हज़रत फ़ातेमा मासूमा (स) के जन्मदिवस पर विशेष

हज़रत फ़ातेमा मासूमा (स) के जन्मदिवस पर विशेष

ज़ीक़ादा महीने की पहली तारीख थी। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पौत्र इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के घर के सभी सदस्य, एक बच्चे के जन्म की प्रतीक्षा में थे। पवित्र नगर मदीने की मस्जिदे नबी से अज़ान की आवाज़ आ रही थी। इसी बीच हज़रत मासूमा ने इस संसार में क़दम रखा। उनकी माता का नाम नजमा ख़ातून था। इस प्रकार इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के घर में एक बच्ची ने जन्म लिया जिसे बाद में मासूमए क़ुम के नाम से याद किया जाता है।

हज़रत फ़ातेमा मासूमा का जन्म और उनका प्रशिक्षण एसे परिवार में हुआ था जो ज्ञान, ईश्वरीय भय और मानवीय विशेषोओं का स्रोत था। सच बोलना, सहनशीलता, दया, पवित्रता, ईश्वरीय भय और इसी प्रकार की बहुत सी विशेषताएं उनमें पाई जाती थीं। हज़रत फ़ातेमा मासूमा के महत्व के बारे में इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम कहते हैं कि क़ुम में जो भी मासूमा की क़ब्र के दर्शन करे वह एसा ही है जैसे उसने मेरी क़ब्र के दर्शन किये हों।

ज्ञान की दृष्टि से हज़रत मासूमा को विशेष स्थान प्राप्त रहा है। एक बार कुछ लोग पवित्र नगर मदीना में आए। वे लोग इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से कुछ प्रश्न पूछना चाहते थे। उस समय इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम कहीं यात्रा पर गए हुए थे। उन लोगों ने अपने प्रश्न, इमाम के घर भिजवा दिये। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के मदीना आने से पहले ही हज़रत मासूमा ने प्रश्नों के उत्तर लिखकर भिजवा दिये। प्रश्नों का उत्तर लेने के बाद वे लोग वापस चले गए। मदीने के बाहर उनकी भेंट इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से हुई। जब लोगों ने इमाम को पूरी बात बताई तो उन्होंने उनसे लिखित उत्तर लेकर देखे। इनको पढ़ने के बाद उन्होंने उनकी पुष्टि की और हज़रत मासूमा की बुद्धिमानी की प्रशंसा की। हालांकि यह घटना हज़रत मासूमा के बचपन की थी किंतु इसने उनके ज्ञान संबन्धी स्थान को दर्शा दिया।

हज़रत मासूमा अपने बड़े भाई इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से बहुत प्रेम करती थीं। इन भाई-बहनों के बीच इतना अधिक प्रेम था कि जिसे सब ही जानते थे। अपने भाई से भेंट करने के लिए हज़रत मासूमा पवित्र नगर मदीना से ख़ुरासान के लिए निकलीं। जब उनका कारवां ईरान के सावे नामक स्थान पर पहुंचा, जो वर्तमान समय में एक नगर है, कुछ लोगों ने उनके कारवां पर आक्रमण कर दिया। इस घटना से बहुत दुखी हुईं और बीमार हो गईं। इसके बाद उन्होंने क़ुम नगर में ठहरने का निर्णय किया। 23 रबीउल अव्वल वर्ष 201 हिजरी क़मरी में जनता के भव्य स्वागत के साथ उन्होंने क़ुम में प्रवेश किया किंतु 17 दिन के पश्चात उनका क़ुम में देहांत हो गया।

एक वरिष्ठ धर्मगुरू आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद महमूद मरअशी नजफ़ी की हार्दिक इच्छा थी कि उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्ल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम की सुपुत्री की वास्तविक क़ब्र का पता चले। इसी उद्देश्य से उन्होंने बड़ी तपस्या की। बाद में उन्होंने स्वपन में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम को देखा। इस स्वप्न में इमाम सादिक़ ने आयतुल्लाह मतअशी नजफ़ी से कहा कि आप पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की वरिष्ठ महिला की सेवा में उपस्थित हों। वे समझे कि इससे इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का अभिप्राय, हज़रत फ़ातेमा ज़हरा हैं। जबकि इमाम ने कहा कि मेरा उद्देश्य, क़ुम में हज़रत फ़ातेमा की क़ब्र है। ईश्वर किसी कारणवश यह चाहता हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम कि पुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की वास्तविक क़ब्र सदैव के लिए छिपी रहे। यही कारण है कि क़ुम में हज़रत मासूमा की क़ब्र मानो हज़रत ज़हरा की वास्तविक क़ब्र का प्रतिबिंबन है। इस स्वपन को साकार करने के उद्देश्य से वरिष्ठ धर्मगुरू आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद महमूद मरअशी नजफ़ी, पवित्र नगर क़ुम गए और उन्होंने वहीं पर रहना आरंभ किया। अपने जीवन के अंत तक वे क़ुम में ही रहे।

पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के कथनों में लोगों को क़ुम में हज़रत मासूमा की पवित्र क़ब्र के दर्शन के लिए प्रेरित किया गया है। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जब भी तुम समस्याओं में घिर जाओ तो तुम क़ुम का रुख़ करो क्योंकि वह फ़ातेमा ज़हरा के मानने वालों का शरणस्थल है। इसी प्रकार से इमाम जवाद कहते हैं कि जो भी क़ुम में मेरी फूफी की क़ब्र की ज़्यारत करे स्वर्ग उसके लिए है। इसी आधार पर वर्तमान समय में पवित्र नगर क़ुम में प्रतिवर्ष लाखों लोग विश्व के कोने-कोने से हज़रत मासूमा क़ुम के दर्शन के लिए जाते हैं। कहते हैं कि पवित्र नगर क़ुम में विशेष प्रकार का आध्यात्मिक वातावरण पाया जाता है।

पवित्र नगर क़ुम और हज़रत मासूमा के बीच अटूट संबन्ध है। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के कथनों में क़ुम नगर के महत्व की चर्चा की गई है। इस बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि क़ुमवालों पर ईश्वर का सलाम हो। क़ुम वालों पर ईश्वर की कृपा हो। ईश्वर, उनके नगर को जल से तृप्त करे और अपनी अनुकंपाओं को उनपर उतारे। बुराइयों को उनके लिए अच्छाइयों में बदल दे। वे लोग विद्धानों को पसंद करने वाले और दूरदर्शी हैं। वे लोग दीनदार और धार्मिक हैं। उनपर ईश्वर की कृपा और अनुकंपा हो। वास्तविकता यह है कि क़ुम का जो यह महत्व है उसका कारण हज़रत मासूमा का अस्तित्व है। इस नगर में हज़रत मासूमा की शहादत और फिर वहां पार उनकी क़ब्र बनने के बाद क़ुम के महत्व में अधिक वृद्धि हुई है। इसका एक मुख्य कारण यह है कि बहुत से विद्वान, धर्मगुरू और आम लोगों ने हज़रत मासूमा के मज़ार के निकट रहने के उद्देश्य से क़ुम जाकर जीवन व्यतीत करना आरंभ किया। इन नगर में हज़रत मासूमा के अस्तित्व का एक फल, महान विद्वानों और वरिष्ठ धर्मगुरूओं के रूप मे सामने आया है। उदाहरण स्वरूप विश्वविख्यात धर्मगुरू “अली बिन हुसैन बिन बाबवैह क़ुम्मी” उनके सुपुत्र “शैख़ सदूक़” “ख़ाजा नसीरुद्दीन तूसी” “सद्रुल मुतल्लेहीन” इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय “इमाम ख़ुमैनी” और इसी प्रकार के कई अन्य वरिष्ठ धर्मगुरू।

पवित्र नगर क़ुम में हज़रत मासूमा की उपस्थिति का एक अन्य लाभ इस नगर का धार्मिक ध्रुवीकरण अर्थात शीया मुसलमानों का केन्द्र के रूप में उभरना है। वर्तमान समय में पवित्र नगर क़ुम एक महान धार्मिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और शोध केन्द्र के रूप में परिवर्तित हो चुका है। यहां पर बड़े-बड़े पुस्तकालय और शोध केन्द्र पाए जाते हैं जहां हर समय चहल-पहल दिखाई देती है। हर ओर वैज्ञानिक और सांस्कृतिक गतिविधियां नज़र आती हैं। विश्व के कोने-कोने से लोग धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए क़ुम आते हैं। इस नगर में जामेअतुल मुस्तफ़ा नाम का बहुत बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र स्थित है।

पवित्र नगर क़ुम में हज़रत मासूमा के प्रेवश से पहले इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इस नगर की प्रगति और विकास के बारे में कहा था कि एसा समय आएगा जब क़ुम से ज्ञान-विज्ञान की किरणें पूरे विश्व में फैलेंगी और यह नगर अन्य नगरों के लिए आदर्श बन जाएगा, उस काल में धरती पर कोई एसा व्यक्ति बाक़ी नहीं होगा जो क़ुम के वैज्ञानिक और ज्ञान संबन्धी लाभों से लाभान्वित न हो यहां तक कि संसार के मुक्तिदाता प्रकट हो जाएं।

हज़रत मासूमा के कारण क़ुम को पहुंचने वाली विभूतियों में से एक इस नगर से इस्लामी क्रांति का आरंभ होना भी है। यह नगर इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी की कर्म स्थली भी रहा है। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के कथनों में इस इस्लामी क्रांति और क़ुम के महत्व की भविष्यवाणी देखने को मिलती है। वे कहते हैं कि क़ुम नगर से एक व्यक्ति उठेगा और लोगों को अच्छाई का निमंत्रण देगा। कुछ लोग उसके समर्थन में उठ खड़े होंगे जो सीसा पिलाई हुई दीवार ही भांति सुदृढ़ होंगे। उनके काल की घटनाएं उनके क़दमों को डिगा नहीं सकेंगी। वे लोग युद्ध से थकेंगे नहीं।  वे लोग ईश्वर पर भरोसा करते हुए किसी से भयभीत नहीं होंगे। अंततः सफलता उनके क़दमों को चूमेगी।

इस पवित्र नगर का नाम क़ुम क्यों पड़ा इस बारे में कई कथन पाए जाते हैं। अफ़्फ़ान बसरी का कहना है कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा है कि क्या तुमको पता है कि क़ुम नगर का नाम क़ुम क्यों पड़ा? मैंने कहा कि नहीं। इस बात को आप ही बेहतर ढंग से जानते होंगे। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा, इसलिए कि यहां वाले संसार के मोक्षदाता क़ाएमे आले मुहम्मद का साथ देंगे।

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