मुनाजाते मुफ़तक़ेरीन (हाजतमंदो की प्रार्थना)

ग्यारहवीं दुआ

मुनाजाते मुफ़तक़ेरीन (हाजतमंदो की प्रार्थना)

بِسْمِ اﷲِ الرَحْمنِ الرَحیمْ

إلھِی کَسْرِی لاَ یَجْبُرُھُ إلاَّ لُطْفُکَ وَحَنانُکَ وَفَقْرِی لاَ یُغْنِیہِ إلاَّ عَطْفُکَ وَ إحْسَانُکَ وَرَوْعَتِی لاَ یُسَکِّنُہا إلاَّ ٲَمانُکَ، وَذِلَّتِی لاَ یُعِزُّہا إلاَّ سُلْطانُکَ، وَٲُمْنِیَّتِی لاَ یُبَلِّغُنِیہا إلاَّ فَضْلُکَ، وَخَلَّتِی لاَ یَسُدُّہا إلاَّ طَوْلُکَ، وَحَاجَتِی لاَ یَقْضِیہا غَیْرُکَ، وَکَرْبِی لاَ یُفَرِّجُہُ سِوَی رَحْمَتِکَ وَضُرِّی لاَ یکْشِفُہُ غَیْرُ رَٲْفَتِکَ وَغُلَّتِی لاَ یُبَرِّدُہا إلاَّ وَصْلُکَ وَلَوْعَتِی لاَ یُطْفِیہا إلاَّ لِقاؤُکَ، وَشَوْقِی إلَیْکَ لاَ یَبُلُّہُ إلاَّ النَّظَرُ إلَی وَجْھِکَ، وَقَرارِی لاَ یَقِرُّ دُونَ دُنُوِّی مِنْکَ، وَلَھْفَتِی لاَ یَرُدُّہا إلاَّ رَوْحُکَ، وَسُقْمِی لاَ یَشْفِیہِ إلاَّ طِبُّکَ وَغَمِّی لاَ یُزِیلُہُ إلاَّ قُرْبُکَ وَجُرْحِی لاَ یُبْرِئُہُ إلاَّ صَفْحُکَ، وَرَیْنُ قَلْبِی لاَ یَجْلُوہُ إلاَّ عَفْوُکَ وَوَسْوَاسُ صَدْرِی لاَ یُزِیحُہُ إلاَّ ٲَمْرُکَ ۔

आरम्भ करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान है।

हे मेरे ईश्वर कोई मेरे टूटेपन को जोड़ नहीं सकता है सिवात तेरे करम और मेहरबानी के और मुझे फ़क़ीरी से कोई नहीं निकाल सकता है सिवाय तेरी कृपा और एहसान के और कोई मेरे भय को सुकून में नहीं बदल सकता है सिवाय तेरी पनाह के, और मेरे अपमान को कोई सम्मान में नहीं बदल सकता है सिवाय तेरी शक्ति के और मेरी आशाएं पूरी नहीं हो सकती है मगर तेरे करम से और मेरी कोई ख़्वाहिश पूर्ण नहीं होती मगर तेरी अता से और कोई मेरी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता सिवाय तेरे, और मेरी मुसीबत समाप्त नहीं हो सकती मगर यह कि तू कृपा कर दे, और मेरी परेशानी दूर नहीं होती सिवाय तेरी मेहरबानी के, और मेरे सीने की ज्वाला को तेरा मिलन ही ठंडक पहुंचा सकता है, मेरे जले दिल को तेरी मुलाक़ात ही ठंडक दे सकती है, मेरे शौक़ को तेरे जवलों का नज़ारा ही सुकून दे सकता है, सिवाय तेरी नज़दीकी के मुझे क़रार नहीं मिल सकता, मेरे ग़म और दुख को तेरी प्रसन्नता ही मिटा सकती है, और मेरी बीमारी दूर नहीं हो सकती मगर देरी दवा के, और मेरा ग़म नहीं जाता मगर तेरी नज़दीकी से, तेरी ही अनदेखी मेरे घवों को भर सकती है, और तेरी क्षमा ही मेरे दिल के मैल को साफ़ कर सकती है, और तेरे ही आदेश से मेरे दिल की शंका दूर हो सकती है

فَیَا مُنْتَہیٰ ٲَمَلِ الْآمِلِینَ، وَیَا غَایَۃَ سُؤْلِ السَّائِلِینَ، وَیَا ٲَقْصَیٰ طَلِبَۃِ الطَّالِبِینَ، وَیَا ٲَعْلَیٰ رَغْبَۃِ الرَّاغِبِینَ وَیَا وَ لِیَّ الصَّالِحِینَ وَیَا ٲَمانَ الْخَائِفِینَ، وَیَا مُجِیبَ دَعْوَۃِ الْمُضْطَرِّینَ وَیَا ذُخْرَ الْمُعْدِمِینَ وَیَا کَنْزَ الْبَائِسِینَ، وَیَا غِیَاثَ الْمُسْتَغِیثِینَ، وَیَا قَاضِیَ حَوَائِجِ الْفُقَرَائِ وَالْمَسَاکِینِ وَیَا ٲَکْرَمَ الْاَکْرَمِینَ وَیَا ٲَرْحَمَ الرَّاحِمِینَ لَکَ تَخَضُّعِی وَسُؤالِی وَ إلَیْکَ تَضَرُّعِی وَابْتِہالِی، ٲَسْٲَ لُکَ ٲَنْ تُنِیلَنِی مِنْ رَوْحِ رِضْوانِکَ، وَتُدِیمَ عَلَیَّ نِعَمَ امْتِنانِکَ، وَھَا ٲَ نَا بِبابِ کَرَمِکَ واقِفٌ، وَ لِنَفَحاتِ بِرِّکَ مُتَعَرِّضٌ، وَبِحَبْلِکَ الشَّدِیدِ مُعْتَصِمٌ وَبِعُرْوَتِکَ الْوُثْقی مُتَمَسِّکٌ۔

तो हे आशावादियों की आशाओं की सीमा, हे सवाल करने वालों के सवालों का अंत, हे मांगने वालों के अन्तिम मांग, हे आकर्शित होने वालों के आकर्षण से परे, हे अच्छे कर्म करने वालों के सरपरस्त, हे भयभीतों की पनाह, और हे बेक़रारों की प्रार्थनाओं को स्वीकार करने वाले, और हे ग़रीबों की पूँजी, और हे फ़क़ीरों के ख़ज़ाने, और हे फ़रयादियों की पुकार सुनने वाले, और हे फ़क़ीरों और ग़रीबों की हाजतें पूरी करने वाले, हे सम्मानीयों में सबसे सम्मानित, और हे सबसे अधिक रहम करने वाले तेरे आगे गिड़गिड़ाता हूँ और तुझसे ही मांगता हूँ और तेरे सामने ही फ़रियाद और रोता हूँ, मैं सवाल करता हूँ कि अपनी प्रसन्नता की मोहक हवा मुझ तक पहुंचा दे, और सदैव मुझ पर एहसान और कृपा कर, और हां अब मैं तेरी उदारता के द्वार पर आ खड़ा हुआ हूँ और तेरे बेहतरीन दान की प्रतीक्षा कर रहा हूँ, और तेरी मज़बूत रस्सी के पकड़े हूँ, और तेरी मज़बूत डोरी को थामे हूँ,

إلھِی ارْحَمْ عَبْدَکَ الذَّلِیلَ ذَا اللِّسَانِ الْکَلِیلِ وَالْعَمَلِ الْقَلِیلِ وَامْنُنْ عَلَیْہِ بِطَوْ لِکَ الْجَزِیلِ، وَاکْنُفْہُ تَحْتَ ظِلِّکَ الظَّلِیلِ، یَا کَرِیمُ یَا جَمِیلُ، یَا ٲَرْحَمَ الرَّاحِمِینَ ۔

मेरे मालिक अपने इस नीच बंदे पर कृपा कर जिसकी ज़बान गूंगी और कर्म बहुत कम हैं, उस पर अपनी बड़ी उदारता से एहसान फ़रमा और अपनी महान छत्रछाया तले पनाह दे हे कृपालु, हे जमील (सुन्दर) हे सबसे अधिक कृपा करने वाले।

(अनुवादकः सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी)

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