तवस्सुल करने वालों की दुआ (मुनाजाते मुतवस्सेलीन)
तवस्सुल करने वालों की दुआ (मुनाजाते मुतवस्सेलीन)
दसवीं दुआ
بِسْمِ اﷲِ الرَحْمنِ الرَحیمْ
إلھِی لَیْسَ لِی وَسِیلَۃٌ إلَیْکَ إلاَّ عَوَاطِفُ رَٲْفَتِکَ، وَلاَلٰی ذَرِیعَۃٌ إلَیْکَ إلاَّ عَوَارِفُ رَحْمَتِکَ وَشَفَاعَۃُ نَبِیِّکَ نَبِیِّ الرَّحْمَۃِ، وَمُنْقِذِ الاْمَّۃِ مِنَ الْغُمَّۃِ فَاجْعَلْھُما لِی سَبَباً إلَی نَیْلِ غُفْرانِکَ، وَصَیِّرْھُما لِی وُصْلَۃً إلَی الْفَوْزِ بِرِضْوَانِکَ، وَقَدْ حَلَّ رَجَائِی بِحَرَمِ کَرَمِکَ وَحَطَّ طَمَعِی بِفِنَائِ جُودِکَ، فَحَقِّقْ فِیکَ ٲَمَلِی، وَاخْتِمْ بِالْخَیْرِ عَمَلِی وَاجْعَلْنِی مِنْ صَفْوَتِکَ الَّذِینَ ٲَحْلَلْتَھُمْ بُحْبُوحَۃَ جَنَّتِکَ وَبَوَّٲْتَھُمْ دَارَ کَرامَتِکَ وَٲَقْرَرْتَ ٲَعْیُنَھُمْ بِالنَّظَرِ إلَیْکَ یَوْمَ لِقائِکَ، وَٲَوْرَثْتَھُمْ مَنَازِلَ الصِّدْقِ فِی جِوارِکَ ۔
आरम्भ करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान है।
मेरे मालिक तेरे दरबार तक तेरी कृपा और मेहर के अतिरिक्त मेरा कोई वसीला (साधन) नहीं मगर तेरा करम और कृपा और तुझ तक पहुंचने का मेरे पास कोई माध्यम नहीं है सिवाय तेरी रहमत और एहसान और तेरे नबी की शिफ़ाअत के जो उम्मत को गुमराही से निकालने वाले हैं, इन दोनों को मेरे लिये अपनी क्षमा की प्राप्ति का माध्यम बना और इन्ही दोनों को मेरे लिए अपनी प्रसन्नता तक पहुंचने का साधन क़रार दे, मेरी आशाएं तेरी कृपा के दरबार से लगी हुई हैं, और मेरी लालच मुझे तेरी कृपा के द्वार पर ले आई है, तो मेरी आशा पूरी कर दे मेरे कर्मों का अंत अच्छा कर दे मुझे अपने चुने हुओं में क़रार दे जिनको तूने अपनी जन्नत के बीच में स्थान दिया है और उन्हें अपनी करामत के घर में रखा है, तूने मुलाक़ात (क़यामत) वाले दिन अपने दरबार की तरफ़ देखने से उनकी आँखों को प्रकाशमयी कर दिया है, और उन्हों अपने क़रीब सिद्क की मंज़िलों का वारिस बनाया,
یَا مَنْ لاَ یَفِدُ الْوَافِدُونَ عَلَی ٲَکْرَمَ مِنْہُ وَلاَ یَجِدُ الْقَاصِدُونَ ٲَرْحَمَ مِنْہُ، یَا خَیْرَ مَنْ خَلاَ بِہِ وَحِیدٌ، وَیَا ٲَعْطَفَ مَنْ آوَیٰ إلَیْہِ طَرِیدٌ، إلَی سَعَۃِ عَفْوِکَ مَدَدْتُ یَدِی، وَبِذَیْلِ کَرَمِکَ ٲَعْلَقْتُ کَفِّی، فَلا تُو لِنِی الْحِرْمَانَ، وَلاَ تُبْلِنِی بِالْخَیْبَۃِ وَالْخُسْرانِ، یَا سَمِیعَ الدُّعائِ، یَا ٲَرْحَمَ الرَّاحِمِینَ ۔
हे वह कि आने वाले उससे अधिक कृपालु के द्वार पर नहीं आते और न ही आने वाले उससे अधिक कृपालु किसी को पाते हैं, हे उन सबसे उच्च जिनसे अकेले में भेंट की जाए और हे बहुत दयावान कि हर दूर किया हुआ तेरे ही क्षमा के दामन में पनाह पाता है, मैंने अपना हाथ फैलाया और तेरी कृपा के दामन को थाम लिया है, अब मुझे निराश न कर और मुझे अपमान और घाटे में न डाल दे, हे प्रार्थना को सुनने वाले हे सबसे अधिक कृपा करने वाले।
(अनुवादकः सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी)
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