हज़रत ईसा मसीह का व्यक्तित्व

हज़रत ईसा मसीह का व्यक्तित्व

     सलाम हो एक लाख चौबीस हज़ार ईश्वरीय दूतों पर। सलाम हो उन पर जिन्होंने प्यासी आत्माओं को अपने मार्ग दर्शन से तृप्ति किया और अवसाद में घिरी मनुष्य की आत्मा को ईश्वरीय ज्ञान की वर्षा से प्रफुल्लित किया।
सलाम हो उन ईश्वरीय दूतों पर जिन्होंने मनुष्य को ईश्वर की उपासना, न्याय की स्थापना और अत्याचार से संघर्ष का निमंत्रण दिया और इस मार्ग में बहुत कठिनाईयां सहन कीं।

सलाम हो नूह अलैहिस्सलाम पर, सलाम हो इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर, सलाम हो ईसा मसीह अलैहिस्सलाम पर और सलाम हो अंतिम और सर्वश्रेष्ठ ईश्वरीय दूत हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सलल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम पर।

हज़रत ईसा मसीह समस्त संसार के लिए न्याय, प्रेम और मित्रता के शुभसूचक थे। उन्होंने ईश्वरीय आदेश से पालने में बात की और निश्चेत लोगों को इस प्रकार संबोधित किया कि मैं ईश्वर का दास हूं, उसने मुझे ग्रंथ दिया है और मुझे ईश्वरीय दूत बनाया है और जहां भी रहूं उसे विभूतियों से भरा हुआ बताया है और जब तक जीवित रहूं नमाज और ज़कात की सिफ़ारिश की है और अपनी माता के साथ भलाई करने वाला बनाया है और अत्याचारी और दुर्भाग्यशाली नहीं बनाया है। सलाम है मुझपर जिस दिन मैं पैदा हुआ और जिस दिन मैं मरूंगा और जिस दिन पुनर्जिवित करके उठाया जाऊंगा।

इस प्रकार से एक बार फिर पूरा संसार एक अन्य ईश्वरीय दूत के जन्म से जगमगा उठा। सलाम हो हज़रत ईसा मसीह पर और उनकी पवित्र माता हज़रत मरियम सलामुल्लाह अलैहा पर।

ईश्वरीय दूत, ईश्वर के उच्च और कल्याणकारी संदेशों को पहुंचाने वाले होते हैं और इनके दृष्टिगत बहुत महत्त्वपूर्ण लक्ष्य होते है। ईश्वरीय दूत, ईश्वर और मनुष्य के मध्य जागरूक, प्रेमपूर्ण और स्थायी संबंध स्थापित करने का प्रयास करते थे क्योंकि इन संबंधों की छत्रछाया में बहुत सी आत्मिक और सामाजिक समस्याएं मनुष्य के जीवन से समाप्त हो जाती हैं।

ईश्वरीय दूतों ने जनता को एक ईश्वर की उपासना का निमंत्रण दिया है और मनुष्य के जीवन में एकेश्वरवाद की केन्द्रीय भूमिका को बयान करते हुए मनुष्यों में उपासना और भक्ति के मनोबल को सुदृढ़ किया है। अत्याचार और अन्याय से संघर्ष व निर्दोष और अत्याचार ग्रस्त लोगों की रक्षा, समस्त ईश्वरीय दूतों के संयुक्त लक्ष्य रहे हैं।ऐसा लक्ष्य जिसको व्यवहारिक बनाने के मार्ग में हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम ने बहुत कठिनाईयां सहन कीं। हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्लाम उन ईश्वरीय दूतों में से हैं जिनकी महानता का पवित्र क़ुरआन गुणगान करता है और इस ईश्वरीय पुस्तक में बहुत आदर व सम्मान किया गया है।

पवित्र क़ुरआन की विभिन्न आयतों में हज़रत ईसा मसीह को उनके स्थान और भूमिका के कारण बड़े पैग़म्बर अर्थात ईश्वरीय दूत के रूप में याद किया गया है। हज़रत ईसा मसीह चमत्कारिक रूप से पैदा हुए जिसकी ओर पवित्र क़ुरआन ने संकेत किया है। हज़रत ईसा मसीह चमत्कारिक रूप से बिना पिता के पैदा हुए हज़रत ईसा मसीह को जन्म देने वाली माता का नाम मरियम है जबकि हज़रत मरियम का कोई पति नहीं था।

पवित्र क़ुरआन हज़रत इमरान की सुपुत्री हज़रत मरियम के बारे में कहता है कि वे पवित्र, सावित्री और ईश्वर से भय रखने वाली कन्या थीं। वो प्रकाशमयी और ईश्वर के समक्ष झुकने वाला हृदय रखती थीं। हज़रत मरियम पवित्रता की रक्षा और भक्ति के मार्ग से ऐसे स्थान पर पहुंच गयीं कि स्वर्ग से उनके लिए फल और खाने आते थे। यद्यपि यह ईश्वरीय संदेश उनके लिए धार्मिक क़ानून या पैग़म्बर होने के अर्थ में नहीं था किन्तु यह उनके और ईश्वर के मध्य सुदृढ़ संबंधों का सूचक था।

एक दिन की बात है कि जब एकांत में हज़रत मरियम ईश्वर की उपासन में लीन थीं, जिब्राईल उनके निकट प्रकट हुए और उनको एक पुत्र के जन्म की शुभ सूचना दी।

ईश्वर सूरए मरियम की 16 से लेकर 19 तक की आयतों में कहता है कि पैग़म्बर इस ग्रंथ में मरियम को याद करो कि जब वह अपने घर वालों से अलग हुईं और बैतुल मुक़द्दस के पूर्व की ओर चली गयीं और उन लोगों और अपने बीच पर्दा डाल दिया तो हमने रूह अर्थात अपने निकटवर्ती फ़रिशते को उनकी ओर भेजा और उनके समक्ष एक सुन्दर व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत हुआ, मरियम बहुत भयभीत हुईं और उन्होंने कहा कि यदि तुझे ईश्वर का भय है तो मैं तुझसे बचने के लिए ईश्वर की शरण मांगती हूं, उसने कहा कि मैं आपके ईश्वर का दूत हूं कि आपको एक पवित्र पुत्र भेंट करूं।

पवित्र क़ुरआन की दृष्टि से हज़रत ईसा मसीह भी अन्य मनुष्यों की भांति हैं और उनका चमत्कारिक व आश्चर्यजनक जन्म और उनकी पैग़म्बरी के अतिरिक्त उनका ईश्वर से कोई अन्य संबंध नहीं था। इसीलिए पवित्र क़ुरआन हज़रत ईसा के नाम का उल्लेख उनकी माता मरियम के नाम के साथ करता है ताकि इस बिन्दु पर बल दिया जाए कि वे एक मनुष्य के पुत्र हैं न कि ईश्वर के पुत्र और न ही स्वंय ईश्वर हैं। वे अन्य मनुष्यों की भांति अपनी माता के गर्भ में रहे और जन्म लेने के बाद अन्य बच्चों की भांति अपनी माता की गोद में पले-बढ़े और उनके पूरे जीवन काल के समस्त कार्य अन्य मनुष्यों की भांति थे।

हज़रत ईसा मसीह लगभग तीस वर्ष के थे कि उन्होंने ईश्वरीय आदेश से धर्म का प्रसार व प्रचार आरंभ किया और लोगों को अपना अनुसरण करने का अह्वान किया। उन्होंने लोगों से कहा कि वे प्रायश्चित करें और अपने जीवन में ईश्वर की अभिवावक्ता को स्वीकार कर लें। हज़रत ईसा उच्च व्यक्तिगत के मालिक थे। वे साधारण लोगों के साथ उठते बैठते थे और साधारण सा जीवन व्यतीत करते थे। समस्याओं में ग्रस्त और दुःखी लोगों का मनोबल बढ़ाते थे और निर्धनों और दरिद्रों से प्रेम और स्नेहपूर्ण व्यवहार करते थे। वे सांसरिक मोहमाया से सदैव दूर रहते थे।

हज़रत ईसा मसीह निर्दोषों और अत्याचार ग्रस्त लोगों में लोकप्रिय थे। वे उन लोगों से प्रेम करते थे और उन पर अपने प्रेम और स्नेह की छाया कर उनको अपनी शरण में ले लिया करते थे।

हज़रत ईसा मसीह ने अपनी पैग़म्बरी को सिद्ध करने के लिए लोगों को विभिन्न प्रकार के आश्चर्यजनक चमत्कार दिखाए। उन्होंने अपनी फूंक से मुर्दों को जीवित किया और जन्मजात अंधों को नेत्र प्रदान किए और बीमारों को अच्छा किया। इन चमत्कारों के साथ साथ यह भी कहा जा सकता है कि बहुत से लोग इसलिए भी हज़रत ईसा की ओर झुकते थे कि आप निर्दोष लोगों का समर्थन करते थे। आपका मूल्यवान और मार्गदर्शक भाषण तथा अच्छा व्यवहार लोगों को मनमोहित कर लेता था।  

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