सऊदी अरब में शिया मुसलमानों की स्थिति
सऊदी अरब में शिया मुसलमानों की स्थिति
सऊदी अरब की तानाशाही सरकार ने इस देश के वरिष्ठ शिया धर्मगुरू नम्र बाक़िर अन्निमर को फांसी देने का निर्णय किया है परंतु देश के भीतर और बाहर रियाज़ सरकार के निर्णय पर कड़ी आपत्ति जताई गयी जिसके बाद सऊदी अरब की अदालत ने फांसी देने के निर्णय में विलंब कर दिया है।
सऊदी अरब के महान्यायवादी ने पिछले २५ मार्च को आयतुल्लाह शेख नम्र को फांसी दिये जाने की मांग की थी। उनके ऊपर सऊदी अरब में धार्मिक विवाद को भड़काने, सऊदी सरकार को वांछित व्यक्तियों से भेंट और लोगों को हत्या व हिंसा के लिए प्रोत्साहित करने का आरोप है। शेख नम्र सऊदी अरब के वरिष्ठ शिया धर्मगुरू हैं और वे पिछले कई वर्षों से इस देश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे हैं। वे सऊदी अरब की तानाशाही सरकार की नीतियों व क्रिया कलापों पर टीका टिप्पणी करते रहे हैं और सऊदी अरब में सुधार, आज़ादी और डेमोक्रेसी के लिए सबका आह्वान करते रहे हैं। इसी प्रकार शेख नम्र शिया सुन्नी मुसलमानों के बीच फूट डाले जाने और उन्हें आपस में लड़ाये जाने के विरोधी थे। इस वरिष्ठ शिया धर्मगुरू ने सऊदी अरब और फारस खाड़ी के तटवर्ती देशों के शासकों के भ्रष्टाचार की ओर संकेत करते हुए अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने की मांग की थी। उन्होंने फारस की खाड़ी के शासकों की सरकार को अवैध सरकार बताया था।
इसी तरह उन्होंने सऊदी अरब की तानाशाही सरकार की वैधता पर भी प्रश्न उठाया था। शेख नम्र ने सऊदी अरब की तानाशाही व्यवस्था को चुनौती दे दी थी, अपनी वैध मांगों को खुलकर सामने रख दिया और सऊदी शासकों पर भ्रष्टाचार और भेद भाव का आरोप लगाया था जिससे कारण इस देश के शासक क्रोधित हो गये। सऊदी अरब के शासक भी हर प्रकार की न्यायप्रेमी आवाज़ को दबाने की चेष्टा में हैं। पिछले कई वर्षों के दौरान शेख नम्र को कई बार गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था और वहां पर उन्हें बहुत प्रताड़ित किया गया। अंतिम बार शेख नम्र को दो वर्ष पहले गिरफ्तार किया गया था। ९ जुलाई वर्ष २०१२ को शेख नम्र उन्होंने अपनी गाड़ी से घर जा रहे थे कि सऊदी सुरक्षा बलों ने उनकी गाड़ी का पीछा किया उस पर गोलीबारी की और घायलावस्था में उन्हें गिरफ्तार करके ले गये।
शेख नम्रि की गिरफ्तारी पर सऊदी अरब के पूर्व में शिया आवासीय क्षेत्रों में कड़ी आपत्ति जताई गयी। शिया मुसलमानों ने शेख नम्र की गिरफ्तारी के तुरंत बाद सड़कों पर आकर प्रदर्शन किया और सऊदी सुरक्षा बलों ने बड़ी क्रूरता व निर्ममता के साथ उनका दमन किया। इस प्रकार से कि प्रदर्शन के पहले ही दिन सऊदी सुरक्षा बलों ने तीन प्रदर्शन कारियों को गोली मार दी। इसके बावजूद सऊदी अरब की तानाशाही सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन जारी रहे और प्रदर्शनकारियों ने शेख नम्र को यातना दिये जाने के प्रति सऊदी सरकार को चेतावनी दी। उत्तरी अफ्रीक़ा और पश्चिम एशिया के इस्लामी देशों में जब इस्लामी जागरुकता अपने चरम शिखर पर पहुंच गयी तब शेख नम्र को गिरफ्तार किया गया था। सऊदी अरब के अल्पसंख्यक शिया मुसलमानों ने भी अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किये। उन्होंने अल्पसंख्कों के अधिकारों को दिये जाने और आज़ादी की मांग की। सऊदी अरब के तानाशाही शासकों ने इस देश के अल्पसंख्यक शिया मुसलमानों की वैध मांगों को सुनने के बजाये उनका दमन किया और गिरफ्तार करके उन्हें प्रताड़ित किया।
इन शासकों ने सऊदी अरब के शिया आवासीय क्षेत्रों से उठने वाली आज़ादी और न्याय की आवाज़ को दबाने के लिए प्रभावी व्यक्तियों की गिरफ्तारी को अपनी कार्यसूची में शामिल कर लिया। शेख नम्र इस प्रकार के व्यक्तियों की सूचि में सर्वोपरि थे। सऊदी अरब के तानाशाही शासक पिछले दो वर्षों के दौरान शेख नम्र के प्रतिरोध की भावना को समाप्त न कर सके जबकि उन्होंने शेख न्रम्र को बहुत यातना दी और प्रताड़ित किया। इस आधार पर उन्होंने शेख नम्र को फांसी दिये जाने का मामला पेश करके इस देश में रहने वाले शिया मुसलमानों के मध्य भय और आतंक के वातावरण में वृद्धि करने की चेष्टा में हैं।
अगर सऊदी शासकों ने शेख नम्र को फांसी दे दी तो यह उनके लिए बहुत मंहगा पड़ेगा। सऊदी अरब में शेख नम्र के प्रभाव के दृष्टिगत इस देश के आंतरिक मामलों के जानकार बहुत से टीकाकारों का मानना है कि शेख नम्र को फांसी दिये जाने की स्थिति में सऊदी अरब के शिया आवासीय क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन व आपत्ति की नई लहर दौड़ जायेगी। इसी बात के भय से सऊदी अधिकारियों ने शेख नम्र की फांसी विलंबित कर दिया है। इस समय मध्यपूर्व गहन परिवर्तन का केन्द्र बना हुआ है और सऊदी अरब के तानाशाह अतीत की भांति इस समय भी दमनकारी नीतियां अपना करके शिया मुसलमानों को नहीं दबा सकते। हालिया कुछ वर्षों के दौरान तानाशाही देशों में परिवर्तन इस बात के सूचक हैं कि टयूनीशिया, लीबिया और यमन जैसे देशों की चिनगारी तानाशाही सरकार की बुनियादों को नष्ट कर सकती है या कम से कम हिला अवश्य सकती है।
यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि सऊदी अरब में केवल अल्पसंख्यक शिया मुसलमान नहीं हैं जिनके अधिकारों का कई दशकों से हनन किया जा रहा है। सऊदी अरब के धर्मभ्रष्ठ वहाबी ईश्वरीय धर्म इस्लाम की शिक्षाओं से गलत निष्कर्ष निकालते हैं जिसके कारण इस देश के नागरिकों विशेषकर महिलाओं को नाना प्रकार की समस्याओं का सामना है और वे अपने प्राथमिक अधिकारों से भी वंचित हैं परंतु इस मध्य शिया मुसलमानों को सबसे अधिक प्रताड़ित किया जाता है। शिया मुसलमानों को अधिक प्रताड़ित किये जाने का दूसरा कारण यह है कि वह प्राचीन समय से स्ट्रेटैजिक व महत्वपूर्ण क्षेत्रों में रह रहे हैं।
सऊदी अरब में शिया मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक समझा जाता है। उन्हें कोई भी महत्वपूर्ण पद नहीं दिया जाता है। यही नहीं शिया मुसलमान उच्च शिक्षा प्राप्त करने से भी वंचित हैं। सऊदी अरब में शिया मुसलमानों की सही संख्या तो ज्ञात नहीं है परंतु अनुमान है कि सऊदी अरब की कुल जनसंख्या का १० से १५ प्रतिशत शिया मुसलमान हैं यानी लगभग २७ लाख। यह जनसंख्या कुवैत, कतर, यमन, ओमान और संयुक्त अरब इमारात में रहने वाले शीयों से अधिक है। इराक, बहरैन और लेबनान के बाद सबसे अधिक शिया सऊदी अरब में रहते हैं। सऊदी अरब के शिया मुख्यतः इस देश के पूर्वी प्रांत अश्शरकीया में रहते हैं। स्ट्रेटैजिक दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण प्रांत है क्योंकि उसमें तेल है। क़ेवार और क़तीफ के तेल के कुएं इसी क्षेत्र में हैं। क़ेवार के तेल फील्ड में ६० अरब बैरेल से अधिक तेल है यानी अमेरिका के कुल तेल भंडार के दो बराबर।
इस क्षेत्र का तेल निकालने पर हर बैरेल पर तीन डालर का खर्च आयेगा। ९० से ९५ प्रतिशत सऊदी अरब के विदेशी मुद्रा भंडार की आमदनी इसी क्षेत्र से होती है। इस तरह विश्व के १५ प्रतिशत तेल की आपूर्ति इसी क्षेत्र से होती है। इसी तरह इस क्षेत्र के तेल उद्योग में जो लोग काम करते हैं उनमें से ४० से ६० प्रतिशत शिया हैं। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में सऊदी अरब की तानाशाही सरकार के विरुद्ध आज़ादी का आंदोलन अस्तित्व में आया जिसमें शिया धर्मगुरू और विद्वान महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। शिया विद्वान और धर्मगुरू सऊदी अरब की तानाशाही सरकार के अत्याचारों से जनता को जागरुक बनाने में महत्वपूर्ण व भूमिका निभा रहे हैं। इसी कारण सऊदी शासक शेख नम्र जैसे विद्वानों व वरिष्ठ धर्मगुरूओं को गिरफ्तार करके शिया मुसलमानों के आंदोलन को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं और उन्हें हर प्रकार से प्रताड़ित कर रहे हैं परंतु अब तक उसका उल्टा परिणाम निकला है और प्रतिरोध व संघर्ष को जारी रखने हेतु शिया मुलमानों की भावना अधिक हो गयी है।
इससे पहले ईरान में तानाशाह मोहम्मद रज़ा पहलवी और इराक़ में सद्दाम ने विद्वानों, धर्मगुरूओं और महान लोगों की हत्या व गिरफ्तार करके लोगों के संघर्ष को समाप्त करने की चेष्टा की थी परंतु यह कार्यवाही स्वयं उन्हीं के अंत का कारण बन गयी। सारांश यह कि सऊदी अरब के शासकों का भी वही अंत हो सकता है जो इससे पहले कई देशों के तानाशाहों का हो चुका है।
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