ग़ज़्ज़ा की जंग कैमरे की निगाह से

ग़ज़्ज़ा की जंग कैमरे की निगाह से

गज्जा आजकल संचार माध्यमों की एक मुख्य खबर है। इस बीच पश्चिमी संचार माध्यम एक पक्षीय रूप से गज्जा पर इस्राईल के पाश्विक आक्रमण की खबर का कवरेज दे रहे हैं और समूचे विश्व में उस पर प्रतिक्रिया दिखाई दी जा रही है। अमेरिकी विश्लेषक GLENN GREENWALD ने ताज़ा लेख में गज्जा युद्ध के संबंध में पश्चिमी संचार माध्यमों और अमेरिकी सरकार के क्रिया- कलापों की तीव्र आलोचना की है। उन्होंने अपने लेख में अमेरिकी संचार माध्यमों के रवइये को अनुचित बताया और उन्हें सच्चाई की परीक्षा में विफल बताया है। इस अमेरिकी विश्लेषक ने एक साक्षात्कार में बताया कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि गज्जा युद्ध के बारे में अमेरिकी संचार माध्यमों के क्रिया- कलाप इस प्रकार हैं कि मानो इस्राईली लोगों की जान गज्जा के लोगों की जान से अधिक मूल्यवान है।

अमेरिकी विश्लेष्क GLENN GREENWALD का मानना है कि गज्जा में मारे जाने वाले फिलिस्तीनियों की संख्या ११ सितंबर की घटना में मारे जाने वाले अमेरिकियों के लगभग बराबर है परंतु इन दोनों घटनाओं के बारे में अमेरिकी संचार माध्यमों के क्रिया- कलाप एक दूसरे से भिन्न हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिकी संचार माध्यमों के क्रिया- कलाप जातिवाद से प्रभावित हो गये हैं। उन्होंने दावा किया कि मुसलमान विरोधी कार्यवाही गज्ज़ा युद्ध में अमेरिकी संचार माध्यमों का मूल आधार हो गया है।

इस बीच ब्रिटेन के एक प्रसिद्ध फिल्म निर्माता केन लोच ने बीबीसी पर आरोप लगाया कि वह इस्राईल की ओर से वकालत करने में गज्जा पट्टी की घटना को भेदभावपूर्ण ढंग से कवरेज दे रहा है।

केन लोच गज्जा पट्टी के लोगों के समर्थन में होने वाले प्रदर्शन में मौजूद थे। इस फिल्म निर्माता ने इसी प्रकार कहा कि बीबीसी के अधिकारी उसी आयाम से गज्जा पट्टी की खबर देते हैं जो इस्राईल के हित में हो और बीबीसी द्वारा प्रसारित किये जाने वाले साक्षात्कारों में फिलिस्तीनी जनता के दृष्टिकोणों को दिखाया नहीं जाता और गज्जा पट्टी की जनता के विरूद्ध जो अपराध किये जा रहे हैं उन्हें भुला दिया जाता है। ब्रिटिश फिल्म निर्माता केन लोच कहते हैं कि बीबीसी के प्रमुख को चाहिये कि वह गज्जा की घटनाओं को कवरेज देने में लोगों की आपत्तियों पर ध्यान दें और इस संचार माध्यम को चाहिये कि वह इस्राईल के अपराधों के सबंधं में अपनी शैलियों को परिवर्तित कर ले। उल्लेखनीय है कि फिलिस्तीन की अत्याचारग्रस्त जनता के समर्थकों ने बीबीसी के पक्षपातपूर्ण रवैये पर आपत्ति जताई थी और ब्रिटेन में बीबीसी की इमारत के समक्ष धरना प्रदर्शन दिया था और इस प्रदर्शन में ब्रिटेन के कई प्रसिद्ध अभिनेताओं ने भी भाग लिया था।

RICHARD FALK ने जायोनी शासन की युद्धोन्मादी नीति की आलोचना की और इस संबंध में उन्होंने बीबीसी के क्रिया- कलापों की आलोचना की। उन्होंने अपने लेख में लिखा कि एक सप्ताह के दौरान मध्यपूर्व के हालिया युद्ध के संबंध में बीबीसी में होने वाली वार्ता में चार बार मैंने भाग लिया। हर बार मैंने कुछ तथ्यों को पेश करने के लिए तैयार कर रखा था परंतु आश्चर्य की बात यह है कि उन्होंने कार्यक्रम के अंत में मुझे केवल एक मिनट का समय दिया और पहले से तय कार्यक्रम के अंतर्गत उन्होंने विरोधियों के दृष्टिकोणों को पेश नहीं होने दिया। आपत्ति जताने के बाद वे कहते हैं कि कार्यक्रम का समय समाप्त हो गया अगले कार्यक्रम में आपकी सेवा में फिर उपस्थित होंगे। इस प्रकार की शैली अपनाकर बीबीसी वालों को प्रयास यह होता है कि सामने वाला यह समझे कि दोनों पक्षों की बात की जाती है और वह निष्पक्ष है जबकि वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत है और बीबीसी का पूरा प्रयास यह होता है कि वह केवल इस्राईली पक्ष को पेश करे। फाल्क ने सिफारिश की है कि जब आप इस्राईल के क्रिया कलापों और उसकी नीतियों के विरोधी हों तो बीबीसी के टेलीफोनों का उत्तर देने का कष्ट न करें।

गज्ज़ा पट्टी के संबंध में पश्चिमी संचार माध्यमों के क्रिया- कलाप इस सीमा तक एक पक्षीय और राजनीति से प्रेरित हैं कि स्वयं अमेरिकी और युरोपीय नागरिकों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। अमेरिका में हज़ारों लोगों ने गज्जा पट्टी के संदर्भ में सीएनएन और फाक्स न्यूज़ के क्रिया- कलापों के विरुद्ध प्रदर्शन किया। इन लोगों ने अमेरिका के न्यूयार्क नगर में प्रदर्शन करके गज्जा पट्टी में जायोनी शासन के पाश्विक आक्रमणों की भर्त्सना की। यह प्रदर्शन सीएनएन के मुख्यालय से आरंभ हुए और उसमें विभिन्न धर्मों के लोगों ने भाग लिया। प्रदर्शनकारियों ने जायोनी शासन के झंडे के समक्ष जर्मन नाज़ियों की तस्वीर खींच रखी थी और अपने हाथों में गज्जा में शहीद होने वालों की तस्वीरों को उठा रखा था। प्रदर्शनकारियों का नारा था कि हे गज्ज़ा हम यहां हैं अपने बच्चों से कह दे कि वह किसी चीज़ से भी न डरें” “हम सब फिलिस्तीनी हैं” और ग़ज्ज़ा जिन्दाबाद”  इस प्रकार के नारों से उन्होंने फिलिस्तीन की अत्याचार ग्रस्त जनता के प्रति अपने समर्थन को दर्शा दिया। यह  आपत्ति व प्रदर्शन इस बात के सूचक हैं कि पश्चिम वासी पहले से अधिक वास्तविकता से अवगत व जागरुक हो गये हैं और विभिन्न समाचारिक स्रोतों का लाभ उठाकर जायोनी शासन और उससे संबंधित संचार माध्यमों के क्रिया- कलाफें को भली भांति समझ गये हैं।

इसी बीच फिलिस्तीन के विदेशमंत्रालय में सूचना विभाग के महासचिव माहिर औदा कहते हैं” स्थानीय अरब संचार माध्यमों के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं परंतु अंतर्राष्ट्रीय संचार माध्यम हम पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। हमने उनके लिए साक्षात्कार की भी सुविधा उत्पन्न कर दी है परंतु उन्हें हम से कोई रुचि नहीं है। वह आगे कहते हैं” जायोनियों के संचार माध्यम पश्चिमी और बड़ी शक्तियों की सहायता के लिए हैं और यह संचार माध्यम पूर्णरूप से वास्तविकता को उल्टा और राजनीति से प्रेरित दिखाते हैं। उदाहरण स्वरूप जब से जायोनी शासन ने गज्जा पट्टी पर आक्रमण आरंभ किया है तब से बीबीसी का पूरा प्रयास वास्तविकता को उल्टा दिखाना रहा है। लेबनान से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र अस्सफीर ने जायोनी शासन के समर्थन में बीबीसी के क्रिया- कलापों की समीक्षा करते हुए लिखा कि “दुनिया वास्तविकता को जाने” शीर्षक के अंतर्गत लिखा है कि गज्जा पट्टी के संबंध में बहुत सी तस्वीरों के बारे में यह संचार माध्यम कहता है कि ट्वीटर पर गज्ज़ा पट्टी की जो बहुत सी तस्वीरें है उनमें से बहुत सी जाली हैं या इन तस्वीरों का संबंध किसी अन्य स्थान व समय से है। इस आधार पर स्वयं को निष्पक्ष कहने वाले संचार माध्यम भी फिलिस्तीनियों के विरुद्ध कार्यवाही कर रहे हैं और यह कहना चाहते हैं कि गज्जा युद्ध की कोई वास्तविकता नहीं है और उसका आधार केवल कुछ जाली तस्वीरे हैं। यह एसी स्थिति में है जब हालिया दिनों में हज़ारों कैमरों के माध्यम से गज्जा पट्टी में इस्राईल के पाश्विक अपराधों की सैकड़ों तस्वीरें प्रकाशित नहीं बल्कि हज़ारों हो चुकी हैं और रोचक बात है कि इस प्रकार की तस्वीरों को दुनिया के प्रसिद्ध व विश्वस्त स्रोतों ने प्रकाशित किया है परंतु बीबीसी केवल चार तस्वीरों को आधार बनाता है और पूरी घटनाक को संदिग्ध दिखाने की चेष्टा करता है।

अमेरिकी रिपोर्टर गज्ज़ा की घटना को कवरेज न देने का औचित्य दर्शाते हुए कहते हैं” इस्राईली गज्ज़ावासियों को विभिन्न सुरक्षित क्षेत्रों में जाने और उन्हें विस्तृत पैमाने पर खबरों को कवरेज देने की अनुमति देते हैं। जब कि गज़्ज़ा पट्टी के किसी भी नागरिक के पास को इस प्रकार की संभावना उपल्बध नहीं है और गज़्ज़ा में उनकी जान खतरे में है। यही नहीं जायोनी शासन गज़्ज़ा वासियों पर एक ओर आक्रमण कर रहा है और दूसरी ओर वहां की दयनीय स्थिति पर कड़ा सेन्सर लगाये हुए है। यही कारण है कि इस्राईल किसी भी पत्रकार को गज्ज़ा पट्टी जाकर वहां की यथास्थिति को बयान करने की अनुमति नहीं दे रहा है। इस बीच कुछ जिम्मेदार, प्रतिबद्ध और साहसी पत्रकार भी हैं जो गज्ज़ा पट्टी के भीतर से रिपोर्टिंग कर रहे हैं।

अलमानीटर साइट की पत्रकार अस्माऊ ग़ौल गज्ज़ा में उपस्थित है। वह अपनी जान हथेली पर रखकर प्रतिदिन गज्ज़ा पट्टी की सड़कों पर जाती है और वहां की यथास्थिति और उन परिवारों की चिंताजनक स्थिति की रिपोर्टिंग करती है जिनके परिजन गज्ज़ा युद्ध में शहीद हो चुके हैं। साथ ही एनबीसी और सीएनएन के पत्रकारों की टीम भी गज्ज़ा में मौजूद है परंतु वह वहां से निष्पक्ष रिपोर्टिंग नहीं कर रही है।

दूसरी ओर समाचार पत्र वाशिंग्टन पोस्ट और दूसरे बहुत सारे अमेरिकी संचार माध्यम अपनी रिपोर्टों में गज्ज़ा पर होने वाले हमलों में होने वाली तबाही का उल्लेख ही नहीं करते हैं। ये संचार माध्यम अमेरिकी आम जनमत को यह नहीं बताते कि गज़्ज़ा के लोगों के पास दिन में केवल तीन घंटे बिजली होती है और चूंकि मानवता प्रेमी सहायता गज्जा स्थानांतरित करना बहुत कठिन है इसलिए बहुत से गज्जा वासियों को शुद्ध पेयजल के अभाव सहित नाना प्रकार की कठिनाइयों का सामना है और अंतर्रराष्ट्रीय संस्थाएं गज्ज़ा पट्टी की विषम व दयनीय परिस्थिति की सूचना दे रही हैं।

प्रसिद्ध अमेरिकी रिपोर्टर ADWARD MURROW गुटु नाइट एन्ड गुड लक  के बारे में कहता है” अगर पचास या सौ साल बाद इतिहासकार हों और अगर एक सप्ताह तक का रिकार्डेड कार्यक्रम उन्हें मिल जाये तो उन्हें कुछ सफेद और काले रंग की तस्वीरें मिलेंगी जो हमारे समाज के पतन की सूचक होंगी। टेलीवीज़न का अधिकांश प्रयोग हमें धोखा देने और वास्तविकताओं से दूर रखने के लिए किया जाता है। वास्तविकता यह है कि आज की दुनिया के बहुत से टेलीवीज़न अपने दर्शकों को व्यस्त करने के लिए तुच्छ व घटिया चीज़ों को दिखाते हैं ताकि वे बड़ी सरलता से विश्व की वास्तविकताओं पर पर्दा डाल सकें, इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश कर  सकें और अत्याचारी को अत्याचारग्रस्त दिखा सकें।

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