धर्म और भाग्य

धर्म और भाग्य

मनुष्य का भाग्य या क़िस्मत उन विषयों में से है जिनका सही चित्र बहुत कम लोगों के मन में होगा। भाग्य के बारे में बहुत से प्रश्न उठते हैं।

सब से पहले तो यह कि भाग्य है क्या? भाग्य के बारे में यदि आम लोगों से पूछा जाए कि वह क्या है तो वह यही कहेंगे कि भाग्य ईश्वर द्वारा निर्धारित होता है और जिसके भाग्य में जो लिखा होता है वही होता है और मनुष्य कुछ नहीं कर सकता यह वास्तव में उसी विचारधारा का क्रम है जिसमें कहा जाता है कि मनुष्य में स्वतंत्र इरादा नहीं होता।

वास्तव में यदि हम इसी अर्थ में भाग्य को मान लें तो फिर कर्म व प्रतिफल की पूरी व्यवस्था बाधित हो जाएगी। अर्थात यदि हर व्यक्ति के साथ वही होता है जो उसके भाग्य में है तो फिर उसका अपना अधिकार समाप्त हो जाएगा और वह कठपुतली की भांति हो जाएगा। उदाहरण स्वरूप यदि किसी व्यक्ति के घर में चोरी हो जाती है तो वह कहता है कि क्या करें भाग्य में यही लिखा था तो यदि चोर पकड़ा जाए और उसे चोरी पर दंड दिया जाने लगे तो वह यह कह सकता है कि इसमें मेरा क्या दोष है? इसके भाग में लिखा था कि इसके घर में चोरी हो और मेरे भाग्य में लिखा था कि मैं इसके घर में चोरी करूं तो मैंने तो वही किया जिसे ईश्वर ने हम दोनों के भाग्य में लिखा था तो इस पर मुझे दंड क्यों दिया जाए? या इसी प्रकार हम देखते हैं कि इस संसार में कोई धनी होता है और कोई निर्धन, किसी के पास इतना धन होता है कि वह अपने कपड़ों और जूते- चप्पल पर लाखों रूपये ख़र्च करता है और किसी के पास खाने के लिए दो समय की रोटी नहीं होती और वह कुछ हज़ार रूपये के लिए आत्म हत्या करने पर विवश हो जाता है।

तो क्या यहां यह कहा जा सकता है कि धनवान व्यक्ति के भाग्य में धन लिखा था इस लिए वह धनवान है और निर्धन के

नई टिप्पणी जोड़ें