इज़्ज़त की रक्षा

इज़्ज़त की रक्षा

सकीना बानो अलवी

एक दिन एक फ़क़ीर अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) के पास आया, आप ने उसपर एक नज़र डाली आपने देखा कि उसका चेहरा शर्म से लाल हो रहा था, तो आपने उससे कहा अपनी ज़रूरत को ज़मीन पर लिख दो ताकि मुझे तुम्हारी शर्म चेहरे से दिखाई न दे।

उनसे लिखाः मेरे पास कोई भी ऐसी चीज़ नहीं बची है जिसको बेच कर अपना पेट भर सकूँ और मेरे चेहरे का रंग आपको मेरे अंदर की प्रतिक्रिया को दर्शा रहा है कहने की आवश्यकता नहीं है, मेरे पास केवल मेरी इज़्ज़त बची है जिसको मैंने बिकने से रोक रखा है, और आप एक बेहतरीन ख़रीदार हैं।

इमाम अली (अ) ने आदेश दिया वह ऊँट जिस पर सोना और चाँदी लदा हुआ था उसको दे दिया जाए, और फिर उससे कहाः तुम अचानक आ गए और हमारी थोड़ी सी नेकी जल्दबाज़ी में तुम तक पहुंची है अगर सुकून से आए होते तो ज़्यादा पाते।

यह भेंट ले लों और यह समझो कि तुमने जिस चीज़ को (इज़्ज़त) बचा रखा था उसको बेचा नहीं है और हमने भी तुमसे कुछ नहीं ख़रीदा है।

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एहक़ाक़ुल हक़, जिल्द 8, पेज 582

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