आयते मुबाहेला और हज़रत ज़हरा (स) से तवस्सुल
आयते मुबाहेला और हज़रते ज़हरा (स) से तवस्सुल
सकीना बानो अलवी
ख़ुदावंदे आलम अपने पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स) को संबोधित कर के फ़रमाता हैः
فَمَنْ حَاجَّکَ فیه مِنْ بَعْدِ ما جاء َکَ مِنَ الْعِلْمِ فَقُلْ تَعالَوْا نَدْعُ أَبْناء َنا وَ أَبْناء َکُمْ وَ نِساء َنا وَ نِساء َکُمْ وَ أَنْفُسَنا وَ أَنْفُسَکُمْ ثُمَّ نَبْتَهلْ فَنَجْعَلْ لَعْنَتَ اللَّه عَلَی الْکاذِبینَ
जब भी (ईसाईयों के बारे में) उस ज्ञान एवं जानकारी के बाद जो तुम तक पहुंची है (फिर भी) जो लोग तुमसे हुज्जत करें उनसे कह दीजिएः आओं हम अपने बेटों को बुलाएं, तुम अपने बेटों को, हम अपनी औरतों को लाएं और तुम अपनी औरतों को, हम अपने नफ़्सों को लाएं तुम अपने नफ़्सों को फिर हम मुबाहेला करें और झूठों पर ख़ुदा की लानत करें
(सूरा आले इमरान आयत 61)
कुछ रिवायतों के अनुसार जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली, इमाम हसन एवं हुसैन (अ) और हज़रत ज़हरा (स) को लेकर नजरान के ईसाइयों से मुबाहेला करने के लिए मैदान में आए तो अपने फ़रमायाः
اذا انا دعوت فامنوا
जब मैं दुआ करूँ तो तुम लोग आमीन कहना।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) का यह कहना बताता है कि हज़रते ज़हरा की दुआ दूसरों पैग़म्बर की प्रार्थना के स्वीकार होने में प्रभाव रखती है। (1)
और जब पैग़म्बर जैसा महान और इस संसार का सबसे उच्च एवं ईश्वरीय दूत अपनी दुआ के लिए हज़रते ज़हरा से आमीन के लिए कह सकता है तो अगर हमको कोई प्रार्थना करनी है ख़ुदा से कोई दुआ मांगनी है तो हमें भी हज़रते ज़हरा (स) का वास्ता देकर ख़ुदा से मांगना चाहिए, और यक़ीन है कि ख़ुदा इस दुआ को अस्वीकार्य नहीं करेगा।
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(1) सोबुलुल हुदा वल रेशाद, जिल्द 6, पेज 419, शवाहेदुत तंज़ील, जिल्द 1, पेज 166, फ़ातेमा ज़हरा मज़लूमाए तारीख़, पेज 313
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