11 सितंबर सच्चाई और दिखावा
11 सितंबर सच्चाई और दिखावा
११ सितंबर २००१ को न्यूयार्क में विश्व व्यापार केन्द्र और अमेरिकी युद्धमंत्रालय पेंटागन पर विमान से आक्रमण हुआ था जिसमें दोनों गगनचुंबी इमारतें ध्वस्त हो गयी थीं। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने इस आक्रमण के कुछ क्षणों के बाद आतंकवाद से मुकाबले की बात की और न्यूयार्क में जोड़ुआ इमारतों के ध्वस्त हो जाने के एक महीने के बाद अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति के बिना तालेबान और अलक़ायदा से मुकाबले के बहाने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर दिया। अमेरिकी सरकार के अनुसार ११ सितंबर की आतंकवादी घटना के लिए अलकायदा ज़िम्मेदार है। यह एसी स्थिति में है जब विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ इस संबंध में बहुत अधिक प्रश्न कर रहे हैं। इस संबंध में जो प्रश्न किये जा रहे हैं वे इस बात के सूचक हैं कि अमेरिका की गुप्तचर सेवा सीआईए और संभवतः जायोनी शासन की गुप्तचर सेवा मूसाड का इसमें हाथ था या कम से कम उन्हें इसकी जानकारी अवश्य थी।
इस विषय को प्रस्तुत करने का अर्थ यह नहीं है कि इसमें अलकायदा की भूमिका नहीं थी। क्योंकि प्रकाशित आंकडों के अनुसार अमेरिका, ब्रिटेन, पाकिस्तान और सऊदी अरब की गुप्तचर संस्थाओं ने ही वर्ष १९८० में पूर्व सोवियत संघ से मुकाबले के लिए अलकायदा को बनाया था। ११ सितंबर की घटना के प्रति अमेरिका में युद्धोन्मादी और नियो कंजरवेटिव धड़ों की प्रतिक्रिया इस बात की सूचक है कि इसमें गोपनीय हाथ हैं। अमेरिकी सरकार ने ११ सितंबर की घटना के बाद आतंकवाद से मुकाबले का अंतर्रराष्ट्रीय नारा दिया और इस प्रकार की नीति अपनाई कि इसी नीति के माध्यम से वह मध्यपूर्व में अपने हितों को प्राप्त और उनका औचित्य दर्शा सकती है।
आतंकवाद कोई नई चीज़ नहीं है और प्राचीन समय से राजनीतिक एवं ग़ैर राजनीतिक लक्ष्यों के लिए लोग इसकी भेंट चढ़ते रहे हैं। आतंकवाद अपने लक्ष्यों को साधने के लिए वर्चस्वादी सरकारों का एक हथकंडा रहा है। इसी कारण आतंकवाद की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है। आतंकवाद की परिभाषा का स्पष्ट न होना इस बात का कारण बना है कि लोग और सरकारें विभिन्न बहानों से अपने विरोधियों पर आतंकवाद का आरोप लगा कर अपने कार्यों का औचित्य दर्शायें। अमेरका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने अपनी युद्धोन्मादी कार्यवाहियों का औचित्य दर्शाने के लिए उसे आतंकवाद से मुकाबले का नाम दिया। इसी प्रकार इराक और अफगानिस्तान पर अतिग्रहण के दौरान जार्ज डब्ल्यू बुश ने अमेरिकी सैनिकों के जघन्य अपराधों को भी आतंकवाद से मुकाबले का नाम दिया। बुश का आठ वर्षीय राष्ट्रपति काल इराक के अबू ग़रेब और अफगानिस्तान के बगराम जेल सहित नाना प्रकार के अपराधों व कृत्यों से भरा पड़ा है। विश्व के दूरस्थ क्षेत्रों में सीआईए की जेलों का होना और इसी प्रकार ग्वांतानामों की जेल को अमेरिकी अपराधों का एक भाग समझा जाता है।
अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति बाराक ओबामा ने वर्ष २००८ में इस नारे के साथ चुनाव जीता था कि वे विश्व में अमेरिका की घृणित छवि को बेहतर कर देंगे परंतु बराक ओबामा ने भी बुश की भांति आतंकवाद को अपने लक्ष्यों को साधने का हथकंडा बना लिया है। बराक ओबामा ने अपने चुनावी प्रचार के दौरान ग्वांतानामों की जेल को बंद करने का वादा किया था परंतु न केवल यह जेल बंद नहीं हुई बल्कि ग्वांतानामों के बंदियों को प्रताड़ित करने के कार्य को और गति प्रदान कर दी गयी। ११ सितंबर की घटना के बाद जो प्रतिक्रिया सामने आई वह इस बात की सूचक है कि अमेरिकी सरकार अपने लक्ष्यों को साधने के लिए किस सीमा तक आतंकवाद को अपने हथकंडे के रूप में देख रही है।
पश्चिम एशिया से लेकर उत्तरी अफ्रीक़ा तक तकफीरी और आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि पश्चिमी सरकारों उनमें सर्वोपरि अमेरिका की दोहरी नीतियों का परिणाम है। तालेबान, अलकायदा, आएस, अन्नुस्रा और बोकोहराम आतंकवाद से मुकाबले के नाम पर अमेरिकी नीतियों की उपज हैं। क्षेत्र में आतंकवादी गुटों के संबंध में अमेरिका का दोहरा व्यवहार और गत साढ़े तीन वर्षों से सीरिया में उसके क्रिया कलापों को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। अमेरिका, सऊदी अरब, तुर्की और कतर ने क्षेत्र में आतंकवाद से मुकाबले के बहाने सीरिया में बश्शार असद की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए आतंकवादी गुटों की सहायता में किसी प्रकार के संकोच से काम नहीं लिया। आतंकवादी गुट दाइश या आइएस इराक और सीरिया में लोगों हत्या और नाना प्रकार के अपराध कर रहा है परंतु आज तक उसका नाम आतंकवादी गुटों की सूचि में शामिल नहीं किया गया। उसका कारण केवल यह है कि इस गुट की गतिविधियां अमेरका और उसके घटकों के हितों के परिप्रेक्ष्य में हैं।
दो आयामों से इन आतंकवादी गुटों की गतिविधियां अमेरिका और उसके घटकों की सहायता कर रही हैं। पहला यह है कि यह गुट शुद्ध इस्लाम धर्म की परपंराओं को जीवित करने के नाम पर जघन्य अपराध कर रहा है जबकि इन अपराधों का इस्लाम से कोई संबंध नहीं है। क्योंकि ईश्वरीय धर्म इस्लाम में दोस्ती, मित्रता और भाइचारे की बहुत अधिक सिफारिश की गयी है जबकि युद्ध की बहुत कम बात की गयी है। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर पवित्र कुरआन में फरमाता है” कि ईश्वर तुम्हें उन लोगों के साथ भलाई करने और न्याय से काम लेने से मना नहीं करता है जिन्होंने ईश्वर के धर्म में तुमसे युद्ध नहीं किया है और तुम्हें तुम्हारे घरों से बाहर नहीं निकाला है क्योंकि ईश्वर न्याय करने वालों को पसंद करता है” पैग़म्बरे इस्लाम हत्या करने को महापाप बताते हैं और प्रलय के दिन उसके बारे में भारी दंड की चेतावनी देते हैं। पवित्र कुरआन के सूरये माएदा की ३२ वीं आयत में आया है कि जो किसी अपराध के बिना किसी इंसान की हत्या करता है या ज़मीन में बुराई फैलाता है मानो उसने समस्त इंसानों की हत्या की है और जो एक इंसान को मौत से बचाये मानो उसने समस्त इंसानों को जीवित किया है”
इस्लाम धर्म की इन शिक्षाओं के परिप्रेक्ष्य में लोगों में भय व आतंक उत्पन्न करना, लोंगों के घरों को ध्वस्त करना, बम रखना, महिलाओं और बच्चों की हत्या करना जैसे समस्त कार्य हराम हैं और यह सबके सब घृणित कार्य हैं।
मुसलमान एसे धर्म का अनुसरण करते हैं जो लोंगों को प्रेम, शांति, न्याय और दया का निमंत्रण देता है। घृणित कार्यों से उनका कोई संबंध नहीं है। अगर किसी मुसलमान ने आतंकवादी कार्यवाही की है तो वह अपराधी है और उसने इस्लामी शिक्षाओं के विरुद्ध कार्य किया है और उसे दंडित किया जाना चाहिये। इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती है कि जो धर्म लोंगो को भाई चारे, मित्रता, प्रेम, दया और न्याय जैसी चीज़ों के लिए आमंत्रित करता है वह आतंकवाद और आत्मघाती हमलों जैसे घृणित कार्यों का समर्थन कर सकता है! इस्लाम आतंकवाद और हत्या की न केवल भर्त्सना करता करता है बल्कि पूर्णरूप से उसे हराम घोषित किया है। इसी आधार पर पूरी दुनिया के बहुत से इस्लामी समाजों, संगठनों, संस्थाओं और राष्ट्रों ने दाइश या आएस जैसे तकफीरी गुट की कार्यवाहियों की भर्त्सना की है।
इस्लाम धर्म की शांति व न्याय प्रेमी छवि को कभी भी इन तकफीरी एवं आतंकवादी गुटों की कार्यवाहियों से जोड़ा नहीं जा सकता है किन्तु खेद के साथ कहना पड़ता है कि पश्चिमी संचार माध्यम अमेरिका और उसके घटकों की नीतियों के परिप्रेक्ष्य में आतंकवादियों कार्यवाहियों का संबंध इस्लाम से बताते हैं। ये संचार माध्यम इस्लाम के नाम पर इस्लामी देशों में इस धर्म को हिंसाप्रेमी धर्म बताने की कुचेष्टा में हैं। अमेरिकी सरकार एक ओर इन आतंकवादी व तकफीरी गुटों का प्रयोग हथकंडे के रूप में करके इस्लाम के विभिन्न संप्रदायों के मध्य फूट डालने की चेष्टा में है और दूसरी ओर वह इस्लामी जागरुकता की जो लहर फैली हुई है उसे अपने सही मार्ग से विचलित करने का प्रयास कर रहा है। अमेरिका इस समय मध्यपूर्व में अपने हितों को खतरे में देख रहा है और आतंकवादी एवं तकफीरी गुट अमेरिका की बेहतरीन सेवा कर रहे हैं। यह गुट अमेरिका के लक्ष्य और साधन दोनों हैं। इराक और अफगानिस्तान में आतंकवाद से मुकाबले के बहाने यही गुट अमेरिका के लक्ष्य हैं जबकि सीरिया जैसे देश में बश्शार असद की कानूनी सरकार को गिराने के लिए यही आतंकवादी गुट अमेरिका के हथकंडे हैं।
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