इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) की मार्गदर्शक हदीसें

इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) की मार्गदर्शक हदीसें

अनुवादकः सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

 قال الامام الباقر علیه السلام:

أوحی الله عزوجل إلی موسی(علیه السلام): لا تفرح بکثرة المال و لا تدع ذکری علی کل حال، فإنّ کثرة المال تنسی الذنوب و ترک ذکری یقسی القلوب.

इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) फ़रमाते हैं:

ईश्वर ने मूसा (स) पर वही कीः हे मूसा किसी भी अवस्था में मुझे न भूलना, और अधिक माल पर ख़ुश नहीं होना, क्योंकि दुनिया में माल की अधिकता गुनाहों को भुला देती है और मेरी याद का छोड़ना दिलों को पत्थर बना देती है।

 قال علیه السلام:

إيّاكم أن تعينوا على مسلم مظلوم فيدعو عليكم فيستجاب له فيكم فإنّ أبانا رسول الله صلى الله عليه و آله كان يقول: إنّ دعوة المسلم المظلوم مستجابة.

इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) फ़रमाते हैं:

सावधान रहों इस बात से कि तुम किसी अत्याचारी की पीड़ित मुसलमान के विरुद्ध सहायता करो, अगर ऐसा करो वह पीड़ित तुम पर लानत करेगा और उसकी प्रार्थना तुम्हारे बारे में स्वीकार की जाएगी।

قال علیه السلام:

إنّما شیعة علیّ، المتبادلون فی ولایتنا، المتحابّون فی مودتنا، المتزاورون لإحیاء أمرنا، الذین إذا غضبوا لم یظلموا و إذا رضوا لم یسرفوا، برکة علی من جاوروا، سِلمٌ لمَن خالطوا.

इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) फ़रमाते हैं:

निःसंदेह अली (अ) के शिया वह लोग है जो हमरी विलायत की राह में एक दूसरे पर ख़र्च करते हैं, और हमारी दोस्ती में एक दूसरे से मोहब्बत करते हैं, और हमारी रीत एवं परंपरा को जीवित रखने के लिए एक दूसरे से भेंट करने जाते हैं। वह अगर क्रोधित हो जाएं तो अत्याचार नहीं करते हैं और अगर प्रसन्न हो जाएं तो अधिकता नहीं करते हैं। पड़ोसी के लिये बरकत और अपने से संबंधित लोगों के लिये सलामती और शांति का सामान है।

قال علیه السلام:

اِنَّ هذا الِّلسان مِفْتاحُ کُلِّ خَیْرٍ وَ شَرٍّ، فَیَنْبَغی للمؤمن اَنْ یَخْتِمَ عَلی لِسانِهِ کَما یَخْتِم عَلی ذَهَبِهِ وَ فِضَّتِهِ.

इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) फ़रमाते हैं:

इन्सान की ज़बान हर अच्छाई और बुराई की कुंजी है, अच्छा है कि इन्सान अपनी ज़बान पर मोहर लगा दे (बंद रखे) जिस प्रकार अपने सोने और चाँदी पर मोहर लगाता है।

(जिस प्रकार अपने सोने और चाँदी की सुरक्षा करता है उसी प्रकार अपनी ज़बान पर भी नज़र रखे)

قال علیه السلام:

اَفضَلُ العِبادَةِ عِفَّةُ البَطنِ وَ الفَرجِ؛

इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) फ़रमाते हैं:

बेहतरीन इबादत पेट और शारीरिक इच्छाओं के बारे में अफ़ीफ़ रहे (यानी इन पर कंट्रोल रखे)

(तोहफ़ुल उक़ूल, पेज 296)

 عن جابر الجعفی عن الباقر(علیه السلام) قال:

یا جابر! بلِّغ شیعتی عنّی السلام و اعلمهم أنّه لا قرابة بیننا و بین الله عز و جل و لایتقرب إلیه إلا بالطاعة له.

یا جابر من أطاع الله و أحبّنا فهو ولینا و من عصی الله لم ینفعه حبنا.

जाबिर जअफ़ी कहते हैः इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः

हे जाबिर मेरे शियों तक मेरे सलाम पहुंचा दो और उनको समझा दो कि हम अहलेबैत ईश्वर के रिश्तेदार नहीं है।

निःसंदेह कोई भी ईश्वर के क़रीब नहीं होता है मगर ईश्वर की उपासना से।

हो जाबिर को भी ईश्वर के आदेशों का पालन करे और हमसे मोहब्बत करे निःसंदेह वह हमारा दोस्त है, लेकिन अगर कोई पाप करे उसके लिये हमारी दोस्ती किसी फ़ायदे की नहीं होगी।

(बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेज 164)

قال علیه السلام:

ثلاث لم یجعل الله (عز و جل) لاحد فیهن رخصة أداء الامانة الی البر و الفاجر و الوفاء بالعهد للبر و الفاجر و بر الوالدین برین کانا او فاجرین.

इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) फ़रमाते हैं:

तीन चीजों में ईश्वर ने किसी को भी उसको छोड़ने की अनुमति नहीं दी है।

1.    अमानत अदा करने में नेक और बुरे दोनों की तरफ़।

2.    नेक और बुरे दोनों से वादा पूरा करने पर।

3.    माता पिता के साथ अच्छा बर्ताव, चाहे वह नेक हों या बुरे।

(बिहारुल अनवार जिल्द 74, पेज 56)

قال علیه السلام:

صنايع المعروف تَقي مصارعَ السوء و كل معروف صدقة و أهل المعروف فی الدنیا أهل المعروف فی الآخرة، و أهل المنکر فی الدنیا أهل المنکر فی الآخرة، و أوّل أهل الجنة دخولا إلی الجنة أهل المعروف، و إنّ أول أهل النار دخولاً إلی النار أهل المنکر.

इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) फ़रमाते हैं:

अच्छे कर्म बुरी मौत को रोकते हैं, और हर अच्चा कार्य सदक़ा है। दुनिया के अच्छे और नेक लोग आख़ेरत के अच्छे और नेक लोग हैं। और सबसे पहले जो स्वर्ग में जाएगा वह अच्छे कार्य करने वाला है, और सबसे पहले जो नर्क में जाएगा वह बुरे कर्मों वाला है।

قال علیه السلام:

ذِرْوَةُ الْأَمْرِ وَ سَنَامُهُ وَ مِفْتَاحُهُ وَ بَابُ الْأَشْيَاءِ وَ رِضَا الرّحْمَنِ: الطّاعَةُ لِلْإِمَامِ بَعْدَ مَعْرِفَتِهِ، أما، لو أنّ رجلاً قام لیله و صام نهاره، و تصدّق بجمیع ماله، و حجَّ جمیع دهره و لم یعرف ولایة ولیّ الله فیوالیه و یکون جمیع أعماله بدلالته إلیه، ما کان له علی الله حقّ ثوابه، و لا کان من أهل الإیمان.

इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) फ़रमाते हैं:

हर धार्मिक कार्य से उच्छ और हर चीज़ की शीर्ष और उसकी कुंजी और हर चीज़ का द्वार और दयालु ईश्वर की मर्ज़ी, सच्चे इमाम के अनुसरण में है उसकी पहचान और मारेफ़त के बाद

जान लो कि अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन की सारी रातों में इबादत के लिये खड़ा रहे और सारे दिनों में रोज़ा रखे और अपनी सारी सम्पत्ति को सदक़े में दे दे, और अपने जीवन के सारे वर्षों में हज के लिये जाए, लेकिन ख़ुदा के वली (इमाम और मासूम) की विलायत सरपरस्ती और दोस्ती को न पहचाने कि उसकी विलायत को स्वीकार करे और अपने सारे कार्यों को उसके मार्गदर्शन में अंजाम दे, तो ऐसे व्यक्ति के लिए ईश्वर के पास कोई सवाब नहीं है, और वह इमान वालों में से नहीं है।

قال الامام الباقر علیه السلام:

«إذا قامَ قائِمُنا وَضَعَ الله یَدَهُ عَلی رؤوسِ الْعِبادِ فَجَمَعَ بِهِا عُقولَهُمْ وَ كَمُلَتْ به أَحْلامهُم».

इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) फ़रमाते हैं:

जब हमारा क़ाएम क़याम करेगा, ईश्वर उसके हाथ को बंदों के सरों पर रखेगा और उनकी अक़्लों को एकत्र कर देगा (ताकि वह अपनी इच्छाओं का अनुसरण न करें) जिसके नतीजे में उनकी अक़्ले पूर्ण हो जाएंगी।

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