जुर्म एक फ़ैसले छः, आश्चर्यजनक
जुर्म एक फ़ैसले छः, आश्चर्यजनक
दूसरे ख़लीफ़ा हज़रत उमर के ज़माने में 6 लोगों को ज़िना करने के जुर्म में पकड़ा गया तो आपने आदेश दिया कि इन सब पर हद (इस्लामी आदेश के अनुसार सज़ा) जारी की जाए।
अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) जो ख़लीफ़ा के पास बैठे हुए थे ने कहाः हे उमर यह इन लोगों का फ़ैसला नहीं है।
ख़लीफ़ा ने कहाः तो आप ही इनके लिये सज़ा तै करें, तब आपके सामने उनमें से एक को लाया गया तो आपने उसको क़त्ल कर दिया, दूसरे को लाया गया तो उसके संगसार (पत्थरों से मारना) की सज़ा दी, तीसरे को लाया गया तो आपने उसको कोड़े लगाए जाने की सज़ा दी, चौथे को लाया गया तो तीसरे वाले से आधे कोड़े मारने का आदेश दिया, पाँचवे को ताज़ीर (हद से कम संख्या में सज़ा) की और छठे को छोड़ दिया।
दूसरे ख़लीफ़ा ने जब आपका यह फ़ैसला देखा तो आश्चर्य चकित रह गए और कहाः हे अबुल हसन (अ) आपने 6 लोगों को एक ही प्रकार के जुर्म में पाँच अलग अलग सज़ा दी और छठे को छोड़ दिया ऐसा क्यों?
आपने फ़रमायाः हां, पहला जिसको क़त्ल किया वह काफ़िरे ज़िम्मी (मुसलमानों के देश में रहने वाला काफ़िर) था जिसने मुसलमान महिला से ज़िना की थी और अपने इस कार्य के कारण उसने मुसलमानों की तरफ़ से उसकी जान और माल की सुरक्षा का वादा तोड़ दिया था, इसी लिये उसको क़त्ल करने का आदेश दिया।
दूसरा वाला जिसको संगसार किया वह शादी शुदा व्यक्ति था।
तीसरा जिसको कोड़े लगाने का आदेश दिया वह ग़ैर शादी शुदा था।
चौथा जिसको तीसरे से आधे कोड़े मारने का आदेश दिया जो एक दास था (और इस्लाम में दास के लिए आधे का आदेश है)
पाँचवा जिसको ताज़ीर की उसने उस महिला को अपनी पत्नी समझ कर उसके साथ ज़िना किया था इसीलिए उसको केवल ताज़ीर की गई।
और छठा जिसको छोड़ दिया वह एक पागल व्यक्ति था और पागलों के लिये कोई आदेश नहीं होता है। (1)
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(1) वसाएलुश्शिया, जिल्द 28, पेज 66, बिहारुल अनवार जिल्द 76, पेज 34
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