शहरे क़ुम और हज़रते फ़ातेमा मासूमा की बरकतें

शहरे क़ुम और हज़रते फ़ातेमा मासूमा की बरकतें

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

हज़रत फ़ातेमा मासूमा (स) का जन्म ज़ीक़ादा महीने की पहली तारीख़ सन 173 हि0 को मदीना शहर में हुआ, आपके पिता का नाम हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ) और माता का नाम नजमा ख़ातून था।(1) आप आठवें इमाम, इमाम रज़ा (अ) की बहन हैं।

सन 201 हि0 में उस समय के बादशाह द्वारा इमाम रज़ा (अ) को ख़ुरासान बुला लिये जाने के कारण आपने अपने भाई से एक साल दूर रहने के बाद आपसे मिलने के लिये मदीने से ख़ुरासान की तरफ़ चल पड़ीं, लेकिन चूँकि आप वास्तविक इस्लाम और अहलेबैत (अ) की संस्कृति को लोगों तक पहुँचाने वाली थी और बनी अब्बास की हुकूमत को आप से ख़तरा था इसलिये सावा शहर में आपके काफ़िले पर हुकूमत के गुर्गे हमला कर देते हैं और आपके सारे साथियों को शहीद कर दिया जाता है, और शेख़ जाफ़र मुर्तज़ा अपनी किताब हयाते इमाम रज़ा (अ) में रिखते हैं कि आपको भी ज़हर दे दिया जाता है। (2) आप दुखों की अधिकता और ज़हर दिये जाने के कारण सावा शहर में बीमार हो जाती हैं और फ़रमाती हैं कि मुझे क़ुम ले चलो, क्योंकि मैंने अपने पिता से सुना है कि आप फ़रमाते थेः क़ुम मेरे शियों का केन्द्र है। (3) जिसके बाद आप 23 रबीउल अव्वल 201 हि0 को क़ुम में प्रवेश करती हैं, बहुत से आपके चाहने वाले और शिया आपका स्वागत करते हैं, आप मूसा बिन ख़ज़रज के घर में 17 दिन रहने के बाद इन दुनिया से आखें मूंद लेती हैं और आपको बाग़े बाबेलान में दफ़्न कर दिया जाता है, जहां आज आपका एक भव्य और शानदार रौज़ा बना हुआ है।

क़ुम हज़रत मासूमा (स) से पहले

क़ुम में इस्लाम से पहले कई क़िले थे जिनमें कुछ ज़रतुश्ती और यहूदी रहा करते थे, इस्लाम आने के बाद यहां धीरे धीरे तरक़्क़ी हुई सन 23 हि0 में इस्लामी सेना ने क़ुम पर विजय प्राप्त की और अरबों का क़ुम आना जाना आरम्भ हुआ अशअरियों में से सबसे पहले अब्दुल्लाह बिन सअद और अब्दुल्लाह अहवस और अब्दुर्रहमान और इस्हाक़ क़ुम पहुँचे, इसी कारण क़ुम का शियों से गहरा लगाव और प्रेम रहा है और उसी समय से क़ुम के लोग अहलेबैत (अ) के चाहने वाले और शिया रहे हैं।

क़ुम शहर हज़रत मासूमा के आने से पहले बहुत आबाद नहीं था और शिया आबादी हुकूमत की उपेक्षा और अत्याचारों के कारण ज़ुल्म में जी रही थी लेकिन इन सबके बावजूद उनका ईमान पक्का और वह अहलेबैत (अ) के चाहने वाले थे। (4)
और यही कारण था कि मामूम इमामों ने क़ुम के रहने वालों पर अपनी विशेष दृष्टि डाली है और उनके बारे में हदीसें फ़रमाई हैं और बहुत से मौक़ों पर उनको उपहार भेजकर सम्मानित किया है। (5)

क़ुम इरान का एक ऐसा शहर है जिसके बारे में दूसरे सारे शहरों से अधिक मासूमीन ने नज़र रखी हैं जैसा कि शेख़ हुसैन मुफ़लिस ने अपनी किताब “तोहफ़तुल फ़ातेमीन” में चालीस हदीलों को बयान किया है।

शियों की प्रसिद्ध किताबों जैसे बिहारुल अनवार, सफ़ीनतुल बिहार आदि में इस बारे में बहुत सी रिवायतें बयान की गई हैं जिनमें से कुछ की तरफ़ हम यहां इशारा कर रहे हैं।

1.    क़ुम के लोगों पर सलाम

इमाम सादिक़ (अ) ने एक दिन ईसा बिन अब्दुल्लाहे क़ुमी की तरफ़ इशारा करके फ़रमायाः क़ुम के लोगों पर सलाम! ईश्वर उनके शहरों को बारिश ते तृप्त करे, और उनपर अनुकम्पाएं नाज़िल करे, और बलाओं को नेमतों से बदल दे, वह रुकूअ सजदा, क़याम और क़ुऊद करने वाले लोग है, वह फ़क़ीह विद्वान और वास्तविक्ताओं को समझने वाले... हैं। (6)

2.    जन्नत का रास्ता

सफ़वान बिन यहया कूफ़ी कहते हैं: एक दिन मैं इमाम रज़ा (अ) के पास बैठा था कि क़ुम और वहां के लोगों की बात निकली और यह कि यह लोग इमाम ज़मान (अ) के ज़ोहूर के समय उनसे मिल जाएंगे, तब इमाम रज़ा (अ) ने क़ुम के लोगों पर सलाम भेजा और फ़रमायाः

ضى الله عنهم، ثم قال: ان للجنة ثمانية ابواب و واحد منها لاهل قم; و هم خيار شيعتنا من بين سائر البلاد، خمر الله تعالى ولايتنا فى طينتهم

ईश्वर उनसे राज़ी हो फ़िर फ़रमाया जान लो कि जन्नत के आठ द्वार हैं जिसका एक द्वार क़ुम के लोगों से विशेष है, वह सारे शहरों से हमारे चुने हुए शिया है, ईश्वर ने हमारी विलायत और मोहब्बत को उनकी आत्मा में डाल दिया है।(7)

क़ुम पर हज़रते मासूमा (स) की बरकतें और कृपा

इस शहर में हज़रत मासूमा (स) का आना और इस पवित्र हस्ती का इस शहर में दफ़्न होना क़ुम के लोगों के लिये बहुत सी नेमतें और बरकतें अपने साथ लेकर आया है। पैग़म्बर (स) की इस पुत्री के इस शहर में प्रवेश के बाद से ही यह शहर लगातार संस्कृतिक, समाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्तर पर लगातार तरक़्क़ी कर रहा है।

हज़रत मासूमा (स) की बरकत का इस शहर पर अंदाज़ा इसी बात से लगाता जा सकता है कि न केवल पूरे ईरान बल्कि विश्व के कोने कोने से पर्यटक और श्रद्धालु आपकी ज़ियारत के लिये क़ुम आते हैं और यह न केवल धार्मिक रूप से आध्यात्म के चाहने वालों के लिये महत्वपूर्ण है बल्कि वह लोग जो केवल घूमने के तौर पर इस शहर में आते हैं उनके लिये भी यह आश्चर्य चकित करने वाला है आपके भव्य मज़ार में वह मानवियत छिपी हुई है जो हर दिल को अपनी तरफ़ खींच लेती है।

 

हम यहां पर आपके सामने कुछ उन विदेश पर्यटकों के कथनों को पेश कर रहे हैं जो इस शहर में आए और इसकी धार्मिक संस्कृति से प्रभावित हुए है।

फ़्रांस का विद्वान और प्रयटक “ओज़न फ़्लांड” जो मोहम्मद शाह क़ाजार के युग में पास्कल कास्ट के साथ ईरान आया था इस शहर की अहमियत और हज़रत मासूमा (स) के रौज़े के बारे में इस प्रकार लिखता हैः फ़ातेमा (स) का रौज़ा जिसको ईरानी “मासूमा” कहते हैं पूरे पूर्व में एक विशेष सम्मान रखता है और लोग दूर दूर से उनकी ज़ियारत के लिये आते हैं, फ़ातेमा (स) अली (अ) की पोती हैं..... (8)

जर्मनी का पर्यटक “कार्ल ब्रुक्श” लिखता हैः क़ुम कई मील से दिखाई देता है क्योंकि इस शहर कि ज़ियारतगाह के गुंबद को सोने से मढ़ा है जिससे सूर्य की किरणें निकलती है....... मेरे गाइड हमेशा मुझ से क़ुम में फ़ातेमा (स) के रौज़े की गुंबद के वैभव के बारे में बताते थे।

बहरहाल पैग़म्बर (स) के ख़ानदान की इस पवित्र हस्ती का इस शहर में आना और यहां दफ़्न होना इस शहर के लोगों के लिये अपने साथ बहुत सी नेमतें लेकर आया है जिनको हम यहां संक्षेप में बयान कर रहे हैं:

1.    शहर की तरक़्क़ी

क़ुम शहर धीरे धीरे उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की तरफ़ जहां हज़रत मासूमा (स) का रौज़ा है फ़ैलता गया, इस प्रकार कि आपके दफ़्न का वह स्थान जो कभी एक वीराना और शहर से दूर था आज शहर का केन्द्र बन चुका है और सबसे अधिक आबादी यहीं पर है।

2.    महत्व का बढ़ जाना

आपके दफ़्न होने के बाद से बादशाहों और अधिकारियों ने महत्वपूर्ण लोगों ने इस शहर की तरफ़ कूच किया और बहुत से अहलेबैत के मानने वाले यहां आपके मज़ार पर रहने के लिये आए।

3.    धार्मिक केन्द्र बनना

हज़रत मासूमा (स) के दफ़्न के बाद से क़ुम शहर एक धार्मिक केन्द्र के तौर पर स्थापित हुआ है और बहुत से विद्वान इस शहर ने इस्लामी दुनिया के दिये हैं।

4.    बड़े बड़े विद्वानों का यहां परवरिश पाना

आपकी बहुत सी बरकतों में से एक इस शहर से बहुत से बड़े बड़े ओलेमा और विद्वानों का निकलना है जिनमें से कुछ का नाम हम यहां पर बयान कर रह हैं:

1.    अली बिन हुसैन बाबवैह क़ुमी, शेख़ सदूक़ के पिता

2.    मोहम्मद बिन अली बिन बाबवैह क़ुमी, जो शेख़ सदूक़ के नाम से प्रसिद्ध हैं और आपने 300 किताबें लिखीं हैं।

3.    मोहम्मद बिन हसन सफ़्फ़ार, इमाम हसन अस्करी (अ) के सहाबी।

4.    अहमद बिन इस्हाक़ कुमी, क़ुम में इमाम हसन अस्करी (अ) के वकील, आपके ही आदेश से क़ुम की प्रसिद्ध मस्जिद जिसको मस्जिदे इमाम हसन अस्करी के नाम से जाना जाता है बनाई गई।

5.    ज़करिया बिन आदम, इमाम रज़ा के सहाबी।

इनके अतिरिक्त सैकड़ों आलिम ऐसे हैं जो इस शहर से निकले हैं (9)

5.    हौज़ ए इलमिया क़ुम (धार्मिक शिक्षण संस्थान)

यह हज़रत मासूमा (स) के इस शहर में आने की ही बरकत थी की इस शहर का धार्मिक शिक्षण संस्थान रौनक़ पाया, कहते हैं कि स्वर्गीय मिर्ज़ा क़ुमी इस शहर में आये और उन्होंने इस शहर में शिक्षण कार्य आरम्भ किये।

और आज यह आपकी ही बरकत है कि शिया मज़बर के महान फ़क़ीह, मराजे, मुजतहिद इस शहर में है और सारे संसार की प्यासी निगाहें इन लोगों की तरफ़ देख रही हैं।

और यह क़ुम ही है जहां अलमुस्तफ़ा नाम की इन्टरनेशनल यूनिवर्सिटी है जहां लगभग 80 से अधिक देशों के विद्यार्थी धार्मिक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, और अपने ज्ञान से सारी दुनिया से अज्ञान्ता के अंधकार को दूर कर रहे हैं।

6.    ईरान की इस्लामी क्रांति

इस शहर की सबरे महत्वपूर्ण विशेषता और हज़रते मासूमा (स) की बरकत यहां इस्लामी क्रांति का बीज होना है, क़ुम शहर इस्लामी इन्क़ेलाब की गाड़ी के लिये इंजन की हैसियत रखता है जिसने पूरे ईरान में क्रांति फैलाई।

इन्क़ेलाब से संबंधित अधिकतर घटनाएं किसी न किसी रूप से इस शहर से संबंधित है

7.    ज्ञान का प्रसार

इमाम मूसा काज़िम (अ) ने फ़रमायाः

رجل من اهل قم يدعوا الناس الى الحق، يجتمع معه قوم كزبر الحديد، لاتزلهم الرياح العواصف و لا يملون من الحرب و لايجبنون و على الله يتوكلون والعاقبة للمتقي

क़ुम से एक आदमी उठेगा जो लोगों को हक़ की तरफ़ बुलाएगा, कुछ लोग उसकी सहायता करेंगे जो लोहे की भाति (सख़्त) हैं तेज़ हवाएं उनको हिला नहीं सकती हैं और जंग से थकते नहीं है और डरते नहीं है, ईश्वर पर भरोसा करते हैं, अंत में जीत उन्ही की है। (10)

इमाम ख़ुमैनी क़ुम के लोगो के बारे में फ़रमाते हैं: कुम अहलेबैत का हरम है, क़ुम ज्ञान का केन्द्र और तक़वा का बिंदु है, क़ुम शहादत और वीरता की भूमि है, क़ुम से ज्ञान पूरे संसार में फैला है और फैलेगा और क़ुम से शहादत की संस्कृति पूरे संसार में जाएगी, क़ुम एक ऐसा शहर है कि जहां ईमान, ज्ञान तक़वा मासूमीन के युग से ही तवज्जोह का केन्द्र था...... (11)

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1.    मनाक़िब आले अबीतालिब, जिल्द 4, पेज 367, ज़िन्देगानी हज़रत मूसा इब्ने जाफ़र (अ) जिल्द 2, पेज 375

2.    हयातुल इमामुल रज़ा (अ) पेज 428

3.    वदीअ –ए- आले मोहम्मद (स) पेज 12

4.    तारीख़चे क़ुम पेज 16

5.    तारीख़े मज़हबी क़ुम, पेज 92

6.    बिहारुल अनवार जिल्द 57, पेज 217, मुस्तदरके सफ़ीनतुल बिहार जिल्द 8, पेज 598

7.    बिहारुल अनवार जिल्द 57, पेज 216

8.    माहनामए कौसर, संख्या 12, पेज 73 और 74

9.    अधिक जानकारी के लिये तारीख़े मज़हबी क़ुम देखें

10.    बिहारुल अनवार जिल्द 57, पेज 216

11.    सहीफ़ए इमाम ख़ुमैनी, जिल्द 13, पेज 165

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