इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) के कथन भाग 2
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) के कथन भाग 2
सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
11- الامام باقر( عليه السلام ) قال:
«سِلاحُ اللِّئامِ قَبيحُ الكَلامِ».
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
तुच्छ लोगों का हथियार बुरी बातें हैं
इस रिवायत के आधार पर अगर हम सम्मानित होना चाहते हैं तो हमको बुरी बातों से दूरी करनी चाहिए।
12- قالَ الباقرُ علیهِ السلامُ:
إنَّ اللهَ خَبَأَ ثَلاثَةَ أشْیاءَ فی ثَلاثَةِ أشْیاءَ:
1) خَبَأَ رِضاهُ فی طاعَتِهِ فَلا تُحَقِّرَنَّ مِنَ الطّاعَةِ شَیْئاً فَلَعَلَّ رِضاهُ فیهِ
2) وَ خَبَأَ سَخَطَهُ فی مَعْصِیَتِهِ فَلا تُحَقِّرَنَّ مِنَ الْمَعْصِیَةِ شَیْئاً فَلَعَلَّ سَخَطَهُ فیهِ
3) وَ خَبَأَ أوْلِیائَهُ فی خَلْقِهِ فَلا تُحَقِّرَنَّ أحَداً فَلَعَلَّ ذلِکَ الْوَلِیُّ؛
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
ईश्वर ने तीन चीज़ों को तीन चीजों में छिपाया है
1. अपनी प्रसन्नता को अनुसरण में छिपाया है, तो किसी भी इताअत (अनुसरण) को छोटा न समझो, शायद ईश्वर की मर्जी उसी में हो।
2. और अपने क्रोध को पाप और गुनाह में छिपाया है, तो किसी भी पाप को छोटा न समझो शायद ईश्वर का क्रोध उसी पाप में हो।
3. और उसने अपने दोस्तों को लोगों के बीच छिपा दिया है, तो किसी को भी छोटा और कम न समझो शायद वही ईश्वर का दोस्त हो।
(कशफ़ुल्लग़ुम्मा, जिल्द2, पेज148)
13- قال علیه السلام:
ثلاث هن قاصمات الظهر: رجل استكثر عمله و نسي ذنوبه و اعجب برأيه؛
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
तीन चीज़ें इन्सान की कमर तोड़ देती हैं:
1. वह व्यक्ति जो अपने कर्म को अधिक समझे,
2. अपने पापों को भूल जाए,
3. अपने विचारों पर प्रसन्न रहे।
14- قال علیه السلام:
كُلُّ ذَنْبٍ يُكَفِّرُهُ الْقَتْلُ فِي سَبِيلِ اللَّهِ عَزَّ وَ جَلَّ إِلَّا الدَّيْنَ فَإِنَّهُ لَا كَفَّارَةَ لَهُ إِلَّا أَدَاؤُهُ أَوْ يَقْضِيَ صَاحِبُهُ أَوْ يَعْفُوَ الَّذِي لَهُ الْحَقُّ؛
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
ईश्वर की राह में क़त्ल हो जाना हर पाप का प्राश्चित है, सिवाय क़र्ज़े के जिसका कफ़्फ़ारा यह है किः या तो स्वंय क़र्ज़ा लेने वाला उसे अदा कर दे या उसका दोस्त अदा कर दे, या क़र्ज़ा देने वाला क्षमा कर दे।
15- قال علیه السلام:
إنّ الله تبارك و تعالی أعطی المإمن ثلاث خصال:
العزّة فی الدنیا
والفلج فی الآخرة
والمهابة فی صدورالظالمین؛
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
ईश्वर ने मोमिन को तीन गुण दिये हैं:
दुनिया में सम्मान
और आख़ेरत में इज़्ज़त
और अत्याचारियों के दिलों में उसका डर।
(फ़ुरु ए काफ़ी, जिल्द 8, पेज 234)
16- قال علیه السلام:
الْعِلْمُ خَزَائِنُ وَ الْمَفَاتِيحُ السُّؤَالُ فَاسْأَلُوا يَرْحَمُكُمُ اللَّهُ فَإِنَّهُ يُؤْجَرُ فِي الْعِلْمِ أَرْبَعَةٌ السَّائِلُ وَ الْمُتَكَلِّمُ وَ الْمُسْتَمِعُ وَ الْمُحِبُّ لَهُم؛
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
इल्म और ज्ञान ख़ज़ानों की भाति है, और प्रश्न उनकी कुंजी है, तो ख़ुदा तुम पर रहम करे और तुमको क्षमा करे, जो कुछ नहीं जानते हो उसे पूछो, क्योंकि इल्म और ज्ञान में चार लोगों को अज्र और इन्आम दिया जाएगाः
1. प्रश्न करने वाले को
2. बताने वाले को
3. सुनने वाले को
4. उनको पसंद करने वाले को
(बिहारुल अनवार जिल्द 1, पेज 196)
17- قال علیه السلام:
«صِلَةُ الْأَرْحَامِ تُزَكِّي الْأَعْمَالَ وَ تُنْمِي الْأَمْوَالَ وَ تَدْفَعُ الْبَلْوَى وَ تُيَسِّرُ الْحِسَابَ وَ تُنْسِئُ فِي الْأَجَل؛
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
रिश्तेदारों के साथ संबंध (सिलए रहम) कर्मों को पवित्र और सम्पत्ति को बढ़ाता है, और बलाओं को पलटाता है और (क़यामत के दिन) हिसाब को आसान करता है, और मृत्यु को दूर करता है।
(अलकाफ़ी, जिल्द 2, पेज155)
17- قال علیه السلام:
إنّ العبد لیكون بارّاً بوالدیه فی حیاتهما ثم یموتان فلا یقضی عنهما دینهما و لا یستغفر لهما فیكتبه الله عاقاً و إنّه لیكون عاقاً لهما فی حیاتهما غیر بارّ بهما فإذا ماتا قضی دینهما و استغفر لهما فیكتبه الله بارّاً؛
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
निसंदेह जो अपने माता पिता के लिये अच्छा रहे हो, और उनके मरने के बाद उनका क़र्ज़ अदा न करे, उनके बारे में इस्तेग़फ़ार न करे तो ईश्वर उसको माता पिता की तरफ़ से आक़ लिखता है।
और जो अपने माता पिता के जीवन में उनका आक़ रहा हो और जब वह मर जाएं तो वह उनके क़र्ज़े को अदा किया हो और उनके लिये इस्तेग़फ़ार किया हो, तो ईश्वर उसको माता पिता के लिये नेकी करने वाला लिखता है।
इस रिवायत से पता चलता है कि माता पिता के साथ नेकी करने की जिम्मेदारी उनकी मृत्यु के साथ समाप्त नहीं हो जाती है, और दूसरे यह कि कोताही और नेकी न करने वाली संतान के लिये भी ईश्वर ने रास्ता खुला रखा है कि अगर तुमने उनके जीवन में नेकी नहीं की तो निराश न हो उनकी मृत्यु के बाद अगर तुम यह कार्य करोगे तो भी तुम नेक लिखे जाओगे।
(अल महज्जतुल बैज़ा, जिल्द 3, पेज 441)
19- قال علیه السلام:
من يمشى فى حاجة أخيه المسلم أظله الله بخمسة و سبعين ألف ملك، و لم يرفع قدماً إلاّ و كتب الله بها حسنه، و حَطَّ عنه بها سيئة، و یرفع له بها درجة فإذا فرغ من حاجته كتب الله له عز و جل له بها اجر حاجٍّ و معتمرٍ.
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
जो भी अपने मुसलमान भाई की आवश्यकता को पूरा करने के लिये क़दम उठाए, ईश्वर उसको 75000 फ़रिश्तों के साये में रखता है, और जो भी क़दम उठाता है ईश्वर उसके लिये एक नेकी लिखता है और एक गुनाह मिटा देता है और उसके एक दर्जा बढ़ा देता है, और जब वह मुसलमान भाई की आवश्यकता को पूरा कर देता है तो ईश्वर उसके लिये हज और उमरे का सवाब लिखता है।
18- قال علیه السلام:
«أربع من كنَّ فیه بنی الله له بیتاً فی الجنَّة:
من آوی الیتیم و رحم الضَّعیف و أشفق علی والدیه و رفق بمملوكه.»
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमायाः
चार गुण जिसमें भी हो ख़ुदा स्वर्ग में उसके लिये एक घर बनाता हैः
1. जो यतीम को आसरा दे,
2. और किसी कमज़ोर पर रहम करे,
3. और अपने माता पिता से मोहब्बत करे,
4. और दासों एवं अपने नीचे वालों के साथ सहिष्णुता दिखाए।
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