13 रजब मौलूदे काबा का जन्मदिवस
13 रजब मौलूदे काबा का जन्मदिवस
रजब का महीना था। ईमान से ओत- प्रोत हज़रत फातेमा बिन्ते असद भी दूसरे लोगों की भांति काबे की परिक्रमा कर रही थीं कि अचानक उन्होंने प्रसव पीड़ा का आभास किया। उन्होंने महान ईश्वर से प्रार्थना आरंभ कर दी। उन्होंने कहा हे पालनहार! मैं तुझ पर, समस्त पैग़म्बरों पर, समस्त ईश्वरीय दूतों पर और उनके द्वारा लायी गयी किताबों पर ईमान रखती हूं। तू जानता है कि मैं ख़लीलुल्लाह हज़रत इब्राहीम पर ईमान रखती हूं और उनके धर्म को दिल व जान से स्वीकार करती हूं। तुझे काबे की महानता और इस बच्चे का वास्ता जो मेरे पेट में है और मुझसे बात करता है मेरे लिए उसके जन्म को आसान कर दे। हज़रत फातेमा बिन्ते असद प्रार्थना के यह शब्द कह ही रहीं थीं कि अचानक दक्षिण पूर्व की ओर से काबे की दीवार फटी और फातेमा बिन्ते असद काबे के अंदर प्रविष्ट हो गयीं और काबे की दीवार दोबारा पहले जैसी हो गयी। काबे के पास मौजूद लोग यह दृष्य देखकर हतप्रभ रह गये और लोगों के माध्यम से यह ख़बर पूरे मदीने में फैल गयी। काबे के चारों ओर लोगों की अपार भीड़ जमा हो गयी ताकि वह इस असाधारण घटना का परिणाम देख सके। काबे की चाभी जिसके पास थी उसने काबे का दरवाज़ा खोलने का बहुत प्रयास किया परंतु काबे का द्वार नहीं खुला और बहुत से लोग न तो अपने घर गये और न ही काम पर गये। सबके सब इस प्रतीक्षा में बैठ गये कि देखें कि क्या घटना पेश आयी है। तीन दिन गुज़र गये।
चौथे दिन अचानक काबे की दीवार वहीं से फटी जहां से पहले दिन फटी थी। लोगों की नज़रों के सामने हज़रत फातेमा बिन्ते असद काबे से निकलीं और उनकी गोद में एक नवजात शिशु था। हज़रत फातेमा बिन्ते असद बहुत प्रसन्न थीं और उनकी गोद में जो बच्चा था वह बहुत तेजस्वी था। हज़रत फातेमा बिन्ते असद ने काबे से बाहर मौजूद लोगों को संबोधित करके कहा हे लोगों ईश्वर ने महिलाओं में से मुझे चुना है और मुझे अतीत की महिलाओं पर श्रेष्ठता प्रदान की है। अगर आसिया ने गुप्त रूप से ईश्वर की उपासना की है, और अगर मरियम ने अपने शिशु के जन्म के समय सूखे खजूर के नीचे से खजूर चुना तो ईश्वर ने मुझे उन पर और अतीत की समस्त महिलाओं पर श्रेष्ठता प्रदान की है क्योंकि मेरा बेटा काबे में पैदा हुआ है और मैं तीन दिनों तक वहां ईश्वर की मेहमान थी और स्वर्ग के फलों एवं विशेष खानों से मेरी आव-भगत की गयी और काबे से निकलते समय मुझसे कहा गया कि हे फातेमा इस शिशु का नाम अली अर्थात उच्च रखो और मैं सर्वोच्च हूं। मैंने तुम्हारे बेटे को अपनी शक्ति से पैदा किया है और वह इस काबे से अज़ान कहेगा और इस स्थान को ईश्वर के अलावा हर एक करेगा वह मेरे हबीब मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के बाद इस क़ौम का मार्गदर्शक होगा भाग्यशाली है वह जो इससे प्रेम करेगा और उसकी सहायता करेगा और धिक्कार हो उस पर जो इसकी अवज्ञा करे और उसके अधिकार को नष्ट करे”
ईश्वर की असीम कृपा की पहली चमक थी जो एक शिशु के रूप में प्रकट हुई थी और यही बच्चा आगे चलकर मानव समाज में न्याय की प्रतिमूर्ति बना। हज़रत अली अलैहिस्सलाम वह महान हस्ती हैं जिनके बारे में ईसाई लेखक जार्ज जुरदाक़ लिखते हैं” इस महान हस्ती को पहचानें या न पहचानें इतिहास इस बात की गवाही दे रहा है कि वह समाप्त न होने वाली विशेषता के स्वामी हैं, शहीदों के सरदार हैं, न्याय की आवाज़ हैं और पूरब की सर्वकालिक हस्ती हैं। पूरे इतिहास में आदम और हव्वा की संतान में से कोई नहीं है जो अली की भांति न्याय के मार्ग पर चला हो। जिस तरह सोते से पानी निकलता है उसी तरह अली का इस्लाम अली के दिल से निकलता था। उस समय इस्लाम लाने से पूर्व समस्त मुसलमान क़ुरैश की मूर्तियों की पूजा करते थे परंतु हज़रत अली की पहली उपासना हज़रत मोहम्मद के साथ ईश्वर के लिए हुई। अली सत्य के मार्ग में पहाड़ की भांति डटे रहे और अपनी पवित्र प्रवृत्ति के साथ हर प्रकार के अन्याय व भ्रष्टाचार से संघर्ष करते रहे। वह ठाठे मारते समुद्र हैं जो पूरे ब्रह्मांड में फैला हुआ है परंतु जब एक अनाथ बच्चे के आंसू से उसमें टूफ़ान आजाता है।“
पवित्र कुरआन इस बात पर बल देता है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम महान ईश्वर की उपासना में अग्रणी लोगों में थे और स्पष्ट शब्दों में कहता है कि जो लोग इस्लाम स्वीकार करने में पहले थे वे महान ईश्वर की प्रसन्नता, दया और कृपा प्राप्त करने में भी अग्रणी हैं पवित्र कुरआन इस्लाम में पहल करने को इतनी प्राथमिकता देता है कि जो लोग मक्का पर विजय से पहले मुसलमान हो गये थे और उन्होंने अपनी जान -माल सब इस्लाम पर न्यौछावर कर दिया इन लोगों का यह कार्य और ये लोग उन लोगों से बेहतर हैं। जो मक्का पर मुसलमानों की विजय के बाद इस्लाम लाये और इस्लाम के मार्ग में उन्होंने जेहाद किया।
जब पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी पैग़म्बरी की घोषणा कर दी तो हज़रत अबू तालिब देखते थे कि उनके बेटे अली पैग़म्बरे इस्लाम के साथ नमाज़ पढ़ते थे। एक बार अबूतालिब ने उनसे पूछा बेटे यह तुम क्या करते हो? हज़रत अली ने जवाब में फरमाया मैं अपने चाचा के बेटे के साथ ईश्वर की प्रसन्नता के लिए नमाज़ पढ़ता हूं। हज़रत अबू तालिब ने उनसे कहा उनसे कभी अलग मत होना वह भलाई के सिवा किसी और चीज़ की ओर आमंत्रित नहीं करेंगे।
पैग़म्बरी की घोषणा के तीसरे वर्ष महान ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को आदेश दिया कि वे अपने निकट परिजनों को इस्लाम का निमंत्रण दें। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने कुटुम्ब के लगभग चालिस लोगों को एकत्रित किया और उन सबको खाना खिलाया परंतु जब पैग़म्बरे इस्लाम ने कुछ कहना चाहा तो अबू लहब बाधा बन गया और पैग़म्बरे इस्लाम कुछ न कह सके। दूसरे दिन भी पैग़म्बरे इस्लाम ने लोगों को खाने के लिए आमंत्रित किया। लोग जब खाना खा चुके तो पैग़म्बरे इस्लाम ने उनसे कहा तुममें से जो भी इस कार्य में मेरी सहायता करेगा और मुझ पर ईमान लायेगा वह मेरा भाई होगा और मेरे बाद मेरा उत्तराधिकारी होगा। हज़रत अली अलैहिस्लाम ने उठकर कहा कि हे ईश्वर के दूत मैं आपकी सहायता करूंगा पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें बैठा दिया। इस तरह पैग़म्बरे इस्लाम ने दो बार किया और तीसरी बार उन्होंने फरमाया अली मेरे भाई, मेरे वारिस और मेरे बाद तुम्हारे बीच मेरे उत्तराधिकारी हैं”
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने पूरी ज़िन्दगी पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम की सहायता की और उनके पावन अस्तित्व से लाभ उठाया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम स्वयं फरमाते हैं हर साल वह हेरा गुफा में ईश्वर की उपासना करते थे और मैं उनको देखता था और मेरे अलावा कोई भी उन्हें नहीं देखता था। उस समय पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत खदीजा के घर के अतिरिक्त कोई भी घर मुसलमान नहीं था। मैं उनमें तीसरा था। मैं पैग़म्बरी एवं ईश्वरीय आदेश वहि के प्रकाश को देखता था और मैं पैग़म्बरी की सुगंध सूंघता था।“
जब क़ुरैश के काफिरों ने पैग़म्बरे इस्लाम को जान से मारने के लिए उनके घर को घेर लिया तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम उनके बिस्तर पर सो गये और पैग़म्बरे इस्लाम मक्का से मदीना पलायन कर गये। हज़रत अली अलैहिस्सलाम को पैग़म्बरे इस्लाम की भांति उन लोगों की चिंता थी जो अपने पूर्वजों का धर्म छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अधिकांश युद्धों में भाग लिया जिनमें खन्दक़ और और खैबर नामक युद्ध बहुत प्रसिद्ध हैं।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम धार्मिक मूल्यों की प्रतिमूर्ति थे। वह परिज्ञान और उपासना में शिखर थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इंसानों को एक दूसरे के साथ प्रेम से रहना सिखाया। उन्होंने कभी भी वास्तविकता को हितों की भेंट नहीं चढ़ाया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की पावन जीवन शैली मनुष्य की परिपूर्णता का कारण है जिस तरह अगर इंसान हज़रत अली अलैहिस्सलाम के आदेशों एवं शिक्षाओं की अवज्ञा करे तो उसकी पथभ्रष्ठता का कारण बनेगी। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम की जीवन शैली के बारे में अम्मार यासिर से इस प्रकार सिफारिश करते हैं” हे अम्मार अगर तुम देखो कि अली अकेले रास्ता जा रहे हैं और समस्त लोग दूसरे रास्ते पर जा रहे हैं तो तुम अली के रास्ते पर जाओ। क्योंकि वह तुम्हें बर्बादी के रास्ते पर नहीं ले जायेंगे और वह तुम्हें सच्चाई और मुक्ति के मार्ग से बाहर नहीं ले जायेंगे”
हज़रत अली अलैहिस्सलाम अच्छाइयों के स्रोत और मानवीय परिपूर्णता के शिखर हैं। वह पैग़म्बरे इस्लाम की जीवन शैली का अनुसरण करते हैं और दोस्त- दुश्मन सभी उनके सदगुणों को स्वीकार करते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम मानवीय समाज की आदर्श, अद्वतीय एवं बेजोड़ हस्ती हैं। पैग़म्बरे इस्लाम के प्रसिद्ध अनुयाई इब्ने अब्बास हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बारे में कहते हैं” जिस ईश्वर के हाथ में मेरी जान है उसकी शपथ अगर समुद्र सियाही बन जायें और समस्त वृक्ष क़लम बन जायें और ज़मीन के समस्त प्राणी लिखने वाले बन जायें तब भी अली की विशेषताओं एवं सदगुणों को नहीं लिख सकते।“
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