नहजुल बलाग़ा से इमाम अली के स्वर्णीय कथन
नहजुल बलाग़ा से इमाम अली के स्वर्णीय कथन
सकीना बानो अलवी
1- फ़ित्ना व फ़साद में उस तरह रहो जिस तरह ऊंट का वह बच्चा जिसने अभी अपनी उम्र के दो साल ख़त्म किये हैं के न तो उसकी पीठ पर सवारी की जा सकती है और न उसके थनों से दूध दोहा जा सकता है।
2- जिसने लालच को अपना वस्त्र बनाया, उसने अपने को अपमानित किया और जिसने अपनी समस्याओं को ज़ाहिर किया वह तिरस्कार पर राज़ी हो गया, और जिसने अपनी ज़बान को क़ाबू में न रखा उसने ख़ुद अपने अपमान का सामान कर लिया।
3- कंजूसी अपमान एवं तिरस्कार है, और बुज़दिली दोष व ऐब है, और ग़रीबी ज्ञानी एवं जानकार आदमी की ज़बान को तर्कों की शक्ति दिखाने से रोक देती है और ग़रीब अपने शहर में रह कर भी परदेसी होता है।
4- तस्लीम व रज़ा (ईश्वर की मर्ज़ी पर प्रसन्न रहना) बेहतरीन साधी और ज्ञान सबसे बेहतरीन पैतृक सम्पत्ति है और आदाब सदैव नया रहने वाले ज़ेवर हैं और फ़िक्र साफ़ व ‘शफ़्फ़ाफ़ आईना है।
5- अक़्लमन्द का सीना उसके भेदों का संदूक़ होता है, और कुशादा रूई (अच्छे से मिलना) मोहब्बत व दोस्ती का फंदा है और धैर्य एवं सब्र बुराइयों का क़ब्रिस्तान है।
इसी प्रकार रिवायत में है कि आपने इस बात हो आपने इन शब्दों में भी फ़रमाया हैः प्रश्न करना बुराईयों को छिपाने का माध्यम है और जो अपने आप से राज़ी हो जाए उसके शत्रु अधिक हो जाते हैं।
6- सदक़ा लाभदायक दवा है और दुनिया में लोगों के कर्म कल (क़यामत में) उनकी आँखों के सामने आएंगे।
7- इस इन्सान को देखकर आश्चर्य करो कि वह चर्बी से देखता है, और गोश्त के लोथड़े से बोलता है और हड्डी से सुनता है और एक सूराख़ से सांस लेता है।
8- जब दुनिया किसी की तरफ़ आती है तो वह दूसरों की नेकियां भी उसके हवाले कर देती है और जब उससे मुंह फिराती है तो उसकी नेकियां भी छीन लेती है।
और शायद इसी लिये कहा जाता है कि यह दुनिया ही है जहां बद अच्छा और बदनाम बुरा होता है
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