क्या ISIS वही मंगोल हैं?

कहा जाता है कि ख़ुरासान पर मंगोलों के आक्रमण के समय एक व्यक्ति बुख़ारा से भागकर वहां पहुंचा। उससे बुख़ारा का हाल पूछा गया तो उसने कहा वे आए, उन्होंने अखाड़ा, उन्होंने जलाया, उन्होंने हत्या की, उन्होंने लूटपाट की और वे चले गए। लगता है आतंकवादी गुट आईएसआईएल भी यही कुछ कर रहा है, वह सुबह सवेरे शहर और आबादी में घुसता है, उखाड़ता है, जलाता है, हत्या करता है, लूटपाट करता है और चला जाता है। सदियों पहले जब मंगोल बग़दाद पहुंचे थे तो उन्होंने ख़लीफ़ा का दमन करने के बाद सरकारी पुस्तकालय की सभी किताबों को दजला नदी में फेंक दिया था। हाल ही में आईएसआईएल के सशस्त्र आतंकवादियों ने मूसिल में इस शहर के पुस्तकालय में घुसकर आठ हजार दुर्लभ हस्तलिखित पुस्तकों को आग लगा दी। यह पुस्तकालय, नैनवा प्रांत के सबसे पुराने पुस्तकालयों में से एक था।

मंगोल शहरों में तबाही मचाने के बाद किताबों को लकड़ी के ईंधन के रूप में प्रयोग करते थे लेकिन आईएसआईएल के आतंकियों ने किताबों को जलाने के लिए उन्हें आटे के बोरों में भरा और लोगों से कहा कि यह किताबें कुफ़्र फैलाती हैं और ईश्वर की अवज्ञा सिखाती हैं अतः इन्हें आग लगा दी जानी चाहिए। अलबत्ता उन्होंने केवल किताबों पर ही संतोष नहीं किया बल्कि पुराने अख़बारों और नक़शों को भी, जो उस्मानी साम्राज्य की यादगार के तौर पर बाक़ी थे, अपने अज्ञान की आग में जलाकर राख कर दिया।

इस्लाम के ये झूठे दावेदार ऐसी स्थिति में किताबों को राख के ढेर में बदल रहे हैं कि जब पैग़म्बर इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का सबसे बड़ा चमत्कार ही किताब है। वे कैसे अपने आपको उस पैगम्बर का अनुयायी बता सकते हैं जिसकी पैग़म्बरी, पढ़ने से शुरू हुई थी? जो देश, इस्लामी नेतृत्व का दावा करते हैं, वे किस आशा पर ख़िलाफ़त के इन दावेदारों का समर्थन और सामरिक मदद कर रहे हैं, जो इस्लाम को बदनाम करने के अलावा कुछ भी नहीं कर रहे हैं? कैसे पश्चिमी देश, तालेबान और अलक़ाएदा के समर्थन का परिणाम भुगतने के बावजूद फिर से उसी जाल में फंस रहे हैं जिसे उन्होंने खुद बिछाया है? और सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि जो लोग इस्लामी खिलाफ़त का दावा कर रहे हैं, उन्होंने कभी झूठ में भी अपने हथियार इस्लामी जगत के उस सबसे बड़े दुश्मन की ओर नहीं मोड़े जो नील से फ़ुरात तक के क्षेत्र पर क़ब्ज़े का सपना देख रहा है?

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