नस्लीय भेदभाव के बारे में इस्लाम का दृष्टिकोण

नस्लीय भेदभाव के बारे में इस्लाम का दृष्टिकोण

इस बात पर शायद कुछ लोगों को विश्वास न हो कि आज २१वीं शताब्दी में उन देशों में रंग के कारण भेदभाव किया जाता है जो मानवाधिकार की रक्षा का दम भरते हैं। हालिया दिनों में विस्तृत पैमाने पर अमेरिका में श्याम वर्ण के लोगों का प्रदर्शन वर्तमान समय में भेदभाव एवं नस्लभेद के चरम बिन्दु पर पहुंच जाने का प्रतीक है। श्याम वर्ण के लोगों के साथ अमेरिकी पुलिस के व्यवहार के संबंध में जो फिल्में व तस्वीरें इंटरनेट पर प्रकाशित हुई हैं उसे देखकर हर स्वतंत्र व्यक्ति दुःखी हो जाता है। अमेरिकी सरकार स्वयं को पूरी दुनिया में डेमोक्रेसी का ध्वजावाहक समझती व कहती है परंतु अमेरिकी समाज में मौजूद वास्तविकताएं इस बात की सूचक हैं कि कुछ जातियों व वर्गों विशेषकर श्याम वर्ण के लोगों के साथ खुला भेदभाव किया जा रहा है।  

अमेरिकी समाज में भेदभाव १७वीं शताब्दी में आरंभ हुआ जो आज भी जारी है। वर्षों का समय बीत रहा है जब मार्थिन लूथर किन्ग नामक अमेरिकी ने अपने प्रसिद्ध भाषण में कहा था कि मेरी हार्दिक आकांक्षा व अभिलाषा अमेरिकी समाज से भेदभाव के समाप्त हो जाने की है परंतु अमेरिकी समाज में लोगों विशेषकर श्यामवर्ण के लोगों के साथ भेदभाव जारी है और अमेरिकी समाज में श्याम वर्ण के लोगों को नाना प्रकार की समस्याओं का सामना है।

अमेरिकी समाज में वर्तमान आपत्ति और अशांति विदित में यद्यपि अमेरिका के फरगूसन नगर में पुलिस द्वारा श्याम वर्ग के एक युवा की हत्या के बाद आरंभ हुई परंतु वास्तविकता यह है कि यह अमेरिकी समाज में व्याप्त भेदभाव, नस्लभेद और अन्याय के विरुद्ध आवाज़ है। क्योंकि अमेरिका में आज भी बहुत से एसे स्कूल हैं जहां विभिन्न बहानों से श्याम वर्ण के बच्चों का नाम नहीं लिखा जाता है।  

मौजूद आंकड़ों के अनुसार अमेरिकी जेलों में बंद २३ लाख लोगों में से लगभग १० लाख श्याम वर्ण के हैं जबकि अमेरिका की कुल आबादी का लगभग १२ प्रतिशत श्याम वर्ण के  लोगों पर आधारित है और इस देश की जेलों में जितने लोग बंद हैं उनमें से लगभग ४० प्रतिशत श्याम वर्ण हैं। रोचक बात है कि अमेरिका में जो श्याम वर्ण के ग़ैर मुसलमान हैं वे मुसलमानों की अपेक्षा अधिक अपराधी होते हैं और उनके साथ पुलिस जो व्यवहार करती है वह स्वयं जातीय व नस्ली भेदभाव का स्पष्ट प्रमाण है। प्रकाशित आंकडों के अनुसार औसतन हर ३६ घंटे में अमेरिकी पुलिस के हाथों श्याम वर्ण का एक व्यक्ति मारा जाता है।

इसी प्रकार आधारभूत सुविधा के अनुसार श्याम वर्ण के लोगों का जीवन स्तर गोरे लोगों की अपेक्षा बहुत विषम है। इस प्रकार से कि एक गोरे परिवार की औसतन सम्पत्ति एक लाख १३ हजार डालर है यानी श्याम वर्ण के एक परिवार की आमदनी से २० गुना अधिक और श्याम वर्ण के २५ वर्ष से कम आयु के १८ प्रतिशत लोगों का सोशल सेक्युरेटी बीमा ही नहीं है।

ईश्वरीय धर्म इस्लाम के अनुसार किसी भी इंसान का मूल्य रंग, पैसा, क़बीला आदि नहीं है बल्कि महान ईश्वर के निकट सबसे अधिक प्रतिष्ठित वह व्यक्ति है जो सबसे अधिक ईश्वर का भय रखता हो। पैग़म्बरे इस्लाम उस समाज में आये जिसमें उन लोगों को कोई महत्व प्राप्त नहीं था जो ग़ैर अरब या श्याम वर्ण के थे। इस प्रकार के लोगों का प्रयोग केवल अरब लोगों की सेवा के लिए दास और नौकर के रूप में होता था। पैग़म्बरे इस्लाम ने अरब समाज में फैली समस्त गलत परपंराओं को नकार दिया और फरमाया कि किसी अरब को ग़ैर अरब पर या किसी ग़ैर अरब को अरब पर या काले को गोरे पर या गोरे को काले पर कोई श्रेष्ठता प्राप्त नहीं है और श्रेष्ठता का मापदंड केवल ईश्वरीय भय व सदाचारिता है। पैग़म्बरे इस्लाम ने अरब समाज में व्याप्त समस्त बुराइयों से संघर्ष किया। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर सूरे हुजरात की १३वीं आयत में फरमाता है” हे लोगों हमने तुम्हें एक स्त्री-पुरूष से बनाया है और तुम्हारी जातियां व कबीले बनाये ताकि तुम एक दूसरे से पहचाने जाओ और तुममें सबसे अधिक प्रतिष्ठित वह व्यक्ति है जिसका भय सबसे अधिक हो और ईश्वर जानने वाला है”

इस आयत के उतरने के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम के चाचा इब्ने अब्बास के हवाले से आया है कि मक्का पर विजय प्राप्त करने के बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने बेलाल हबशी को आदेश दिया कि वह काबे के ऊपर जायें और वहां से अज़ान दें। अत्ताब बिन असीद नामक एक अरब व्यक्ति ने कहा ईश्वर का आभार कि मेरे पिता का देहान्त हो चुका है और वह नहीं हैं कि यह दिन देखें। उसके बाद हारिस बिन हेशाम ने कहा कि मोहम्मद को अज़ान देने के लिए इस काले कौए के अतिरिक्त कोई और नहीं मिला? अबू सुफयान ने कहा मैं कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि डरता हूं कि आसमान का पालनहार उसे बता दे। इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम पर पवित्र कुरआन की यह आयत उतरी और उन्होंने ईश्वरीय भय को श्रेष्ठता का मापदंड घोषित किया और फरमाया कि प्रलय के दिन ईश्वरीय भय भी तौला जायेगा और उसके आधार पर परलोक में पारितोषिक दिया जायेगा”

पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों का जीवन इस बात का सूचक है कि मानवीय मूल्यों के आधार पर ही उन्होंने पूरे जीवन में इंसानों को महत्व दिया है और उन्होंने अपने जीवन में लेशमात्र भी किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया और उन्होंने सदैव लोगों को हसब, नसब, जाति, कबीले आदि पर गर्व करने से मना किया। पैगम्बरे इस्लाम ने मक्का पर विजय के बाद और बहुत ही संवेदनशील समय में भाषण दिया और इस्लाम में समानता को सब पर इस प्रकार बयान किया” हे लोगो! जान लो कि तुम सबका पालनहार एक है और तुम सबका बाप भी एक है। इस आधार पर तुम जान लो कि न अरब को गैर अरब पर और न गैर अरब को अरब पर और न काले को गोरे पर और न गोरे को काले पर किसी प्रकार की प्राथमिकता है मगर ईश्वरीय भय से। क्या इस वास्तविकता को मैंने पहुंचा दिया? वहां उपस्थित लोगों ने कहा हां। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया उपस्थित लोग अनुपस्थित लोगों को सूचित करें”

पैग़म्बरे इस्लाम एक अन्य स्थान पर फरमाते हैं” निः संदेह ईश्वर तुम्हारी जातियों, परिवारों, शरीरों और संपत्तियों को नहीं देखता बल्कि वह तुम्हारे दिलों को देखता है और जिसका दिल अच्छा होता है उस पर वह अपनी कृपा करता है”

इस्लामी रवायतों में आया है कि एक दिन एक काले दास और अब्दुर्रहमान बिन औफ, जिसे अरब का बड़ा आदमी समझा जाता था, के बीच विवाद हो गया। अब्दुर्रहमान क्रोधित हो गया और उसने श्याम वर्ण के दास से कहा हे काले की औलाद! जब यह बात पैग़म्बरे इस्लाम के कानों तक पहुंची तो वे क्रोधित हो गये और फरमाया कोई भी गोरा काले पर श्रेष्ठता नहीं रखता मगर यह कि वह तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय रखता हो” पैग़म्बरे इस्लाम के कहने का मतलब यह था कि कोई भी किसी पर श्रेष्ठता नहीं रखता मगर यह कि उसके अंदर ईश्वरीय भय अधिक हो।

यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि अगर किसी व्यक्ति में ईश्वरीय भय अधिक हो और वह दूसरों से श्रेष्ठ भी हो तब भी सामाजिक जीवन में उसे दूसरों से श्रेष्ठ नहीं समझा जायेगा। दूसरे  शब्दों में अगर कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों से श्रेष्ठ हो तो उसे कोई चीज़ दूसरों से अधिक नहीं दी जायेगी और जो व्यक्ति श्रेष्ठ नहीं है उसे कम दी जायेगी। बल्कि श्रेष्ठ हो या श्रेष्ठ न हो सबके साथ समान बर्ताव किया जायेगा। हां उसकी श्रेष्ठता का लाभ उसे परलोक में अवश्या मिलेगा और उसे उसका अच्छा बदला मिलेगा। पैग़म्बरे इस्लाम सदैव अबू ज़र, सलमान, बेलाल जैसे अपने अनुयाइयों के साथ उठते बैठते थे और उनके लिए इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता था कि सामने वाला काला है या गोरा धनी है या निर्धन। उनके लिए श्रेष्ठता का मापदंड केवल ईश्वरीय भय था। एक दिन अरब नेताओं का एक गुट पैग़म्बरे इस्लाम के पास आया और कहा हे मोहम्मद! क्या इन निर्धन व दरिद्र लोगों के साथ उठने बैठने से तुम प्रसन्न हो और तुम यह अपेक्षा करते हो कि हम उनका अनुसरण करेंगे और हम उनके साथ तुम्हारे पास बैठेगें? अगर तुम इन लोगों को अपने से दूर कर दो तो हम शायद तुम्हारे पास आयें और तुम्हारा अनुसरण करें और तुम्हारे दोस्त के रूप में तुम्हारे पास रहें। उस वक्त पवित्र कुरआन के सूरे अनआम की ५२वीं आयत नाज़िल हुई और महान ईश्वर ने अपने पैग़म्बर से फरमायाः जो लोग सुबह- शाम ईश्वर को बुलाते हैं और उनकी दृष्टि में उसके सिवा कोई और नहीं है उन्हें अपने से दूर न करें”

ईश्वरीय धर्म इस्लाम मानवीय मूल्यों के आधार पर इंसानों को तौलता है और उच्च मापदंडों को पेश करता है जो बुद्धि एवं मानव प्रवृत्ति के अनुरूप है। पवित्र कुरआन में हमने बारम्बार पढ़ा है कि महान ईश्वर अच्छे, पवित्र, प्रायश्चित करने वाले जैसे लोगों को दोस्त रखता है। इसी प्रकार पवित्र कुरआन जो चीज़ें मानवीय मूल्यों के विपरीत हैं उनके संदर्भ में कहता है कि ईश्वर अतिक्रमणकारियों, अत्याचारियों और अहंकारियों को पसंद नहीं करता है।

एसी चीज़ें इंसानों की श्रेष्ठता का कारण हैं जिन्हें हर इंसान प्राप्त कर सकता है और वे चीज़ें किसी जाति, समुदाय व वर्ग से विशेष नहीं हैं। इसी प्रकार ये चीज़ें किसी समय और स्थान से भी विशेष नहीं हैं। इसलिए कि ईश्वरीय धर्म इस्लाम में जिस चीज़ को मापदंड समझा जाता है वह इंसान की धार्मिक प्रतिबद्धता और उसकी व्यक्तिगत विशेषता है।

बड़े खेद की बात है कि बहुत अधिक मानवीय सिद्धांत होने के बावजूद २१वीं शताब्दी में अमेरिका में मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है और श्याम वर्ण के लोगों के साथ दासों जैसा व्यवहार किया जा रहा है। अमेरिका में भेदभाग मानो श्याम वर्ण के लोगों के जीवन का भाग बन गया है यानी अगर कोई व्यक्ति श्याम वर्ण का है तो उसके साथ भेदभाव कोई बात नहीं है जबकि अगर कोई व्यक्ति गोरा होता है उसका अर्थ यह होता है कि उसे हर प्रकार की सुविधा व संभावना मिलनी चाहिये। अमेरिकी व्यवस्था में श्याम वर्ण के लोगों के साथ भेदभाव, मानवाधिकार की रक्षा के अमेरिकी दावे से आधारभूत विरोधाभास रखता है। अमेरिकी विदेशमंत्रालय लगभग प्रतिवर्ष बहुत से देशों पर मानवाधिकार के उल्लंघन का आरोप लगाता है परंतु आज अमेरिका के १०० नगरों से उन नागरिकों की आवाज़ सुनाई दे रही है जिन पर श्याम वर्ण का होने के कारण नाना प्रकार के अत्याचार हो रहे हैं। आज अमेरिका सहित पूरी दुनिया में मानवाधिकारों की रक्षा का दम भरने वाले स्वीकार करते हैं कि अमेरिका में अल्पसंख्यकों, पलायनकर्ताओं, मुसलमानों और समाज के बहुत सारे वर्गों के साथ भेदभाव किया जा रहा है।

पैग़म्बरे इस्लाम ने एक हज़ार ४०० वर्ष पहले मुसलमानों के मध्य से भेदभाव को जड़ से उखाड़ फेंका और सबके लिए, चाहे वह इंसान काला हो या गोरा, मानवीय अधिकारों को स्वीकार किया परंतु आज हम उस देश में मानवीय प्रतिष्ठा व मूल्यों के उल्लंघन और जातीय भेदभाव के साक्षी हैं जिसने पूरे विश्व में मौजूद बहुत से देशों में आज़ादी एवं डेमोक्रेसी को लक्ष्य बनाया है। हालिया वर्षों में अमेरिका के श्यामवर्ण के लोगों के विरुद्ध विस्तृत होते जातीय भेदभाव का एक कारण यह है कि बहुत से श्याम वर्ण के लोग इस्लाम धर्म स्वीकार कर रहे हैं। यह कार्य इस बात का सूचक है कि जातिवाद और नस्ली भेदभाव की आग केवल मानवाधिकार का घोषणापत्र जारी करने से नहीं बुझेगी बल्कि इंसान को जातिवाद और नस्ली भेदभाव की जलती आग से मुक्ति दिलाने का मार्ग धार्मिक शिक्षाओं के परिप्रेक्ष्य में नैतिक और मानवीय मूल्यों का व्यवहारिक होना है।

नई टिप्पणी जोड़ें