पैग़म्बरे इस्लाम के मार्गदर्शक कथन भाग 4

पैग़म्बरे इस्लाम के मार्गदर्शक कथन  भाग 4

अनुवादकः सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

 

31. قال رسول الله صلّى ‏ الله‏  عليه ‏ و‏ آله و سلّم:

خمسة من مصائب الآخرة: فَوتُ الصلوة و موت العالم و ردّ السائل و مخالفة الوالدین و فَوتُ الزکاة.

و خَمسَةٌ مِن مَصائبِ الدّنيا فَوتُ الحبيبِ و ذَهابُ المال و شَماتةُ الأعداء و تَركُ العمل و امرأةُ السّوءِ.

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः

पाँच चीज़ें क़यामत की मुसीबतों में से हैं

1.    नमाज़ का छोड़ना

2.    ज्ञानी (आलिम) की मौत

3.    मांगने वाले को लौटा देना,

4.    माता पिता का विरोध,

5.    ज़कात न देना।

 पाँच चीज़ दुनिया की मुसीबतो में से हैं:

1.    दोस्त की मौत

2.    माल का बरबाद हो जाना

3.    शत्रुओं की निंदा

4.    इल्म को छोड़ना

5.    बुरी औरत

(इसना अशर फ़ी मवाज़ेउल अददिया, बाबुल ख़मसा)

32. قال رسول الله صلّى ‏ الله‏  عليه ‏ و‏ آله و سلّم:

مَنْ حَفِظ مِنْ اُمَّتى اَرْبَعینَ حَدیثا مِمّا یَحْتاجُونَ اِلَیْهِ مِنْ أَمْرِ دینِهِمْ بَعَثَهُ اللّهُ یَوْمَ الْقیامَةِ فَقیها عالِما.

 

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः

मेरी उम्मत में से जो भी व्यक्ति चालीस दिन उन धार्मिक मामलों को जिनकी लोगों को आवश्यकता है सीखे, क़यामत के दिन उसको फ़क़ीह और ज्ञानी उठाया जाएगा।

(सवाबुल आमाल, पेज 300)

33. قال رسول الله صلّى ‏ الله‏  عليه ‏ و‏ آله و سلّم:

مَا عَجَّتِ الْأَرْضُ‏  إِلَى رَبِّهَا عَزَّ وَ جَلَّ كَعَجِيجِهَا مِنْ ثَلَاثَةٍ: مِنْ دَمٍ حَرَامٍ يُسْفَكُ عَلَيْهَا؛ أَوِ اغْتِسَالٍ مِنْ زِنًا؛ أَوِ النَّوْمِ عَلَيْهَا قَبْلَ طُلُوعِ الشَّمْسِ.

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः

ज़मीन ने अल्लाह से फ़रियाद नहीं की इन तीन चीज़ों के जैसी फ़रियादः

1.    बेगुनाह के ख़ून पर जो बहाया गया।

2.    या ज़िना पर ग़ुस्ल किये जाने पर,

3.    या सूरज निकलने से पहले उस पर सोना।

(ख़ेसाल, बाबुल सलाला, हदीस 160)

34. قال رسول الله صلّى ‏ الله‏  عليه ‏ و‏ آله و سلّم:

یکون الغرباء فی الدّنیا أربعه: قرآنٌ فی جوف ظالمٍ، و مسجدٌ بینَ قومٍ لا یُصَلّونَ فیه، و مُصحَفٌ فی بیتٍ لا یُقرَءُ فیه، و رجلٌ صالحٌ بینَ قومِ سوءٍ.

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः

दुनिया में चार ग़रीब (उपेक्षित) हैं:

1.    वह क़ुरआन जो अत्याचारी के हाथ में हो,

2.    और वह मस्जिद जो बेनमाज़ियों के बीच हो,

3.    वह सहीफ़ा (क़ुरआन) जो ऐसे घर में हो कि जहां पढ़ा न जाता हो,

4.    नेक (परहेज़गार) व्यक्ति बुरों के बीच में।

35. قال رسول الله صلّى ‏ الله‏  عليه ‏ و‏ آله و سلّم:

علامة السعادة أربعة :

ذكر الذنوب الماضية؛

و نسيان الحسنات الماضية؛

و نَظَرُهُ الي مَن فَوقَه في الدين؛

و إلي من هو دونه في الدنيا.

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः

सौभाग्य की चार निशानियां हैं:

1.    पिछले पापों की याद,

2.    पिछनी नेकियों और अच्छाईयों को भुला देना,

3.    उन लोगों को देखना जो धार्मिक आधार पर उससे उच्च हैं,

4.    उन लोगों को देखना जो दुनियावी आधार पर उससे नीचे हैं

(अलमवाज़ेउल अददिया, बाबुल अरबआ, 117)

- مِن علامات الشِّقاء: جُمُودُ العَین و قَسوَةُ القَلب و شدَّةُ الحِرص فى طلب الرزق و الاصرار عَلَى الذَّنب».

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः

दुर्भाग्य की निशानी, आखों का सूख जाना, दिल का सख़्त होना, और रोज़ी की तलाश में बहुत अधिक लालच, और पाप पर हठ है।

(ख़ेसाल, पेज 243)

36. قال رسول الله صلّى ‏ الله‏  عليه ‏ و‏ آله و سلّم:

مَن تابَ قَبلَ مَوتِهِ بِسَنَةٍ قَبِلَ الله تَوبَتَه.

ثمّ قال: إنّ السنة لکثیرة، مَن تاب قبل موته بشهر قبل اللّه توبته.

ثمّ قال: إنّ الشهر لکثیر من تاب قبل موته بجمعة قبل اللّه توبته.

ثمّ قال: إنّ الجمعة لکثیر من تاب قبل موته بیوم قبل اللّه توبته.

ثمّ قال: إنّ یوماً لکثیر من تاب قبل أن یُعایِنَ قَبِلَ الله توبته.  

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः

जो भी अपनी मौत से एक वर्ष पहले तौबा करे, ईश्वर उसकी तौबा को स्वीकार करता है,

फिर आपने फ़रमायाः एक वर्ष अधिक है, जो भी अपनी मृत्यु से एक मास पहले तौबा करे, ईश्वर उसकी तौबा को स्वीकार करता है,

फिर आपने फ़रमायाः एक मास अधिक है जो भी अपनी मौत से एक शुक्रवार (एक सप्ताह) पहले तौबा करे ईश्वर उसकी तौबा को स्वीकार करता है,

फिर आपने फ़रमायाः एक शुक्रवार (सप्ताह) अधिक है जो भी व्यक्ति अपनी मृत्यु से एक दिन पहले तौबा करे ईश्वर उसकी तौबा को स्वीकार करता है,

फिर आपने फ़रमायाः एक दिन अधिक है जो भी अपनी मौत देखने से पहले तौबा कर ले ईश्वर उसकी तौबा को स्वीकार करता है।

(उसूले काफ़ी जिल्द 2, पेज 44)

37. قال رسول الله صلّى ‏ الله‏  عليه ‏ و‏ آله و سلّم:

ألا وَ مَنْ مَاتَ عَلَی حُبِّ آلِ مُحَمَّدٍ مَاتَ شَهِیداً؛

أَلا وَ مَنْ مَاتَ عَلَی حُبِّ آلِ مُحَمَّدٍ مَاتَ مَغْفُوراً لَهُ؛

أَلا وَ مَنْ مَاتَ عَلَی حُبِّ آلِ مُحَمَّدٍ مَاتَ تَائِباً؛

أَلا وَ مَنْ مَاتَ عَلَی حُبِّ آلِ مُحَمَّدٍ مَاتَ مُؤْمِناً مُسْتَکمِلَ الْإِیمَانِ؛

أَلا وَ مَنْ مَاتَ عَلَی حُبِّ آلِ مُحَمَّدٍ بَشَّرَهُ مَلَک الْمَوْتِ بِالْجَنَّةِ ثُمَّ مُنْکرٌ وَ نَکیرٌ؛

أَلا وَ مَنْ مَاتَ عَلَی حُبِّ آلِ مُحَمَّدٍ یزَفُّ إِلَی الْجَنَّةِ کمَا تُزَفُّ الْعَرُوسُ إِلَی بَیتِ زَوْجِهَا؛

أَلا وَ مَنْ مَاتَ عَلَی حُبِّ آلِ مُحَمَّدٍ فُتِحَ لَهُ فِی قَبْرِهِ بَابَانِ إِلَی الْجَنَّةِ؛

أَلا وَ مَنْ مَاتَ عَلَی حُبِّ آلِ مُحَمَّدٍ جَعَلَ اللَّهُ قَبْرَهُ مَزَارَ مَلَائِکةِ الرَّحْمَةِ؛

أَلا وَ مَنْ مَاتَ عَلَی حُبِّ آلِ مُحَمَّدٍ مَاتَ عَلَی السُّنَّةِ وَ الْجَمَاعَةِ؛

 

أَلا وَ مَنْ مَاتَ عَلَی بُغْضِ آلِ مُحَمَّدٍ جَاءَ یوْمَ الْقِیامَةِ مَکتُوبٌ بَینَ عَینَیهِ آیسٌ مِنْ رَحْمَةِ اللَّهِ؛

أَلا وَ مَنْ مَاتَ عَلَی بُغْضِ آلِ مُحَمَّدٍ مَاتَ کافِراً؛

أَلا وَ مَنْ مَاتَ عَلَی بُغْضِ آلِ مُحَمَّدٍ لَمْ یشَمَّ رَائِحَةَ الْجَنَّة.

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः

याद रखो जो भी आले मोहम्मद की मोहब्बत पर मरे वह शहीद मरा है,

याद रखो जो भी आले मोहम्मद की मोहब्बत पर मरे वह बख़्श दिया गया है,

याद रखो जो भी आले मोहम्मद की मोहब्बत पर मरे, वह तौबा के साथ मरा है,

याद रखो जो भी आले मोहम्मद की मोहब्बत पर मरे, वह पूर्ण ईमान के साथ इस दुनिया से गया है,

याद रखो जो भी आले मोहम्मद की मोहब्बत पर मरे, उसको यमदूत स्वर्ग की शुभ सूचना देता है और उसके बाद नकीर और मुनकर नामी फ़रिश्ते,

याद रखो जो भी आले मोहम्मद की मोहब्बत पर मरे, उसको उतने सम्मान के साथ स्वर्ग में ले जाते हैं जितने सम्मान से दुल्हन को पति के घर लाते हैं,

याद रखो जो भी आले मोहम्मद की मोहब्बत पर मरे, उसकी क़ब्र से एक द्वार स्वर्ग की तरफ़ खोला जाता है,

याद रखो जो भी आले मोहम्मद की मोहब्बत पर मरे, ईश्वर उसकी क़ब्र को रहमत के फ़रिश्तों का ज़ियारत स्थल बनाता है,

याद रखो जो भी आले मोहम्मद की मोहब्बत पर मरे, वह पैग़म्बर और मोमिनीन के रास्ते पर मरा है।

याद रखो जो भी आले मोहम्मद की दुश्मनी में मरे, वह क़यामत के दिन इस अवस्था में आएगा कि उसके माथे पर लिखा होगाः ईश्वर की रहमत से निराश है,

याद रखो जो भी आले मोहम्मद की दुश्मनी में मरे, वह काफ़िर दुनिया से गया है,

याद रखो जो भी आले मोहम्मद की दुश्मनी में मरे, वह स्वर्ग की गंध भी न सूंघ सकेगा।

(बिहारुल अनवार, जिल्द 23, पेज 233)

38. عن أبی عبدالله علیه السلام قال: قال رسول الله صلّى ‏ الله‏  عليه ‏ و‏ آله و سلّم:

إرفَعُوا أصواتَكُم بالصَّلاةِ عَلَيَّ؛ فَإنَّها تَذْهَبُ بِالنِّفاقِ.

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः

मुझ पर तेज़ आवाज़ से सलवात पढ़ो, क्योंकि यह निफ़ाक़ को दूर करती है।

(बिहारुल अनवार, जिल्द 94, पेज 59, हदीस 41)

39. قال رسول الله صلّى ‏ الله‏  عليه ‏ و‏ آله و سلّم:

يا اَباذَرٍّ، اِغْتَنِمْ خَمْساً قَبْلَ خَمْس، شَبابَكَ قَبْلَ هِرَمِكَ وَصِحَتَكَ قَبْلَ سُقْمِكَ وَ غِناكَ قَبْلَ فَقْرِكَ وَ فَراغَكَ قَبْلَ شُغْلِكَ وَ حيوتَكَ قَبْلَ مَوْتِكَ.

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः

हे अबूज़र पाँच चीज़ों का पाँच चीजों से पहले महत्व समझोः

1.    अपनी जवानी की बुढ़ापा आने से पहले

2.    अपने स्वास्थ का बीमारी से पहले

3.    दौलत का फ़क़ीरी से पहले

4.    फ़ुर्सत को छणों का मशग़ूल होने से पहले

5.    जीवन का मौत से पहले

(वसाएलुश्शिया जिल्द 1, पेज 114)

40. عن جابر و أبی سعید الخدری قالا: قال رسول الله صلّى ‏ الله‏  عليه ‏ و‏ آله و سلّم:

إِيَّاكُمْ وَالْغِيبَةَ فَإِنَّ الْغِيبَةَ أَشَدُّ مِنَ الزِّنَا فإِنَّ الرَّجُلَ قَدْ يَزْنِي و يَتُوبُ فَيَتُوبُ اللَّهُ عَلَيْهِ ، وَإِنَّ صَاحِبَ الْغِيبَةِ لا يُغْفَرُ لَهُ حَتَّى يَغْفِرَ لَهُ صَاحِبُهُ.

जाबिर और अबी सईद अल ख़दरी से रिवायत है कि इन दोनों ने कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः

ग़ीबत से बचो क्योंकि ग़ीबत ज़िना के से अधिक बुरी है, जो ज़िना करता है और तौबा करता है ईश्वर उसकी तौबा को स्वीकार करता है लेकिन जो ग़ीबत करता है उसके पाप क्षमा नहीं किये जाते हैं यहां तक कि जिसकी ग़ीबत की गई है वह माफ़ कर दे।

(वसाएलुश्शिया, जिल्द 8, पेज 598)

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