मुनाजाते मोतसेमीन (पनाह चाहने वालों की दुआ)
चौदहवी दुआ
मुनाजाते मोतसेमीन (पनाह चाहने वालों की दुआ)
بِسْمِ اﷲِ الرَحْمنِ الرَحیمْ
اَللّٰھُمَّ یَا مَلاذَ اللاَّئِذِینَ، وَیَا مَعَاذَ الْعَائِذِینَ، وَیَا مُنْجِیَ الْھَالِکِینَ، وَیَا عَاصِمَ الْبَائِسِینَ، وَیَا رَاحِمَ الْمَساکِینِ، وَیَا مُجِیبَ الْمُضْطَرِّینَ، وَیَا کَنْزَ الْمُفْتَقِرِینَ،وَیَا جابِرَ الْمُنْکَسِرِینَ وَیَا مَٲْوَی الْمُنْقَطِعِینَ وَیَا نَاصِرَ الْمُسْتَضْعَفِینَ وَیَا مُجِیرَ الْخائِفِینَ، وَیَا مُغِیثَ الْمَکْرُوبِینَ ، وَیَا حِصْنَ اللاَّجِینَ، إنْ لَمْ ٲَعُذْ بِعِزَّتِکَ فَبِمَنْ ٲَعُوذُ ؟ وَ إنْ لَمْ ٲَلُذْ بِقُدْرَتِکَ فَبِمَنْ ٲَ لُوذُ ؟ وَقَدْ ٲَلْجَٲَتْنِی الذُّنُوبُ إلَی التَّشَبُّثِ بِٲَذْیَالِ عَفْوِکَ وَٲَحْوَجَتِنیِ الْخَطَایَا إلَی اسْتِفْتاحِ ٲَبْوَابِ صَفْحِکَ وَدَعَتْنِی الْاِسائَۃُ إلَی الْاِناخَۃِ بِفِنَائِ عِزِّکَ، وَحَمَلَتْنِی الْمَخَافَۃُ مِنْ نِقْمَتِکَ عَلَی التَّمَسُّکِ بِعُرْوَۃِ عَطْفِکَ، وَمَا حَقُّ مَنِ اعْتَصَمَ بِحَبْلِکَ ٲَنْ یُخْذَلَ، وَلاَ یَلِیقُ بِمَنِ اسْتَجَارَ بِعِزِّکَ ٲَنْ یُسْلَمَ ٲَوْ یُھْمَلَ ۔
आरम्भ करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान है।
हे ईश्वर हे पनाह (शरण) देने वालों की पनाह, हे पनाह लेने वालों की पनाहगाह (आश्रय) हे हलाक होने वालों को नजात देने वाले, हे बेचारों के आश्रय, और हे मिस्कीनों पर दया करने वाले, और हे परेशान हलों की प्रार्थना स्वीकार करने वाले, और हे मोहताजों के ख़ज़ाने, और हे टूटे हुओं को जोड़ने वाले, और हो बिना आश्रयों के आश्रय, और हे शक्तिविहीनों की सहायता करने वाले, और हे भयभीतों की पनाहगाह, और हे दुखिओं की फ़रियाद सुनने वाले, और हे पनाह चाहने वालों की मज़बूत पनाहगाह, अगर मैं तेरी इज़्ज़त की पनाह न लू किस की पनाह लूँ? और अगर तेरी शक्ति के सामने न गिड़गिड़ाऊँ तो किसके सामने गिड़गिड़ाऊँ? मेरे पापों ने मुझे विवश कर दिया है कि में तेरी क्षमा के दामन को थाम लूँ, और मेरी अवहेलनाओं ने मुझे तेरी अनदेखी के द्वार के खुलने का इच्छुक बना दिया है, और मेरे बुरे कर्मों ने मुझे तेरी इज़्ज़त दरबार पर डेरा डालने को कहा है, और तेरे क्रोध (अज़ाब) के भय ने मुझे तेरी मेहरबानी की डोरी पकड़ लेने पर तैयार किया है, और हक़ नहीं है कि जो तेरी रस्सी को पकड़ ले उसे अपमानित किया जाए, और यह उचित नहीं है कि जो तेरी इज़्ज़त की पनाह ले उसको बे सहारा छोड़ा जाए,
إلھِی فَلا تُخْلِنا مِنْ حِمَایَتِکَ، وَلاَ تُعْرِنا مِنْ رِعَایَتِکَ، وَذُدْنا عَنْ مَوارِدِ الْھَلَکۃِ فَ إنَّا بِعَیْنِکَ وَفِی کَنَفِکَ وَلَکَ ٲَسْٲَ لُکَ بِٲَھْلِ خَاصَّتِکَ مِنْ مَلاَئِکَتِکَ وَالصَّالِحِینَ مِنْ بَرِیَّتِکَ، ٲَنْ تَجْعَلَ عَلَیْنا واقِیَۃً تُنْجِینا مِنَ الْھَلَکَاتِ، وَتُجَنِّبُنا مِنَ الْآفاتِ وَتُکِنُّنا مِنْ دَوَاھِی الْمُصِیبَاتِ، وَٲَنْ تُنْزِلَ عَلَیْنا مِنْ سَکِینَتِکَ،وَٲَنْ تُغَشِّیَ وُجُوھَنا بِٲَ نْوارِ مَحَبَّتِکَ، وَٲَنْ تُؤْوِیَنا إلَی شَدِیدِ رُکْنِکَ، وَٲَنْ تَحْوِیَنا فِی ٲَکْنافِ عِصْمَتِکَ، بِرَٲْفَتِکَ وَرَحْمَتِکَ یَا ٲَرْحَمَ الرَّاحِمِینَ ۔
मेरे मालिक हमें अपने समर्थन के बिना न छोड़ देना, और हमें अपनी (कृपा भरी) दृष्टि से वंचित न कर, और हमें हलाकत के स्थानों से दूर रख क्योंकि हम तेरी छत्रछाया और तेरी पनाह में हैं, और मैं तेरे विशेष दूतों और तेरी सृष्टि में से नेक बंदों का वास्ता देकर तुझसे प्रश्न (मांग) करता हूँ कि हम पर ऐसी ठाल डाल दे जो हमें हलाकतों से बचाए, और बलाओं से सुरक्षित रखे, और तू हमें बड़ी बड़ी मुसीबतों से सुरक्षित कर दे, मैं चाहता हूँ कि तू हम पर अपनी तरफ़ से सुकून उतार, और हमारे चेहरों को अपनी मोहब्बत के प्रकाश के घेर दे, हमें अपने दृण और मज़बूत स्तंभों का सहारा दे, और अपनी इस्मत के सायों में ले ले, वास्ता है तेरी रहमत और करम का है सबसे अधिक रहम करने वाले।
(अनुवादकः सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी)
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