ज़िक्र करने वालों की दुआ (मुनाजाते ज़ाकेरीन)
तेरहवी दुआ
ज़िक्र करने वालों की दुआ (मुनाजाते ज़ाकेरीन)
بِسْمِ اﷲِ الرَحْمنِ الرَحیمْ
إلھِی لَوْلاَ الْواجِبُ مِنْ قَبُولِ ٲَمْرِکَ لَنَزَّھْتُکَ عَنْ ذِکْرِی إیَّاکَ عَلَی ٲَنَّ ذِکْرِی لَکَ بِقَدْرِی لاَ بِقَدْرِکَ، وَمَا عَسَیٰ ٲَنْ یَبْلُغَ مِقْدارِی حَتَّی ٲُجْعَلَ مَحَلاًّ لِتَقْدِیسِکَ، وَمِنْ ٲَعْظَمِ النِّعَمِ عَلَیْنا جَرَیَانُ ذِکْرِکَ عَلَی ٲَلْسِنَتِنا، وَ إذْ نُکَ لَنا بِدُعائِکَ وَتَنْزِیھِکَ وَتَسْبِیحِکَ ۔
आरम्भ करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान है।
हे मेरे रब अगर तेरा आदेश मानना वाजिब न होता तो मैं तेरा ज़िक्र अपनी ज़बान पर न लाता क्योंकि मैं तेरा जो ज़िक्र करता हूं वह मेरे अंदाज़े से है न तेरी शान के अनुसार और मेरी क्या बिसात कि मैं तेरी प्रशंसा और पवित्रता का स्थान प्राप्त कर सकूं, और यह चीज़ हम पर तेरी महान अनुकंपाओं में से है कि तेरा ज़िक्र हमारी ज़बानों पर जारी है और हमें तुझ से प्रार्थना करने और तेरी पवित्रता और प्रशंसा करने की अनुमति है।
إلھِی فَٲَ لْھِمْنا ذِکْرَکَ فِی الْخَلاَئِ وَالْمَلاَئِ، وَاللَّیْلِ وَالنَّہارِ، وَالْاِعْلانِ وَالْاِسْرارِ وَفِی السَّرَّائِ وَالضَّرَّائِ وَآنِسْنا بِالذِّکْرِ الْخَفِیِّ وَاسْتَعْمِلْنا بِالْعَمَلِ الزَّکِیِّ وَالسَّعْیِ الْمَرْضِیِّ، وَجازِنا بِالْمِیزانِ الْوَفِیِّ
मेरे मालिक हमें अपने ज़िक्र की तौफ़ीक़ दे कि हम छिपे और उजागर, रात्रि और दिन, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष और प्रसन्नता एवं दुख में तेरा ज़िक्र किया करें, हमें अपने छिपे हुए ज़िक्र से परिचित कर, हमें पवित्र कर्म और अच्छी कोशिशों में लगा और पूरी मात्रा में हमें इन्आम दे,
۔ إلھِی بِکَ ہامَتِ الْقُلُوبُ الْوَالِھَۃُ، وَعَلَی مَعْرِفَتِکَ جُمِعَتِ الْعُقُولُ الْمُتَبایِنَۃُ فَلاَ تَطْمَئِنُّ الْقُلُوبُ إلاَّبِذِکْرَاکَ وَلاَ تَسْکُنُ النُّفُوسُ إلاَّ عِنْدَ رُؤْیاکَ، ٲَنْتَ الْمُسَبَّحُ فِی کُلِّ مَکَانٍ، وَالْمَعْبُودُ فِی کُلِّ زَمَانٍ، وَالْمَوْجُودُ فِی کُلِّ ٲَوَانٍ وَالْمَدْعُوُّ بِکُلِّ لِسَانٍ وَالْمُعَظَّمُ فِی کُلِّ جَنانٍ وَٲَسْتَغْفِرُکَ مِنْ کُلِّ لَذَّۃٍ بِغَیْرِ ذِکْرِکَ، وَمِنْ کُلِّ رَاحَۃٍ بِغَیْرِ ٲُ نْسِکَ، وَمِنْ کُلِّ سُرُورٍ بِغَیْرِ قُرْبِکَ وَمِنْ کُلِّ شُغْلٍ الْحَقُّ بِغَیْرِ طَاعَتِکَ.
मेरे मालिक मेरा मोहब्बत भरा दिल तुझसे लगाव रखे हुए है, तेरी मारेफ़त में विभिन्न प्रकार की अक़्लें एकमत हैं, तो दिल चैन नहीं पाते हैं मगर यह कि तेरे ज़िक्र से, और तेरी हस्ती पर विश्वास से आत्माओं के सुकून मिलता है, तू ही है जिसकी हर स्थान पर प्रशंसा होती है, और हर ज़माने में जिसकी अराधना की जाती है, और हर समय हर स्थान पर उपस्थित है और हर भाषा में पुकारा जाता है, और हर दिल में तेरी महानता स्थापित है, और मैं क्षमा चाहता हूँ तुझ से तेरे ज़िक्र के अतिरिक्त हर स्वाद से, और तेरी मोहब्बत के अतिरिक्त हर राहत से, और तेरी नज़दीकी के अतिरिक्त हर ख़ुसी से, और मैं क्षमा चाहता हूँ तुझसे तेरे अनुसरण के अतिरिक्त हर कार्य से,
إلھِی ٲَنْتَ قُلْتَ وَقَوْلُکَ یَا ٲَیُّھَا الَّذِینَ آمَنُوا اذْکُرُوا اﷲَ ذِکْراً کَثِیراً وَسَبِّحُوھُ بُکْرَۃً وَٲَصِیلاً وَقُلْتَ وَقَوْلُکَ الْحَق فَاذْکُرُونِی ٲَذْکُرْکُمْ فَٲَمَرْتَنا بِذِکْرِکَ وَوَعَدْتَنا عَلَیْہِ ٲَنْ تَذْکُرَنا تَشْرِیفاً لَنا وَتَفْخِیماً وَ إعْظَاماً وَھَا نَحْنُ ذَاکِرُوکَ کَما ٲَمَرْتَنا، فَٲَ نْجِزْ لَنا مَا وَعَدْتَنا، یَا ذاکِرَ الذَّاکِرِینَ، وَیَا ٲَرْحَمَ الرَّاحِمِینَ ۔
मेरे मालिक तूने ही कहा है और तेरा कथन सत्य है कि “हे ईमान लाने वालों ज़िक्र करो अल्लाह का बहुत अधिक ज़िक्र और सुबह एवं रात्रि उसकी पवित्रता बयान करो”, और तूने ही कहा है और तेरा कथन सत्य है “तो तुम मेरा ज़िक्र करों मैं तुम्हारा ज़िक्र करूंगा” और तूने ही हमें अपनी याद का आदेश दिया है और हम से वादा किया इस पर कि तू भी हमें याद करेगा, यह हमारे लिये सम्मान, एहतेराम और बड़ाई है, तो अब हम तुझे याद कर रहे हैं जैसे तूने आदेश दिया है, तो तू भी हमसे किया हुआ वादा पूरा कर हे याद करने वालों को याद करने वाले और सबसे अधिक रहम करने वाले।
(अनुवादकः सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी)
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