यमन का संकट और ज़ोहूर की निशानियां
यमन का संकट और ज़ोहूर की निशानियां
सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
ज़हूरे से पहले की वाक़ेआत
1. ज़ुल्म और अत्याचार हर जगह फैल जाएगा।
2. लोग अत्याचार की समाप्ति और अदालत के लिये उठ खड़े होंगे।
रिवायत में है कि ज़ोहूर से पहले दो प्रकार की हुकूमतें होंगीं
1. कुछ वह हुकूमतें होंगी जो अदालत, न्याय महदवीयत.... आदि पर आधारित होंगी और यह इमाम ज़माना के ज़ोरूह के लिये प्रष्टभूमि तैयार करेंगी। जैसे ईरान का इस्लामी इंक़ेलाब।
2. कुछ वह हुकूमतें होंगी जो ज़ालिम, अत्याचारी है चाहे वह इस्लाम के नाम पर हो जैसे दाइश (ISIS) अलक़ायदा, बोको हराम या फिर ग़ैर इस्लामी हों जैसे ज़ायोनी शासन।
अस्ली इस्लाम यानी शिया विचारधारा स्वंय पश्चिमी देसों के अनुसार एकलौती ऐसी विचारधारा है जिसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साम्राजी शक्तियों और विचारधाराओं के साथ लोहा लिया है और उनपर प्रभाव डाला है यही वह विचारधारा है जो अत्याचारी की विरोधी और पीड़ित की हिमायती है।
जैसा कि स्वंय नेतनयाहू ने इस बात को स्वीकार किया है कि शिया विचारधारा ने क्षेत्र में कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सों पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया है जैसे Strait of Hormuz, Strait of Bab el-Mandab, चार अरब देशों की राजधानी, यमन, बहरैन, सीरिया, लेबनान और ईरान सीरिया....
वहाबी सऊदी अरब और साम्राजी हुकूमत
वहाबी विचारधारा वाली सऊदी सरकार ने सीरिया इराक़ बहरैन में शियों का क़त्लेआम करने और अलक़ायदा दाइश जिब्हतुन्नुसरा जैसे आतंकवादी संगठनों का समर्थन करने पर करोड़ों डॉलर ख़र्च किये, लेकिन आतंकवाद का दंष झेल रहे इराक़ में होने वाले एक चेहलुम और उसके अदिर्तीय जमवाड़े ने सऊदी अरब के सारे किये कराए पर पानी फेर दिया।
यमन की घटनाएं
1. इस्राईल, अमरीका और सऊदी अरब समाप्ति के रास्ते पर हैं (जैसे कि इमाम ख़ुमैनी ने गुरबा चोफ़ के लिखे अपने पत्र में कहा था)
2. यमन सामरिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है और समंदर के साहिल पर स्थित है जहां से दरियाई रास्ते खुलते हैं।
3. यमन वहाबी सऊदी अरब का पड़ोसी है जिसके बारे में रिवायात में भी आया है कि ज़ोहूर से पहले एक यमनी उठेगा और वह इंक़ेलाब करेगा (यह जहूर की यक़ीनी निशानियों में से है)
4. यमन की व्यवस्था क़बीलाई, धार्मिक और पुराने रीति रिवाज पर आधारित है यहां के लोग मेहनती और ग़रीब है।
5. यमन की जंनसंख्या धार्मिक आधार पर इस प्रकार है 40 प्रतिशत ज़ैदी शिया है जिनका सुन्नियों से आक़ाएद के आधार पर कोई मतभेद नहीं है।
6. यमन में इंक़ेलाब आया है और यह कोई तख़्ता पलट जैसी स्थिति नहीं है, क्योंकि अधिकतर जनता यह चाहती थी कि मंसूर अलहादी को सत्ता से हटाया जाए और इस इंक़ेलाब में जनता के बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया है।
7. यमन की हुकूमत इंक़ेलाब से पहले वहाबी तकफ़ीरी दाइशी विचारधारा वाली थी जो सऊदी अरब की वहाबी विचारधारा के समान थी। इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक वह देश जिसमें 40 प्रतिशत शिया हों वहा “सहीफ़ ए सज्जादिया” और “नहजुल बलाग़ा” रखना और उसका पढ़ना देशद्रोह के बराबर जुर्म समझा जाता था।
8. सऊदी अरब सालों से इस कोशिश में है कि यमन के लोगों में फूट डाल सके और इसी के अंतर्गत उसने कभी यमन के लोगों को उत्तरीय और दक्षिणी के नाम पर बांटने की कोशिश की तो कभी अलक़ायदा को वहां भेजा और कभी....
9. हौसी और अंसारुल्लाह के आन्दोलन ने बहुत ही तीव्रता के साथ सऊदी अरब की शाशाओं पर पानी फेर दिया और उसकी साजिशों को नाकाम कर दिया
10. आन्दोलनकारियों की महत्वपूर्ण मांगें इस प्रकार हैं
1. पिट्ठू हुकूमत की तबदीली।
2. अत्याचार, ज़ुल्म, भेदभाव की समाप्ती।
3. अलक़ायदा को देश से बाहर करना।
11. सऊदी अरब ने यमन पर हमले में बहाना यह बनाया कि यमन में ईरान अपनी पैठ बना रहा है, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या वहां ईरान की सेना है, कोई सैन्य प्रतिष्ठान है इसका आज तक सऊदी उत्तर नहीं दे करा,
यह याद रखना चाहिये की किसी भी देश में प्रभाव डालने के लिये वहां सेना का होना आवश्यक नहीं है यह इरान की इंक़ेलाबी सोंच है जो यमन में रची बसी है जिसको यह वहाबी अपने बुज़दिलाना हमलों से कभी भी न निकाल सकेंगें।
12. फ़ारसी की एक मसल है जिसका अर्थ यह है “अगर ईश्वर चाहे तो शत्रु भी अच्छाई का कारण बन जाता है” और यही यमन के लिये हुआ, कि जब वहाबी देश सऊदी अरब ने उनपर हमला किया तो यमन के सारे सम्प्रदायों राजनीतिक गुटों और क़बीलों ने अपने मतभेदों को भुला दिया और शत्रु के मुक़ाबले में सब एक हो गये, और यह सऊदी अरब की बहुत बड़ी हार है।
13. यमन को इमाम अली ने फ़त्ह किया था और आपने तीन बार यमन की यात्रा की यहां तक कि पैग़म्बर के अंतिम हज में भी इमाम अली यमन के रास्ते से ही हज के क़ाफ़िले में शामिल हुए थे, और यही कारण है कि यमन के लोगों के ख़ून में अलवी सोंच रची बसी है और इसी लिये उन्होंने कभी भी वहाबी, तकफ़ीरी विचारधारा को स्वीकार नहीं किया जो अपने अतिरिक्त सारे मुसलमानों को काफ़िर समझती है।
अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात क्या यमन का यह संकट और वहां की घटनाएं इमाम ज़माना के ज़ोहूर की वह निशानी हैं जिसके बाद आपका ज़ोहूर निश्चित इसके बारे में विश्वास के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता हम यह नहीं कह सकते कि यह ज़ोहूर कि निशानियां हैं या नहीं और यह महत्वपूर्ण भी नहीं है, जो चीज़ महत्वपूर्ण है वह यह है कि हम अपने दायित्वों को पूरा करें और ज़ोहूर के लिये प्रयत्न करें चाहे यह ज़ोहूर कल हो या दसियों और सैकड़ों साल बाद।
नई टिप्पणी जोड़ें