रमज़ान आत्मा को पवित्र करने का महीना
रमज़ान आत्मा को पवित्र करने का महीना
रमज़ान के पवित्र महीने में ईश्वर अपने बंदों या दासों को यह अवसर प्रदान करता है कि वे जीवन को एक अन्य आयाम से भी देखें। ईश्वर चाहता है कि उसके दास स्वयं को पापों के भारी बोझ से मुक्त करा लें। स्वयं ईश्वर ने ही रमज़ान के महीने के प्रत्येक क्षण को उपासना करने और अपने पापों से प्रायश्चित करने के लिए विशेष किया है। पवित्र रमज़ान के आगमन से पूर्व पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने इसका महत्व कुछ इस प्रकार से बताया है।
हे लोगो! ईश्वर का महीना अनुकंपाओं, विभूतियों और क्षमा के साथ आपकी ओर आ रहा है। यह महीना ईश्वर के निकट वर्ष के समस्त महीनों में सर्वश्रेष्ठ है। इस महीने का एक-एक क्षण उत्तम एवं महत्वपूर्ण है। यह एसा महीना है जिसमें आपको ईश्वरीय आतिथ्य का निमंत्रण दिया गया है। इस महीने में आपके कर्म स्वीकार किये जाएंगे और आपकी दुआएं सुनी जाएंगी। इस महीने में ग़रीबों और निर्धनों की सहायता कीजिए, बेसहारा लोगों का सहारा बनिए, बड़े-बूढ़ों का सम्मान कीजिए, छोटों के प्रति स्नेह व्यक्त कीजिए, परिजनों और संबन्धियों के साथ मेल-मिलाप रखिये उनके साथ संपर्क बनाए रखिए। इसमें तुम्हारी नींद उपासना समान और तुम्हारी सासें ईश्वरीय गुणगान में गिनी जाएंगी। अपनी ज़बान को अनुचित बातों, और आंखों को अनुचित दृष्यों तथा वर्जित वस्तुओं से रोकिए। इसी प्रकार से आप अपने कानों को बुरी बातें सुनने से भी रोकिए। इस महीने में स्वर्ग के दरवाज़ें खोल दिये जाते हैं और नरक के द्वार बंद कर दिये जाते हैं। ईश्वर से प्रार्थना करने का यह सर्वोत्तम महीना है। एक अन्य स्थान पर पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं कि जो भी व्यक्ति इस महीने के महत्व को समझ जाए तो फिर उसकी इच्छा यह होगी कि पूरे वर्ष रमज़ान रहे।
रोज़ेदारों के लिए रमज़ान का महीना, अनेक कोमल और सूक्षम बिंदु अपने भीतर लिए होता है। यह एसा महीना है जो आत्मा की बुराइयों को घो डालता है और मनुष्य के अन्तर्मन को शुद्ध कर देता है। यह महीना उन लोगों के लिए बहुत अच्छा अवसर है जो भौतिकवाद में घिरे हुए हैं और उससे मुक्ति चाहते हैं। वे लोग जो आध्यात्मिक परिपूर्णता के मार्ग पर बढ़ना चाहते हैं उनके लिए भी रमज़ान का महीना एक वरदान समान है। पवित्र रमज़ान में आंतरिक सुधार और ईश्वर से निकटता का अवसर सभी के लिए उपलब्ध है। विदित रूप से तो रोज़ा एक उपासना है किंतु वास्तव में यह मनुष्य को सुधारने का सबसे अच्छा माध्यम है।
रोज़ा रखने के दौरान एक निर्धारित समय के लिए खाने और पीने पर प्रतिबंध होता है अर्थात रोज़े के दौरान मनुष्य को खाने-पीने से रोका गया है। यहां पर प्रश्न यह उठता है कि रोज़े के दौरान क्या केवल खाने-पीने से रुकना ही पर्याप्त है। इसके उत्तर में कहा जा सकता है कि रोज़े में न केवल खाने-पीने से रुकना चाहिए बल्कि हर प्रकार की बुरी बात से स्वयं को रोकना चाहिए। रोज़ा रखने वाले को यह प्रण करना चाहिए कि वह कोई भी पाप नहीं करेगा।
मनुष्य अपने शरीर के सभी अंगों को जबतक पापों से नहीं बचाएगा तबतक वह सफल रोज़ा नही रख सकता। अर्थात सफल रोज़ा रखने के लिए समस्त पापों से दूरी अनिवार्य है। रोज़ा रखने की स्थिति में यदि मनुष्य पाप भी करता है तो वह इस प्रकार है जैसे वह सुबह से रात तक भूखा रहा। एसे व्यक्ति को रोज़े का कोई भी आध्यात्मिक लाभ नहीं मिल पाएगा। इसके विपरीत मनुष्य यदि रोज़े के दौरान स्वयं को पापों से बचाता है तो फिर उसके भीतर पापों से बचने की शक्ति पैदा होती है। यह शक्ति जब संकल्प के रूप में उसके अस्तित्व में विराजमान हो जाती है तो मनुष्य फिर अपने जीवन के अन्य क्षणों में भी पाप नहीं करता क्योंकि यह विशेषता अब उसकी आदत बन जाती है।
रोज़े रखकर रोज़ेदार यह सीख लेता है कि वह किस प्रकार से ईश्वरीय मार्ग पर आगे बढ़े तथा रास्तें में आने वाले गतिरोधों को किस प्रकार से पार करे। रोज़ा रखने से यह भी ज्ञात होता है कि भूख और प्यास सहन करके और भौतिक आनंदों से दूर रहते हुए आत्मशक्ति या इच्छा शक्ति को प्रबल बनाया जा सकता है। इस प्रकार से मनुष्य अपने भीतर निहित क्षमताओं को उजागर करके उनसे लाभ उठा सकता है। एसे में यह कहा जा सकता है कि रोज़े का सार यह है कि इसके माध्यम से आत्म प्रशिक्षण की भूमि प्रशस्त की जाए ताकि मनुष्य शारीरिक बंधनों से मुक्ति पाकर परिपूर्णता के मार्ग पर बढ़ता रहे।
पवित्र क़ुरआन कहता है कि रोज़ा रखकर मनुष्य तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय प्राप्त कर सकता है। सूरए बक़रा की आयत संख्या 183 में ईश्वर कहता है कि हे ईमान लाने वालो! रोज़ा तुम्हारे लिए अनिवार्य किया गया है ताकि शायद तुम ईश्वरीय भय प्राप्त कर सको। पवित्र क़ुरआन तक़वे या ईश्वरीय भय को रोज़े का महत्वपूर्ण फल मानता है। ईश्वरीय भय, हर प्रकार के पापों से दूरी और आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण का कारण बनता है। तक़वा एसा दीपक है जो मनुष्य को सीधा रास्ता भी दिखाता है और उसपर चलने का संकल्प भी उसके मन में उत्पन्न कराता है। पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं कि तक़वा या ईश्वरीय भय, समस्त भले कार्यों का स्रोत है। महापुरुष इसे आध्यात्मिक परिपूर्णता की सीढ़ी मानते हैं।
रोज़ा रखने वाला व्यक्ति ईश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए एक महीने तक निरंतर निर्धारित समय तक खाने पीन से स्वयं को वंचित कर लेता है। एसे में वह धीरे-धीरे स्वयं पर नियंत्रण करना सीख जाता है। वह अनियंत्रित इच्छाओं पर सरलता से नियंत्रण प्राप्त करने की शक्ति हासिल कर लेता है। क्योंकि रोज़े के माध्यम से मनुष्य स्वयं पर नियंत्रण प्राप्त करने में सफल हो जाता है अतः रोज़ा अपने भीतर ईश्वर का भय उत्पन्न करने जैसी महान विशेषता को प्राप्त करने का सबसे अच्छा माध्यम है।
रोज़े का सबसे बड़ा लाभ यह है कि वह मनुष्य के संकल्प को दृढ़ करता है। जो व्यक्ति रोज़े के दौरान लंबे समय तक अर्थात एक महीने तक स्वंय को वैध आनंदों से दूर रखता है महीने भर बाद उसका संकल्प वास्तव में बहुत दृढ़ हो जाता है। एसा व्यक्ति अब रमज़ान के बाद भी स्वयं को पापों से बहुत ही सरलता से बचा सकता है और शैतान के षडयंत्रों से अपनेआप को किसी सीमा तक सुरक्षित रख सकता है।
रोज़े का एक अन्य लाभ यह है कि जब मनुष्य रमज़ान में भूखा रहता है तो उसे भूख का वास्तविक आभास होता है। एसे में वह भूखे लोगों के दुखदर्द को समझ सकता है औ उनकी समस्या के समाधान का रास्ता ढूंढ सकता है। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा है कि रमज़ान के दौरान मनुष्य को निर्धरों और वंचितों का पूरा ध्यान रखना चाहिए। रोज़ेदार को उनकी यथासंभव सहायता करनी चाहिए। उसे यह सोचना चाहिए कि मैं तो केवल सुबह से शाम तक जब भूखा रहता हूं तो मेरा क्या हाल होता है एसे में उन दरिद्रो, निर्धनों और वंचितों का क्या हाल होगा जो अधिकांश समय भूखे रहते हैं। वैसे भी हमें हर स्थिति में अपने मुसलमान भाइयों का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि यह हमारा धार्मिक दायित्व है।
रमज़ान में क्षमा मांगने और प्रायश्चित करने पर विशेष बल दिया गया है। ईश्वर ने स्वयं अपने दासों को इस महीने में प्रायश्चित करने के लिए प्रेरित किया है। बहुत से धर्मगुरूओं का कहना है कि रमज़ान में ईश्वर ने लोगों से प्रायश्चित करने के लिए जितना कहा है वैसा वर्ष के किसी अन्य महीने में नहीं किया है।
पवित्र महीने रमज़ान के महत्व पर प्रकाश डालते हुए पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि रमज़ान से अधिक से अधिक लाभान्वित होने का प्रयास करो। पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं कि वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है वह व्यक्ति जो रमज़ान के महीने में ईश्वर की क्षमा से वंचित रह जाए। एक अन्य स्थान पर वे कहते हैं कि जिस व्यक्ति को रमज़ान के महीने में माफ़ नहीं किया गया तो फिर उसे कब माफ़ किया जाएगा?
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