मुनाजाते ज़ाहेदीन
पंद्रहवीं दुआ
मुनाजाते ज़ाहेदीन
بِسْمِ اﷲِ الرَحْمنِ الرَحیمْ
إلھِی ٲَسْکَنْتَنا داراً حَفَرَتْ لَنا حُفَرَ مَکْرِہا وَعَلَّقَتْنا بِٲَیْدِی الْمَنایا فِی حَبَائِلِ غَدْرِہا فَ إلَیْکَ نَلْتَجِیَُ مِنْ مَکَائِدِ خُدَعِہا، وَبِکَ نَعْتَصِمُ مِنَ الاغْتِرارِ بِزَخَارِفِ زِینَتِہا، فَإنَّھَا الْمُھْلِکَۃُ طُلاَّبَھَا، الْمُتْلِفَۃُ حُلاَّلَھَا، الْمَحْشُوَّۃُ بِالْآفاتِ، الْمَشْحُونَۃُ بِالنَّکَبَاتِ ۔
आरम्भ करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान है।
मेरे मालिक तूने हमें ऐसे घर में रखा जिस को धोखी की कुदाल ने हमारे लिये खोदा है, और तूने हमें आशाओं के हाथों उसके छल की रस्सियों में जकड़ दिया है, तो हम इस दुनिया के छल कपट और मक्कारियों से तेरी पनाह चाहते हैं, और उसकी झूठी साज सज्जा के धोखों से बचने के लिए तेरा मज़बूत दामन थामते हैं कि यह अपने चाहने वालों को बरबाद करने वाली, यहां आने वालों को मार देने वाली आफ़तों से भरी दुर्दशा से भरे हैं।
إلھِی فَزَہِّدْنا فِیہا، وَسَلِّمْنا مِنْہا بِتَوْفِیقِکَ وَعِصْمَتِکَ وَانْزَعْ عَنَّا جَلابِیبَ مُخالَفَتِکَ وَتَوَلَّ ٲُمُورَنا بِحُسْنِ کِفایَتِکَ وَٲَوْفِرْ مَزِیدَنا مِنْ سَعَۃِ رَحْمَتِکَ، وَٲَجْمِلْ صِلاتِنا مِنْ فَیْضِ مَواھِبِکَ وَاغْرِسْ فِیٲَفْیِدَتِنا ٲَشْجارَ مَحَبَّتِکَ، وَٲَتْمِمْ لَنا ٲَ نْوارَ مَعْرِفَتِکَ، وَٲَذِقْنا حَلاوَۃَ عَفْوِکَ وَلَذَّۃَ مَغْفِرَتِکَ، وَٲَقْرِرْ ٲَعْیُنَنا یَوْمَ لِقائِکَ بِرُؤْیَتِکَ، وَٲَخْرِجْ حُبَّ الدُّنْیا مِنْ قُلُوبِنا کَما فَعَلْتَ بِالصَّالِحِینَ مِنْ صَفْوَتِکَ وَالْاَ بْرارِ مِنْ خَاصَّتِکَ بِرَحْمَتِکَ یَا ٲَرْحَمَ الرَّاحِمِینَ، وَیَا ٲَکْرَمَ الْاَ کْرَمِینَ ۔
मेरे मालिक हमें ज़ोहद (पारसाई) दे, और अपनी सहायता एवं सरुक्षा के साथ उससे बचाए रख, अपनी अवहेलना की चादरों को हमसे अलग कर दे, अपनी बेहतरीन किफ़ायत से हमारे कार्यों की सरपरस्ती कर, और हमारे लिये अपनी महान रहमत ज़्यादा और अधिक कर दे, अपनी बख़्शिश के लाभ से हमें बेहतरीन इन्आम दे, हमारे दिलों में अपनी मोहब्बत के वृक्ष लगा दे, और हमारे लिये अपनी मारेफ़त की प्रकाश के पूर्ण कर दे, और अपनी क्षमा की मिठास और माफ़ी का स्वाद चखा दे, अपनी भेट के दिन (क़यामत) अपने नूर से हमारी आखें ठंडी कर दे, और हमारे दिल से दुनिया का लोभ निकाल दे जैसा कि तूने अपने विशेष नेक और अपने चुने हुए अच्छे कर्मों वाले लोगों के लिये किया है तुझे वास्ता है तेरी उदारता कै सबसे अधिक रहम करने वाले और सबसे अधिक कृपा करने वाले।
(अनुवादकः सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी)
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