ISIS की उत्पत्ती के लक्ष्य

ISIS की उत्पत्ती के लक्ष्य

अनुवादकः सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

सारांश

1.    न्याय प्रियता की उठती आवाज़ से मुक़ाबला और लोगों की नज़र में इस्लाम की भयानक तस्वीर पेश करना।

2.    वहाबी सल्फ़ी विचारधारा पर आधारित हुकूमत का गठन।

3.    इराक़ और मध्य पूर्व में अमरीका की उपस्थिति को बढ़ाना

4.    इस्राईल की सुरक्षा

5.    महदवीयत से मुक़ाबला

6.    अरबईन (इमाम हुसैन का चेहलुम) की महान क्रांति को रोकने के लिये लोगों के दिलों में डर और भय बिठाना

7.    महदवीयत से मुक़ाबले के लिये सुफ़्यानी निर्माण का नया प्रोजेक्ट

8.    कमाई

9.    ऐसे व्यक्ति को सरकार में लाना जो अमरीका के हाथों की कठपुतली हो

आयतुल्लाह सीस्तानी के जिहाद के फ़तवे के बाद भी isis से मुक़ाबले की बढ़ती अवधि का कारण

1.    एक लीडर का न होना

2.    हुकूमत की कमज़ोरी

3.    शियों में जिहाद और शहादत की संस्कृति का स्थापित न होना

 ISIS के मुक़ाबले में हमारी ज़िम्मेदारियां
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ISIS की उत्पत्ती के लक्ष्य

आज शायद ही इस दुनिया में कोई हो जिसके ISIS और उनके कुकर्मों के बारे में न पता हो

एक उचटती निगाह से ही यह समझ में आ जाता है कि इस प्रकार का एक बड़ा संगठन अपने इन बड़े लक्ष्यों के साथ एक दिन या एक महीने में कुछ अप्रशिक्षित लोगों के ज़रिये अस्तित्व में नहीं आ सकता है, तो इसका अर्थ यह है कि यह संगठन कुछ प्रशिक्षित लोगों द्वारा बनाया गया है जो लोगों की धर्मिक भावनाओं का लाभ उठाते हुए यह कार्य कर रहे हैं।

इसीलिये हम यहां पर इस संगठन की उत्पत्ती के लक्ष्यों के बारे में बयान कर रहे हैं

न्याय प्रियता की उठती आवाज़ को दबाना और लोगों की नज़र में इस्लाम की भयानक तस्वीर पेश करना।

مقابله با جریان عدالت خواهی و ایجاد تصویر نفرت انگیز از اسلام

 

फ़ूकूमाया शियों की हार न मानने की प्रवृति को दो हरे और लाल रंग का होना माना है, हरा इमामे ज़माना (अ) के ज़ोहूर का अक़ीदा और लाल पर इमाम हुसैन (अ) की क्रांति का विश्वास है।

Isis की उत्पत्ती के लक्ष्यों में से एक शियों के परों को काटना है जिससे आज पूरा संसार लाभ उठा रहा है, जैसे 1989 में ऊएनजलीस नाम का एक मज़हब पैदा हुआ जो दुनिया के अत्याचार से भर जाने के बाद ईसा नासरी के ज़ोहूर का अक़ीदा रखता था! यह ऊपर जाने के लिये एक प्राकार से हरा पर बनाना है।

Isis का लक्ष्य यह है कि न्याय प्रियता के लिये ग़लत माडल तैयार करके इस्लाम का एक भयानक चेहरा बनाकर पेश किया जाए, एक ऐसा चेहरा जो न केवल लोगों को अपनी तरफ़ बुलाता न हो, बल्कि एक भयानक डरावना चेहरा दिखाता, जो हर स्वतंत्रता चाहने वाले इन्सान को भयभीत कर दे।

 

सल्फ़ी वहाबी विचारधारा पर आधारित हुकूमत का गठन

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 تشکیل حکومت بر پایه تفکر سلفی وهابی


ISIS के लीडरों से स्पष्ट शब्दों में इस बात को कहा है कि उनका लक्ष्य एक सल्फ़ी वहाबी विचारधारा वाली हुकूमत का गठन है, और यह कोई आश्चर्य जनक बात भी नहीं है क्यों कि पिछले कुछ सालों में हमने देखा है कि इस प्रकार की विचारधारा रखने वाले देश पैदा हो चुके हैं जैसे सऊदी अरब।

 

इराक़ और मध्यपूर्व में अमरीका की उपस्तिथि को बढ़ाना

 

استمرار حضور آمریکا در عراق و خاورمیانه

Isis एक ऐसे समय में उठा जब अमरीकी अपने देशों को वापस लौट चुके थे, और ऐसे संवेदनशील समय में एक अत्याचारी और आतंकवादी संगठन का पैदा होना अमरीका के लिये कई प्लस प्वांइट लाता हैः

क्षेत्र में अमरीका को अमन और शांति के सूत्रधार के तौर पर पहचाना जाना, क्योंकि यह सारी घटनाएं उस समय हो रही हैं कि जब अमरीका ने इस क्षेत्र को छोड़ दिया था और इराक़ी सरकार ने देश की सुरक्षा का दायित्व संभाल लिया था।

इराक़ के उर्जा स्रोतों से लाभ उठाना

शियों पर नज़र रखना

इस्राईल की सुरक्षा

امنیت اسرائیل

 

निःसंदेह इस्राईल के पड़ोस में एक मज़बूत और इस्लामी देश का होना इस अत्याचारी ज़ायोनी शासन की सुरक्षा को ख़तरे में डालता है, इसीलिये साम्राजी शक्तिया पड़ोस के इस्लामी देशों में अशांति फैला कर न केवल अपने शत्रुओं की शक्तियां कम कर रही हैं बल्कि इस्राईली कैंसर से मुसलमानों का ध्यान भी डटा रही हैं ताकि वह सुकून के साथ फ़िलिस्तीन की ज़ीमन पर क़ब्ज़ा कर सके और वहां पर यहूदी कालोनियां बसा सके।

अरबईन (इमाम हुसैन का चेहलुम) की महान क्रांति को रोकने के लिये लोगों के दिलों में डर और भय बिठाना

   ایجاد رعب و وحشت برای جلوگیری از حرکت عظیم اربعین

 

हम हर साल देख रहे हैं की इस धरती पर मुसलमानों का सबसे बड़ा जमावड़ा चेहलुम के अवसर पर कर्बला में होता जो इमाम हुसैन की क्रांति और शिया विचारधारा को बहुत आसानी के साथ पूरे संसार में पहुंचा सकता है।

 

महदवीयत से मुक़ाबले के लिये नया सुफ़यानी प्रोजेक्ट

इराक़ में अहमद हसन अलयमानी के महदवीयद के प्रोजेक्ट की विफ़लता के बाद, शीयत के शत्रुओं ने सुफ़यानी बनाओं प्रोजेक्ट के माध्यस से सुफ़यानी का चेहरा बनाने का प्रयतन्त किया और दिखाना चाहा कि सुफ़यानी आने के बाद भी इमाम ज़माना (अ) ने ज़ोहूर नहीं किया है और इस प्रकार इमाम ज़माना के ज़ोहूर के अक़ीदे को कमज़ोर करने की कोशिश की है।

 

कमाई

अगर हम यह देखे कि यूरोप में एक प्रकार का आर्थिक संकट चल रहा है अब अगर हम यह सोचें कि अमरीका बिना किसी अर्थिक सोंच के ISIS की इतनी बड़ी आर्थिक सहायता कर रहा है तो यह हमारी ग़लत सोंच होंगी और इसमें कोई संदेह नहीं है कि अमरीका और उसके सहयोगी देश बिना किसी माली लाभ के यह नहीं करेंगे और ISIS कई प्रकार से अमरीका और उसके सहयोगियों के लिये लाभ का सौदा हैः

1. ISIS से मुक़ाबले के लिये देशों और सरकारों को हथियार बेचना

2. अशांति के कारण तस्करी को बढ़ावा मिलना।

3. लोगों की सम्पत्ति को बरबाद करना।

4. ख़र्चों की पूर्ती के लिये तेल की चोरी और तस्करी

 

एसे व्यक्ति को सत्ता में लाना जो अमरीका की जीहुज़ूरी करे

एक देश में किसी एसे व्यक्ति को सत्ता में लाना जो अमरीका की जीहुज़ूरी कर सके इसमें रिस्क भी कम है और ख़र्चा भी कम, इसके मुक़ाबले में कि स्यवं इस देश में घुस कर अपनी बातों को मनवाया जाए, और दूसरी तरफ़ जब भी उस देश की जनता आक्रोशित हो जाए और उस व्यक्ति के विरुद्ध उठ खड़ी हो इस सूरत में उसकी कोई हानि भी नहीं होगी और कुछ समय बाद उसके स्थान पर दोसरा मोहरा बिठाया जा सकता है, ईरान का रज़ा शाह और इराक़ का सद्दाम हुसैन इसकी बानगी भर हैं।

 

आयतुल्लाह सीस्तानी के फ़तवा ISIS को समाप्त नहीं किया जा?

 چرا فتوای جهاد آیت الله سیستانی، داعش را از بین نبرد؟

1. एक लीडर का न होना और लोगो के बीच मतभेदों का होना

जब लोगों में एकता न हो तो शत्रु बहुत आसानी से उनकी हरा सकता है, और लोगों में एकता केवल उसी समय संभव होती है कि जब एक शक्तिशाली, न्याय प्रिय लीडर उनके साथ हो, लीडर हो वली फक़ीह के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं हो सकता है, वह हुकूमत जिसमें वली फ़क़ीह सर्वपरि हो, उस हुकूमत का साथ देना लोग अपना धार्मिक दायित्व समझेंगे, जिसका परिणाम यह होगा कि शत्रु के मुक़ाबले में अपने जीवन और मृत्यु को कामियाबी के तौर पर देखेंगे।

 

2. लोगों के संगठित करने में शासन की नाकामी

जितने लोग ने isis से लड़ने के लिये स्वंयसेवकों के तौर पर तैयार हुए थे उनकी संख्या इतनी थी कि वह अकेले ही isis को हराने के लिये काफ़ी थी लेकिन सेना के पास योजना का न होना और बअसी से संबंधित और लालची लोगों का होना यह वह कारण थे जिन्होंने इराक़ में इस बेहतरीन मौक़े का सही फ़ायदा नहीं उठाने दिया।

3. जिहाद और शहादत की संस्कृति का न होना

 

نبود فرهنگ جهاد و شهادت

 

अगर लोगों के बीच शहादत और जिहाद की संस्कृति न हो और लोगों का लक्ष्य केवल अपना जीवन हो तो एसी अवस्था में उनकी तरफ़ से प्रतिरोध नहीं दिखाई देगा, और वह केवल अपनी जानों की फ़िक्र करेंगे, इराक़ के बड़े शहरों में शामिल मूसल जिसमें लाखों लोग रहते थे उस पर एक रात में आतंकवादियों का क़ब्ज़ा हो जाता है लेकिन दूसरी तरफ़ एक छोटा सा शिया शहर संसाधनों की कमी के बावजूद 80 दिनों तक आतंवादियों से घिरा रहता है लेकिन प्रतिरोध करता है और उनको शहर में प्रवेश नहीं करने देता है, यह शहादत और जिहाद की संस्कृति दिखाता है और दिखाता है कि जो अपनी जान को हथेली पर रख लेता है और केवल अपने धार्मिक अक़ीदों के आदार पर लड़ाई करता है ऐसा व्यक्ति अवश्य ही सफ़ल होता है और ऐसा इन्सान isis को कुचल सकता है।

सिद्धांतिक रूप से वह इस्लाम जिसमें शहादत और जिहाद की संस्कृति न पाई जाती हो वह अपमान और तिरस्कार का पात्र बनेगा और छोटी से छोटी शक्ति के सामने बी आसानी से हार मान लेगा चाहे शत्रु से लड़ने के लिये जिहाद का फ़तवा की क्यों न दिया गया हो।

अगर हज़रत क़ासिम का यह नारा «الموت أحلی من العسل» मौत शहद से भी मीठी है अपनी पैठ बना चुका होता को क्या isis से मुक़ाबला इस हद तक पहुंचा होता ???

 

Isis के मुक़ाबले में हमारा दायित्व

प्राथमिकताओं पर ध्यान केन्द्रित करना

वास्तविक शत्रु यानी साम्राजी शक्तियां इस बात का प्रयत्न करती हैं कि प्राथमिकताओं को अलग अलग स्थान पर दिखाएं ताकि कम से कम ख़र्चे में अपनी पसंद के लक्ष्यों तक पहुंच सकें।

शत्रु की पहचान जिसने स्यंव को छिपाने के लिये नक़ाब लगा रखी है

शत्रु कभी कभी अपने आप को मासूम और पवित्र दिखाने के लिये अपने आप को पीड़ित दिखाता है ताकि अपने अत्याचारो और अपराधों पर पर्दा डाल सके। जिसमें से अमरीकी पत्रकार की हत्या और isis के ठिकानों पर अमरीकी बमबारी की तरफ़ इशारा किया जा सकता है, जिसमें शत्रु (अमरीका) ने अपने ख़ून से रंगे हाथों को साफ़ दिखाने के लिये कार्य किया है।

शत्रु इस आतंकवादी हमले को अप्रसन्न सुन्नी समुदाय की क्रांति के तौर पर दिखाने की कोशिश कर रहा है और अपनी कार्यवाहियों को शिया और सुन्नी के बीच जंग का नाम दे रहा है ताकि सुन्नियों का समर्थन पा सके, जब्कि इस वहाबी विचारधारा का बढ़ना और शक्तिशाली होना एक दिन सारे इस्लाम के लिये ख़तरा होगा।

Isis से जंग, सत्य और असत्य की जंग है, यह साम्राज्य की इस्लाम के विरुद्ध जंग है, और यह वहाबियत और तकफ़ीरियों की सारे मुसलमानों के विरुद्ध जंग है।
 

जागरुकता फैलाना

आज लोगों को यह जानना होगा कि कौन कौन से अत्याचार और ज़ुल्म हो रहे हैं ताकि वह isis के ख़तरे को भलिभाति समझ सकें।

कभी कभी यह सुनने में आता है कि isis से सम्बंधित समाचारों को प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि इससे लोगों में भय उत्पन्न होता है, यह सही नहीं है, अगर लोग यह समाचार सुनकर डरते हैं तो इसका अर्थ यह है कि शहादत की संस्कृति उनके अंदर घर नहीं कर पाई है! क्यों डरें? शहादत से बढ़कर कौन सा सौभाग्य है!

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