इमाम हसन (अ) के कथन भाग 3
इमाम हसन (अ) के कथन भाग 3
21. (قال المجتبی علیه السلام فی جواب أسئلة رجل من أهل الشام) فی حدیث طویل:
قَالَ الشَّامِيُّ كَمْ بَيْنَ الْحَقِّ وَ الْبَاطِلِ وَ كَمْ بَيْنَ السَّمَاءِ وَ الْأَرْضِ وَ كَمْ بَيْنَ الْمَشْرِقِ وَ الْمَغْرِبِ وَ مَا قَوْسُ قُزَحَ وَ مَا الْعَيْنُ الَّتِي تَأْوِي إِلَيْهَا أَرْوَاحُ الْمُشْرِكِينَ وَ مَا الْعَيْنُ الَّتِي تَأْوِي إِلَيْهَا أَرْوَاحُ الْمُؤْمِنِينَ وَ مَا الْمُؤَنَّثُ وَ مَا عَشَرَةُ أَشْيَاءَ بَعْضُهَا أَشَدُّ مِنْ بَعْضٍ؟
فَقَالَ الْحَسَنُ بْنُ عَلِيٍّ علیهما السلام:
بَيْنَ الْحَقِّ وَ الْبَاطِلِ أَرْبَعُ أَصَابِعَ فَمَا رَأَيْتَهُ بِعَيْنِكَ فَهُوَ الْحَقُّ وَ قَدْ تَسْمَعُ بِأُذُنَيْكَ بَاطِلًا كَثِيراً.
قَالَ الشَّامِيُّ: صَدَقْتَ.
قَالَ: وَ بَيْنَ السَّمَاءِ وَ الْأَرْضِ دَعْوَةُ الْمَظْلُومِ وَ مَدُّ الْبَصَرِ فَمَنْ قَالَ لَكَ غَيْرَ هَذَا فَكَذِّبْهُ.
قَالَ: صَدَقْتَ يَا ابْنَ رَسُولِ اللَّهِ.
قَالَ: وَ بَيْنَ الْمَشْرِقِ وَ الْمَغْرِبِ مَسِيرَةُ يَوْمٍ لِلشَّمْسِ تَنْظُرُ إِلَيْهَا حِينَ تَطْلُعُ مِنْ مَشْرِقِهَا وَ حِينَ تَغِيبُ مِنْ مَغْرِبِهَا.
قَالَ الشَّامِيُّ: صَدَقْتَ، فَمَا قَوْسُ قُزَحَ؟
قَالَ علیه السلام: وَيْحَكَ لَا تَقُلْ قَوْسُ قُزَحَ فَإِنَّ قُزَحَ اسْمُ شَيْطَانٍ وَ هُوَ قَوْسُ اللَّهِ وَ عَلَامَةُ الْخِصْبِ وَ أَمَانٌ لِأَهْلِ الْأَرْضِ مِنَ الْغَرَقِ.
وَ أَمَّا الْعَيْنُ الَّتِي تَأْوِي إِلَيْهَا أَرْوَاحُ الْمُشْرِكِينَ فَهِيَ عَيْنٌ يُقَالُ لَهَا بَرَهُوتُ
وَ أَمَّا الْعَيْنُ الَّتِي تَأْوِي إِلَيْهَا أَرْوَاحُ الْمُؤْمِنِينَ وَ هِيَ عَيْنٌ يُقَالُ لَهَا سَلْمَى
وَ أَمَّا الْمُؤَنَّثُ فَهُوَ الَّذِي لَا يُدْرَى أَ ذَكَرٌ هُوَ أَمْ أُنْثَى فَإِنَّهُ يُنْتَظَرُ بِهِ فَإِنْ كَانَ ذَكَراً احْتَلَمَ وَ إِنْ كَانَتْ أُنْثَى حَاضَتْ وَ بَدَا ثَدْيُهَا وَ إِلَّا قِيلَ لَهُ بُلْ عَلَى الْحَائِطِ فَإِنْ أَصَابَ بَوْلُهُ الْحَائِطَ فَهُوَ ذَكَرٌ وَ إِنِ انْتَكَصَ بَوْلُهُ كَمَا انْتَكَصَ بَوْلُ الْبَعِيرِ فَهِيَ امْرَأَةٌ وَ أَمَّا عَشَرَةُ أَشْيَاءَ بَعْضُهَا أَشَدُّ مِنْ بَعْضٍ فَأَشَدُّ شَيْءٍ خَلَقَهُ اللَّهُ عَزَّ وَ جَلَّ الْحَجَرُ وَ أَشَدُّ مِنَ الْحَجَرِ الْحَدِيدُ الَّذِي يُقْطَعُ بِهِ الْحَجَرُ وَ أَشَدُّ مِنَ الْحَدِيدِ النَّارُ تُذِيبُ الْحَدِيدَ وَ أَشَدُّ مِنَ النَّارِ الْمَاءُ يُطْفِئُ النَّارَ وَ أَشَدُّ مِنَ الْمَاءِ السَّحَابُ يَحْمِلُ الْمَاءَ وَ أَشَدُّ مِنَ السَّحَابِ الرِّيحُ تَحْمِلُ السَّحَابَ وَ أَشَدُّ مِنَ الرِّيحِ الْمَلَكُ الَّذِي يُرْسِلُهَا وَ أَشَدُّ مِنَ الْمَلَكِ مَلَكُ الْمَوْتِ الَّذِي يُمِيتُ الْمَلَكَ وَ أَشَدُّ مِنْ مَلَكِ الْمَوْتِ الْمَوْتُ الَّذِي يُمِيتُ مَلَكَ الْمَوْتِ وَ أَشَدُّ مِنَ الْمَوْتِ أَمْرُ اللَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ يُمِيتُ الْمَوْتَ.
فَقَالَ الشَّامِيُّ أَشْهَدُ أَنَّكَ ابْنُ رَسُولِ اللَّهِ (ص) حَقّاً وَ أَنَّ عَلِيّاً أَوْلَى بِالْأَمْرِ مِنْ مُعَاوِيَةَ.
इमाम हसन (अ) ने शाम के एक व्यक्ति के जवाब में विस्तिरित हदीस में फ़रमायाः
शामी ने कहाः
हक़ (सत्य) और बातिल (असत्य) में कितनी दूरी है?
और ज़मीन एवं आसमान के बीच कितनी दूरी है?
और पूर्व एवं पश्चिम के बीच कितना फ़ासेला है?
इंद्रधनुष क्या है?
वह कौन सा सोता है जिसपर काफ़िरों की आत्माएं रुकेंगी?
और वह कौन सा सोता है जिसपर मोमिनी की आत्माएं ठहरेंगी?
मोअन्नस क्या है?
और वह दस चीज़ें जो एक दूसरे से अधिक सख़्त है क्या हैं?
इमाम हसन (अ) ने फ़रमायाः
हक़ (सत्य) और बातिल (असत्य) के बीच चार उंगलियों का अंतर है, तो जो कुछ तुम अपनी आँखों से देखों वह सत्य और जो अपने कानों से सुनते हो उनमें से बहुत कुछ असत्य होता है।
शामी ने कहाः सत्य है।
इमाम ने फ़रमायाः धरती और आसमान के बीच एक पीड़िय की फ़रियाद और आँखों के देखने की सीमा जितनी दूरी है और जो भी इसके अतिरिक्त तुमको बताए झूठ कहा है।
शामीः सही कहां आपने हे पैग़म्बर (स) के बेटे।
इमाम ने फ़रमायाः
पूर्व और पश्चिम के बीच सूर्य के एक दिन के चलने भर दूरी है जब देखते हो कि वह पूर्व से उगता है और पश्चिम में डूबता है।
शामी ने कहाः सही है, क़ौसे कज़ह (इन्द्रधनुष) क्या है?
इमाम ने फ़रमायाः वाय हो तुम पर क़ौसे क़ज़ह न कहो, क्योंकि कज़ह शैतान का नाम है, वह ईश्वर का धनुष हैं और नेमतों की अधिकता और उस क्षेत्र के लोगों के लिये बाढ़ से अमान की निशानी है।
और वह सोता जिसपर काफ़िरों की आत्माएं रुकेंगी वह चश्मा है जिसको बरहूत कहते हैं।
और वह सोता जिसपर मोमिनो की आत्माएं ठहरेंगी वह चश्मा है जिसको सलमा कहा जाता है।
मोअन्नस वह है जिसके बारे में पता न हो कि वह नर है या मादा, और उसके बालिग़ होने की प्रतीक्षा की जाए कि अगर वह मर्द होगा तो स्वपदोष होगा और अगर औरत होगी तो मासिकधर्म होगा, और उसका वक्षस्थल उठ जाएगा और अगर यह निशानियां दिखाई न दें तो उसको आदेश दिया जाएगा कि दीवार पर पेशाब करे, अगर उसका मूत्र दीवार पर पहुंच गया तो वह नर है और अगर ऊँट के मूत्र की भाति नीचे गिर गया तो मादा है।
और वह दस चीज़ें जो एक दूसरे से अधिक सख़्त है यह हैः
सबसे सख़्त चीज़ के ईश्वर ने पैदा की वह पत्थर है
और पत्थर से सख़्त, लोहा है और उससे पत्थर तोड़ा जाता है
और लोहे ते सख़्त आग है, जो लोहे को पिघला देती है
और आग से सख़्त पानी है जो उसको बुझा देता है
और पानी से सख़्त बादल है जो पानी को अपने साथ ले जाता है
और बादल से सख़्त हवा है जो बादलों के इधर उधर उड़ा देती है
और हवा से सख़्त, वह फ़रिश्ता है जो हवा चलाता है
और उस फ़रिश्ते से सख़्त अज़ाज़ील (यमदूत का नाम) है जो उस फ़रिश्ते को मौत देता है
और यमदूत से सख़्त, स्वंय मौत है जो यमदूत को मार देती है
और मौत से सख़्त, ईश्वर का आदेश है।
22. قَالَ رَجُلٌ لِلْحَسَنِ بْنِ عَلِيٍّ علیهما السلام: إِنِّي مِنْ شِيعَتِكُمْ!
فَقَالَ الْحَسَنُ بْنُ عَلِيٍّ: يَا عَبْدَ اللَّهِ إِنْ كُنْتَ لَنَا فِي أوَامِرِنَا وَ زَوَاجِرِنَا مُطِيعاً فَقَدْ صَدَقْتَ وَ إِنْ كُنْتَ بِخِلَافِ ذَلِكَ فَلَا تَزِدْ فِي ذُنُوبِكَ بِدَعْوَاكَ مَرْتَبَةً شَرِيفَةً لَسْتَ مِنْ أهْلِهَا. لَا تَقُلْ لَنَا أنَا مِنْ شِيعَتِكُمْ وَ لَكِنْ قُلْ أنَا مِنْ مُوَالِيكُمْ وَ مُحِبِّيكُمْ وَ مُعَادِي أعْدَائِكُمْ وَ أنْتَ فِي خَيْرٍ وَ إِلَي خَيْر.
एक आदमी ने इमाम हसन (अ) से कहाः मैं आपके शियों में से हूँ!
इमाम हसन (अ) ने फ़रमायाः हे अल्लाह के बंदे, अगर तुम हमारे आदेशों का पालन करते हो, और जिस चीज़ से हमने तुम को मना किया है, उससे दूर रहते हो, तो तुमने सही कहा है, और अगर ऐसा नहीं है तो इतना बड़ा दावा करके जिसके तुम पात्र नहीं हो अपने पाप को न बढ़ाओ। न कहो कि मैं आपके शियों में से हूँ। बल्कि यह कहो कि मैं आपके दोस्तों में से हूँ और आपके शत्रुओं का दुश्मन हूँ। इस हालत में तुम नेकी पर हो और नेकी की तरफ़ जाओगे।
(मजमूआ -ए- वराम, जिल्द 2, पेज 425)
23. سئل الحسن بن علی بن أبی طالب علیه السلام عن العقل، فقال علیه السلام:
التجرع للغصة و مداهنة الاعداء.
इमाम हसन (अ) से अक़्ल के बारे में प्रश्न किया गया? आपने फ़रमाया
घूंट घूंट करके क्रोध की पीना और दुश्मनों के साथ सुलह करना (अक़्ल) है।
(अमाली शेक़ सदूक़, मजलिस 96, हदीस 2)
24. قال الحسن بن علی بن أبی طالب علیهم السلام:
یَا ابْنَ آدْم! عَفِّ عَنِ مَحارِمِ اللّهِ تَكُنْ عابِداً، وَ ارْضِ بِما قَسَّمَ اللّهُ سُبْحانَهُ لَكَ تَكُنْ غَنِیّاً، وَ أحْسِنْ جَوارَ مَنْ جاوَرَكَ تَكُنْ مُسْلِماً، وَ صاحِبِ النّاسَ بِمِثْلِ ما تُحبُّ أنْ یُصاحِبُوكَ بِهِ تَكُنْ عَدْلاً.
أنّه کان بين أيديکم أقوام يجمعون کثيرا، و يبنون مشيدا، و يأملون بعيدا، أصبح جمعهم بُورا، و عملهم غرورا، و مساکنهم قبورا.
इमाम हसन (अ) ने फ़रमायाः हे आदम के बेटे!
ईश्वर की हराम की हुई चीज़ों के बारे में पवित्र और पाकदामन रहो ताकि उसके बंदे रहो।
जो चीज़ ईश्वर ने तुम्हारे लिये लिखी और क़िस्मत की है उस पर प्रसन्न रहो, ताकि सदैव अमीर और बेनियाज़ रहो।
पड़ोसियों, दोस्तों और साथ रहने वालों के सिलसिले में एहसान (उपकार) करो ताकि मुसलमान समझे जाओ।
दूसरों के साथ इस प्रकार व्यवहार करो जैसा सोंचते हो कि दूसरे तुम्हारे साथ व्यवहार करें, ऐसी अवस्था में तुमने न्याय किया है।
निसंदेह तुम्हारे सामने लोग है जिन्होंने माल अधिक एकत्र किया है और मज़बूत घर बनाएं और लंबी लंबी आरज़ुएं की लेकिन उनका इज्तेमा बिखर गया और उनके कार्य धोखा हो गए और उनके घर क़ब्रिस्तान में बदल गये।
(कश्फ़ुल ग़ुम्मा, जिल्द 1, पेज 572)
25. قال الحسن بن علی بن أبی طالب علیهم السلام:
يا بنَ آدمَ ، إنّكَ لم تَزَلْ في هَدمِ عُمرِكَ مُنذُ سَقَطتَ مِن بَطنِ اُمِّكَ ، فَخُذْ مِمّا في يَدَيكَ لِما بَينَ يَدَيكَ ؛ فإنّ المؤمنَ يَتَزوَّدُ ، و الكافِرَ يَتَمتَّعُ. وکان علیه السلام یتلو بعد هذه الموعظة: " وتزودوا فان خیر الزاد التقوی."
इमाम हसन (अ) ने फ़रमायाः
हे आदम के बेटे जब से अपनी माँ से पैदा हुए हो तभी से अपनी आयु को बरबाद कर रहे हो, इसलिये अपनी बची उम्र से अपने भविष्य (आख़ेरत) के लिये कुछ इकठ्ठा करो, निसंदेह मोमिन इस संसार से रास्ते का सामान लेता है और काफ़िर विलासता में लगा रहता है। उसके बाद आपने यह आयत पढ़ी “और (ईश-भय) पाथेय ले लो, क्योंकि सबसे उत्तम पाथेय ईश-भय है”
(कश्फ़ुल ग़ुम्मा, जिल्द 1, पेज 572)
26. لما حضرت الحسن بن علي ( عليهما السلام ) الوفاة بكى، فَقِيلَ لَهُ: يَابْنَ رَسُولِ اللَهِ أَ تَبْكِي وَ مَكَانُكَ مِنْ رَسُولِ اللَهِ الَّذِي أَنْتَ بِهِ، وَ قَدْ قَالَ فِيكَ رَسُولُ اللَهِ صَلَّي اللَهُ عَلَيْهِ وَ ءَالِهِ مَا قَالَ، وَ قَدْ حَجَجْتَ عِشْرِينَ حَجَّةً مَاشِيًا، وَ قَدْ قَاسَمْتَ رَبَّكَ مَالَكَ ثَلَاثَ مَرَّاتٍ حَتَّي النَّعْلَ وَ النَّعْلَ؟
فَقَالَ عَلَيْهِ السَّلَامُ: إنَّمَا أَبْكِي لِخَصْلَتَيْنِ لِهَوْلِ الْمُطَّلَعِ وَ فِرَاقِ الاحِبَّةِ.
जब इमाम हसन (अ) की मौत का समय निकट आया तो आप रोए। लोगों ने कहाः हे पैग़म्बर (स) के बेटे! आप रो रहे हैं जब्कि आपकी श्रेष्ठता पैग़म्बर के नज़दीक इस प्रकार की है, और रसूले ख़ुदा (अ) ने आपके बारे में क्या क्या फ़रमाया है! और दूसरे यह कि आपने बीस बार पैदल हज किये हैं, और तीन बार अपनी सारी सम्पत्ति को फ़क़ीरों में बांट दिया यहां तक की अपनी जूती भी बांटने से पीछे नहीं हटे?
आपने फ़रमायाः मेरा रोना दो चीज़ों के लिये हैः एक हौले मुत्तलअ (वह ख़ौफ़ और घबराहट हो ईश्वर से मिलने के समय होती है) और दूसरे दोस्तों और चाहने वालों से जुदाई।
(अमाली शेख़ सदूक़, मजलिस 39, हदीस 9)
27. إنّ الحسن بن علی علیهما السلام اذا بلغ باب المسجد، رفع رأسه و یقول:
الهى ضیفک ببابک، یا محسن قد اتاک المسىء، فتجاوز عن قبیح ما عندى بجمیل ما عندک، یا کریم.
जब भी इमाम हसन (अ) मस्जिद के पास पहुंचते थे अपने सर को उठाकर कहते थेः
हे ईश्वर तेरा मेहमान देते द्वार पर खड़ा है, हे एहसान करने वाले! पापी तेरे पास आया है, पापों की गंदगी जो मेरे पास है को अपनी उस सुंदरता से जो तेरे पास है क्षमा कर दे, हे कृपालु।
(बिहारुल अनवार, जिल्द 43, पेज 339)
28. قال الحسن بن علی بن أبی طالب علیهم السلام:
اِسْتَعِدَّ لِسَفَرِکَ وَ حَصِّلْ زادَکَ قَبْلَ حُلُولِ اَجَلِکَ وَاعْلَمْ اَنَّکَ تَطْلُبُ الدُّنْیا وَالْمَوْتُ یَطْلُبُکَ.
इमाम हसन (अ) ने फ़रमायाः
अपने आप को आख़ेरत के सफ़र के लिये तैयार करो, और मौत आने से पहले रास्ते का सामान तैयार कर लो, और जान लो निसंहेद तुम दुनिया के पीछे हो जब्कि मौत तुम्हारे पीछे हैं।
(बिहारुल अनवार, जिल्द 44, पेज 139)
29. (ثمّ) قال الحسن بن علی بن أبی طالب علیهم السلام:
وَلا تَحْمِلْ هَمَّ یَوْمِکَ الَّذی لَمْ یَأْتِ عَلی یَوْمِکَ الَّذی اَنْتَ فیهِ وَاعْلَمْ اَنَّکَ لاتَکْسِبُ مِنَ الْمالِ شَیْئا فَوْقَ قُوْتِکَ اِلاّ کُنْتَ خازِنا لِغَیْرِکَ.
(फिर) इमाम हसन (अ) ने फ़रमायाः
और उस दिन का ग़म हो अभी नहीं आया है (यानी आने वाला कल) उस दिन में जिसमें तुम हो न उठाओ (बल्कि अपने आज का लाभ उठाओ) और जान लो कि अपने खाने से अधिक जिनता माल इकट्ठा करोगे, उसमें तुम दूसरे के ख़ज़ानेदार होगे।
(बिहारुल अनवार जिल्द 44, पेज 139)
30. (ثمّ) قال الحسن بن علی بن أبی طالب علیهم السلام:
وَاعْلَمْ اَنَّ فی حَلالِها حِسابٌ وَ فی حَرامِها عِقابٌ وَ فیِ الشُّبَهاتِ عِتابٌ، فَاَنْزِلِ الدُّنْیا بِمَنْزِلَةِ الْمَیْتَةِ خُذْ مِنْها ما یَکْفیکَ.
(फिर) इमाम हसन (अ) ने फ़रमायाः
जान लो कि उसके हलाल में हिसाब और उसके हराम में अज़ाब और उसके संदिग्ध में उत्तर दायित्व है। तो दुनिया को एक मुर्दा जीव समझो और आवश्यकता भर उसका प्रयोग करो।
(बिहारुल अनवार जिल्द 44, पेज 139)
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