इस्लामी एकता पर शहीद आयतुल्लाह बाक़ेरुल हकीम के विचार

इस्लामी एकता पर शहीद आयतुल्लाह बाक़ेरुल हकीम के विचार

आयतुल्लाह शहीद मुहम्मद बाक़ेरुल हकीम का शुमार उन इस्लामी विद्वानों में से होता है जिन्होंने इस्लामी एकता और इत्तेहाद के दृष्टिकोणों को बढ़ावा दिया है और उसके प्रचार व प्रसार में प्रभावित रोल अदा किया है।

आपके ख़्याल के मुताबिक़ अगर इस्लामी एकता की बुनियाद इस्लाम के संमिलित सिद्धातों, पवित्र क़ुरआन की शिक्षा, पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम और आपके अहले बैत अलैहिमुस सलाम की सीरत के आधार पर रखी जाए तो इस्लाम के समस्त समुदायों के लिए स्वीकार्य होगी। आप इस्लामी एकता को ऐतेक़ादी सिद्धात और इस्लाम के राजनितिक ढांचें की सुरक्षा की गारंटी समझते हुए उसे इस्लाम के सम्प्रदायों की आपसी निकटता का कारण और फिर विशेष महत्व का पात्र मानते हैं।

इस्लामी एकता के दृष्टिकोण सबसे महत्वपूर्ण दलील पवित्र क़ुरआन है। पवित्र क़ुरआन के बाद ईशदूत हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलिह वसल्लम और आपके अहले बैत अलैहिमुस सलाम की पाक सीरत है। शहीद हकीम की तरफ़ से समाजिक और राजनितिक मैदान में मुसलमानों की आपसी निकटता और इस्लामी एकता के विभिन्न प्रकार से प्रयत्न करना, व्यवहारिक व अमली एकता पैदा करने का स्पष्ट सुबूत हैं। बअस पार्टी के ख़िलाफ़ इराक़ी मुसलमानों की एकता जो कि अधर्म शक्ति के ख़िलाफ़ हक़ की संगठित जंग शुमार होती है, शहीद हकीम की एकता आधारित गतिविधियों का बेहतरीन उदाहरण है।

प्रस्तावना

शहीदे मेहराब आयतुल्लाह शहीद मुहम्मद बाक़ेरुल हकीम, इराक़ के शीयों के महान मरज ए तक़लीद आयतुल्लाह सय्यद मोहसिनुल हकीम के बेटे थे। नजफ़े अशरफ़ में 1358 हिजरी क़मरी में पैदा हुए और अपने बुज़ुर्गवार पिता की सर परस्ती में परवरिश पाई। आपने शहीद मुहम्मद बाक़िरुस सद्र, आयतुल्लाह ख़ूई, आयतुल्लाह सय्यद मुहम्मद हुसैन हकीम जैसे बड़े शिक्षकों से शिक्षा प्राप्त की। शहीद हकीम की व्यक्तित्व के रचनात्मक पहलू विशेष रुप से शैक्षिक, साहित्यिक, सदव्यवहारिक, समाजिक और राजनितिक आचरण में शहीदे सद्र के प्रशिक्षण की झलक नज़र आती है। आपके अंदर की धार्मिक विशेषता और रूहानी वातावरण ख़ानदान की वजह से वीरता, संयम और दृढ़ इच्छा शक्ति जैसी विशेषताएं प्रगति शील हो चुकी थीं जो आपकी समाजी शख़्सियत और राजनितिक महात्वकांक्षा में बहुत प्रभावी साबित हुईं। इसके अलावा इराक़ के अंदरूनी और बाहरी राजनितिक माहौल में महत्व पूर्ण चरित्र अदा करके इराक़ की मज़लूम जनता को सद्दाम की बअस पार्टी के अत्याचारों से निजात दिलाना, बअस पार्टी के विरोधियों और दूसरे सारे समूहों और पार्टियों के बीच आपसी एकता का वातावरण पैदा करने में आपकी मेहनत ऐसी स्पष्ट वास्तिविकताएं हैं जिन का इन्कार संभव नहीं है।

शहीद हकीम ने अपने व्यवहारिक व वैचारिक गतिविधियों के मैदान में हमेशा इस्लामी एकता पर ख़ास ध्यान दिया है कि जिसे आपकी गतिविधियों का केन्द्र और विचारों का असली स्तंभ शुमार किया जा सकता है। आपने अपनी किताब "الوحدۃ الاسلامیہ من منظور الثقلین" में इस्लामी एकता के दृष्टिकोण को पवित्र क़ुरआन व सुन्नत से बयान किया है। आप जितना समय इराक़ में रहे इस नज़रिए को इल्मी और अमली मैदान में पेश करते रहे। इसी कारणवश शहीद हकीम ने इस्लामी क्रांति इराक़ उच्च परिषद की सर परस्त और उसके वक्ता होने के पद को स्वीकार किया और इस्लामी धर्म एकता विश्व परिषद की सर्वश्रेष्ठ परामर्श कमेटी की अध्यक्षता और अहलेबैत (अ) विश्व परिषद की उच्च समिति के सहायत अध्यक्ष के पद पर पदासीन हुए और इस्लामी शीयी परिषद की स्थापना में इमाम मूसा सद्र का समर्थन किया। इस्लामी एकता, इस्लामी विचार और इस्लामी क्रांति के विषयो पर होने वाली कान्फ़्रेंसों में पाबंदी के साथ शिरकत करना। आपकी गतिविधियों के अमली सुबूत हैं। इसी तरह इराक़ की बअस पार्टी के ख़िलाफ़ हथियार वाली बंद फ़ौज तैयार करने की पालिसी बनाना, इराक़ी नौजवानों को इराक़ के अंदर शस्त्र प्रशिक्षण देना, प्रशिक्षित व अनुभवी और सशस्त्र नौजवानों की फौज बनाना, ईरान के विरुद्ध इराक़ के हमले व जंग से फ़ायदा उठाना और अलबद्र फ़ौज की बुनियाद रखना आपकी गतिविधियों का दूसरा पहलू साबित होते हैं।

इस लेख में सबसे पहले शहीद हकीम का इस्लामी एकता के बारे में आइडिया और दृष्टिकोण को पेश किया जाएगा। फिर उस नज़रिए की अमली सूरत और विशेष रुप से इराक़ जनता पर उस नज़रिये के व्यवहारिक प्रभाव पर रौशनी डाली जाएगी और अंत में यह भी बयान किया जाएगा कि मुसलमानों के बीच केवल वैचारिक एकता ही नहीं बल्कि अमली एकता कैसे स्थापित की जाए। इन विषयों के बारे में अकसर बातें वह हैं जो आपने इस्लामी एकता की कान्फ़्रेंसों में भाषणों के दौरान पेश की गई और बहुत महत्वपूर्ण हैं।

यह बात बयान कर देना भी अत्यत्न आवश्यक है कि शहीद हकीम बहुत से इस्लामी उलमा के उलट एकता और तक़रीब को एक अर्थ और समान मअना में प्रयोग करने के क़ाएल नहीं हैं बल्कि आपके नज़दीक एकता का अर्थ यह है कि विभिन्न समुदायों की मुशतरक व संमिलित बातों और सिद्धातों पर एक रुख़ अपनाएँ और उन उसूलों पर एक राय व सहमति क़ाएम कर लें तो ऐसा करना एकता व इत्तेहाद कहलाता है। जब कि तक़रीब का अर्थ है कि शीया और सुन्नी समुदायों के बीच एक विचार होने और सहमित बनाने का प्रयत्न करना। अत: इस्लामी एकता के शीर्षक पर गुफ़्तगू व बातचीत एक शैक्षिक और वैचारिक पहलु शुमार होती है और इस्लामी सम्प्रदायों के बीच आपसी एकता पैदा करना वैचारिक कार्य नहीं बल्कि अमली काम है। इसी लिए हमने शहीद के इस्लामी एकता के अर्थ को इस्लामी समुदायों के बीच एकता के मअना से अलग पेश किया है।

सबसे पहले ज़रूरी है कि शहीद हकीम का "एकता" के बारे में दृष्टकोण स्पष्ट हो जाए। जैसा कि पहले बयान हो चुका है कि शहीद के नज़दीक एकता का अर्थ ये है कि मुसलमानों के बुनियादी उसूलों व सिद्धातों और मुश्तरक व संमिलित कार्यों पर एक रुख़ अपनाना और एक राय का होना है। आप इस बारे में इस तरह कहते हैं कि यह नहीं हो सकता कि मुसलमानों के तमाम फ़िक़्ही, सियासी और ऐतेक़ादी विचारों को इज्तेहाद और एक ही राय की सूरत में बयान किया जाए बल्कि केवल यह संभावित सूरत बन सकती है कि मुसलमानों के मूल और बुनियादी मसाएल में इस्लाम के मानने वालों का मुश्तरक व संमिलित रुख़ लिया जाए। जो कि मुसलमानों की व्यवहारिक आवश्यकताओं को पूरी करने और एकता पैदा करने की राह हमवार करे।

शहीद हकीम इस्लामी समाज की तरक़्क़ी के लिए इस्लामी एकता को अति आवश्यक समझते हैं कि समस्त मुसलमान विशेष तौर पर इस्लामी क्रांतियों का दायित्व बनता है कि वह एकता पैदा करने का रास्ता साफ़ करें और इस सिलसिले में जो कार्य करना ज़रूरी हैं उसे अंजाम दें, एकता को वुजूद में लाने का ज़रिया बनाये और अमली इस्लामी एकता की राह हमवार करें। आपकी नज़र में ख़ुदा वन्दे आलम पर भरोसा और तवक्कुल के बाद इस्लामी एकता मुसलमानों के लिए बहुत बड़ा सहारा है। जो समस्त ग़ैर इस्लामी संस्कृतियों के मुक़ाबले में इस्लाम को वास्तविक शक्ति और ताक़त अता करता है। इस्लामी एकता मुसलमानों की मअनवी और माद्दी तरक़्क़ी में प्रगति की कारण है। इस्लामी इत्तेहाद व एकता मुसलमानों के उत्धान व कमाल का ज़रीया है। क्यों कि इस्लामी एकता समाज की माद्दी और मअनवी संपूर्णता और तरक़्क़ी की कारण हैं। अत: इस बात पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

शहीद हकीम मुसलमानों की बुनियादी और मूल मसाएल को दो हिस्सों में बांटते हैं और यह सोच रखते हैं कि समस्त मुसलमानों के लिये अनिवार्य है कि उनके बारे में समानताओं का चुनावं करें और मुश्तरक व संमिलित रुख़ व राय अपनाएँ।

1) मुसलमानों के राजनैतिक और समाजिक जीवन में पेश आने वाले समस्याएं।

2) असली और बुनियादी समस्याएं जो मुसलमानों की प्रगति और तरक़्क़ी का कारण बनते हैं।

आप एक और जगह पर कहते हैं मुसलमानों और इस्लाम के हमेशा बाक़ी रहने के बुनियादी और असली स्तंभ चार हैं जो निम्म लिखित हैं:

1) इस्लामी आस्थाएं

2) इस्लामी शरीयत (धर्म शास्त्र)

3) इस्लामी शासन और इस्लाम की राजनैतिक व्यवस्था।

4) इस्लामी जनता (इस्लामी समाज)

यह चार स्तंभ इस्लाम की वास्तविकता को स्पष्ट करते हैं।

इस्लाम के इन चार बुनियादी स्तंभ को दो मूल और असली समस्याओं में मद्दे नज़र रखना ज़रूरी है। क्योंकि वह सारे राजनितिक और समाजिक समस्याएं जो मुसलमानों को पेश आते हैं उनमें चार उपर्युक्त स्तंभों को भुलाया नहीं किया जा सकता है। दूसरी तरफ़ मुसलमानों की माद्दी और मअनवी तरक़्क़ी इन चार स्तंभों के बग़ैर संभव नहीं है। अत: यह कहना सही है कि मुसलमानों की मुश्तरक व संमिलित मूल समस्याओं और व्यवहारिक समानताओं में भी इन चार स्तंभों का ध्यान रखा जाए।

मुसलमानों के इख़्तेलाफ़ और झगड़े में पूरी तरह से सोच विचार करके उनके हल के कारणों को तलाश करने और संमिलित सिद्धातों पर ध्यान देने की अधिक आवश्यकता है। इसी कारण शहीद हकीम, इस्लामी समाज में इख़्तेलाफ़ के कारण और तत्व को तीन चीज़ों में निर्भर समझते हैं।

1) इस्लाम के समझने में इख़्तिलाफ़

2) जनता विशेष रुप से शासकों और क़लमकारों के बीच अख़लाक़ी, मअनवी और रूहानी फ़ासले का पाया जाना।

3) बाहरी तत्व जैसे बड़ी ताक़तों का प्रभाव, इस्लामी देशों पर नास्तिक़ों के हमले और मुसलमानों की भाग्य में ग़ैर इस्लामी ताक़तों की हस्तक्षेप।

मुसलमानों के बीच आपसी एकता पैदा करने पर विचार, मुसलमानों के मज़बूत और कमज़ोर सूक्ष्म की पहचान और उनके आपसी झगड़े को हल करने के लिए ज़रूरी है कि पहले उनके कारणों व तत्वों को पहचाना जाये।

शहीद हकीम अपने अधिकतर दृष्टिकोणों में सबसे पहले पवित्र क़ुरआन उसके बाद पैग़म्बर (स) और फिर मासूमीन अलैहिमुस सलाम के कथनों का प्रयोग करते हैं। इस्लामी एकता के नज़रिए को पेश करने के लिए भी शहीद हकीम ने इसी तरीक़े को अपनाया है। सबसे पहले पवित्र क़ुरआन से फिर सुन्नत में बयान किये गये कथनों के अनुसार एकता के अर्थ को पेश किया है। इसी कारण हम इस लेख को भी दो अलग अलग शिर्षकों की सूरत में पेश करते हैं।

1) इस्लामी एकता का क़ुरआनी दृष्टिकोण

शहीद हकीम पवित्र क़ुरआन को इस्लामी एकता के लिए मूल प्रमाण क़रार देते हैं। ताकि कोई मुसलमान इस में शक न कर सके। बल्कि समस्त इस्लामी फ़िर्क़े उसे दिल व जान से स्वीकार करें और इस्लामी एकता का मूल आधार बयान करके यह बताना चाहते हैं कि मनुष्य इतिहास में भिन्नता व एकता के नेचरल व स्वभाविक होने के बावजूद मुसलमानों में एकता अति आवश्यक है।

आपके अनुसार पवित्र क़ुरआन इस्लामी एकता उत्पन्न करने का बेहतरीन माध्यम है और इसी तरह मुसलमानों के बीच इख़्तिलाफ़ ख़त्म करने के लिए सर्वश्रेष्ठ स्रोत है।

शहीद हकीम पवित्र क़ुरआन के अनुसार इस्लामी एकता के सिद्धातों को इस क्रम से बयान करते हैं:

1) ईश्वर को एक मानना।

2) पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम।

3) नेता व जनता के बीच जज़्बाती संबंधों का संरक्षण।

4) धार्मिक भाई चारा।

5) सदाचारिक व्यवहार

इन सिद्धातों की पाबंदी इस्लामी एकता की अगवानी का कारण बन सकती है। लेकिन जब तक इन उसूलों पर ऐतेमाद ना हो या ख़ुद इन सिद्धातों में भिन्नता पाई जायेगी तो झगड़ा बाक़ी रहेगा। चाहे ज़ाहेरी तौर पर एकता व इत्तेहाद भी पाया जाए फिर भी वास्तविक इस्लामी एकता और मज़बूत इत्तेहाद बरक़रार नहीं रह सकेगा।

इसी लिए तो शहीद हकीम का मानना हैं कि इस्लामी एकता के व्यवहारिक वुजूद के लिए इन चार स्तंभो की आवश्यकता है जिन्हें पवित्र क़ुरआन में असली तत्व क़रार दिया है।

1) अल्लाह ताला की रस्सी को मज़बूती से थामना।

2) अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुन्कर।

3) ईश्वरीय व इस्लामी समारोहों की याद मनाना, नमाज़ स्थापिक करना और ज़कात अदा करना।

4) अल्लाह और उसके रसूल (स) की इताअत करना।

उपर्युक्त बातों को उसूल व फ़ुरू ए दीन की पाबंदी भी कहा जाता है। क्योंकि पहला और चौथा मूल उसूले दीन (धर्म के सिद्धांत) में से है जबकि दूसरा और तीसरा मूल फ़ुरू ए दीन में से हैं।

शहीद हकीम के अनुसार पवित्र क़ुरआन का बुनियादी उद्देश्य एक ही ईश्वरीय धर्म का प्रचार है जो विशेष रुप से क़ुरआनी कथाओं की सूरत में नबियों (अलैहिमुस सलाम) से नक़्ल हुआ है। क्योंकि सारे नबी एक उम्मत थे। इसी लिए ईश्वरीय धर्म भी एक ही है। और एक स्रोत से आया है। पवित्र क़ुरआन मजीद के लक्ष्यों में से एक लक्ष्य इस धर्म, इस्लाम धर्म को पिछले नबियों के धर्मों से मिलाना है ताकि इस्लाम धर्म प्राचीन ईश्वरीय धर्मों के क्रम का अंत माना जा सके। अत: पवित्र क़ुरआन में इस्लामी उम्मत की एकता का उद्देश्य एक धर्म होने की वजह से है और वह धर्म अल्लाह ताला के नज़दीक दीने इस्लाम है ताकि इख़्तिलाफ़, पथ भ्रष्टा और झगड़े की सूरत में एकता की तरफ़ बुलाया जाए और इस बात पर ज़ोर दिया जाए कि एक धर्म का अनुसरण करो और झगड़े से परहेज़ करो। यह मन्सूबा समस्त धर्मों और उनके अनुयाईयों के अंदर भी प्रभाव पैदा कर सकता है।

इस्लामी एकता में विभिन्न सिद्धात, स्तंभ और बहुत सी दलीलें व उद्देश्य पाए जाते हैं लेकिन पवित्र क़ुरआन इस्लामी एकता के लिए सबसे महत्वपूर्ण और सैद्धांतिक दलील है। क्योंकि बाक़ी स्तंभों और मूल तत्वों की निस्बत पवित्र क़ुरआन पर सहमति और समस्त मुसलमानों का इज्माअ (एक मत होना) पाया जाता है। शहीद हकीम भी इसी कारण इस पर बहुत अधिक ज़ोर देते हैं।

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