ग़ज़्ज़ा में इस्राईली अपराधों पर पर्दा डालने की कोशिश
ग़ज़्ज़ा में इस्राईली अपराधों पर पर्दा डालने की कोशिश
वर्तमान समय में ज़ायोनी शासन ग़ज़्ज़ा पर आक्रमण करके भीषण संकट में ग्रस्त है किन्तु इस शासन के अधिकारी अपने अपराधों पर झूठ और विश्व जनमत को धोखा देकर पर्दा डालने की चेष्टा में हैं।
इस परिप्रेक्ष्य में संयुक्त राष्ट्र संघ में इस्राईल के प्रतिनिधि ने ग़ज़्ज़ा के बारे में सुरक्षा परिषद की बैठक में दावा किया कि ईरान, हमास की वित्तीय और सामरिक सहायता कर रहा है। उन्होंने दावा किया कि ग़ज़्ज़ा से फ़ायर होने वाले हर राकेट पर तेहरान की अंगूली के निशान हैं।ज़ायोनी शासन के प्रतिनिधि रान प्रोसोर ने इस बैठक में जनमत को धोखा देते हुए अलक़ायदा, आईएसआईएल और बोको हराम जैसे गुटों के जो इस्लाम की वास्तविक छवि को ख़राब कर रहे हैं, क्रियाकलापों की ओर संकेत करते हुए वास्तविकता से परे दावे किये।
इस्राईल के इस अधिकारी ने फ़िलिस्तीन के प्रतिरोध आंदोलन हमास को आतंकवादी और इस्लामवादी संगठन बताया और दावा कि इस्राईल अपने मूल्यों की रक्षा के लिए युद्ध कर रहा है। उनके झूठ का पुलिंदा इतना बढ़ गया कि उन्होंने इस्राईल को मध्यपूर्व का एकमात्र लोकतात्रिक शासन बताया।
ग़ज़्ज़ा पर इस्राईल के पाश्विक हमलों में अब तक एक हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं जिनमें निर्दोष महिलाओं और बच्चों की एक बड़ी संख्य है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने घोषणा की है कि इन हमलों में 77 प्रतिशत से अधिक महिलाएं, बच्चे और वृद्ध हैं। चिकित्सा सूत्रों ने भी पुष्टि की है कि इस्राईल ने ग़ज़्ज़ा पर हमलों के दौरान अप्रचलित हथियारों का धड़्ल्ले से प्रयोग किया है। ज़ायोनी शासन फ़िलिस्तीन की निहत्थी जनता के जनसंहार को अपनी रक्षा बताता है और अमरीकियों ने भी उनके हमलों समर्थन किया है।
ग़ज़्ज़ा युद्ध ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि इस्राईल किसी भी अंतर्राष्ट्रीय क़ानून पर प्रतिबद्ध नहीं है और उसकी नज़र में निहत्थे लोगों की जानों की कोई क़ीमत नहीं है और इस विषय ने क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस्राईल को भीषण समस्या में ग्रस्त कर दिया है।
निसंदेह यदि इस्राईल को अमरीका और विश्व समुदाय का अर्थपूर्ण मौन न होता तो कदापि उसमें इन पाश्विक हमलों का साहस ही पैदा न होता और ग़ज़्ज़ा की वर्तमान स्थिति को अपने हिसाब से बयान न करता ताकि अपने अपराधों पर पर्दा डाल सके और उसमें कदापि इसका साहस न होता कि ईरान द्वारा फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के समर्थन को ग़ज़्ज़ा त्रासदी का ज़िम्मेदार बताये।
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