इमाम हसन अस्करी (अ) की विलादत के अवसर पर विषेश
इमाम हसन अस्करी (अ) की विलादत के अवसर पर विषेश
आठ रबीउस्सानी २३२ हिजरी क़मरी को इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का पवित्र नगर मदीना में जन्म हुआ। चूंकि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को भी अपने पिता की भांति अब्बासी शासक के आदेश से सामर्रा में रहना पड़ा इसलिए वे भी अस्करी के नाम से प्रसिद्ध हो गये। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की प्रसिद्ध उपाधि नक़ी और ज़की है। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने अपने पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद जनता के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व इमामत संभाला। इमामत का दायित्व संभालने वाले को इमाम कहते हैं।
पवित्र कुरआन की आयतों के अनुसार ईश्वरीय दूतों को भेजने का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य समाज में न्याय स्थापित करना है और इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए समाज में इमाम का होना आवश्यक है। पवित्र कुरआन के सूरे हदीद की आयत नंबर २५ के अनुसार समाज में इमाम होना चाहिये ताकि वह लोगों को ईश्वरीय आदेशों और न्याय स्थापित करने की ओर आमंत्रित करे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की एक हदीस में आया है कि इमाम के वजूद की आवश्यकता का एक तर्क यह है कि समाज को क़ानून की आवश्यकता है और लोगों का दायित्व है कि वह उस कानून का उल्लंघन न करें। चूंकि इस सीमा का उल्लंघन समाज में बुराई व भ्रष्टाचार का कारण बनेगा और कानून की रक्षा के लिए रक्षक का होना अनिवार्य है और यदि एसा नहीं होगा तो कोई भी अपने व्यक्तिगत हित को छोड़ने के लिए तैयार नहीं होगा कि चाहे उन व्यक्तिगत हित से समाज में बुराई व भ्रष्टाचार ही क्यों फैले इस आधार पर ईश्वर लोगों के मामलों को एक व्यक्ति के हवाले करता है ताकि वह समाज बुराई फैलने से रोके और समाज में कानून लागू करे।
इमाम के अनिवार्य होने का दूसरा तर्क यह है कि कोई भी सम्प्रदाय एवं राष्ट्र, अभिभावक के बिना अपने जीवन को जारी नहीं रख सकता और अपने लोक- परकोक के कार्यों को जिसे अंजाम देने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं है, संचालित नहीं कर सकता। इस आधार पर ईश्वर की तत्वदर्शिता इस बात की अनुमति नहीं देती है कि वह सृष्टि को उस चीज़ के बारे में एसे ही छोड़ दे जो उसके लिए आवश्यक है।“
इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम भी इमाम के वजूद की ज़रुरत के बारे में फ़ैरमाते हैं”
ज़मीन कभी भी इमाम के अस्तित्व से खाली नहीं होगी ताकि अगर धार्मिक लोग अपनी ओर से कोई चीज़ धर्म में वृद्धि कर दें तो वह लोगों को वास्तविकता की ओर लौटा दे और अगर लोगों ने कोई चीज़ कम कर दी है तो वह उसे पूरा कर दे।“ यह वह वास्तविकता है जो पूरे इतिहास में सिद्ध हो चुकी है। इमामों ने समाज में लोगों के जीवन को कल्याणमयी बनाने के लिए व्यक्तिगत एवं सामाजिक मामलों में उनका मार्गदर्शन किया। इमाम प्रज्वलित दीपक की भांति लोक- परलोक के मामलों में इंसानों का मार्गदर्शन करता है। इसी प्रकार इमाम लोगों के समक्ष विशुद्ध इस्लामी शिक्षाओं को पेश करने के अतिरिक्त सही सोचने, गलत सोच के बंधनों से मुक्ति दिलाने, भेदभाव, अंधे अनुसरण आदि से मार्गदर्शन करता है।
वास्तव में समाज की भलाई के लिए इमाम का होना अनिवार्य है। क्योंकि जो अत्याचारी को अत्याचार करने से रोकता है, लोगों को ईमान, उपासना और न्याय की शिक्षा देता है और सही सामाजिक मूल्यों की रक्षा करता है, वह इमाम है। इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के शब्दों में इमाम लोगों के लिए गवाह, ईश्वर का द्वार, ईश्वर की ओर रास्ता और वहि अर्थात ईश्वरीय संदेश का व्याख्याकर्ता है, उसके पास चमत्कार और बात को सिद्ध करने का मज़बूत तर्क है, वह आसमान के रहने वालों के लिए तारों की भांति की सुरक्षा और ज़मीन में लोगों की मार्ग दर्शन के लिए चुना गया है। इमाम नूह की नाव की भांति हैं जो भी उनसे जुड़ जायेगा वह सफल हो जायेगा।“
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम उन इमामों में से हैं जिनका जन्म अत्याचार से थक गये लोगों के लिए प्रकाश था। पैग़म्बरे इस्लाम ने जो यह फरमाया था कि मैं अपने बाद दो मूल्यवान चीज़ें छोड़कर जा रहा हूं एक किताब और दूसरे अहले बैत और अगर तुम इन दोनों से जुड़े रहोगे तो कभी भी गुमराह नहीं होगे। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम उसी अहलेबैत में से एक हैं। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम स्वयं इमाम और अहलेबैत का परिचय करते हुए फरमाते हैं” हम ईश्वरीय प्रतिनिधित्व के क़दमों से वास्तविकता के शिखर पर पहुंच गये हैं और सातों रास्तों को अपने ज्ञान से स्पष्ट कर दिया है हम रणक्षेत्र के शेर हैं। परलोक में ज्ञान का कलम व स्रोत हमारे हाथ में है। हमारे बेटे धर्म के उत्तराधिकारी हैं, वे यक़ीन के साथी हैं, राष्ट्रों के चेराग़, महानता और क्षमा की कुंजी हैं।“ इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने २२ वर्ष की आयु में लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने अपनी २८ वर्षी की आयु में लोगों और विश्ववासियों के लिए मूल्यवान चीज़ें छोड़ी हैं। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने बचपने में ही अपने पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के साथ विवश होकर पवित्र नगर मदीना छोड़ दिया और उनकी आयु का अधिकांश भाग इराक के सामर्रा नगर में अब्बासी शासन की कड़ी निगरानी में गुज़रा परंतु इस चीज़ से इमाम से लोगों की श्रृद्धा कम नहीं की। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम लोगों के बौटिक विकास के लिए उन्हें जागरुक बनाये जाने को सबसे महत्वपूर्ण कार्य समझते थे और बल देकर कहते थे कि अधिक नमाज़ पढ़ना और रोज़ा रखना उपासना नहीं है बल्कि वास्तविक उपासना ईश्वर के कार्यों के बारे में अधिक चिंतन- मनन है।“
इसी तरह इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम एक अन्य स्थान पर फरमाते हैं” चेहरे का सुन्दर होना विदित सुन्दरता है और बुद्धि व अच्छी सोच आंतरिक सुन्दरता है”
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अमल में निष्ठा और शैतानी उकसावे से दूरी को संकटों में सफलता की शर्त बताते और अपने चाहने वालों का आह्वान करते थे कि वे सदैव अपने कार्यों व सोचों में सावधान रहें और बुरे कार्यों व गलत आचरण से दूरी करें।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम दूसरे ईश्वरीय दूतों की भांति समस्त पापों से दूर थे इसलिए उन्होंने कभी भी कोई कार्य अपनी इच्छा के अनुसार नहीं किया बल्कि हर कार्य ईश्वरीय इच्छा और उसके आदेश के अनुसार अंजाम देते थे। इसीलिए उनके जीवन के समस्त कार्य हर समय और हर स्थान के लोगों के लिए श्रेष्ठ पाठ हैं। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम समाज को नैतिक मूल्यों से सुसज्जित करने का प्रयास करते थे। अमानत और सच्चाई महत्वपूर्ण मानवीय विशेषता है और यह विशेषताएं इतनी महत्वपूर्ण हैं कि वह हर समाज की शांति व सुरक्षा का आधार हैं। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम इन विशेषताओं पर बल देने के साथ अपने अनुयाइयों को संबोधित करके कहते थे” मैं तुम लोगों से ईश्वर का भय रखने का आह्वान करता हूं ईश्वर के मार्ग में सदाचारिता का प्रयास करो, सच बोलो, जिसने भी चाहे वह अच्छा हो या बुरा तुम्हारे पास अपनी अमानत रखी उसे वापस करो, देर तक सज्दा करो, अच्छा पड़ोसी बनो क्योंकि ईश्वर ने हज़रत मोहम्मद को इसी उद्देश्य के लिए भेजा था। अपने विरोधियों के साथ भी नमाज़ पढ़ो और उनकी शव यात्रा में भाग लो, उनके बीमारों का हाल चाल पूछने जाओ, उनके अधिकारों का ध्यान रखो क्योंकि तुममे से जो भी अपने धर्म में सदाचारिता अपनायेगा और बात करने में सच्चाई से काम लेगा , अमानत को उसके मालिक को लौटायेगा और लोगों के साथ उसका व्यवहार अच्छा होगा, कहा जायेगा कि यह शीया है और यह वह कार्य है जो हमें प्रसन्न करेगा। ईश्वर का भय रखो हमारे लिए इज़्ज़त का कारण बनो शर्मिन्दगी का कारण न बनों”
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने ६ वर्षों तक इमामत की और इसी छोटी सी अवधि में उन्होंने ईश्वरीय धर्म इस्लाम की शिक्षाओं के प्रचार- प्रसार में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने एक ओर मेधावी शिष्यों का प्रशिक्षण किया और दूसरी ओर ज्ञान की सभाओं व संगोष्ठियों का आयोजन करके उन दिग्भ्रमित दृष्टिकोणों व विचार धाराओं को रद्द किया जो यूनान और दूसरे क्षेत्रों से आकर इस्लामी जगत को लक्ष्य बनाये हुए थीं। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने पवित्र कुरआन की आयतों की व्याख्या करके और आस्था संबंधी मामलों को बयान करके समाज के लिए उपयोगी व्यक्तियों का प्रशिक्षण किया। इस प्रकार उन्होंने समय के अत्याचारी शासन के विरुद्ध संघर्ष किया। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने इस वास्तविकता को स्पष्ट कर दिया कि अत्याचारी शासन समाज में न्याय की स्थापना की दिशा में सबसे बड़ी रुकावट है। इसके अतिरिक्त भ्रष्ठ शासन में भ्रष्टाचार फैलता होता है और अत्याचारी शासकों के हाथों लोगों के अधिकारों का हनन होता है। इसी प्रकार इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम लोगों में न्यायप्रेम की भावना को मज़बूत करते थे और उन्हें अत्याचार से मुक्ति दिलाने वाले महामुक्तिदाता हज़रत इमाम मेहदी के प्रकट होने की शुभ सूचना देते थे और इस समय विश्व के महामुक्तिदाता महान ईश्वर के आदेश से पर्दये ग़ैब में अर्थात लोगों की नज़रों से ओझल हैं और उसके आदेश से पूरी दुनिया को न्याय से उस तरह भर देंगे जिस तरह वह अत्याचार व अन्याय से भरी होगी। प्रिय श्रोताओ इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर एक बार फिर आप सबकी सेवा में हार्दिक बधाई प्रस्तुत करते हैं।
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