दूसरे ख़लीफ़ा उमर ने पैग़म्बर को वसीयत क्यों नहीं लिखने दी?

दूसरे ख़लीफ़ा उमर ने पैग़म्बर को वसीयत क्यों नहीं लिखने दी?

यह सवाल हर व्यक्ति के ज़हन में आता है कि उमर बिन ख़त्ताब और उनके साथियों ने पैग़म्बरे अकरम (स) की सोंच व्यवहारिक होने में रुकावट क्यों पैदा की? क्या आँ हज़रत (स) ने रोज़े क़यामत तक उम्मत को गुमराह न होने की ज़मानत नहीं दी थी? इससे बढ़ कर और क्या बशारत हो सकती थी? लिहाज़ा क्यों इस काम का विरोध किया गया? और उम्मत को इस सआदत एवं सौभाग्य से क्यो वंचित कर दिया गया?

हम इस सवाल के जवाब में अर्ज़ करते हैं कि जब भी ओहदा व पद का इश्क़ और नफ़रत की आग इंसान की अक़्ल पर हावी हो जाती है तो अक़्ल को सही फ़ैसला करने से रोक देती है, हम जानते हैं कि हज़रत उमर के ज़हन में क्या क्या ख़्यालात पाये जाते थे, वह जानते थे कि पैग़म्बरे अकरम (स) ने किस काम के लिये क़ाग़ज़ व क़लम तलब किया है, वह यह बात भी यक़ीनी तौर पर जानते थे कि पैग़म्बरे अकरम (स) हज़रत अली (अ) और अहलेबैत (अ) की ख़िलाफ़त को दस्तावेज़ी शक्ल में सुरक्षित करना चाहते हैं, इसी वजह से इस वसीयत के लिखे जाने में रुकावट खड़ी कर दी।

प्रिय पाठकों, यह केवल एक दावा नहीं है बल्कि हम इसको साबित करने के लिये साक्ष्य और गवाह भी पेश कर सकते हैं, हम यहाँ पर सिर्फ़ दो नमूने पेश करते हैं:

उमर बिन ख़त्ताब ने पैग़म्बरे अकरम (स) की ज़िन्दगी में हदीसे सक़लैन को कई बार सुन चुके थे, जिस हदीस में पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया: मैं तुम्हारे दरमियान दो बेशक़ीमती चीज़ें छोड़े जा रहा हूँ जिन से तमस्सुक के बाद कभी गुमराह नहीं होगे (एक क़ुरआने करीम और दूसरे मेरी इतरत) उमर बिन ख़त्ताब ने क़ुरआन व इतरत के बारे में गुमराह न होने का शब्द कई बार सुना था, पैग़म्बरे अकरम (स) के हुजरे में भी जब आपने क़लम व काग़ज़ तलब किया तो आँ हज़रत (स) की ज़बान से यही जुमला सुना, जिसमें आपने फ़रमाया: एक ऐसा नामा लिख दूँ जिसके बाद गुमराह न हों, हज़रत उमर ने फ़ौरन समझ लिया कि पैग़म्बरे अकरम (स) किताब व इतरत के बारे में वसीयत लिखना चाहते हैं लिहाज़ा उसका विरोध शुरु कर दिया।

इब्ने अब्बास कहते हैं: मैं उमर बिन ख़त्ताब की ख़िलाफ़त के ज़माने के शुरु में उनके पास गया.. उन्होने मेरी तरफ़ रुख करके कहा: तुम पर ऊँटों के खून का बदला है अगर तुम से जो सवाल करूं  उसको छिपाकर रखो (यानी उसका उत्तर न दो), क्या अब भी अली (अ) की ख़िलाफ़त के सिलसिले में ख़ुद को सच पर मानते हो? क्या तुम यह गुमान करते हो कि रसूल अकरम (स) ने उनकी ख़िलाफ़त के बारे में नस्स और बयान दिया है? मैंने कहा: हाँ, मैंने उसको अपने वालिद से पूछा, उन्होने भी इसकी तसदीक़ की है.... उमर ने कहा: मैं तुम से कहता हूँ कि पैग़म्बरे अकरम (स) अपनी बीमारी के आलम में अली (अ) को (ख़लीफ़ा व इमाम) मुअय्यन करना चाहते थे लेकिन मैंने इस कार्य में रुकावट डाली..।

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शरहे इब्ने अबिल हदीद जिल्द 12 पेज 21

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