अहले सुन्नत की नज़र में रजअत का अक़ीदा

रजअत का अर्थ

संक्षिप्त शब्दों में रजअत (प्रत्यागमन) का अर्थ यह हैं कि हज़रत इमाम मेहदी अलैहिस सलाम के ज़हूर के बाद और क़यामत से पहले इस दुनिया से गुज़रे हुए ख़ालिस मोमिनों और ख़ालिस मुश्रिकों, काफ़िरों और ज़ालिमों को एक गिरोह इस दुनिया में दोबारा वापस आयेगा। पहला गिरोह श्रेष्ठता की मंज़िलें तय करेगा जबकि दूसरा गिरोह अपने किये की सज़ा और यातना इस दुनिया में पा लेगा।

मरहूम सय्यद मुर्तज़ा ने रजअत (प्रत्यागमन) का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा हैः

ख़ुदा वन्दे आलम हज़रत इमाम मेहदी अलैहिस के ज़हूर के बाद इस दुनिया से गुज़रे हुए मोमिनों के एक गिरोह को दोबारा इस दुनिया में पलटाएगा ताकि वो अपनी नुसरत और नेकियों का पुरस्कार प्राप्त कर सकें। इसी तरह सख़्त तरीन दुश्मनों के एक समूह को भी इस दुनिया में पलटाएगा ताकि उनसे इन्तेक़ाम लिया जाए और वह हक़ की सफ़लता को देख सकें।

फिर कहते हैं: इस नज़रिये के सही पर दलील यह है कि कोई भी बुद्धिमान मनुष्ट इस बात का इन्कार नहीं कर सकता कि यह काम ख़ुदा की क़ुदरत में है और उसके दायर ए इख़्तियार से बाहर नहीं है क्योंकि ये कोई असंभव काम नहीं है जब कि हमारे कुछ इस्लामी समुदाय इस रजअत का ऐसे इन्कार करते हैं जैसे यह ज़ाती ना मुम्किन और असंभव हो।

फिर कहते हैं: जब रजअत (प्रत्यागमन) का होना ज़ाती तौर पर असंभव नहीं है बल्कि संभव है तो इस के होने को साबित करने के लिये जो दलील है वह इमामिया सम्प्रदाय के विद्वानों एकमत और एक राय होना है क्योंकि किसी ने भी इस अक़ीदे का विरोध नहीं किया है।

रजअत (प्रत्यागमन) विशेष लोगों के लिए है

अहलेबैत अलैहिमुस सलाम की रेवायतों से मालूम होता है कि रजअत (प्रत्यागमन) महाप्रलय (क़यामत) की तरह नहीं है कि पिछले जन्मों के सारे लोग ज़िन्दा हों बल्कि इस रजअत के दौरान केवल वही लोग इस दुनिया में पलटेंगे जो वास्तविक और ख़ालिस मोमिन या वास्तविक काफ़िर हों जैसे कि हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस सलाम ने फ़रमायाः

ان الرجع لیست بعام وھی خاص لا یرجع الا من محض الایمان محضا اومحض الشرک محضاً

यानी रजअत आम नहीं है बल्कि ख़ास है और केवल वही लोग दोबारा पलटेंगे जो सच्चे और शुद्ध मोमिन हों या मुकम्मल तौर पर मुश्रिक हों।

रजअत के अक़ीदे को साबित करने वाली दलीलें

रजअत (प्रत्यागमन) के अक़ीदे को साबित करने वाली महत्वपूर्ण दलीलों में से अल्लाह की दैवी शक्ति का असीमित होना, क़ुरआन की आयतों और अइम्मए मासूमीन अलैहिमुस सलाम के कथन हैं।

1) ईश्वर की असीमित दैवी शक्ती

अल्लाह की क़ुदरत की कोई सीमा नही है, जैसा कि वह आरम्भिक तौर पर इस संपूर्ण सृष्टि को पैदा करने की शक्ति रखता है और समस्त जिन्नात व मनुष्ट के ख़त्म होने के बाद क़यामत के दिन दोबारा उन्हें ज़िन्दा और फिर से भेजने पर भी क़ुदरत रखता है, इसी तरह वह उस चीज़ पर भी क़ुदरत रखता है कि इंसानों के कुछ विशेष गिरोहों को क़यामत से पहले रजअत (प्रत्यागमन) के दौरान इसी दुनिया में दोबारा ज़िन्दा करे, चूँकि वो हर चीज़ पर सामर्थ हैः ان اللہ علی کل شیئ قدیر

रजअत का होना ईश्वर की क़ुदरत के पूर्ण रूप से सामर्थ होने की निशानी है और रजअत निसंदेह अल्लाह के आदेश और उसकी आज्ञा से ही वाक़े होगी। अत: जिस तरह ईश्वर की संपूर्ण दैवी शक्ति का इन्कार करना सही नहीं है और कोई बुद्धिमान इन्सान उसका इन्कार नहीं करता इसी तरह हर उस चीज़ का इन्कार भी नहीं हो सकता है जो उसकी इजाज़त और उसकी मर्ज़ी से वाक़े होती है।

2) रजअत का अक़ीदा और क़ुरआनी आयतें

क़ुरआने मजीद के अंदर बहुत सी आयतें हैं जो रजअत के होने के साबित होने पर दलालत करती हैं और अइम्मए मासूमीन अलैहिमुस सलाम ने इन आयतों को रजअत के अक़ीदे को साबित करने के लिये दलील बनाया है। रजअत पर दलालत करने वाली आयतें दो तरह की हैं, उनमें से कुछ आयतें पिछली क़ौमों और उम्मतों में रजअत के वाक़े होने पर दलालत करती हैं और कुछ दूसरी आयतें आइंदा ज़माने में रजअत के वाक़े होने को बयान करती हैं:

1) पिछली उम्मतों में रजअत के होने की क़ुरआनी दलीलें

हम यहाँ पर पिछली उम्मतों में कुछ अवसरों पर रजअत वाक़े होने के कुछ क़ुरआनी उदाहरण पेश करते हैं, इस लिये कि अगर पिछली क़ौमों में रजअत वाक़े होना साबित हो जाए तो साबित हो जाएगा कि रजअत का वाक़े होना ज़ाती तौर पर संभव है, असंभव नहीं है अत: भविष्य में रजअत वाक़े होने के ऊपर भी यही सबसे बड़ी दलील होगी।

क़ुरआने करीम ने पिछली क़ौमों और उम्मतों में रजअत वाक़े होने के कई नमूने बयान किए हैं कि जिन में से हम यहाँ केवल कुछ उदाहरण पेश करते हैं:

1. अल्लाह ताला सूरए बक़रा की आयत संख्या 259 में इरशाद फ़रमाता हैः

या उस शख़्स की तरह जिसका गुज़र एक बस्ती से हुआ जो अपनी छतों के बल गिरी हुई थी, तो उसने कहाः अल्लाह इस (उजड़ी हुई आबादी) को मरने के बाद किस तरह दोबारा जीवित करेगा? तो अल्लाह ने सौ वर्ष तक उसे मुर्दा रखा फिर उसे दोबारा जिन्दगी दे दी, उससे पूछा बताओ कितना समय (मुर्दा) रहे हो? उसने कहाः एक दिन या उससे कम, अल्लाह ने फ़रमायाः नहीं बल्कि सौ बरस (मुर्दा) पड़े रहे हो, अच्छा ज़रा अपने खाने पीने की चीज़ों को देखों जो सड़ी नहीं हैं और अपने गधे को भी देखों और हमने यह इस लिए किया ता कि हम तुम्हें लोगों के निशानी बनाएँ और फिर उन हड्डियों को देखों को देखों कि हम उन्हें किस तरह उठाते हैं, फिर उन पर गोश्त चढ़ाते हैं, यूँ जब उस पर हक़ीक़त ज़ाहिर हो गई तो उसने कहाः मैं जानता हूँ कि अल्लाह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।

चूँकि क़ुरआने मजीद ने उस आदमी का नाम नहीं लिया है इस लिए उस आदमी के नाम में इख़्तिलाफ़ है कि यह हज़रत ओज़ैर नबी थे या हज़रत अरमिया नबी। इब्ने कसीर ने अपनी तफ़्सीर में हज़रत अली अलैहिस सलाम के कथन के हवाले से कहा है कि वह हज़रते ओज़ैर नबी थे। जबकि वहब इब्ने मुनब्बी और अब्दुल्लाह इब्ने ओबैद के हवाले से कहा गया है कि वो अरमिया नबी थे। (4) लेकिन प्रसिद्ध कथन यह है कि हज़रत औज़ैर नबी थे। अलबत्ता नाम के इस इख़्तिलाफ़ से असल घटना के सही होने पर कोई असर नहीं पड़ता बल्कि ये घटना इस क़द्र वास्तविक है जिस क़द्र ख़ुद पवित्र क़ुरआन।

बहरहाल कहानी यह है कि जब "बख़्त नस्र" ने यहूदियों का क़त्ले आम किया तो हज़रते ओज़ैर नबी का उधर से गुज़र हुआ, उन्होंने देखा कि उस शहर के सब लोग मर चुके हैं, और उस शहर की इमारतें और दीवारें ज़मीन बोस हो गई हैं तो उस वक़्त उन्होंने दिल ही दिल में सोचा कि ऐसा उजड़ा हुआ शहर भी कभी आबाद हो सकता है? ये ख़्याल उनके दिल में उस वक़्त आया जब उन्होंने उस शहर की बे तहाशा ख़राबी को देखा, तो अल्लाह ने उस वक़्त उन पर मौत वारिद कर दी, वह सौ साल तक मुर्दा हालत में उसी मक़ाम पर पड़े रहे और फिर सौ साल बाद अल्लाह ने उन्हें दोबारा ज़िन्दा किया, तो उन्होंने देखा कि इस अर्से में बैतुल मुक़द्दस दोबारा आबाद हो चुका है और बनी इसराईल के लोग दोबारा वहाँ लौट आए हैं।

यह घटना हज़रत औज़ैर के लिए इतनी विश्वसनीय थी कि जब अल्लाह ने उनसे पूछा कि कितना अर्सा यहाँ (मुर्दा हालत में) पड़े रहे तो उन्होंने कहाः एक दिन या उससे भी कम। इमाम मावरदी ने अपनी तफ़्सीर में लिखा है कि जब अल्लाह ताला ने उन पर मौत आरिज़ कर दी तो उस वक़्त दिन का आग़ाज़ हो चुका था, लेकिन जब उन्हें सौ साल के बाद दोबारा ज़िन्दा किया तो उस वक़्त शाम होने वाली थी। इस लिए पहले तो उन्होंने कहाः एक दिन, फिर सूरज को देखा कि अभी डूबने वाला है तो सोचा कि इसी दिन का सूरज है लिहाज़ा कह दियाः आधा दिन  घर आए तो उनके बच्चे बूढे हो चुके थे, इस तरह ख़ुदा ने उनको बताया कि ख़ुदा मरे हुए लोगों को दोबारा ज़िन्दा करने पर क़ादिर है। ये आयत रजअत के ऊपर बेहतरीन दलील है कि हज़रते औज़ैर नबी को मौत के बाद दोबारा उसी दुनिया में रजअत हासिल हो गई। मरने के बाद दोबारा इसी दुनिया में ज़िन्दा होने का नाम ही तो रजअत है।

इस घटना की तरफ़ इशारा करते हुए हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस सलाम इरशाद फ़रमाते हैं :

ان عزیراخرج من اھلہ وخلف امراتہ حاملا ولہ خمسون سن،فماتہ اللہ ماء عام، ثم بعثہ فرجع الیٰ اھلہ، وھو ابن خمسین سن، ولہ ولد ھوابن ماء سن، فکان ابنہ اکبر منہ خمسین سن،وھوالذی جعلہ اللہ آی للناس

हज़रते औज़ैर अपने घरवालों को छोड़ कर सफ़र पर निकले, उनकी बीवी गर्भवती थीं और ख़ुद उनकी उम्र पचास साल थी, अल्लाह ने उन्हें सौ साल तक मुर्दा रखा फिर ज़िन्दा किया, जब वो अपने घर लौटे तो उनकी उम्र पचास साल ही थी, जबकि उनके बेटे की उम्र अपने बाप की उम्र से ज़्यादा हो गई, यह अल्लाह की निशानियों में से एक निशानी है।

हज़रते औज़ैर की रजअत की घटना से स्पष्ट हो जाता है कि मरने के बाद भी अगर अल्लाह चाहे तो इंसान का दोबारा उसी दुनिया में ज़िन्दा होना संभव है। क्योंकि अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है। जो अल्लाह उस इंसान को मरने के बाद क़यामत के दिन ज़िन्दा कर सकता है वो मरने के बाद इस दुनिया में भी उसे ज़िन्दा कर सकता है जिस तरह हज़रत औज़ैर नबी को मरने के बाद दोबारा इसी दुनिया में ज़िन्दा किया। न केवल उन्हें बल्कि उनके गधे को भी दोबारा ज़िन्दा किया और यह निसंदेह अल्लाह की क़ुदरत की निशानियों में से है कि एक ही तरह के वातावरण में गधे की हड्डियाँ तक चुरा हो जाती हैं जबकि खाने पीने की चीज़ें, जो जल्दी सड़ जाया करती हैं सौ साल तक ताज़ा हालत में बाक़ी रहती हैं।

अत: हज़रत औज़ैर का दुनिया से गुज़रने के सौ साल बाद दोबारा इसी दुनिया में ज़िन्दा होने का यह वाक़ेआ न केवल रजअत के अक़ीदे के सही होने पर दलील है बल्कि इस घटना से रजअत के अक़ीदे को मज़बूती भी मिलती है।

2) सूरए बक़रा की आयत संख्या 243 में अल्लाह ताला ने इरशाद फ़रमायाः

الم تر الی الذین خرجوا من دیارھم و ھم الوف حذرالموت فقال لھم اللہ موتوا ثم احیاھم ان اللہ لذو فضل علی الناس ولکن اکثر الناس لا یشکرون

क्या आपने उन लोगों को नहीं देखा जो मौत के डर से हज़ारों की तादाद में अपने घरों से निकले थे? तो अल्लाह ने उनसे फ़रमायाः "मर जा" फिर उन्हें ज़िन्दा किया। बेशक अल्लाह लोगों पर बड़ी कृपा करने वाला है मगर अकसर लोग शुक्र अदा नहीं करते।

तबरी अपनी तफ़्सीर में इब्ने अब्बास का कथन नक़्ल करते हैं कि वो लोग चार हज़ार थे कि जो ताऊन की बीमारी से बचने के लिए भाग निकले थे और कहते थे कि हम ऐसी जगह जाएँगे जहाँ हमें मौत से निजात मिले और फिर भाग कर उसी मक़ाम पर पहुँचे थे कि अल्लाह ने उन्हें हुक्म दिया मर जा और सब मर गए फिर कुछ अर्से बाद वहाँ से एक नबी का गुज़र हुआ तो उन्होंने अल्लाह से दुआ माँगी कि इन्हें दोबारा ज़िन्दा फ़रमाए तो अल्लाह ने अपनी नबी की दुआ क़बूल फ़रमाते हुए उन्हें दोबारा ज़िन्दा फ़रमाया।

रेवायात में आया है कि वह हज़रत हिज़क़ील नबी थे। और जिस क़ौम के साथ यह वाक़ेआ पेश आया वो बनी इस्राईल के ज़माने की एक क़ौम थी।

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस सलाम से रिवायत है आपने फ़रमायाः

अल्लाह ने उस क़ौम को ज़िन्दा फ़रमाया था जो ताऊन की बीमारी से बचने के लिए भाग निकलती थी, ये लोग बेशुमार थे। फिर अल्लाह ने एक लंबे अर्से के लिए उन्हें मौत की नींद सुला दिया। यहाँ तक कि उनकी हड्डियाँ तक गल सड़ कर बिखर गईं और वो ख़ाक हो गए, फिर जब अल्लाह ने चाहा कि अपनी मख़लूक़ को देखे तो एक नबी भेजा जिन्हें हिज़क़ील कहते थे। हज़रत हिज़क़ील ने दुआ की तो उनके जिस्म यकजा हो गए, उनमें रूह पलट आई और जिस हालत में वो मुर्दा थे उसी हालत में खड़े हो गए और एक आदमी भी कम नहीं हुआ। उसके बाद उन्होंने एक लंबी मुद्दत तक ज़िन्दगी पाई।

अनुवादक
ऐजाज़ मूसवी

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