पैग़म्बरे इस्लाम के मार्गदर्शक कथन भाग 2
पैग़म्बरे इस्लाम के मार्गदर्शक कथन भाग 2
अनुवादकः सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
11. قال رسول الله صلى الله عليه و آله و سلّم:
کَيفَ بِکُم اِذا فَسَدَت نِساءُکُم وَ فَسَقَ شُبّانُکُم وَ لَم تَامُروُا بِالمَعروُفِ وَ لَم تَنهوُا عَن المُنکَرِ؟ قیل له: و یکون ذلک یا رسول الله؟ قال: نعم و شرّ من ذلک، و کیف بکم إذا أمرتم بالمنکر و نهیتم عن المعروف؟ قیل: یا رسول الله و یکون ذلک؟ قال: نعم و شرّ من ذلک، و کیف بکم إذا رأیتم المعروف منکراً و المنکر معروفاً.
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः
उस समय तुम क्या करोगे कि जब तुम्हारी औरतें कुकर्मी हो जाएंगी और तुम्हारे जवान कुकर्मी और बुरे कार्य करने लगेंगे और तुम अच्छा का आदेश और बुराई से रोकोगे नहीं?
कहा गयाः हे अल्लाह के रसूल! क्या ऐसा होगा?
आपने फ़रमायाः हां बल्कि इससे भी बदतर, उस समय में तुम कैसे होगे कि जब तुम बुराई का आदेश दोगे और अच्छाई से रोकोगे?
कहा गयाः हे अल्लाह के रसूल! क्या ऐसा हो सकता है?
फ़रमायाः हां, बल्कि इससे भी बदतर, उस समय तुम कैसे होगि कि जब तुम अच्छाई को बुराई और बुराई को अच्छाई समझोगे।
(काफ़ी जिल्द, 5, पेज 59, हदीस 14)
12. قال رسول الله صلى الله عليه و آله و سلّم:
إذا كثر الزنا بعدى كثر موت الفجأة، و اذا طُفِّفَ المكيال اخذ الله بالسنين و النقص، و اذا منعوا الزكاة مَنَعَتِ الارضُ بركاتها من الزرع و الثمار و المعادن، و اذا جاروا فى الحكم تعاونوا على الظلم و العدوان، و اذا نقضوا العهود سَلَّطَ الله عليهم عدوهم، و اذا قطعوا الارحام جُعِلَت الاموالُ فى ايدى الاشرار، و اذا لم يأمروا بالمعروف و لم ينهوا عن المنكر و لم يَتَّبعوا الاخيار من أهل بيتى سلط الله عليهم اشرارهم فيدعوا عند ذلك خيارهم فلا يستجاب لهم.
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः
मेरे बाद जब बलात्कार बढ़ जाए, तो अचानक होने वाली मौतो की संख्या बढ़ जाएगी।
और जब व्यापारियों के बीच कम तौल आम हो जाए, तो ख़ुदा लोगों को सूखे और कमी से दोचार कर देगा।
और जब ज़कात देने से मना कर दिया जाएगा, तो धरती खेती, फलों और कानों में अपनी बरकत को रोक देगी।
और जब न्याय और आदेश में अन्याय होने लगेगा, तो लोग अत्याचार और शत्रुता में एक दूसरे की सहायता करने लगेंगे।
और जब लोग वादा तोड़ने लगेंगे तो ख़ुदा उनके शत्रुओं को उनपर हावी कर देगा।
और जब सिलए रहम (आपसी संबंध) समाप्त हो जाएगा, तो सम्पत्ति और माल बुरों के हाथ में चला जाएगा।
और जब अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुनकर (अच्छाई का हुक्म बुराई से रोकना) छोड़ दिया जाएगा और नेक लोग मेरे अहलेबैत का अनुसरण नहीं करेंगे, तो उनमें से बुरे लोग उन पर हावी हो जाएंगे, और ऐसी अवस्था में उनके नेक लोग प्रार्थना करेंगे लेकिन उनकी प्रार्थना स्वीकार नहीं होगी।
(बिहारुल अनवार, जिल्द 77, पेज 157, हदीस 129)
13. قال رسول الله صلى الله عليه و آله و سلّم:
تَصَافَحُوا فَإِنَّ التَّصَافُحَ يُذْهِبُ بِالسَّخِيمَةِ.
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः
मुसाफ़ेहा करो (हाथ मिलाओ) क्योंकि यह नफ़रत और दिलों के कीने को मिटा देता है।
(तोहफ़ुल उक़ूल, पेज 54, हदीस 149)
14. قال رسول الله صلى الله عليه و آله و سلّم لأبی ذر: أیّ عُری الایمان أوثق؟ قال: الله و رسوله أعلم. فقال صلّی الله علیه و آله و سلّم: الموالاة فی الله و المعاداة فی الله و البُغضُ فی الله.
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अबूज़र से फ़रमायाः ईमान की कौन सी कड़ी सबसे अधिक मज़बूत है।
अबूज़र ने फ़रमायाः ख़ुदा और उसका रसूल अधिक जानते हैं।
तो पैग़म्बर (स) ने फ़रमायाः ईश्वर के लिये दोस्ती करना और ईश्वर के लिये दुश्मनी करना, और नफ़रत ईश्वर के लिये।
(तोहफ़ुल उक़ूल, पेज 54, हदीस 152)
15. قال له رجلٌ: أوصنی. قال احفظ لسانک؛ ثم قال: یا رسول اللّه أوصنی. فقال ویحک و هل یکبّ النّاس علی مناخرهم إلاّ حصائدَ ألسنتهم؟
एक व्यक्ति ने आपने कहाः हे अल्लाह के रसूल मुझे नसीहत करें।
आपने फ़रमायाः अपनी ज़बान पर कंट्रोल रखो।
उसने कहाः हे अल्लाह के रसूल, मुझे दूसरी नसीहत करें।
आपने फ़रमायाः वाय हो तुम पर! क्या इसके अतिरिक्त कुछ है कि लोग जो कुछ अपनी ज़बान से बोएंगे उसी के आधार पर नर्क में डाले जाएं?
(तोहफ़ुल उक़ूल, पेज 55, हदीस 156)
16. قال رسول الله صلى الله عليه و آله و سلّم:
إِذَا کَانَ یَوْمُ الْقِیَامَةِ لَمْ تَزَلْ قَدَمَا عَبْدٍ حَتَّى یُسْأَلَ عَنْ أَرْبَعٍ: عَنْ عُمُرِهِ فِیمَ أَفْنَاهُ وَ عَنْ شَبَابِهِ فِیمَ أَبْلَاهُ وَ عَمَّا اکْتَسَبَهُ مِنْ أَیْنَ اکْتَسَبَهُ وَ فِیمَ أَنْفَقَهُ وَ عَنْ حُبِّنَا أَهْلَ الْبَیْتِ.
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः
जब क़यामत का दिन आएगा तो तो बंदा क़दम नहीं उठाएगा, मगर यह कि उससे चार चीज़ के बारे में प्रश्न किया जाएगाः
1. उसकी आयु के बारे में कि किस कार्य में लगाई है।
2. उसकी जवानी के बारे में कि किस रास्ते पर समाप्त की है।
3. उसकी कमाई के बारे में कि किस रास्ते से हाथ आई है, और कहां ख़र्च की गई है।
4. और हम अहलेबैत की मोहब्बत के बारे में।
(बिहारुल अनवार जिल्द 74, पेज 162)
संक्षिप्त विवरण
चार प्रश्न जो इन्सान के क़यामत के दिन पूछे जाएंगे।
यह वाक्य जिसमें फ़रमाया गया है «لَمْ تَزَلْ قَدَمَا عَبْدٍ» इशारा है इस बात का कि क़दम नहीं बढ़ाएगा, यानी क़यामत के दिन इससे पहले कि इन्सान आगे बढ़े उससे यह चार प्रश्न पूछे जाएंगे।
पहला प्रश्नः «عَنْ عُمُرِهِ فِیمَ أَفْنَاهُ तुम दुनिया में थे तो तुमने अपनी अमर को किस प्रकार बिताया यानी तुम ने किस प्रकार जीवन व्यतीत किया, यहां पर इन्सान से उसकी आयु के बारे में एक संक्षिप्त प्रश्न किया जाएगा, कि बताओ जितने साल तुम दुनिया में थे उसमें तुमने क्या किया?
जवानी किस प्रकार गुज़ारी
दूसरा प्रश्नः «وَ عَنْ شَبَابِهِ فِیمَ أَبْلَاهُ क़यामत में इन्सान से न केवल उसकी पूरी आयु के बारे में प्रश्न किया जाएगा बल्कि इन प्रश्नों में एक प्रश्न उसके जीवन के एव विशेष बाग यानी उसकी जवानी के बारे में भी किया जाएगा, जिससे पता चलता है कि जीवन का यह भाग उन भागों में से है जिसपर अधिक ध्यान दिया गया है। «أَبْلَاهُ» इशारा है पुराना करने का, जिस प्रकार कपड़ा धीरे धीरे पुराना होता है, प्रश्न किया जाएगा कि इस जवानी को किस प्रकार धीरे धीरे समाप्त किया?
अहलेबैत की मोहब्बत क़यामत में बदलेगी क़िस्मत।
चौथा प्रश्नः «وَ عَمَّا اکْتَسَبَهُ مِنْ أَیْنَ اکْتَسَبَهُ وَ فِیمَ أَنْفَقَهُ» हम अहलेबैत की मोहब्बत और दोस्ती के बारे में प्रश्न किया जाएगा, क्या तुमको हम अहलेबैत से मोहब्बत और उनसे संबंध था या नहीं? इससे पता चलता है कि क़यामत के दिन इन्सान से किया जाने वाला यह चौथा प्रश्न उसकी क़िस्मत का फ़ैसला करने वाला है, यानी जिसने इस दुनिया में अहलेबैत की सच्ची मोहब्बत को अपने दिल में बसाया होगा तो उसकी यह मोहब्बत क़यामत में उसकी क़िस्मत बदल देगी।
चेतावनी
क़यामत में इन्सान से यह प्रश्न किये जाएंगे, उत्तर हाज़िर रखिये।
17. قال رسول الله صلى الله عليه و آله و سلّم:
أَلَا إِنَّ شرَّ أُمَّتِيَ الَّذِينَ يُكْرَمُونَ مَخَافَةَ شَرِّهِمْ أَلَا وَ مَنْ أَكْرَمَهُ النَّاسُ اتِّقَاءَ شَرِّهِ فَلَيْسَ مِنِّي.
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः
जान लो कि मेरी उम्मत की सबसे बुरे लोग वह है कि जिनकी बुराई से बचने के लिये उनका सम्मान किया जाए, जान लो कि जिस व्यक्ति का सम्मान लोग इसलिये करें कि उसकी बुराई से सुरक्षित रहें वह मेरी उम्मत से नहीं है।
(तोहफ़ुल उक़ूल, पेज 58, हदीस 180)
18. «رُوِىَ عَنِ النَّبىّ (صلى الله علیه وآله وسلم): اِنَّهُ نَظَرَ اِلى بَعْضِ الاَطْفالِ فَقالَ: وَیلٌ لأولادِ آخِرِ الزَّمانِ من آبائِهِمْ! فَقیلَ یا رَسُولَ اللّهِ مِنْ آبائِهِمُ المُشرکین؟ فَقالَ لا، مِنْ آبائِهمُ المُؤمِنینَ، لایُعلِّمُونَهُم شَیئاً مِن الفرائضِ وَ اِذا تَعَلَّمُوا اَوْلادُهُمْ مَنَعُوهُمْ وَ رَضَوُا عَنْهُمْ بِعَرَضٍ یَسیرٍ مِنَ الدُّنیا فَاَنَا منْهُمْ بَرىءٌ وَ هُمْ مِنّى بُرَاءُ».
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कुछ बच्चों की तरफ़ देखा और फ़रमायाः वाय हो अन्तिम युग की संतानों पर अपने माता पिता के हाथों!
प्रश्न किया गयाः कि क्या उनके मुशरिक माता पिता की तरफ़ से?
आपने फ़रमायाः नहीं, उनके मोमिन माता पिता की तरफ़ से, क्योंकि वह धर्म की अनिवार्य (वाजिब) चीज़ों को अपनी संतानों को नहीं सिखाएंगे, और अगर औलाद सीखना चाहेगी तो उसको रोकेंगे, और वह केवल इसी बात पर राज़ी रहेंगे कि उनकी औलाद दुनिया के माल में से कुछ कमा ले, मैं उनसे दूर हूँ और वह भी मुझ से दूर हैं। (मुस्तदरकुल वलाएल, जिल्द 2, पेज 625)
19. قال رسول الله صلى الله عليه و آله و سلّم:
مِن حَقِّ الوَلَدِ على والِدِهِ ثَلاثَةٌ : يُحَسِّنُ اسمَهُ ، و يُعَلِّمُهُ الكِتابَةَ، و يُزَوِّجُهُ إذا بَلَغَ.
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः
संतान के अपने पिता पर अधिकारों में से एक यह तीन चीज़ें है:
1. उसके लिये अच्छे नाम का चयन करें।
2. उसके पढ़ाए लिखाएं।
3. और जब वह बालिग़ हो जाएं तो उनकी शादी करें।
20. قال رسول الله صلى الله عليه و آله و سلّم:
ضَغطَةُ القَبرِ لِلمُومِن کَفارَةٌ لِما کانَ مِنهُ مِن تَضیِیعِ النِعَم.
मोमिन के लिये फ़िशारे क़ब्र नेमतों को बरबाद करने का कफ़्फ़ारा है।
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