अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) का प्रेम और क्रोध

अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) का प्रेम और क्रोध

हज़रत अली अलैहिस्सलाम वह महान हस्ती थे जिनके व्यक्तित्व की प्रशंसा दोस्त -दुश्मन सब करते थे। 14 शताब्दियां गुज़र जाने के बावजूद आज भी बुद्धिजीवी, विचारक और विद्वान हज़रत अली अलैहिस्सलाम के महान व्यक्तित्व को नहीं समझ सके हैं और उनकी आकांक्षा यह है कि वे हज़रत अली अलैहिस्सलाम के महान व्यक्तित्व को अधिक से अधिक समझ सकें। लेबनान के ईसाई लेखक जार्ज जोर्दाक़ लिखते हैं आह! हे दुनिया क्या हो जाता अगर तू अपनी पूरी शक्ति को एकत्रित करती और अपनी पूरी क्षमता को एक बार फिर एक स्थान पर केन्द्रित करती और हर काल में एक व्यक्ति को मानवता के लिए उपहार लाती? जो बुद्धि, तर्क, बयान,शूरवीरता में अली की तरह होता

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की एक विशेषता उनके अंदर पाया जाने वाला आकर्षण व विकर्षण है और यह वह चीज़ है जो अध्ययनकर्ताओं एवं विद्वानों के ध्यान का केन्द्र बनी है। जिस इंसान का व्यक्तिगत व्यक्तित्व जितना मज़बूत होगा उतना ही वह दूसरों में अधिक प्रभावी होगा। जो लोग दूसरे इंसानों में प्रभावी होते हैं लोगों के मध्य सदैव वे चर्चा के विषय होते हैं उनके बारे में दूसरे शेर और कहानियां कहते हैं और विभिन्न आयामों से उनके जीवन के पहलुओं की समीक्षा करते हैं परंतु हज़रत अली अलैहिस्सलाम और उन व्यक्तियों व हस्तियों की श्रेष्ठता, जिन्होंने अपने अस्तित्व को सत्य के प्रकाश से प्रकाशमयी कर लिया है, यह है कि वह दूसरों के दिलों को प्रकाश, स्फूर्ति, प्रेम और ईमान प्रदान करते हैं।

ईरानी बुद्धिजीवी और विचारक उस्ताद शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी अपनी किताब “जाज़ेबा व दाफेआ हज़रत अली” में लिखते हैं कि कुछ इंसानों के भीतर न आकर्षण होता है न विकर्षण। न उनका कोई मित्र होता है न शत्रु। उनके अस्तित्व में न कोई सकारात्मक विशेषता होती है न नकारात्मक। इस प्रकार के व्यक्ति का प्रभाव समाज में एक पत्थर के टुकड़े और उसमें कोई अंतर नहीं है।

कुछ इंसानों के भीतर केवल विकर्षण होता है और उनके अंदर दूसरे इंसानों को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता नहीं होती है। आम तौर पर इस प्रकार के व्यक्तियों के अंदर कोई ध्यान योग्य अच्छी विशेषता भी नहीं होती है जिसकी वजह से वह दूसरों को अपनी ओर आकर्षित कर लें।

कुछ इंसान एसे होते हैं जिनके अंदर केवल आकर्षण होता है। इस प्रकार के इंसान यह सोचते हैं कि अच्छा व्यवहार और सामाजिक होना यह है कि दूसरों के दिलों को अपनी ओर आकर्षित किया जाये और दूसरों को अपना शत्रु न बनाया जाये। इस प्रकार का कार्य संभव नहीं है मगर यह कि इंसान यह सोच ले कि उसे मित्थाचारपूर्ण व्यवहार करना है। क्योंकि अगर इंसान अपने जीवन में किसी लक्ष्य को सही समझता है तो उसे प्राप्त करने का प्रयास करता है। अंततः वह लक्ष्य अधिक चाह रखने वाले कुछ व्यक्तियों के हितों से अवश्य मेल नहीं खायेगा और उससे टकरायेगा।

कुछ ईसाईयों और हिन्दुओं का दावा है कि पूरिपूर्ण व्यक्ति के पास केवल प्रेम होता है परंतु हक व सत्य को ध्यान में रखे बिना दूसरों से प्रेम करना काफी नहीं है। लोगों से दोस्ती और उनसे प्रेम इस्लाम में सामाजिक संबंध का आधार है। वास्तव में ईश्वर के बंदों से दोस्ती और उनसे प्रेम ईश्वरीय प्रेम के परिप्रेक्ष्य में है और इस्लाम यह नहीं चाहता है कि जैसे भी हो हर इंसान से प्रेम किया जाये। प्रेम का वास्तविक लक्ष्य दूसरों के साथ भलाई करना है। यह भलाई संभव है कि कभी सामने वाला पक्ष इस पर राज़ी हो और कभी राज़ी न हो। जैसाकि पैग़म्बर और ईश्वरीय दूत केवल लोगों की भलाई चाहते थे फिर भी बहुत से लोग उनके शत्रु थे। इस आधार पर इस्लाम में केवल दूसरों के ध्यान को आकर्षित करना लक्ष्य नहीं है बल्कि हक़ व सत्य को दृष्टि में रखकर दूसरों से प्रेम करना चाहिये और सत्य पहचाना नहीं जायेगा मगर यह कि इंसान अपनी बुद्धि और पवित्र प्रवृत्ति के साथ ईश्वर से सहायता भी मांगे।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम वह महान हस्ती हैं जो लोगों से बहुत प्रेम करते थे। दूसरे शब्दों में उनका पूरा ईश्वरीय अस्तित्व लोगों के प्रेम से ओत- प्रोत था।

रात के अंधरे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम आटा और खाने पीने की दूसरी वस्तुओं को अपने कांधों पर रखकर अनाथ, निर्धन और आवश्यकता रखने वालों के घरों पर पहुंचाते थे जबकि वह स्वयं भूखे होते थे।

जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम की विदित खिलाफत थी उस समय जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम किसी अनाथ को देखते थे तो उसे इतना प्यार करते थे कि देखने वाले तमन्ना करते थे कि काश वे भी अनाथ होते तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम के इस प्रकार के प्यार का पात्र बनते और हज़रत अली उनके सिर पर अपना पावन हाथ रखते।

इतिहास में आया है कि युद्ध में शहीद होने वाले एक व्यक्ति की एक विधवा महिला थी और उसके कई बच्चे थे जो बाप के शहीद हो जाने के कारण अनाथ हो गये थे। कठिनाइ भरा जीवन व्यतीत कर रहे थे। जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम को उनके जीवन के बारे में ज्ञात हुआ तो बहुत दुखी हुए और व्यक्तिगत रूप से खाने पीने की वस्तुओं को लेकर उसके दरवाज़े पर पहुंचे और एक अनजान व्यक्ति के रूप में उस महिला के परिवार की सहायता की। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कुछ मांस भूना और उसे अपने पावन हाथों से अनाथ बच्चों को खिलाया। हर बार जब अनाथ बच्चों के मुंह में नेवाला डालते थे तो कहते थे कि हे मेरे बच्चों अली को माफ कर दो। उसके बाद रोटी पकाने के लिए तन्नूर जलाया और अपने पावन चेहरे को आग की लपटों के सामने किया और कहा यह उस व्यक्ति की सज़ा है जो अनाथों से निश्चेत रहा! हज़रत अली अलैहिस्सलाम का यह व्यवहार इस बात का सूचक है कि वह ईश्वर के बंदों और अनाथों से बहुत प्रेम करते थे।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम युद्ध में भी शत्रुओं के साथ न्याय व प्रेम से पेश आते थे और जहां तक संभव हो सकता था उन्हें समझाने बुझाने का प्रयास करते थे और जब कोई विकल्प नहीं बचता था तब उनसे युद्ध करते थे। जब युद्ध समाप्त हो जाता था तब हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते थे कि जो लोग युद्ध से भाग गये हैं उनका पीछा न किया जाये। जो युद्ध में घायल हो गये हैं उन्हें किसी प्रकार का कष्ट न पहुंचाया जाये और किसी भी बंधक की हत्या नहीं की जायेगी और जिसने अपना हथियार ज़मीन पर रख दिया है वह सुरक्षित है। यह वही पैग़म्बरे इस्लाम की शैली थी जिसे उन्होंने मक्के पर विजय के समय अपनाई थी।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की महानता इस सीमा तक थी कि जब शहादत के बिस्तर पर थे उस समय अपने क्रूर हत्यारे के बारे में अपने जेष्ठ सुपुत्र इमाम हसन से कहते हैं बेटा हसन मेरे हत्यारे से प्रेमपूर्ण व्यवहार करना वह तुम्हारा बंदी है उस पर दया करना और उसके साथ भलाई करना। उस हक़ व अधिकार की कसम जो मैं तुम्हारे ऊपर रखता हूं जो चीज़ तुम खाना वही चीज़ इसे खाने के लिए देना और जो चीज़ पीना इसे भी वही चीज़ पीलाना। उसके हाथ पैर को मत बांधना। अगर मैं दुनिया से चला गया तो उस पर केवल एक वार करना क्योंकि उसने मुझ पर एक ही वार किया था।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम समस्त आयामों से एक परिपूर्ण व्यक्ति थे। यह बात सही है कि इंसान उच्च मानवीय विशेषताओं को दोस्त रखता है परंतु अगर हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अंदर समस्त मानवीय विशेषताएं होतीं और उनमें ईश्वरीय रंग न होता तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम कभी भी लोगों व अनाथों से इतना प्रेम न करते। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस दृष्टि से प्रेम के पात्र हैं क्योंकि उनके प्रेम का स्रोत ईश्वरीय प्रेम है यानी उनका प्रेम ईश्वरीय प्रेम से जुड़ा हुआ है और लोगों के दिल हज़रत अली अलैहिस्सलाम को ईश्वरीय विशेषताओं का प्रतीक पाते हैं इसलिए उनसे प्रेम करते हैं।

ईरानी बुद्धिजीवी और विचारक शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी लिखते हैं” जिस तरह अली के आकर्षण हमारे लिए शिक्षाप्रद हैं उसी तरह उनके विकर्षण भी हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम दो वर्ग के लोगों को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे। एक चतुर मिथ्याचारी और दूसरे मूर्ख उपासक।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम इतने अधिक दयालु होने के बावजूद जब कहीं ईश्वरीय धर्म की बात आ जाती थी तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम के क्रोध से कोई अत्याचारी सुरक्षित नहीं रहता था। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ईश्वर के मार्ग में शत्रुता से नहीं डरते थे और सचमुच ईश्वर के उस वचन के जीवंत उदाहरण थे जिसमें महान ईश्वर कहता है ”मोमिन ईश्वर के मार्ग में प्रयास करते हैं और आलोचना करने वालों की आलोचना से नहीं डरते”

यह वह चीज है जिससे कुछ लोग शत्रु बनते हैं और इससे लालची लोगों को कष्ट पहुंचता है। उस्ताद शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी कहते हैं” हज़रत अली ने अपनी खिलाफत के दौरान तीन प्रकार के लोगों को अपने आप से दूर कर दिया और उन लोगों से युद्ध किया। प्रथम दुनिया परस्त लोगों से और वे लोग राजकोष के बंटवारे में हज़रत अली के न्याय को पसंद नहीं करते थे और दूसरे उन लोगों का गुट है जो विदित में अच्छे थे परंतु उनका भीतर खराब था और वे मिथ्याचार की आड़ में सत्ता की  बागड़ोर संभालना और ईश्वरीय धर्म में हेरा- फेरी करने के प्रयास में थे। तीसरे उन लोगों का गुट है जिनसे युद्ध करना हज़रत अली अलैहिस्सलाम का गर्व समझा जाता है। यह अज्ञानी उपासकों का गुट था जो अपनी मूर्खता से ईश्वरीय धर्म को क्षति पहुंचा रहा था परंतु अपनी अज्ञानता के कारण यह लोग यह समझ रहे थे कि वह लोग धर्म की ऊंचाई और उसके हित के लिए काम कर रहे हैं। यह एसा गुट था जो किसी न किसी बहाने से दूसरे मुसलमानों को नास्तिक कहता था और उनके खून बहाने को वैध समझता था। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इसकी उपमा पागल कुत्ते की बीमारी से देते हैं कि अगर समय पर बीमार जानवर की हत्या न कर दी जाये तो यह बीमारी तेज़ी से फैलेगी। अगर हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बहादुरी , साहस और दूरगामी सोच न होती तो इस खतरे को इस्लाम से कौन समाप्त व दूर कर पाता? हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इन तीनों गुटों के मुकाबले में किसी प्रकार के संकोच से काम नहीं लिया और उन सबका मुकाबला किया। राजकोष के बटवारे में अरब गैर अरब और काले गोरे में कोई अंतर नहीं किया। मित्थाचारियों को अपमानित किया और अंततः इनमें से हर एक ने जब हक व सत्य के विरुद्ध तलवार उठायी तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने भी किसी प्रकार के संकोच के बिना उनका मुकाबला किया और न्याय की पताका लहराई।

शत्रुओं के बहुत अधिक प्रयास के बावजूद 14 शताब्दियां बीत जाने के बाद भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम का प्रेम सत्य व न्याय की खोज करने वालों के दिलों में ठाठें मार रहा है। ईरानी बुद्धिजीवी शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी कहते हैं इंसान को अच्छे लोगों के प्रेमरूपी रामबाण की अत्यंत आवश्यकता है ताकि यह प्रेम अच्छे लोगों की अच्छाइयों को अपने प्रेमियों के अस्तित्व में जीवित करें और उन्हें परिपूर्णता से निकट कर दें। अकारण नहीं है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी पैग़म्बरी और लोगों के मार्गदर्शन की क़ीमत अपने पवित्र परिजनों से प्रेम को बताया है ताकि इस मार्ग से उनके अनुसरणकर्ताओं व अनुयाइयों की पूरिपूर्णता का मार्ग प्रशस्त हो सके।

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