच गायब हो गयी उसे कुछ समय के पश्चात हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने एक ईसाई के पास देखा तो उससे कहा। यह मेरा कवच है परंतु उस ईसाई ने इंकार किया और कहा कि यह कवच मेरे पास है और आप अपना होने का दावा कर रहे हैं तो सबूत लाइये। हज़रत अली अलैहिस्सलाम उसे न्यायाधीश के पास ले गये और वहां पर उसके विरूद्ध दावा किया और कहा कि यह मेरा कवच है और मैंने उसे न तो बेचा है और न ही किसी को दान दिया है। अब इसे मैंने इस व्यक्ति के पास पाया है। न्यायधीश ने उस व्यक्ति से कहा कि खलिफा ने अपनी बात कह दी तुम क्या कहते हो? उस व्यक्ति ने कहा कि यह मेरा कवच है। संभव है कि खलिफा भूल रहे हों। उस समय न्यायाधीश ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ओर देखा और कहा कि आप दावा कर रहे हैं और यह व्यक्ति इंकार कर रहा है इसलिए गवाह पेश करना आपकी ज़िम्मेदारी है। उस समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम मुस्कराये और बोले। न्यायधीश सही कह रहा है अब मुझे गवाह लाना चाहिये परंतु मेरे पास कोई गवाह नहीं है। रोचक बात यह है कि यह घटना उस समय की है जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम खलिफा और शासक थे। अगर वे चाहते तो किसी प्रकार के प्रमाण और गवाह के बिना अपना कवच ले सकते थे परंतु उन्होंने अपने व्यवहार से बता दिया कि खलिफा होने के बावजूद मेरा भी वही अधिकार है जो एक आम आदमी का।

मानवाधिकार के अंतर्राष्ट्रीय घोषणापत्र में जिस बात का उल्लेख किया गया है उनमें से एक यह है कि जब तक अपराध सिद्ध नहीं हो जाता तब तक किसी को दंडित नहीं किया जा सकता। इसी आधार पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी सरकार के एक कर्मचारी को आदेश देते हैं कि वह लोगों के मध्य फैसले के लिए सबसे अच्छे व्यक्तियों का चयन करे। जिन व्यक्तियों का चयन किया जाये उनकी विशेषता के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं। उन लोगों के लिए कार्य कठिन न हो, दावा करने वाले लड़ाई- झगड़ा करके उन पर अपने दृष्टिकोणों को न थोप सकें, गहराई से सोच समझकर अमल करें, सतही जानकारी को पर्याप्त न समझें, संदिग्ध स्थानों पर अधिक सोच विचार से काम लें और दूसरों से अधिक प्रमाणों व सबूतों को आधार समझें और वास्तविकता का पता लगाने में सबसे अधिक धैर्यवान हों।

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