स्ट्रेस को कम करने में क़ुरआन की भूमिका
स्ट्रेस को कम करने में क़ुरआन की भूमिका
सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
इन्सान इस संसार की सबसे अनसुलझी पहेली है, इन्सान को अलग अलग चीज़ों की आवश्यकता होती है, बल्कि अगर यह कहा जाए कि ईश्वर ने इन्सान को मोहताज पैदा किया है तो ग़लत नहीं होगा, इन्सान का पूरा जीवन ही मोहताज है, और इन्ही आवश्यकताओं में से एक दीन और धर्म की आवश्यकता है, इन्सान के लिये दीन की आवश्यकता उसके जन्म के साथ ही है और यह उसकी आत्मा की आवाज़ है, इन्सान की आत्मा सदैव से ही अपने पैदा करने वाले की ढूंड रही है और उसकी तरफ़ खिंची चली जा रही है और इबादत इन्सानी आत्मा की पुकार है इन्सान अपनी आवश्यकताओं के घेरे से बाहर नहीं जा सकता है इन्सान के लिये यह संभव ही नही है कि वह अपने आपको ईश्वर से अलग और स्वंय को उसका मोहताज न समझे।
अगर इन्सान के अंदर यह एहसास पैदा हो जाए कि उसके जीवन में कोई ख़ुदा नहीं है तो शीशे से लड़कर ख़ामोशी से मर जाने वाली मक्खी की भाति मर जाएगा।
इन्सानी जीवन की आवश्यकताओं में से एक ईश्वरीय वाणी को सुन्ना है यहां तक कि क़ुरआन की ह्रदय को छूती आवाज़ ही उसके दर्दों की दवा बन जाती है और उसकी ज़रूरतों को पूरा कर देती है।
आज की भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में स्ट्रेस एक आम रोग बन गया है लेकिन यह एक बहुत ही पुरानी बीमारी है इसीलिये सदैव ही इस पर ध्यान दिया गया है। निसंदेह ही अधिक स्ट्रेस इन्सान की आत्मा और शरीर पर बहुत ही बुरा प्रभाव छोड़ता है, और यही कारण है कि इसको रोकना बहुत ही आवश्यक है।
बहुत से शोधों में अलग अलग प्रकार की म्यूज़िक को स्ट्रेस कम करने में प्रभावी माना गया है, और इन्ही म्यूज़िक में से एक क़ुरआन की तिलावत की बेहतरीन आवाज़ और म्यूज़िक है, यह दिल को छू लेने वाली म्यूज़िक क़ुरआनी चमत्कार है।
क़ुरआन को केवल सुनना ही इन्सान की आत्मा और उसके मन पर बहुत प्रभाव डालता है और उसकी परेशानियों और स्ट्रेस को कम करता है, इसी प्रकार क़ुरआन की तिलावत इन्सान के बिखरे हुए दिल को सुकून देता है और उसको आराम कर देता है।
ईरान के इमाम हुसैन (अ) और इमाम ख़ुमैनी नामक अस्पतालों में आप्रेशन से पहले कुछ मरीज़ों पर यह प्रशिक्षण किया गया कि उनमें से वह मरीज़ जिन्होंने आप्रेशन से पहले क़ुरआन की तिलावत सुनी थी या स्वंय क़ुरआन पढ़ा था उनके स्ट्रेस में कमी दिखाई दी और उनका आप्रेशन अधिक सफ़ल रहा।
बहुत से विद्यार्थी इम्तेहान से पहले स्ट्रेस कम करने के लिए आयतुल कुर्सी पढ़ते हैं, बहुत संभव है कि इन पढ़ने वालों में से कुछ को यह भी न पता हो कि उनका यह कार्य स्ट्रेस को कम करने में प्रभावी है लेकिन क़ुरआन की आयतों की तिलावत से वह बेहतर तरीक़े से इम्तेहान देते हैं और उनपर स्ट्रेस हावी नहीं होता है।
अंत में केवल यही कहना चाहेंगे कि अकेले पन, बेअहमियत होने... आदि के एहसास के बचने का रास्ता अक़्ल और मानवियत को एक करना है, इस प्रकार की इन्सान अपने जीवन को अक़्ल और ईश्वरीय वाणी के हवाले कर दे, उसके बाद हर चिंत हर दर्द हर परेशानी छू हो जाएगी।
डॉक्टरों, हकीमों, दवाओं ओझाओं, म्यूज़िक, सिगरेट, कोकीन.... आदि को आज़मा के देख लिया, इसको भी आज़मा के देखें, इसमें कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है।
नई टिप्पणी जोड़ें