इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) के कथन भाग 3
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) के कथन भाग 3
सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
21- قَالَ أَبُو جَعْفَرٍ علیه السلام:
بُنِيَ الْإِسْلَامُ عَلَى خَمْسٍ إِقَامِ الصَّلَاةِ وَ إِيتَاءِ الزَّكَاةِ وَ حِجِّ الْبَيْتِ وَ صَوْمِ شَهْرِ رَمَضَانَ وَ الْوَلَايَةِ لَنَا أَهْلَ الْبَيْتِ.
فَجُعِلَ فِي أَرْبَعٍ مِنْهَا رُخْصَةٌ وَ لَمْ يُجْعَلْ فِي الْوَلَايَةِ رُخْصَةٌ.
مَنْ لَمْ يَكُنْ لَهُ مَالٌ لَمْ يَكُنْ عَلَيْهِ الزَّكَاةُ.
وَ مَنْ لَمْ يَكُنْ عِنْدَهُ مَالٌ فَلَيْسَ عَلَيْهِ حَجٌّ.
وَ مَنْ كَانَ مَرِيضاً صَلَّى قَاعِداً وَ أَفْطَرَ شَهْرَ رَمَضَانَ.
وَ الْوَلَايَةُ صَحِيحاً كَانَ أَوْ مَرِيضاً أَوْ ذَا مَالٍ أَوْ لَا مَالَ لَهُ، فَهِيَ لَازِمَةٌ وَاجِبَةٌ.
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
इस्लाम का आधार पाँच चीज़ें हैं:
1. नमाज़ को स्थापित करना
2. ज़कात अदा करना
3. हज
4. रमज़ान के रोज़े
5. और हम अहलेबैत की विलायत
इनमें से (पहले) चार में छूट दी गई है लेकिन हम अहलेबैत की मोहब्बत में कोई छूट नहीं है।
जिसके पास माल न हो ज़कात उस पर वाजिब नहीं है (ज़कात के अहकाम देखे जाएं)
जिसके पास माल न हो (धार्मिक रूप से संक्षम न हो) उस पर हज वाजिब नहीं है
और जो बीमार हो वह नमाज़ को बैठकर पढ़ता है, और रमज़ान के रोज़े नहीं रखता है,
लेकिन विलायत, स्वस्थ हो या बीमार मालदार हो या ग़रीब (सब) पर वाजिब है।
(ख़ेसाल, शेख़ सदूक़ जिल्द 1, पेज 278)
22- قالَ الاْمامُ الباقر – عليه السلام - :
إذا أرَدْتَ أنْ تَعْلَمَ أنَّ فيكَ خَيْراً، فَانْظُرْ إلي قَلْبِكَ فَإنْ كانَ يُحِبُّ أهْلَ طاعَةِ اللّهِ وَ يُبْغِضُ أهْلَ مَعْصِيَتِهِ فَفيكَ خَيْرٌ؛ وَاللّهُ يُحِبُّك، وَ إذا كانَ يُبْغِضُ أهْلَ طاعَةِ اللّهِ وَ يُحِبّ أهْلَ مَعْصِيَتِهِ فَلَيْسَ فيكَ خَيْرٌ؛ وَ اللّهُ يُبْغِضُكَ، وَالْمَرْءُ مَعَ مَنْ أحَبَّ.
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
अगर तुम जानना चाहों कि तुम्हारे वुजूद में नेकी है या नहीं तो अपने दिल में देखो, अगर तुम ईश्वर की उपासना करने वालों को दोस्त और उसके आदेशों की अवहेलना करने वालों से नफ़रत करते हो तो तुम में नेकी है, और ईश्वर तुमको दोस्त रखता है, लेकिन अगर तुम ईश्वर की उपासना करने वालों नफ़रत करते हो और गुनाह करने वालों को पसंद करते हो तो तुम में नेकी और भलाई नहीं है और ईश्वर तुमसे नफ़रत करता है।
और हर व्यक्ति जिससे मोहब्बत करता है (क़यामत के दिन) उसी के साथ उठाया (महशूर किया) जाएगा।
23- قال علیه السلام:
حرام على قلوبكم أن تعرف حلاوة الايمان حتى تزهد فى الدنيا.
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
तुम्हारे दिलों पर ईमान की मिठास हराम है यहां तक कि तुम दुनिया से दूर हो जाओ और ज़ोहद अख़्तियार करो।
(वसाएलुश्शिया, जिल्द 16, पेज 186, हदीस1)
24- قال علیه السلام:
أوحی الله تعالی إلی شعیب النبی:
إنی معذب من قومک مائة ألف: أربعین ألفاً من شرارهم و ستین ألفاً من خیارهم. فقال: یا رب هؤلاء الأشرار فما بال الأخیار؟! فأوحی الله عزوجل إلیه: داهنوا أهل المعاصی فلم یغضبوا لغضبی؛
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
ईश्वर ने नबी हज़रत शुऐब पर वही कीः
मैं तुम्हारी क़ौस से एक लाख लोगों पर अज़ाब करूंगाः चालीस हज़ार बुरे लोगों को और साठ हज़ार उनमें से अच्छे लोगों को।
हज़रत शुऐब ने कहाः बुरों को तो ठीक है, लेकिन अच्छों को क्यों?
ईश्वर ने उन पर वही कीः उन्होंने पापियों के साथ सहिष्णुता दिखाई और मेरे क्रोध के लिए उन पापियों से नफ़रत नहीं की।
25- قال علیه السلام:
الصَّبرُ صَبرانِ: صَبرٌ عَلي البَلاءِ حَسَنٌ جَميلٌ وَ أفضَلُ الصَّبرَين الوَرَعُ عَن المَحارم.
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
सब्र (धैर्य) दो प्रकार का हैः बला और मुसीबत पर सब्र जो कि अच्छा और सुंदर है और इन दोनों में से सबसे बेहतरीन, ईश्वर द्वारा हराम की गई चीज़ों से दूरी बनाए रखना है।
(वसाएलुश्शिया, जिल्द 15, पेज 237, हदीस 20372)
26- قال علیه السلام:
أربَعٌ مِن کُنُوز البِرّ: کِتمانُ الحاجَة وَ کِتمانُ الصَّدَقَةِ وَ کِتمانُ الوَجَع وَ کِتمانُ المصیبَةِ.
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
चार चीज़ों नेकियों का ख़ज़ाना हैं:
1. आवश्यकता को छिपाना,
2. छिपा कर सदक़ा देना,
3. दर्द को छिपाना,
4. और मुसीबत को छिपाना
(बिहारुल अनवार जिल्द 75, पेज 175)
27- قال علیه السلام:
«إنّما المؤمن الذی إذا رضی لم یدخله رضاه فی إثم ولا باطل وإذا سخط لم یخرجه سخطه من قول الحق؛
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
वास्तविक मोमिन वह जो ख़ुशी के समय पाप और गुनाह नहीं करता है, और क्रोध के समय हक़ और सत्य की सीमाओं से बाहर नहीं जाता है।
(वसाएलुश्शिया, जिल्द 15, पेज 192)
28- قال علیه السلام:
من اغتیب عنده أخوه المؤمن فنصره و أعانه، نصره اللَّه فى الدنیا و الآخرة و من لم ینصره و لم یدفع عنه و هو یقدر على نصرته و عونه، خفضه اللَّه فى الدنیا و الآخرة؛
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
जो व्यक्ति मोमिन भाई की उसके सामने ग़ीबत किये जाने पर उसकी सहायता करे, ईश्वर लोक और परलोक में उसकी सहायता करता है, और जो उसकी सहायता न करे और उसकी ग़ीबत को न रोके जब्कि वह उसकी सहायता कर सकता हो तो ईश्वर लोक और परलोक में उसको अपमानित करेगा।
29- قال علیه السلام:
«إذا بلغ الرجل أربعین سنة نادی مناد من السماء قد دنا الرحیل فأعد الزاد؛
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
जब कोई व्यक्ति चालीस साल की आयु को पहुंच जाता है, तो एक फ़रिश्ता ईश्वर की आज्ञा से आसमान से आवाज़ देता है, यात्रा का समय नज़दीक है, यात्रा के संसाधनों को तैयार करो।
30- قال علیه السلام:
ثَلَاثٌ دَرَجَاتٌ وَ ثَلَاثٌ كَفَّارَاتٌ وَ ثَلَاثٌ مُوبِقَاتٌ وَ ثَلَاثٌ مُنْجِيَاتٌ؛
فَأَمَّا الدَّرَجَاتُ فَإِفْشَاءُ السَّلَامِ وَ إِطْعَامُ الطَّعَامِ وَ الصَّلَاةُ بِاللَّيْلِ وَ النَّاسُ نِيَامٌ
وَ الْكَفَّارَاتُ إِسْبَاغُ الْوُضُوءِ فِي السَّبَرَاتِ وَ الْمَشْيُ بِاللَّيْلِ وَ النَّهَارِ إِلَى الصَّلَوَاتِ وَ الْمُحَافَظَةُ عَلَى الْجَمَاعَاتِ
وَ أَمَّا الثَّلَاثُ الْمُوبِقَاتُ فَشُحٌّ مُطَاعٌ وَ هَوًى مُتَّبَعٌ وَ إِعْجَابُ الْمَرْءِ بِنَفْسِهِ
وَ أَمَّا الْمُنْجِيَاتُ فَخَوْفُ اللَّهِ فِي السِّرِّ وَ الْعَلَانِيَةِ وَ الْقَصْدُ فِي الْغِنَى وَ الْفَقْرِ وَ كَلِمَةُ الْعَدْلِ فِي الرِّضَا وَ السَّخَطِ.
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
तीन चीज़ें श्रेणियों कों उच्च बनाती हैं और तीन चीज़ें गुनाह का कफ़्फ़ारा है, और तीन चीज़ें मार देने वाली है और तीन चीज़ें बचा लेने वाली।
श्रेणिया (दर्जे) उच्च करने वाली चीज़ेः
तेज़ अवाज़ में सलाम करना, खाना खिलाना, और रात में नमाज़ पढ़ा, जब्कि लोग सो रहे हों।
वह चीज़ों जो कफ़्फ़ारा है गुनाहों काः
ठंडक में पूरा वुजू करना, नमाज़ के लिये दिन रात क़दम उठाना, और जमाअत के साथ नमाज़ की पाबंदी।
वह तीन चीज़ें जो मारने वाली हैं:
हाकिम और सत्ताधारी के अंदर कंजूसी, वह इन्सानी इच्छाएं (वहाए नफ़्स) जिनकी पूर्ति की जाए, और अपने को बेहतर समझना।
वह चीज़ें तो नजात देने वाली हैं:
लोगों के सामने और अकेले में ख़ुदा से डरना, मालदारी और ग़रीबी में न बहुत अधिक ख़र्च न बहुत कंजूसी, और क्रोध एवं शुख़ी के मौक़े पर सही बात कहना।
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