यूरोप में इस्लामोफ़ोबिया की नई लहर
यूरोप में इस्लामोफ़ोबिया की नई लहर
यूरोप में इस्लामोफ़ोबिया की नई लहर उठी है। पेरिस में कुछ चरमपंथियों के हमले को कि जो ख़ुद को मुसलमान बता रहे थे, मुसलमानों के खाते में डाल दिया गया। यह वह आतंकवादी थे कि जो कल तक फ़्रांस और उसके मित्र देशों के लिए सीरिया और इराक़ में आईएसआईएल के झंडे तले लड़ रहे थे। अमरीका में 11 सितम्बर के हमले की भांति पेरिस हमले को भी पश्चिमी आज़ादी पर हमला क़रार दिया गया। इसका मुख्य कारण यह था कि पश्चिम में इस्लामोफ़ोबिया और इस्लाम के प्रति भय उत्पन्न करने का मुद्दा बहुत विस्तृत हो गया है। पेरिस हमले को बहाना बनाकर पश्चिम में इस्लाम विरोधियों ने अपनी सरकारों के साथ इस्लाम और मुसलमानों पर व्यापक प्रहार शुरू कर दिए हैं।
शारली हेब्दो पत्रिका ने अपने कर्मचारियों पर हमले का सहारा लेकर एक बार फिर मानवता को कृपा एवं दया का पाठ पढ़ाने वाले पैग़म्बरे इस्लाम के अपमानजनक केरिकेचर प्रकाशित किए। केवल इतना ही नहीं बल्कि इस पत्रिका ने अपने अपमानजनक संस्करण की कई भाषाओं में लाखों कापियां प्रकाशित कीं। इस पत्रिका ने इस्लामोफ़ोबिया की नाव पर सवार होकर अपने प्रचार प्रसार में अत्यधिक वृद्धि कर ली और इस्लामोफ़ोबिया को और हवा दी। फ़्रांसीसी सरकार और यूरोप के अन्य देशों की सरकारों ने शारली हेब्दो के इस क़दम का भरपूर समर्थन किया। इस फ़्रांसीसी पत्रिका ने पहले भी कई बार पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अपमानजनक केरिकेचर छापे थे लेकिन पश्चिमी सरकारों ने इस पर बहुत ही ठंडी प्रतिक्रिया दी थी। लेकिन इस बार पश्चिमी सरकारों ने खुलकर पालिका इसके इस क़दम को अभिव्यक्ति की आज़ादी क़रार दिया। ब्रितानी प्रधान मंत्री डेविड कैमरुन ने सीबीएस को साक्षात्कार देते हुए कहा कि मेरे विचार में एक आज़ाद समाज में यह अधिकार प्राप्त होता है कि दूसरों के धर्म का अपमान कर सकें। फ़्रांसीसी राष्ट्रपति फ़्रास्वा आलांद ने भी शारली हेब्दो के अपमानजनक क़दम के ख़िलाफ़ दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा विरोध जताए जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वे फ़्रांस में अभिव्यक्ति की आज़ादी के मूल्य को नहीं समझ सकते। पश्चिम में जिस प्रकार, लोकतंत्र, आज़ादी और मानवाधिकार जैसे विषयों का मतलब अपने हिसाब से निकाल लिया गया है उसी प्रकार अभिव्यक्ति की आज़ादी की अपने हिसाब से परिभाषा कर ली गई है।
पश्चिम में अभिव्यक्ति की आज़ादी के समर्थन में पश्चिमी सरकारों के दावों में विरोधाभास इतना अधिक है कि पैग़म्बरे इस्लाम के अपमानजनक केरिकेचर छापने को जायज़ ठहराया जाना एक मज़ाक़ लगता है। अगर आप इस फ़्रांसीसी पत्रिका के इतिहास पर नज़र डालेंगे तो अभिव्यक्ति की आज़ादी के फ़्रांसीसी सरकार के दावों की पोल खुल जाएगी। शारली हेब्दो हाराकीरी पत्रिका की उत्तराधिकारी है कि जो 1960 से 1961 तक छपती थी। राष्ट्रीय मूल्यों का अपमान करने के आरोप में फ़्रांसीसी सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन 1966 में इसे पुनः प्रकाशित किया गया। 1970 में जनरल शार्ल दोगल का अपमान करने के कारण गृह मंत्रालय ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया। 1980 के दशक में प्रतिबंधित पत्रिका के कुछ अधिकारियों ने शारली हेब्दो के नाम से नई पत्रिका प्रकाशित की। लेकिन इसकी लोकप्रियता का स्तर बहुत नीचे रहा और लोगों की आलोचनाओं के कारण लगभग यह बंद होने की कगार पहुंच गई। 1992 में नवीन शारली हेब्दो के नाम से एक नई पत्रिका प्रकाशित की गई। आश्चर्य की बात यह है कि शारली हेब्दो को प्रकाशित करने वाले ख़ुद दूसरों की धर्म का अपमान करने की अभिव्यक्ति की आज़ादी पर विश्वास नहीं रखते। वर्ष 2009 में इस पत्रिका ने तत्कालीन फ़्रांसीसी राष्ट्रपति निकोलस सारकोज़ी के बेटे का केरिकेचर बनाने के आरोप में मोरीस सीने नामक कार्टूनिस्ट को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। सीने ने शारली हेब्दो के कार्यालय पर हमले की घटना के बाद लिखा कि मैं शारली नहीं हूं, मैं सीने हूं। मैं पहले शारली हेब्दो के लिए काम करता था। 2009 में मैंने सारकोज़ी के बेटे का कि जिसने धन दौलत के लालच में यहूदी धर्म स्वीकार कर लिया था एक केरिकेचर बनाया, इसलिए मुझे निष्कासित कर दिया गया। शारली पत्रिका ने मुझसे कहा कि मैं माफ़ी मांगू, लेकिन मैंने यह बात स्वीकार नहीं की। शारली ने मुझे यहूदी धर्म का मज़ाक़ उड़ाने के आरोप में निकाल दिया।
ग़ौरतलब है कि यूरोप में यहूदी लॉबी सबसे अधिक फ़्रांस में पभावशाली है। यह प्रभाव इतना अधिक है कि ज़ायोनियों की आलोचना को यहूदी धर्म की आलोचना माना जाता है और आलोचकों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कर लिया जाता है। फ़्रांस में कई लेखकों पर केवल होलोकास्ट के संबंध में सवाल उठाने के लिए मुक़दमा चलाया गया और इस्राईलियों द्वारा फ़िलिस्तीनियों पर किए जा रहे अत्याचारों के बारे में किसी को कुछ पूछने का कोई अधिकार नहीं है। इन विद्वानों में से सबसे प्रसिद्ध हस्ती का नाम रोजे गैरोदी है। इस तरह के कई उदाहरण पेश किए जा सकते हैं। फ़्रांस के स्कूलों और सरकारी कार्यालयों में मुस्लिम महिलाओं पर हिजाब पहनने पर प्रतिबंध है कि जो नागिरक अधिकारों का खुला उल्लंघन है। फ़्रांस में लाखों मुस्लिम महिलाएं आज़ादी से अपने वस्त्रों का चयन नहीं कर सकतीं। लेकिन शारली हेब्दो को दूसरों की धार्मिक आस्थाओं का अपमान करने की पूरी आज़ादी है।
पेरिस आतंकवादी हमले से पहले भी यूरोप में इस्लामोफ़ोबिया की लहर चल रही थी। पेरिस हमले को भी इसी संदर्भ में देखा जा सकता है। उदाहरण स्वरूप, जर्मनी में पिछले वर्ष अक्तूबर के महीने में पेगेडा नामक इस्लाम विरोधी एवं राष्ट्रवादी आंदोलन की शुरूआत हुई। इस आंदोलन के सदस्य हर सोमवार को इस्लाम विरोधी प्रदर्शन करते हैं। इस आंदोलन के स्थापना स्थल ड्रेस्डन शहर में 2009 में एक घटना घटी थी। मिस्री मूल की एक जर्मन मुस्लिम डा. मरवाह अल-शरबीनी ने अदालत का द्वार खटखटाया और अपने पड़ोसी के नस्लवादी व्यवहार की शिकायत की। अल-शरबीनी के पड़ोसी एलेक्स डब्लयू ने अदालत में ही चाक़ू से अल-शरबीनी पर हमला कर दिया औत तीन महीने की गर्भवति महिला को 18 घाव लगाकर मार डाला। अल-शरबीनी के पति ने अपनी पत्नी की सहायता करने का प्रयास किया लेकिन पुलिस ने अल-शरबीनी की सहायता के स्थान पर उनके पति को गोली मार दी।
पेगेडा ने इस्लाम विरोधी अभियान की शुरूआत 500 लोगों से की और अंतिम प्रदर्शन में यह संख्या बढ़कर 18 हज़ार तक पहुंच गई। इससे जुड़ने वालों की संख्या में इतनी तेज़ी से वृद्धि हुई है कि जर्मन सरकार चिंता में पड़ गई है। जर्मन अधिकियों का कहना है कि वे इस्लाम विरोधी प्रदर्शनों के विरुद्ध होने वाले प्रदर्शनों में भाग लेंगे। उल्लेखनीय है कि यह आंदोलन केवल जर्मनी तक ही सीमित नहीं हैं। पेगेडा ने डेनमार्क में घोषणा की है कि वह अपना पहला प्रदर्शन केपनहेग में आयोजित करेगा।
अगर विगत में इस्लाम विरोधी, मीडिया और फ़िल्मों द्वारा इस्लाम का अपमान करके अपना अस्तित्व ज़ाहिर साबित करते थे तो अब वे सड़कों पर निकल आए हैं और खुलकर इस्लाम विरोधी एवं नस्लवादी नारे लगा रहे हैं। यह ऐसी घटनाएं हैं कि जो यूरोप में बहुत ही कम देखने में आती थीं। पश्चिमी सरकारों द्वारा शारली हेब्दो में इस्लाम के अपमान के समर्थन से इस्लाम विरोधी शक्तियां उत्तेजित हैं और वे संगठित होकर इस्लाम का विरोध कर रही हैं। अल-क़ायदा और आईएसआईएल जैसे आतंकवादी गुटों द्वारा इस्लाम के नाम पर आतंकवादी कार्यवाहियां अंजाम देने से पेगेडा जैसे इस्लाम विरोधी संगठन शक्तिशाली बनते हैं। यद्यपि पश्चिमी सरकारें इस्लाम विरोधी अभियानों के विरोध का दिखावा करती हैं लेकिन व्यवहारिक रूप से न केवल वे इन्हें वैध मानती हैं बल्कि उनकी नीतियां उन्हें और मज़बूत बनाने की है। अगर इस्लाम विरोधी संगठन इसी प्रकार अपनी गतिविधियों में वृद्धि करते रहे तो केवल यूरोपीय मुसलमानों के लिए कठिनाईयां उत्पन्न नहीं होंगी बल्कि यूरोप में मुसलमानों के प्रभाव और इस्लामी देशों से यूरोपीय देशों के रिश्तों के दृष्टिगत यूरोपीय हितों को भी भारी नुक़सान पहुंचेगा।
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