इस्राईल और इस्लामी प्रतिरोध के बीच सात युद्ध और उनका अंजाम

इस्राईल और इस्लामी प्रतिरोध के बीच सात युद्ध और उनका अंजाम

अंतिम युद्ध कौन सा ?

1973 के युद्ध के बाद इस्राईल सोचा करता था कि यह अब अंतिम युद्ध होगा। एक हिसाब से तेलअवीस की सोच सही थी क्योंकि यह युद्ध, अरबों की संयुक्त सेना के साथ उसका अन्तिम युद्ध था किंतु इस्राईल के लिए यह अन्तिम युद्ध सिद्ध नहीं हुआ।

अरब सरकारों की ओर से मौन के पश्चात इस्राईल , फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं के साथ लेबनान में सन 1978 से 1982 तक युद्ध में उलझा रहा। फिर उसके बाद इस्राईल ने वर्ष 2002 और 2003 में जार्डन नदी के पश्चिमी तट तथा ग़ज़्ज़ा में युद्ध किया। फिर ग़ज़्ज़ा में 2008, 2012 और अंततः 2014 में युद्ध हुए। लेबनान के प्रतिरोध के विरुद्ध भी ज़ायोनी शासन ने 1993, 1996 और 2006 में युद्ध किये। इन युद्धों के साथ फ़िलिस्तीन के दो इन्तेफ़ाज़ा जनान्दोलनों को भी जोड़ना चाहिए जो 1987 से 1993 और 2000 से 2004 तक जारी रहे।


स्पष्ट है कि वर्ष 1948 में अवैध ज़ायोनी शासन के गठन के समय से अबतक इस शासन ने कई युद्ध किये हैं क्योंकि इस शासन की प्रवृत्ति ही युद्धोन्मादी है। अपने गठन से अबतक ज़ायोनी शासन ने औसतन 14 युद्ध किये हैं अर्थात हर 5 वर्षों के बाद एक युद्ध या सैन्य झड़प। इस हिसाब से अरब देशों की संगठित सेना से 4 युद्ध और फ़िलिस्तीनी तथा लेबनानी प्रतिरोधकर्ताओं के साथ 10 युद्ध। हालांकि अरब देशों की संगठिन सेना के साथ इस्राईल के युद्धों में लगभग 10 वर्षों का अंतराल पाया जाता है जबकि प्रतिरोधकर्ता गुटों के साथ ज़ायोनी शासन के संघर्ष में अंतराल 3 से 4 वर्षों का है।

इन युद्धों के बावजूद स्पष्ट है कि ज़ायोनी शासन दो बातों में पूर्ण रूप से विफल रहा है। पहली बात यह कि ज़ायोनी शासन सदैव दावा करता आया है कि विश्व के यहूदियों के लिए वह एक सुरक्षित स्थल है। किंतु अपनी विस्तारवादी एवं वर्चस्ववादी नीतियों के कारण वह उनके लिए सबसे बुरा स्थल समझा जाता है। यह शासन एक सैन्य शासन के समान है जो पश्चिम के हितों का रक्षक होने के स्थान पर विश्व से चाहता है कि वह उसकी शांति एवं सुरक्षा को सुनिश्चित बनाए।

दूसरे यह कि उसका दावा है कि ज़ायोनी शासन की सेना अजेय है हालांकि युद्धों से यह सिद्ध होता है कि उसका दावा निराधार और खोखला है।

इस आधार पर इस्राईल वह शासन नहीं है कि जो मध्यपूर्व में अमरीकी हितों के संरक्षक की भूमिका निभा सके। क्योंकि उसे वर्ष 2000 और 2005 में एकपक्षीय रूप में युद्ध में पीछे हटना पड़ा।

लीतानी आप्रेशन

मार्च 1978 में “लीतानी” आप्रेशन(Operation Litani)  को इस्लामी प्रतिरोध के विरुद्ध पहला युद्ध माना जाता है। “लीतानी”, दक्षिणी लेबनान की एक नदी का नाम है। ज़ायोनी शासन ने शहीद कमाल उदवान के बहाने यह युद्ध आरंभ किया था। यह उस कार्यवाही का उत्तर था जिसका संचालन फत्ह आंदोलन की फ़िलिस्तीनी फिदाई महिला “दलाल अलमग़रेबी” कर रही थी।

दलाल मगरेबी नामक एक फिलिस्तीनी युवती अपने लगभग तीस साथियों के साथ लीतानी नदी के मार्ग से तेलअबीब तक पहुंचने में सफल हो गयी थी और जहां उसने एक बस के यात्रियों को बंधक बना कर तेलअबीब में घुसने का प्रयास किया किंतु इस्राईली सेना ने यह प्रयास विफल बना दिया और इस अवसर पर भीषण झड़प हुई जिसमें लगभग ३० इस्राईली सैनिक मारे गये और पचास से अधिक घायल हो गये।

फिलिस्तीन की दुल्हन

फिलिस्तीनी दलाल अलगरेबी को एक नायिका के रूप में याद करते हैं और उन्हें फिलिस्तीन की दुल्हन की उपाधि दी है और उनके साहस को हर स्तर पर सराहा जाता है।इस कार्यवाही के बाद  आप्रेशन लीतानी में तेलअवीव फिदाईन के सभी ठिकानों को नष्ट करने में सफल रहा और उसने लेबनान में दस किलोमीटर भीतर लीतानी नदी के निकट तक के ठिकानों को ध्वस्त कर दिया। यह युद्ध 7 दिनों तक चला।

युद्ध के दौरान 1160 लेबनानी और फ़िलिस्तीनी शहीद हुए। इस युद्ध के दौरान हज़ारों लेबनानी पलायन पर विवश हुए। लीतानी सैन्य अभियान में ज़ायोनियों के भी दसियों सैनिक मारे गए।

युद्ध के दौरान इस्राईल के कम सैनिकों का मारा जाना इसलिए संभव हुआ क्योंकि इसमें हवाई आक्रमण अधिक किये गए। इसके बावजूद यह युद्ध अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में लाकर बसाए गए उन पलायनकर्ताओं के लिए दुस्स्वप्न बन गया जिन्हें विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर वहां ले जाया गया था।इस आक्रमण के दौरान उनकी नींदें उड़ गई थीं और वे बहुत भयभीत थे।

इस्राईली सैनिकों का बंदी बनना इससे भी बदतर था क्योंकि ऐसी स्थिति में एक ओर तो तेलअवीव को किसी समझौते के लिए विवश होना पड़ता और उसे उस विशिष्टता को छोड़ना पड़ता जो पश्चिमी समर्थन से उसे फिलिस्तीनियों पर दबाव डाल  प्राप्त करना था और दूसरी ओर ऐसे शासन की धौंस और उसका रोब ही समाप्त हो जाता जिसने स्वयं ही हज़ारों फ़िलिस्तीनियों को बंदी और बंधक बना रखा है और जिसके कारण अरब और इस्लामी जगत में उसका भय बना हुआ था। साथ ही इस कार्य से उसके सैनिकों में असुरक्षा की भावना भी उत्पन्न हो जाती।

आप्रेशन अलजलील के लिए शांति

प्रतिरोध के विरुद्ध इस्राईल का दूसरा युद्ध 1982 में लेबनान के विरुद्ध आरंभ हुआ जिसका शीर्षक था “अलजलील के लिए शांति ”(Operation Peace for Galilee)  इस युद्ध में इस्राईल की सेना लेबनान की राजधानी बेरूत तक पहुंच गई और उसने उसका तीन महीनों तक परिवेष्टन किये रखा। इस दौरान इस्राईलियों ने निरंतर हवाई आक्रमण किये।

इन आक्रमणों के परिणाम में पीएलओ, अमरीका की तत्काल सरकार के निरीक्षण में शांति समझौता करने पर विवश हुई। इस्राईल के समाचारपत्र यदीऊत आहारूनूत ने 14 अप्रैल 2000 के अपने संस्करण में यह दावा किया था कि इस युद्ध में लेबनान और फ़िलिस्तीन के 14000 लोग मारे गए जबकि इस्राईल की सेना के 400 सैनिक हताहत हुए।

वर्ष 2000 से 2004 तक दूसरे इन्तेफ़ाज़ा जनान्दोलन के आरंभ में, जो अपने भीतर सैन्य संघर्ष लिए हुए था, इस्राईल ने फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के विरुद्ध दो आक्रमण करने की योजना बनाई। जिन फ़िलिस्तीनी गुटों के विरुद्ध इस्राईल ने आक्रमण की योजना बनाई थी उनमें से एक फत्ह आन्दोलन की शाखा “शोहदाए अलअक़सा” थी दूसरे हमास की सैन्य शाखा “इज़्ज़ुद्दीन क़स्साम” थी।

पहला आक्रमण डिफेन्सिव शील्ड (tion "Defensive Shield") के नाम से मार्च 2012 में और दूसरा आक्रमण “निर्णायक मार्ग” के नाम से आरंभ किया गया। इन आक्रमणों के परिणाम स्वरूप फ़िलिस्तीन की स्वाशासित सरकार के नियंत्रण वाले कुछ क्षेत्रों का अतिग्रहण कर लिया गया। इन आक्रमणों में प्रतिरोधक गुटों के आधारभूत ढांचों को लक्ष्य बनाया गया जिसके कारण पीएलओ प्रमुख यासिर अरफ़ात, रामल्लाह में अपने मुख्यालय में ही घिर कर रह गए। बाद में उन्हें उपचार के लिए फ़्रांस ले जाया गया जहां पर 2004 में उनकी मृत्यु हो गई।

दूसरे इंतेफ़ाज़ा जनान्दोलन को ज़ायोनियों के साथ फ़िलिस्तीनी संघर्षकर्ताओं का चरम बिंदु भी कहा जा सकता है क्योंकि इसके दौरान 1060 इस्राईली मारे गए जबकि फ़िलिस्तीनी शहीदों की संख्या लगभग 5000 थी।

दूसरा इंतेफ़ाजा

1987 से 1993 वाले पहले इंतेफ़ाज़ा की तुलना में दूसरे इंतेफ़ाज़ा जनान्दोलन में मूलभूत अंतर था। इसका कारण यह था कि पहले वाले इंतेफ़ाज़ा में जनान्दोलन, सैन्य झड़पों के मुक़बाले में अधिक स्पष्ट था। इसमें 183 इस्राईली मारे गए जबकि 1600 फ़िलिस्तीनी शहीद हुए। इसके बावजूद इन्तेफ़ाज़ा, महान उपलब्धि अर्जित करने में सफल रहा। इसने इस्राईल की शांति में विघ्न डाल दिया, इस्राईली सेना के अजेय होने की पोल खोल दी, वहां पाए जाने वाले विरोधाभासों को लोगों के लिए स्पष्ट किया, उसकी अन्तर्राष्ट्रीय छवि को धूमिल किया और फ़िलिस्तीनियों के प्रति विश्व समुदाय की सहानुभूति आकृष्ट करने के साथ ही फ़िलिस्तीन भूमि को आधुनिक संसार की कार्यसूचि में सम्मिलित कराया।

कास्ट लेड आपरेशन

अवैध ज़ायोनी शासन की ओर से पांचवा युद्ध वर्ष 2008 के अंत और 2009 के आरंभ में “कास्टलेड आपरेशन”( operation cast lead) के नाम से आरंभ हुआ। इसका उद्देश्य हमास को कमज़ोर करना और इस्राईली सैनिक “गीलआद शालीत” को प्रतिरोधकर्ताओं से स्वतंत्र कराना था। इस सैन्य अभियान का एक अन्य लक्ष्य, फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं की उस मिसाइल क्षमता को नष्ट करना था जिसने पहले की तुलना में प्रतिरोधकर्ताओं की आक्रामक क्षमता को बढ़ा दिया था।

इस सैन्य अभियान को ज़ायोनी शासन ने बहुत ही भयानक और पाश्विक ढंग से आगे बढ़ाया। इसमें 1391 फ़िलिस्तीनी शहीद हुए। शहीदों में 344 बच्चे और 110 महिलाएं थीं। इस आक्रमण में 9 ज़ायोनी मारे गए जिनमें से 6 सैनिक थे।

पिलर आफ डिफेंस

ज़ायोनियों के छठे युद्ध का नाम “पिलर आफ डिफेंस” (pillar of defense) था। यह युद्ध नवंबर 2012 में आरंभ हुआ और एक सप्ताह तक चला। इसमें 191 फ़िलिस्तीनी शहीद हुए तथा 1526 लोग घायल हुए जिनमें अधिकांश बच्चे, महिलाएं और वृद्ध थे। इसमें 6 इस्राईली मारे गए।

इस समय फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध इस्राईल का सातवां युद्ध चल रहा है जिसमें इस्राईली बहुत ही पाश्विक ढंग से ग़ज़्ज़ा पर आक्रमण कर रहे हैं।

सालिड रॉक

सातवें युद्ध ने जिसे ज़ायोनियों ने “सालिड रॉक” ( Solid Rock) का नाम दिया है, सिद्ध कर दिया कि निरंतर आक्रमण करके शत्रु को सदैव कमज़ोर नहीं किया जा सकता। अपने शत्रु को निरंतर आक्रमण के माध्यम से कमज़ोर करने की शैली कभी स्वयं के कमज़ोर होने का कारण बन जाती है। हालांकि इस्राईल ने इस बार तीन इस्राईली जवानों की हत्या के बहाने फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध आक्रमण आरंभ किया है किंतु उसका मुख्य उद्देश्य प्रतिरोध की सैन्य एवं मिसाइल क्षमता को कमज़ोर करना रहा है।

अबतक के युद्ध से यह सिद्ध होता है कि न केवल यह कि उसको अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ बल्कि इस शासन को पता चल गया कि फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं की क्षमता के आंकलन में उसने भारी ग़लती की है।

वर्तमान समय में फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ता, पूर्व की तुलना में ज़ायोनियों को कड़ा उत्तर देने की स्थिति में हैं। यह बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि प्रतिरोध की क्षमता ने अब क्षेत्र में शक्ति एक नया अध्याय खोला है और शक्ति के संतुलन को फ़िलिस्तीन समस्या के हित में मोड़ दिया है।

कहा जा सकता है कि तेलअवीव, हैफा और बैतुलमुक़द्दस तक प्रतिरोधकर्ताओं के सैकड़ों राकेटों की पहुंच एक अभूतपूर्व बात है। फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्तओं की ओर से संघर्ष विराम के प्रस्ताव को अस्वीकार किया जाना भी उनकी श्रेष्ठता को सिद्ध करता है। इसका मुख्य कारण यह है कि ज़ायोनी शासन का आकंलन यह था कि बहुत ही सीमित समय में प्रतिरोधकर्ताओं की मिसाइल क्षमता को नष्ट कर दिया जाएगा और अपनी शर्तों के साथ फ़िलिस्तीनियों को संघर्ष विराम के लिए बाध्य किया जा सकेगा। किंतु परिणाम बिल्कुल उलटा दिखाई दे रहा है।

बिगड़े समीकरण

फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं की सैन्य क्षमता के बारे में इस्राईल का आंकलन पूर्ण रूप से ग़लत सिद्ध हुआ है। हमास और जेहादे इस्लामी की ओर से निरंतर मज़ाइलों की वर्षा ने यह दर्शा दिया है कि इस्राईल की जानकारी के स्रोत अविश्वसनीय और ग़लत हैं।


बहुत से टीकाकारों का यह मानना था कि ज़ायोनी शासन युद्ध के दौरान फ़िलिस्तीन के प्रतिरोधकर्ताओं के मिज़ाइल के भण्डारों को नष्ट कर देगा और शस्त्रों की आपूर्ति करने वाली सुरंगों को ध्वस्त कर देगा। ग़ज़्ज़ा से फ़िलिस्तीन के शहीद बच्चों, महिलाओं और वृद्धों के चित्र यह समझाते हैं कि इस्राईल, अपनी विफलता का आभास करके अपना आपा खो बैठा है और वह अंधाधुंध बमबारी करता जा रहा है।

युद्ध की विभीषिका किसी से ढकीछिपी बात नहीं है। इस बात से सब भलिभांति अवगत है कि युद्ध के दुष्प्रभाव वर्षों तक व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन को प्रभावित करते हैं। यहां पर यह बिंदु ध्यान योग्य है कि युद्ध के अनुभव, उनके लिए जो सदैव ही उसकी चपेट में हैं और उनके लिए हो युद्ध को दूसरों पर लादते हैं अलग होते हैं।

वास्तव में अपने और सामने वाले पक्ष के कमज़ोर बिंदुओं को समझने से शक्ति संतुलन में बड़े परिवर्तन आ सकते हैं और असंतुलित लड़ाई के अनुभव, जो अविश्वसनीय पराजय का कारण बने, इसी वास्तविकता को बयान करते हैं।

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