यमन पर सऊदी आक्रमण, कारण, आंकड़े और समीक्षा
यमन पर सऊदी आक्रमण, कारण, आंकड़े और समीक्षा
अनुवादकः सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
यमन जिसको कुछ विश्लेषक अरब देश का अफ़्ग़ानिस्तान और कुछ दूसरे अरब का वियतनाम कहते हैं, इस समय बहुत ही संकट के समय से गुज़र रहा है वहाबी सऊदी अरब के 26 मार्च 2015 से जारी हमले ने यमन के मानवीय त्रास्दी के मुहाने पर पहुंचा दिया है, वह त्रास्दी जिनस ने दूसरे देशों और सऊदी अरब की सुरक्षा व्यवस्था को संकट में डाल दिया है। हम अपने इस लेख में यमन पर सऊदी हमले, इस देश में पैदा होने वाले संकट, इस संकट के किरदार, हमले के कारण और इसके लिये वजूद में आने वाले संगठन के बारे में विश्लेषण करेंगे।
यमन पर हमले के कारण
यमन में 21 सितम्बर 2014 की संधि के बाद से ही खींचतान भरी राजनीतिक जंग चल रही थी, इसके बावजूद फरवरी और मार्च के महीने में कुछ घटनाएं घटीं जिसके बाद सऊदी अरब ने इस देश पर सैन्य आक्रमण कर दिया। फ़रवरी में राष्ट्रपति आफिस के प्रमुख एवज़ बिन मुबारक को अंसारुल्लाह बलों ने जासूसी और देश की अखंडता के विरुद्ध कार्य करने के जुर्म में गिरफ़्तार किया। उसी समय अंतरिम राष्ट्रपति अब्दे रब्बेह मंसूर हादी, और प्रधानमंत्री ख़ालिद बहाह ने यमन की जनता पर दबाव डालने के लिये अपने पद से इस्तिफ़ा दे दिया। लेकिन अंसारुल्लाह ने इस कार्य की प्रतिक्रिया में -जिसमें विदेशी हस्तक्षेप भी- था ने संविधान का व्क्तत्व जारी किया जिसके अनुसार राष्ट्रपति परिषद का गठन होता और यमन की प्रतिनिधि सभा भी भंग हो जाती। मंसूर हादी इसके बाद अदन भाग गये और यह शहर जो कि एक बंदरगाही शहर है और दक्षिणी यमन का केन्द्र और यमन का दूसरा सबसे बड़ा शहर है में अपने अरबी समर्थकों की सहायता से अंसारुल्लाह के विरुद्ध मोरचा खोल दिया और खाड़ी सहयोग परिषद से यमन में सैन्य हस्तक्षेप की मांग की। इसके बाद 18 से 25 मार्च तक यमन में कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं जिसके बाद अंतः सऊदी अरब के नेत्रत्व में गठित गठबंधन ने आक्रमण कर दिया। अंसारुल्लाह आंदोलन के प्रतिनिधि अब्दुल करीम अलखडैवानी की हत्या कर दी जाती है। 20 मार्च को भी सनआ की हशहूश और बद्र मस्जिदों में आतंकवादी हमले होते हैं जिसमें अंसारुल्लाह के सैकड़ों बल और समर्थक घालय और मारे जाते हैं।
अंसारुल्लाह ने इन धमाकों पर प्रतिक्रिया दिखाते हुए पहले तअज़ शहर (यमन के तीसरे सबसे बड़े शहर) की तरफ़ आगे बढ़े और इस शहर और एयरपोर्ट पर कंट्रोल कर लिया और इस शहर की सरकारी इमारतों, सैन्य प्रतिष्ठानों और अदालतों पर क़ब्ज़ा कर लिया। अंसारुल्लाह ने तअज़ पर क़ब्ज़ा करने के बाद अदल शहर जो कि अंसारुलल्ह के विरुद्ध कार्यवाहियों का केन्द्र था औक मंसूर हादी भी वहीं थे हरकत की और 25 मार्च को इस शहर पर अपना कंट्रोल कर स्थापित कर लिया। मंसूर हादी एक बार और भागे और इस बार अदन से यमन के बाहर भाग खड़े हुए. अंसारुल्लाह का अद्न जैसे सामरिक शहर पर कंट्रोल करना यमन की राजनीति में मंसूर की वापसी के रास्तों के बंद होने और खाड़ी परिषद के 2011 के प्रोजेक्ट का फेल हो जाना था। इसीलिये सऊदी अरब को कि अंसारुल्लाह के शक्ति में आने और डेमोक्रेसी का कट्टर विरोधी था ने 23 मार्च को यमन की सीमा पर अपने सैनिकों की संख्या को बढ़ा दिया, सऊदी अरब ने मंसूर हादी को अधिकारिक राष्ट्रपति घोणित किया और 26 मार्च के यमन में अधिकारिक राष्ट्रपित की वापसी के लिये तूफ़ाने काते नाम से यमन और अंसारुल्लाह के विरुद्ध हमलों का आग़ाज़ कर दिया, इन विध्वंसक और बर्बर हमलों के बाद यमन की हालत यह है कि यह देश एक मानवीय त्रास्दी के मुहाने पर खड़ा है।
यमन त्रास्दी और संकट आकड़ों में
यमन पर सऊदी अरब के हमले ने जहां हज़ारों घायल और मौतें छोड़ी हैं दूसरी तरफ़ यमन के लोगों के जीवन स्तर और कारोबार को ठप कर दिया है। युद्ध के पहले दो हफ़्तों में कम से कम 519 लोग मारे गये और 1700 लोग घायल हुए, यूनेस्कों ने एलान किया है कि युद्ध के पहले दो सप्ताहों में कम से कम 74 बच्चों की मौत हुई हैं और 44 घायल हुए हैं (Gazali, 13 April 2015: 2), संयुक्त राष्ट्र ने भी एलान किया है कि यमन में खाद्य पदार्थ की सुरक्षा अपने न्यूनतम स्तर पर पहुँच चुकी है और इस युद्ध के कारण एक करोड़ बीस लाख से अधिक यमनी नागरिक खाद्य पदार्थों की भयानक कमी से जूझ रहे हैं (UN News Centre, 16 April 2015), यूनेस्कों ने चेतवानी दी है कि खाद्य और ईंधन की कमी का संकट बढ़ रहा है क्योंकि ईधन और गेंहूँ की कश्तियां हदीदा बंदरगाह पर नहीं पहुँच पा रही हैं संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के आंकड़ों के अनुसार केवल अदन शहर की दस लाख की आबादी (Naylor, 6 April 2015: 4) में से एक लाख पाँच हज़ार से अधिक लोग जंग के पहले दो सप्ताहों में बेघर हो चुके हैं। (UN News Centre, 16 April 2015)
यमन संकट के किरदार
यमन के इस संकट को करिदारों के दो भागों में बांटा जा सकता है एक वह जो देशी है और दूसरे जो विदेश हैं, देशी किरदार में अंसारुल्लाह आंदोलन, मंसूर हादी और उनके समर्थक, अली अब्दुल्लाह सालेह और उनके समर्थक और अलक़ायदा, और विदेशी किरदारों में सऊदी अरब और अमरीका के नेत्रत्व में अंतर्राष्ट्रीय किरदार
अ. देशी किरदार
1. अंसारुल्लाह आंदोलनः निःसंदेह अंसारुल्लाह आंदोलन कि जिसका नेत्रत्व अब्दुल मलिक अलहौसी कर रहे हैं, यमन में इस समय का सबसे शक्तिशाली, व्यवस्थित राजनीतिक और सैनिक गुट है जिसकी अस्ली मांग नए संविधान की तैयारी, आज़ाद चुनाव का आयोजन, डेमोक्रेटिक सरकार का कठन और यमन को संक्रमणकालीन सरकार के बाहर निकालना है। (Ahelbarra, 20 January 2015) अमरीकी लेखक और भू राजनीतिक अनुसंधानकर्ता टोनी कारतालवेची (Kartalvchy) कहते हैं कि अंसारुल्लाह आंदोलन वास्तव में यमन में वह अकेली ताक़त है जो अरब प्रायद्वीप में अलक़ायदा से लड़ रही है। (Cartalucci, 26 March 2015: 3)
2. मंसूर हादी और उनके समर्थकः अबदे रब्बेह मंसूर हादी जो यमन के सुन्नियों में शुमार है 2012 में राष्ट्रपति हुए, यह यमन के इस संकट के अस्ली किरदारों में से है, मंसूर हैदी ने रामरिक महत्व रखने वाले शहर अद्न की तरफ़ भाग कर जहां एक तरफ़ यह प्रयत्न किया कि इस शहर में एक मुक़बले की सरकार बनाए दूसरी तरफ़ सऊदी अरब और खाड़ी सहयोग परिषद से मांग की कि यमन में सैन्य हस्तक्षेप करें। जब्कि अंसारुल्लाह द्वारा यमन की जीत से मंसूर हादी और उनके समर्थकों का इस शहर पर कंट्रोल कमज़ोर हुआ था सऊदी अरब के हमले से दोबारा मंसूर हादी के समर्थकों और अंसारुल्लाह आपस में भिड़ गये और एक तरफ़ जहां यह यमन के हालियां संकट की एक कड़ी है दूसरी तरफ़ यह लोग इस देश के विरुद्ध सैन्य गठबंधन का समर्थन करते हैं। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि मंसूर हादी यमन की अधिकतर जनता के बीच अब लीडर नहीं रहे हैं (The Economist, 4 April 2015) और सऊदी अरब एवं यहां तक की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के दावों के उलट यमन में उनकी कोई वैधता नहीं है।
3. अली अब्दुल्लाह साले और उनके समर्थकः इस संकट के तीसरे किरदार अली अब्दुल्लाह सालेह और उनके समर्थक है, अब्दुल्लाह सालेह 2012 में 33 साल बाद खाड़ी सहयोग परिषद के माध्यम से सरकार से हटे, यह सरकार में वापस आने या सरकार में हिस्सा रखने का दावा करते हैं, अगरचे सालेह 2011 में सरकार से हट गये लेकिन राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी जिसका सालेह नेत्रत्व करते हैं के पास मंसूर हादी के दौर में भी बहुत से अधिकार थे और इस समय भी रिपब्लिकन गार्ड के बहुत से लोग सालेह और उनके परिवार के वफ़ादार हैं।
4. अलक़ायदाः अलक़ायदा यमन के हालिया संकट का एक मुख्य किरदार है जो सऊदी अरब के नेत्रत्व वाले गठबंधन के साथ साथ अंसारुल्लाह से लड़ रहा है। ग्लोबल रिसर्च यमन में अलक़ायदा को “अमरीकी सम्पत्ती” का नाम देता है (Cartalucci, 26 March 2015: 3)। अगरचे अलक़ायदा के आतंकवादियों की संख्या यमन में बढ़ रही है लेकिन हक़ीक़त यह है कि यमन वह धरती है कि जिसमें अलक़ायदा 2011 से ही हाजिर रहा है, इस प्रकार कि 1990 में बिन लादेन के अधिकतर बाडी गार्ड यमनी थे )। अंसारुल्लाह और अलक़ायदा के बीच जंग यमन के हालिया बदलाव का एक महत्वपूर्ण भाग है और अंसारुल्लाह ने दक्षिणी शहरों से अलक़ायदा को भगाने को सऊदी अरब से मुक़ाबले पर प्राथ्मिक्ता दी है।
ब. विदेशी किरदार
1. सऊदी अरबः सऊदी अरब यमन में अंसारुल्लाह के शक्तिशाली होने का कट्टर विरोधी है और यही वह देश है जो यमन के विरुद्ध सैन्य गठबंधन का नेत्रत्व कर रहा है, सऊदी अरब यमन के विरुद्ध जंग में यमन के सबसे बड़े कबीले अल अहमर, अलइस्लाह पार्टी, यमन के सल्फ़ी तकफीरी गुट और मंसूर हादी के समर्थकों से सहायता ले रहा है। (Wehrey, 26 March 2015: 3) महत्वपूर्ण बात यह है कि सऊदी अरब को 2006 में लंदन सम्मेलन में अरब देशों की तरफ़ से यह जिम्मेदारी दी गई ताकि यमन संकट (हौसियों और अब्दुल्लाह सालेह सरकार के बीच जंग) में हस्तक्षेप करे, सऊदी अरब ने 2009 में भी जब हौसी सालेह की सरकार के विरुद्ध कामियाब हुए थे तो उनके विरुद्ध जंग झेड़ी थी जिसमें सऊदी अरब के 130 अधिकारी मारे गये थे और हौसी बल सऊदी अरब में 25 किलोमीटर तक पहुँच गये थे, सऊदी अरब हौसियों के साथ 2014 में इस दावे के साथ दोबारा युद्ध आरम्भ किया है कि हौसियों को एक आतंकवादी संगठन बताया है। (Ahelbarra, 20 January 2015)
2. अमरीकी नेत्रत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय किरदारः इसमें कोई संदेह नहीं है कि सऊदी अरब का यमन पर आक्रमण अमरीका के समर्थन और हरी झंढी से रो रहा है वाशिंग्टन में सऊदी राजदूत आदिल अलजबीर और कुछ अमरीकी अधिकारियों ने खुल्ला कहा है कि अमरीका को इन हमलों की जानकारी थी और अमरीका ने इसमें सूचनाओं और दूसरे प्रकार से सऊदी अरब की सहायता की है। बिना किसी संदेह के कहा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में यमन संकट के लिये जो प्रस्ताव पारित हुआ है और जिसमें और जिसमें हौसियों को हथिया पहुँचाने से रोके जाने की बात कही गई है इसके पास करवाने में अमरीका ने बहुत अहम रोल अदा किया है, यह प्रस्ताव जिसके बारे में 14 वोट पड़े और केवल रूस ने ही इसका विरोध किया, यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा सऊदी अरब को यमन पर हमला करने का लाइसेंस देना ही है।
सऊदी अरब यमन के विरुद्ध जंग में यमन के एक बड़े कबीले अल अहमर, इसलाह पार्टी, यमन के सलफ़ी गुटों और मंसूर हादी के समर्थकों की सहायता ले रहा है।
सऊदी अरब ने यमन पर आक्रमण क्यों किया?
सऊदी अरब ने 26 मार्च को यमन पर आक्रमण किया, यह हमला क्षेत्र में बदलते हालात पर आले सऊदी की जुनूनी कार्यवाही थी, और यह एक प्रकार से दूसरे देशों के राजनीतिक हालात में सऊदी अरब के हस्तक्षेप की छिपी सियासत के खुली सियासत तक का सफ़र है। जार्ज टाउन अमरीका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर शीरीन हार्टर, डर, क्रोध और साम्राज्य की चाहत की मिली जुली भावनाओं को सऊदी अरब के यमन पर हमले का कारण बताते हैं। हार्टर कहते हैं सऊदी लोग यमन में हर वह हुकूमत जो उनके कंट्रोल में न हो के मुक़ाबले में अविश्वासी है, विशेषकर तब जब क़रार यह हो कि उस सरकार में शियों की भी हिस्सेदारी हो। उनका डर इस बात से है कि यमन में शियों का सरकार में आने शायद कारण बने के सऊदी अरब के शिया भी राजनीति में अधिक हिस्सेदारी की मांग करने लगें। इसके अतिरिक्त सऊदी हमेशा से क्षेत्र में ईरान और उसके रोल के बारे में संदेह करते रहे हैं और यह चीज़ ईरान में इस्लामी क्रांति से पहले भी पाई जाती थी। लेकिन उस समय पूर्व सोवियत संघ और राडिकल अरबों की एकता के कारण सऊदी के पार ईरान के झेलने के अतिरिक्त कोई और चारा न था, इस समय सऊदी यह सोचते हैं कि यमन सरकार में शियों का बढ़ता दख़ल इस देश में ईरान के दख़ल को बढ़ाएगा। इसके अतिरिक्त इराक़ में ईरान द्वारा आतंकवादी संगठन ISIS को कंट्रोल करने पर भी सऊदी क्रोधित हैं। अंत में सऊदी अरब की बादशाही सरकार सदैव से साम्राजी रही है और उसने अपने आप को अरब दुनिया के लीडर बना कर फ़ारस की खाड़ी और लाल सागर पर कंट्रोल करना चाहता है, और यह सऊदी अरब की 1970 से राजनीतिक सोंच रही है। (समाचार- विश्लेषण एजेंसी बसीरत, शनिवार 4 अप्रैल 2015)
अगर संक्षेप में कहा जाए तो सऊदी अरब के यमन पर हमले के तीन कारण बयान किये जा सकते हैं: यमन का भौगोलिक महत्व, क्षेत्रीय शक्तियों का संतुलन, और सऊदी में शक्ति और व्यवस्थित सरकार का संकट।
1. यमन का भोगोलिक महत्व
यमन पर सऊदी और आठ देशों के गंठबंधन हमले और इस हमले में अमरीका के सऊदी अरब खुला समर्थन का एक बहुत बड़ा कारण उसकी भौगोलिक स्थिति है, सऊदी अरब और इस जंग के दूरे किरदारों के लिये यमन के भौगोलिक एवं राजनीतिक महत्व को दो भागों में बयान किया जा सकता हैः
1. सऊदी अरब के लिये यमन का भौगोलिक महत्वः यमन की भौगोलिक स्थिति सऊदी अरब के लिये बहुत महत्वपूर्ण है, यमन संकट से सऊदी अरब को सुरक्षा और आर्थिक परेशानियां हो सकती हैं एंथनी कोरदर्ज़मन कहते हैं कि यमन सऊदी अरब और अरब प्रायद्वीप की व्यवस्था के लिये बहुत महत्व रखता है। यमन की उत्तर और पश्चिमी सीमाएं सऊदी अरब से मिलती हैं जे 1458 किलेमीटर लंबी है। (Cordesman, 26 March 2015: 5) आर्थिक लेहाज़ से भी सऊदी बंदरगाही रिफ़ाइनरियां (yanbu) यमन के बंदरगाही शहर अदन से मिलती है, (Tim Lister, 23 November 2011: 3) दूसरी महत्वपूर्ण नुक्ता यह है कि सऊदी अरब अपने अधिकतर तेल ना निर्यात बाबुल मंदब कारीडोर से करता है और उसको इस बात की चिंता है कि यमन में सरकार का बदलाव तेल के निर्यात में बाधा डाल सकता है।
2. दूसरे समर्थक देशों के लियें यमन का भौगोलिक महत्वः यमन लाल सागर और हिंद महासागर के बीच में स्थित है, सामरिक दृष्टि की अहमित करने वाले बाबुल मंदब कारीडोर के अतिरिक्त अदन की खाड़ी और सोकोट्रा द्वीप समूह यमन में हैं जिन्होंने इस देश में होने वाले बदलावों के महत्व के बढ़ा दिया है, बाबुल मंदब कारीडोर उत्तर पश्चिम और पूर्वोत्तर में यमन से मिलता है जो अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार और ऊर्जा जहाजों के लिये महत्वपूर्ण है और जिसको एशिया, यूरोप और अफ्रीका में व्यापारिक राजमार्ग समझा जाता है और दुनिया के समुद्री व्यापार का दो-तिहाई भाग इसी जगह से होता है। बाबुल मंदब कारीडोर यमन जिबूती और इरिट्रिया के बीच पड़ता है और लाल सागर को फ़ारस की खाड़ी एवं उत्तरी अफ्रीका से मिलाता है। यह कारीडोर अमरीका के लिये इतना महत्व रखता है कि जिसको अमरीका ने दुनिया के तेल शिपिंग की दृष्टि से महत्वपूर्ण सात सामरिक केन्द्रों में स्थान दिया है। 2013 में लगभग तीन करोड़ आठ लाख बैलत तेल और तेल से बनी चीज़ें बाबलु मंदब से उर्जा बाज़ार में पहुँची है। बाबुल मंदब के कुछ क्षेत्र के यमन में होने के साथ साथ अदन की खाड़ी और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सामरिक सोकोट्रा द्वीप समूह भी इसी देश में पड़ते हैं। (Gazali, 13 April 2015: 3-4)
यमन की भौगोलिक स्थिति फ़ारस की खाड़ी के तेल निर्यातक देशों और मिस्र एवं सूडान जैसे देशों के लिये भी बहुत महत्वपूर्ण है। बाबुल मंदब कारीडोर फारस की खाड़ी को उत्तरीय अफ़रीक़ा से मिलाता है, बाबुल मंदब का बंद होना फ़ारस की खाड़ी के लेत टैंकरों को स्वेज़ नहर तक पहुँचने से रोक सकता है और उनको दक्षिणी अफ़रीक़ा की तरफ़ मुड़ना होगा जिसके कारण जहां समय अधिक लगेगा वही ख़र्चा भी बढ़ेगा। (Gazali, 13 April 2015: 5)
2. क्षेत्रीय शक्तियों का संतुलन
कुछ विष्लेषकों का मानना है कि यमन पर सऊदी हमला ईरान और सऊदी अरब के बीच बढ़ते मुक़ाबले का नतीजा है, वह कहते हैं कि सऊदी अरब सीरिया, इराक़ और लेबनान के संकट में अब तक ईरान से हारता आया है और अब यमन में अंसारुल्लाह की बढ़ती शक्ति को भी अपनी हार समझ रहा है जो पिछली तीन हारों से भी बड़ी है, विश्लेषक लीना ख़तीब का मत है कि यमन सऊदी अरब के हाथों में एक राजनीतिक कार्ड है ताकि वह सीरिया जैसे विषयों पर ईरान के साथ मामला कर सके। (Khatib, 1 April 2015: 1-4)
3. आले सऊद ख़ानदान में शक्ति का संकट
कुछ विश्लेषकों का मत है कि सऊदी अरब के आंतरिक कारण और शाहज़ादों का शक्ति के लिये बढ़ता मुक़ाबला यमन पर हमले का एक कारण ह, मलिक सलमान और मोहम्मद बिन सलमान की साम्राज्यवादी सोंच और आले सऊद ख़ानदान में शक्ति के लिये मुक़ाबला यमन पर सऊदी आक्रमण के जुनून फैसलों का एक कारण है। मलिक सलमान का मानन है कि अगर मोहम्मद बिन सलमान यमन के विरुद्ध जंग में जीत जाता है तो वह आले सऊद और सऊदी जनता के बीच अपना सम्मान बढ़ा सता है और इस प्रकार सऊदी अरब में राजनीति बदलाव आसान हो सकते हैं।(Jansen, 11 April 2015: 3)
सऊदी अरब ने यमन पर हमला करके बहुत बड़ा जुआ खेला है। विश्लेषकों का मानन है कि यमन पर सऊदी हमला दिखाता है कि सऊदी अरब का बूढ़ा और नया बादशाह अपने बेटे मोहम्मद बिन सलमान जो कि ग्रह मंत्री भी है के कंट्रोल में आ गया है।
ढावांडोल गठबंधन
सऊदी अरब ने बहुत कोशिश की ताकि दूसरे और देशों जैसे पाकिस्तान और तुर्की को इस जंग में अपने साथ कर सके, लेकिन पाकिस्तान की पार्लिमेंट ने पाकिस्तान को इस जंग से दूर रहने को कहा और तुर्की ने भी यमन के संकट को बातचीत और डेप्लोमेटिक तरीक़ से हल करने की बात कहीं। इसलिये वह गंठबंधन जो सऊदी अरब के नेत्रत्व में बना था और जिसके बारे में कहा जा रहा था कि उसमें सऊदी के अतिरिक्त दस देश शामिल हैं वास्तव में आठ देश का था। अगरचे इस गठबंधन के आठ देशों में फ़ारस की खाड़ी के चार देश जार्डन, मिस्र, सूडान और मराकिश शामिल हैं (ओमान ने हैसियों के विरुद्ध यमन में सैन्य अभियान का विरोध करते हुए उसमें समिलित होने से इंकार कर दिया) शामिल है लेकिन इन आठ देशों की भागीदारी का स्तर दिखाता है कि यह सैन्य गठबंधन शक्तिशाली नहीं है और यह कभी भी टूट सकता है, इस युद्ध में मिस्र गठबंधन सैनिकों की जल के स्तर पर सहायता कर रहा है लेकिन 6 देशों अमारात, जार्डन, कुवैत, बहरैन, सूडान कतर और सऊदी अरब के वायुयानों की संख्या काफ़ी महदूद है। (Thompson and Torre , 30 March 2015: 1
ऐसा नहीं लगता है कि ज़मीनी युद्ध के लिये सऊदी अरब को समर्थन मिल सके, और जैसा कि इतिहास बताता है कि हवाई हमले कभी भी बिना थल सेना के साथ के कामियाब नहीं हुए हैं।
नतीजा
सऊदी अरब ने यमन पर हमला करके बहुत बड़ा जुआ खेला है, विश्लेषकों का मानना है कि सऊदी अरब का यमन पर हमला करने का फैसला करना दिखाता है कि सऊदी अरब का बूढ़ा और नया बादशाह अपने बेटे मोहम्मद बिन सलमान के कंट्रोल में आ गया है, सऊदी अरब के यमन पर हमले ने न केवल यह की यमन को मानवीय त्रास्दी के मोहाने पर पहुँचा दिया है बल्कि यमन के पडोसी देशों यहां तक की उत्तरीय अफ़रीक़ के देशों में भी सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। यमन पर हमलों का जारी रहना यमनी नागरिकों और वह दस लाख सोमालियाई जो यमन में रहते हैं के पड़ोसी देशों जैसे सऊदी अरब की तरफ़ प्रवास का कारण बन सकता है जो वहां की सुरक्षा को जो इस समय भी बहुत अच्छी नहीं है और संकटमयी बना सकता है। यह हमले दरियाई लुटेरों की गतिविधियों को बढ़ा सकते हैं जिससे ऊर्जा को भेजना कठिन हो सकता है। मोरक्को के राजनयिक जमाल बिन उमर का इस्तिफ़ा जो 16 मार्च को दिया है जो कि यमन में संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि के तौर पर चार साल से कार्य कर रहे थे यमन संकट को और बढ़ा सकता है।
अंतिम बात यह है कि जिस प्रकार अमरीका को पिछले कुछ सालों में यह समझ में आ गया है कि युद्ध को समाप्त करना उसको आरम्भ करने से अधिक कठिन है, सऊदी अरब भी इस समय अपने टूटते गठबंधन के साथ यमन की जंग को समाप्त करना चाहता है जो बहुत ही कठिन है, यमन पर सऊदी हमला आले सऊदी के लिए एक तरफ़ कुआ तो दूसरी तरफ़ा खाई है।
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1. समाचार- विश्लेषण एजेंसी बसीरत, शनिवार 4 अप्रैल 2015, यमन संकट शीरीन हान्टर की नज़र में/ यमन में स्वतंत्र सरकार पर सऊदी अरब का डर।
2. Ahelbarra Hashem, (20 January 2015), Yemen Crisis explained, Aljazeera.
3. Cartalucci Tony, (26 March 2015), Saudi Attack on Yemen - The New Normal?, http://www.activistpost.com/2015/03/saudi-attack-on-yemen-new-normal.html
4. Cordesman Anthony, (26 March 2015), America; Saudi Arabia and the Strategic Importance of Yemen, Center for Strategic &International Studies (CSIS).
5. Eia, (25 September 2014), Yemen, www.eia.gov/countries/cab.cfm?fib=ym
6. Jansen Michael, (11 April 2015), Why is Saudi Arabia bombing Yemen?, The Irish Times.
7. Gazali Abdus Sattar, (13 April 2015), the U.S. Geostrategic objectives behind the war in Yemen, Aljazeera.
8. Khatib Lina, (1 April 2015), Saudi Arabia’s Comeback via Yemen, Carnegie Endowment for International Peace.
9. Naylor Hugh, (6 April 2015), fighting in Yemen is creating a humanitarian Crisis, Washington Post.
10. The Economist, (4 April 2015), the test for a new Monarchy.
11. Thompson Nick and Torre Inez, (30 March 2015), Yemen: Who's joining Saudi Arabia's fight against the Houthis? , CNN.
12. Tim Lister, (23 November 2011), why we should care about Yemen, CNN.
13. UN News Centre, (16 April 2015), as Yemen crisis deepens; UN Food relief agency calls on warring factions to allow supply restock.
14. Wehrey Frederic, (26 March 2015), Into the Maelstrom: The Saudi-Led Misadventure in Yemen, Carnegie Endowment for International Peace.
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