बेअसते पैग़म्बर के अवसर पर विशेष
बेअसते पैग़म्बर के अवसर पर विशेष
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम चालिस वर्ष के हो चुके थे।
वह शहर के हो हल्ले से दूर रहकर प्रकृति के आंचल में जाते थे। हिरा नाम की गुफा थी जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम महान व सर्वसमर्थ ईश्वर की उपासना करते थे। वह पहाड़ पर से देखते थे कि लोग किस प्रकार दिग्भ्रमित हैं लोग किस प्रकार बुरी चीज़ों के अभ्यस्त हो गये हैं। अपने हाथों से बनाई चीज़ों की पूजा कर रहे हैं और छोटी -छोटी बातों पर लड़ते -झगड़ते और एक दूसरे का खून बहा रहे हैं।
मानव संसार अज्ञानता के घोर अंधकार में डूब गया है। उस समय पैग़म्बरे इस्लाम चालिस वर्ष के होने वाले थे जब वे इन सब चीज़ों को देखकर दुःखी हो रहे थे।
रजब महीने के अंतिम दिन थे पैग़म्बरे इस्लाम पहले से अधिक हिरा गुफा में जाते थे कभी- कभी वह वहां पर कई दिन तक रुके रहते थे। वह अपनी धर्मपत्नी हज़रत खदीजा से कहते थे कि आप जानती हैं कि मैं आपको कितना चाहता हूं परंतु विचित्र बात है कि आजकल मैं चाहता हूं कि ब्रह्मांड के पालनहार के अलावा किसी का प्रेम दिल में न आने दूं।“
बहरहाल वह रहस्यमयी रात आ गयी। चारों ओर चांद का अद्वतीय प्रकाश फैला हुआ था। हर ओर मौन का वातावरण था। मानो पूरी सृष्टि किसी बड़ी घटना की प्रतीक्षा में थी।
पैग़म्बरे इस्लाम अधिकांश रातों को जाग कर बिताते थे। रातों के अंधेरे में पहाड़ पर कोई आवाज़ नहीं आती थी परंतु चारों ओर फैले हुए मौन और फैली हुई शांति का कुछ और ही अर्थ था।
उस समय के रहस्यमयी वातावरण में अचानक आसमान से प्रकाश चमका और उसने हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के पावन अस्तित्व को प्रकाशित कर दिया। उन्होंने अपने शरीर में कंपन का आभास किया। अचानक एक अस्तित्व उनकी नज़रों के समक्ष प्रकट हो गया।
उसका रूप बहुत ही रोचक और वैभव वाला था। पैग़म्बरे इस्लाम आसमान में जिधर भी देखते थे उधर वह दिखाई देता था। वह वहय अर्थात ईश्वरीय संदेश के फरिश्ते हज़रत जीब्राईल थे।
वह पैग़म्बरे इस्लाम से निकट हुए और उन्होंने इस प्रकार कहा हे मोहम्मद पढ़ो पैग़म्बरे इस्लाम ने ध्यान से देखा कि कोई लिखी हुई चीज़ उनके सामने है।
फिर आवाज़ आई अपने ईश्वर के नाम से पढ़ो। हज़रत मोहम्मद ने कांपती हुई आवाज़ में कहा क्या पढूं?
उस फरिश्ते ने कहा उस ईश्वर के नाम से पढ़ो जिसने ब्रह्मांड को पैदा किया है वही जिसने इंसान को खून के थक्के से पैदा किया है पढ़ो कि तुम्हारा पालनहार हर चीज़ से बड़ा व महान है वह ईश्वर जिसने क़लम के माध्यम से ज्ञान दिया और इंसान को वह चीज़ सिखाई जो वह नहीं जानता था”
पैग़म्बरे इस्लाम ने उस आसमानी फरिश्ते के साथ पढ़ना आरंभ कर दिया जब कि उनका पूरा अस्तित्व महान ईश्वर के प्रेम में डूबा हुआ था। एक बार फिर वातावरण में आसमानी आवाज़ गूंजी और कहा हे मोहम्मद तुम ईश्वर के दूत हो”
हे ईश्वर हज़रत मोहम्मद क्या सुन रहे थे? यह कोई स्वप्न नहीं था बल्कि एक खुली वास्तविकता थी। हां महान ईश्वर की इच्छा यही थी कि वह एक बार फिर अपने बंदे से बात करे क्योंकि उसने अपने बंदों में सबसे योग्य हज़रत मोहम्मद को पाया था। हज़रत मोहम्मद को सदैव लोगों के मार्गदर्शन की चिंता रहती थी अब महान ईश्वर ने उन पर भारी ज़िम्मेदारी डाल दी।
पैग़म्बरे इस्लाम के समूचे अस्तित्व में विचित्र आभास समा गया था। गर्मी की वजह से उनका पैर जला जा रहा था। उनका शरीर कांप रहा था वह अपने स्थान से उठना चाह रहे थे परंतु स्वयं के भीतर उठने की क्षमता नहीं पा रहे थे। उसी समय उन्होंने अपना माथा ज़मीन पर रख दिया और फूट फूट कर रोने लगे। उस रात यानी २७ रजब की रात को पैग़म्बरे इस्लाम को पैग़म्बरी का ईश्वरीय दायित्व सौंपा गया।
समस्त ईश्वरीय दूतों को महान ईश्वर ने लोगों के मार्गदर्शन का दायित्व सौंपा है ताकि वे लोगों को अज्ञानता के अंधकार से निकाल कर ज्ञान के प्रकाश में ले आयें और सत्य के मार्ग की ओर उनका पथप्रदर्शन करें।
अलबत्ता समस्त ईश्वरीय दूत अपने समय की विशेष परिस्थिति के दृष्टिगत लोगों के पथप्रदर्शन के लिए विशेष शैली का प्रयोग करते थे।
ईश्वरीय धर्म इस्लाम के फैलने में जो चीज़ प्रभावी रही है उसका संबंध पैग़म्बरे इस्लाम के महान व्यक्तत्व और उनके संदेश व शिक्षाओं से है।
पवित्र कुरआन की शिक्षाएं इस प्रकार हैं कि वे आज भी बहुत से वास्तविकता प्रेमियों को अपनी ओर आकृष्ट कर रही हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम अपने संदेश को बहुत ही तर्क संगत ढंग से और सर्वोत्तम शैली में बयान करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम महान ईश्वर की उपासना की सुन्दरता के बारे में बात करते थे। उस ईश्वर की बात करते थे जिसने ज़मीन, आसमान और पूरे ब्रह्मांड की रचना की है।
पैग़म्बरे इस्लाम सदैव ब्रह्मांड में मौजूद ईश्वरीय निशानियों की ओर संकेत करते थे और लोगों का ध्यान उस ईश्वर की उपासना की ओर ले जाते थे जिसने पूरे ब्रह्मांड को सुन्दर व्यवस्था के साथ पैदा किया है। पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाएं एसी वास्तविकताएं हैं जो पूर्णरूप से इंसान की प्रवृत्ति और उसकी आवश्यकताओं के अनुसार हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम के काल के दुःखी व पीड़ित लोग जब ईश्वरीय धर्म इस्लाम की मुक्ति दायक शिक्षाओं को देखते थे तो उनमें जान आ जाती थी और वे उसे खुले दिल से स्वीकार करते थे और अगर इस्लाम धर्म की शिक्षाओं में यह विशेषता न होती तो लोगों के मार्गदर्शन की भूमि प्रशस्त न होती और जो कुछ पैग़म्बरे इस्लाम कहते थे वह दिलों में बैठ जाता था और बुद्धि उसे स्वीकार करती थी।
इस्लाम धर्म में एक महत्वपूर्ण विषय शिक्षा व -प्रशिक्षा है और यह पैग़म्बरे इस्लाम का एक उच्च उद्देश्य था और वह ज्ञान प्राप्त करने के लिए लोगों का सदैव प्रोत्साहन करते थे। पवित्र कुरआन सूरे जुमा की दूसरी आयत में पैग़म्बरे इस्लाम के उद्देश्यों के एक भाग की ओर संकेत करते हुए कहता है” ईश्वर वह है जिसने अनपढ़ लोगों के मध्य उन्हीं में से अपना दूत बनाया है ताकि वह उनके लिए उसकी आयतों की तिलावत करे और उन्हें पवित्र बनाये।“
इस आधार पर पैग़म्बरे इस्लाम का एक दायित्व लोगों के लिए पवित्र कुरआन की आयत की तिलावत करना और लोगों को गलत आस्थाओं व विचारों से पवित्र करना था तथा उन्हें शिष्टाचार की उच्च विशेषताओं से सुसज्जित करना था।
जैसाकि पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है” मुझे भेजा गया ताकि मैं शिष्टाचार को उसके शिखर बिन्दु पर पहुंचा दूं।“ इस आधार पर पवित्र कुरआन ने पैग़म्बरे इस्लाम का एक उद्देश्य लोगों की शिक्षा- प्रशिक्षा और उन्हें पवित्र करना बताया है।
दूसरे शब्दों में इंसान के अंदर नीहित योग्यताओं को परिपूर्णता के शिखर पर पहुंचाना है और इसी शिक्षा की छत्रछाया में महान ईश्वर के साथ इंसान और समाज के संबंधों को सुधारा जा सकता है।
पैग़म्बरे इस्लाम न केवल कथन बल्कि व्यवहार में भी सर्वोत्तम आदर्श थे। पैग़म्बरे इस्लाम स्वयं दूसरों से अधिक धार्मिक शिक्षाओं का पालन करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम का व्यवहार इतना अच्छा और शालीन था जो लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करता था। यह पैग़म्बरे इस्लाम का व्यवहार ही था जिसने अज्ञानी अरबों को पैग़म्बरे इस्लाम के पास एकत्रित कर दिया था और पैग़म्बरे इस्लाम ने उनका मार्ग दर्शन किया।
ईश्वरीय धर्म इस्लाम के प्रचार के दौरान पैग़म्बरे इस्लाम के जीवन का सबसे कठिन समय अरबों और अनेकेश्वरवादियों के विचारों व आस्थाओं को परिवर्तित करना था। अधिकांश अरब बहुत पक्षपाती थे। पैग़म्बरे इस्लाम एसी परिस्थिति में सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत ही सूक्ष्म एवं गहन बिन्दुओं पर ध्यान देते थे। पैग़म्बरे इस्लाम समस्त इंसानों यहां तक कि पक्षपाती अरबों की प्रतिष्ठा का भी सम्मान करते थे।
पैग़म्बरे इस्लाम हर प्रकार की हिंसा व तनाव से मुक्त वातावरण में अपने संदेशों को पहुंचाने का प्रयास करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम अज्ञानी लोगों को भी कभी हेय की दृष्टि से नहीं देखते थे और अगर उनके साथ बहस करने के लिए बाध्य होते थे तो उनमें से किसी का मज़ाक नहीं उड़ाते थे और उचित समय पर उनसे दोबारा बहस करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम जब बहस शुरू करते थे तो एसे बिन्दु से बहस का आरंभ करते थे जिसे सामने वाला पक्ष स्वीकार करता था। पैग़म्बरे इस्लाम विशेषकर जब आसमानी किताब मानने वालों से बहस करते थे तो इस शैली का प्रयोग करते थे।
पैग़म्बरे इस्लाम अपने निमंत्रण के समय सामने वाले व्यक्ति की क्षमता को पूर्णरूप से दृष्टि में रखते थे। समाज के समस्त आयु के लोगों के साथ पैग़म्बरे इस्लाम संबंध स्थापित करने का प्रयास करते थे। वे धनी निर्धन, महिला, पुरूष और जवान तथा बूढ़े सबको को इस्लाम की ओर आमंत्रित करते थे। जब पैग़म्बरे इस्लाम का अन्य ईश्वरीय धर्मों के अनुयाईयों से सामना होता था वे धार्मिक समानताओं पर बल देते थे।
कभी पैग़म्बरे इस्लाम की एक मुस्कान सामने वाले पक्ष पर इतना प्रभाव डालती थी कि वह पैग़म्बरे इस्लाम का अनुयाई हो जाता था। पैग़म्बरे इस्लाम के निमंत्रण का आधार एकेश्वरवाद था और इसी की छत्रछाया में वे लोगों का मार्गदर्शन सत्य की ओर करते थे और फरमाते थे कि कहो ईश्वर के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं है मुक्ति पा जाओगे। इंसान के लिए बेहतरीन ईश्वरीय उपहार इस्लाम है जिसे पैग़म्बरे इस्लाम ने लोगों को दिया।
आज हम एसे लोगों के हाथों निर्दोष मुसलमानों की हत्या के साक्षी हैं जो इस्लाम से पहले वाले अज्ञानता के काल में पलट गये हैं। पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की घोषणा के शुभ अवसर पर हमें इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं पर एक दृष्टि डालने का दोबारा सुनहरा अवसर मिला। वास्तव में पवित्र कुरआन, पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों की शिक्षाएं आज अज्ञानता के अंधेरे में रहने वाले इंसानों के लिए प्रज्वलित चेराग़ हैं और जो इंसान भी उनकी शिक्षाओं का पालन करेगा लोक- परलोक में उसका जीवन सफल हो जायेगा।
नई टिप्पणी जोड़ें