17 रबीउल अव्वल फ़ज़ीलत और आमाल
17 रबीउल अव्वल फ़ज़ीलत और आमाल
सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
रबीउल अव्वल जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है कि यह बसंत का महीना है क्योंकि इसी महीने में अल्लाह की रहमत की निशानियां ज़ाहिर हुई हैं, इसी महीने में ईस्वर की अनुकम्पाओं के ख़ज़ाने और उसकी सुन्दरता के प्रकाश ज़मीन पर उतरे हैं। क्योंकि महान पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स) का जन्म इसी महीने में हुआ और कहा जा सकता है कि इस सृष्टि के आरम्भ से धरती ने इस प्रकार की रहमत और अनुकम्पा को कभी नहीं देखा था, क्योंकि वह इस ससार के सबसे ज्ञानी और ईस्वर की पैदा की हुई चीज़ों में सबसे महान और ईश्वर के सबसे क़रीबी थे।
यह दिन सारे दिनों से महान है इसीलिये एक मुसलमान जो पैग़म्बर की महानता के स्वीकार करता है पर वाजिब है कि इस महीने में ईश्वर की अनुकम्पाओं के धन्यवाद के तौर पर उसकी अराधना करे, यह और बात है कि ईश्वर किसी भी समय इन्सान की अराधनाओं का मोहताज नहीं रहा है।
17 रबीउल अव्वल की रात
शियों को प्रसिद्ध रिवायतों के अनुसार यह पैगम़्बरे इस्लाम (स) और इमाम सादिक़ (अ) की विलादत की रात है और बहुत ही महान रात है, इस रात को एक मुसलमान को यह कार्य अंजाम देने चाहियें।
1. 17 रबीउल अव्वल की नियत से गुस्ल करना।
2. रोज़ा, जिसकी बहुत फज़ीलत बयान की गई हैं रिवायत में आया है किः जो भी 17 रबीउल अव्वल के दिन रोज़ा रखे, ईश्वर उसके लिये एक साल के रोज़े का सवाब लिखता है।
3. सदक़ा देना, मोमिन को ख़ुश करना और ज़ियारत पर जाना।
4. ज़ियारते रसूले ख़ुदा दूर या नज़दीक से पढ़ना, पैग़म्बरे इस्लाम (स) से रिवायत हैः जो भी मेरे निधन के बाद मेरी क़ब्र की ज़ियारत करे वह ऐसा ही है कि मेरे जीवन में उसने मेरी तरफ़ प्रवास किया हो अगर क़रीब से मेरी ज़ियारत नहीं कर सकते हो तो दूर से ही मुझ पर सलाम भेजो।
5. इस दिन अमीरुल मोमीनीन (अ) की ज़ियारत भी मुस्तहेब है वही ज़ियारत जो इमाम सादिक़ (अ) ने आपकी ज़रीह के पास पढ़ी है (यह ज़ियारत मफ़ातीहुल जनान में मौजूद है)
6. इस दिन का सम्मान करना, सैय्यद इब्ने ताऊस ने इस दिन के सम्मान के बारे में सिफ़ारिश की है, इसलिये मुसलमानों को चाहिये कि इस दिन जश्न और ख़ुशियां मनाएं।
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