सहाबा अक़्ल और इतिहास के तराज़ू में
सहाबा अक़्ल और इतिहास के तराज़ू में
हमारा अक़ीदा है कि पैग़म्बरे इस्लाम के सहाबियों में बहुत से लोग बड़े निष्ठावान महान और सम्मानित थे। क़ुरआने करीम व इस्लामी रिवायतों में उनकी फ़ज़ीलतो का ज़िक्र मौजूद हैं। लेकिन इस का मतलब यह नही है कि पैग़म्बर इस्लाम (स.) के तमाम साथियों को मासूम मान लिया जाये और उनके तमाम आमाल को सही तस्लीम कर लिया जाये। क्यों कि क़ुरआने करीम ने बहुत सी आयतों में (जैसे सूरए बराअत की आयतें, सूरए नूर व सूरए मुनाफ़ेक़ून की आयतें) मुनाफ़ेक़ीन के बारे में बाते की हैं जबकि यह मुनाफ़ेक़ीन ज़ाहेरन पैग़म्बर इस्लाम (स.) के सहाबी की ही शक्ल में लोगों के सामने आते थे जबकि क़ुरआने करीम ने उनकी बहुत निंदा की है। कुछ सहाबी ऐसे थे जिन्होने पैग़म्बरे इस्लाम के बाद मुस्लमानों के दरमियान जंग की आग को भड़काया, इमामे वक़्त व ख़लीफ़ा से अपनी बैअत को तोड़ा और हज़ारों मुसलमानों का खून बहाया। क्या इन सब के बावुजूद भी हम सब सहाबा को हर तरह से पाक व पवित्र मान सकते हैं?
दूसरे शब्दों में जंग करने वाले दोनों गिरोहों को किस तरह पाक मान जा सकता है (मसलन जंगे जमल व जंगे सिफ़्फ़ीन के दोनों गिरोहों को पाक नही माना जा सकता) क्यों कि यह विरोधाभास है और यह स्वीकार्य नहीं है। वह लोग जो इस के औचित्य में “इज्तेहाद”को विषय बनाते हैं और उसके आधार पर कहते हैं कि दोनों गिरोहों में से एक हक़ पर था और दूसरा ग़लती पर लेकिन चूँकि दोनों ने अपने अपने इज्तेहाद से काम लिया लिहाज़ा अल्लाह के नज़दीक दोनो माज़ूर ही नही बल्कि सवाब के हक़दार हैं, हम इस बात को तसलीम नहीं करते।
इज्तेहाद को बहाना बना कर पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के जानशीन से बैअत तोड़ कर, जंग की आग को भड़का कर बेगुनाहों का खून किस तरह बहाया जा सकता है। अगर इन तमाम ख़ूँरेज़ियों की इज्तेहाद के ज़रिये तौजीह की जा सकती है तो फ़िर कौनसा काम बचता है जिसकी तौजीह नही हो सकती।
हम स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि हमारा अक़ीदा यह है कि तमाम इंसान यहाँ तक कि पैग़म्बरे इस्लाम (सल.) के असहाब भी अपने कर्मों को आधार पर हैं और क़ुरआने करीम की कसौटी “इन्ना अकरमा कुम इन्दा अल्लाहि अतक़ा कुम”(यानी तुम में अल्लाह के नज़दीक वह सम्मानीय है जो तक़वे में ज़्यादा है।) उन पर भी सादिक़ आती है। लिहाज़ा हमें उनका मक़ाम उनके कर्मों के आधार पर तै करना चाहिए और इस तरह हमें अक़्ली तौर पर उन के बारे में कोई फ़ैसला करना चाहिए। लिहाज़ा हमें कहना चाहिए कि वह लोग जो पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के ज़माने में निष्ठावान असहाब की पंक्ति में थे और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के बाद भी इस्लाम की हिफ़ाज़त की कोशिश करते रहे और क़ुरआन के साथ किये गये अपने वादे को वफ़ा करते रहे उन्हें अच्छा मानना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए। और वह लोग जो पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के ज़माने में मुनाफ़ेक़ीन की पंक्ति में थे और हमेशा ऐसे काम अंजाम देते थे जिन से पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का दिल रंजीदा होता था। या जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के बाद अपने रास्ते को बदल दिया और ऐसे काम अंजाम दिये जो इस्लाम और मुसलमानों के लिये हानिकारक सिद्ध हुए, ऐसे लोगों से मुहब्बत न की जाये। क़ुरआने करीम फ़रमाता है कि “ला तजिदु क़ौमन युमिनूना बिल्लाहि वअलयौमिल आख़िरि युआद्दूना मन हाद्दा अल्लाहा व रसूलहु व लव कानू आबाअहुम अव अबनाअहुम अव इख़वानहुम अव अशीरतहुम ऊलाइका कतबा फ़ी क़ुलूबिहिम अलईमाना”[137] यानी तुम्हें कोई ऐसी क़ौम नहीं मिलेगी जो अल्लाह व आख़िरत पर ईमान ले आने के बाद अल्लाह व उसके रसूल की नाफ़रमानी करने वालों से मुब्बत करती हो, चाहे वह (नाफ़रमानी करने वाले) उनके बाप दादा, बेटे, भाई या ख़ानदान वाले ही क्य़ों न हो, यह वह लोग हैं जिनके दिलों में अल्लाह ने ईमान को लिख दिया है।
हाँ हमारा अक़ीदा यही है कि वह लोग जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) को उनकी ज़िन्दगी में या शहादत के बाद अज़ीयतें पहुँचाईं है क़ाबिले तारीफ़ नहीं हैं।
लेकिन यह कदापि नही भूलना चाहिए कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के कुछ सहाबियों ने इस्लाम की तरक़्क़ी की राह में बहुत क़ुरबानियाँ दी हैं और वह अल्लाह की तरफ़ से प्रशंसा के हक़दार क़रार पायें हैं। इसी तरह वह लोग जो पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के बाद इस दुनिया में आयें या जो क़यामत तक पैदा होगें अगर वह पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के सच्चे सहाबियों की राह पर चले तो वह भी लायक़े तारीफ़ हैं। क़ुरआने करीम फ़रमाता है कि “अस्साबिक़ूना अलअव्वलूना मीन अलमुहाजीरीना व अलअनसारि व अल्ल़ज़ीना अत्तबऊ हुम बिएहसानिन रज़िया अल्लाहु अनहुम व रज़ू अनहु ” यानी मुहाजेरीन व अंसार में से पहली बार आगे बढ़ने वाले और वह लोग जिन्होंने उनकी नेकियों में उनकी पैरवी की अल्लाह उन से राज़ी हो गया और वह अल्लाह से राज़ी हो गये।
यह पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के असहाब के बारे में हमारे अक़ीदे का निचोड़ है।
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