इमाम हसन अलैहिस्सलाम की विलादत
इमाम हसन अलैहिस्सलाम की विलादत
आज ही के दिन तीन हिजरी क़मरी को हज़रत फ़ातेमा ज़हरा व हज़रत अली अलैहस्सलाम के घर में एक सूर्य का उदय हुआ। जी हां यह बच्चा विश्व में दानशीलता का प्रतीक बना और कैलेंडरों में उसके शुभ जन्म दिवस को वंचितों को खाना खिलाने और उनकी मदद करने का दिवस घोषित किया गया। जिस समय इमाम हसन अलैहिस्सलाम के जन्म की शुभ सूचना पैग़म्बरे इस्लाम को पहुंची तो आप के चेहरे से ख़ुशी झलकने लगी। लोग ख़ुश़ ख़ुश आते और पैग़म्बरे इस्लाम, हज़रत अली व हज़रत फ़ातेमा ज़हरा को बधाई देते। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही वसल्लम ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम के दाहिने कान में अज़ान और बाएं कान में एक़ामत कही। एक़ामत अज़ान के बाद और नमाज़ शुरु करने से पहले कही जाती है।
पैग़म्बरे इस्लाम ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम के जन्म दिवस के सातवें दिन एक भेड़ की क़ुर्बानी की और उसके मांस को ज़रूरतमंदों के बीच बांट दिया। इस अनुष्ठान को अक़ीक़ा कहते हैं। उसी समय से मुसलमानों में अक़ीक़े का चलन शुरु हुआ। जी हां इस बच्चे के जन्म से वंचितों व ज़रूरतमंदों की मदद का एक द्वार खुल गया।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के बड़े नाति थे और दूसरों से सदाचारिता में उनकी श्रेष्ठता बिल्कुल स्पष्ट थी। पापों से दूरी ,ज्ञान, और नैतिकता में वह अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम जैसे थे। जिस प्रकार इमाम हसन अलैहिस्सलाम का आचरण सुदंर था उसी प्रकार वह स्वयं भी बहुत सुदंर थे। ईश्वर के आदेश पर पैग़म्बरे इस्लाम ने उनका नाम हसन रखा था। इमाम हसन की उपासना, विनम्रता, वीरता, सदाचारिता, दानशीलता व क्षमाशीलता की चर्चा लोगों में आम थी। पैग़म्बरे इस्लाम इमाम हसन अलैहिस्सलाम को बहुत चाहते थे। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम का एक कथन है, “ हे प्रभु मैं हसन से स्नेह रखता हूं तू भी उससे स्नेह कर। जो हसन से स्नेह रखता है ईश्वर उनसे स्नेह रखता है।”
इमाम हसन अलैहिस्सलाम की एक विशेषता, जो उनके श्रद्धालुओं के लिए बेहतरीन आदर्श है, दूसरों की मदद करना और दानशीलता है। इमाम हसन अलैहिस्सलाम विभिन्न बहानों से सबको अपनी दानशीलता से नवाज़ते थे और इतना दान देते कि व्यक्ति की ज़रूरत ख़त्म हो जाती थी। इतिहास में मिलता है कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने दो बार अपनी पूरी धन-संपत्ति और तीन बार अपनी आधी धन-संपत्ति ईश्वर के नाम पर लोगों मे बांट दी।
इस्लामी इतिहास में है कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम कभी भी किसी मदद मांगने वाले को ख़ाली हाथ नहीं लौटाते थे। जब इमाम हसन अलैहिस्सलाम से किसी ने पूछा, “ ऐसा क्यों है कि आप कभी किसी निर्धन को ख़ाली हाथ नहीं लौटाते?” इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने उत्तर दिया, “ मैं ईश्वर से मांगता हूं और उसकी ओर से जवाब की आशा रखता हूं। मुझे शर्म आती है कि मैं ख़ुद मांगने वाला होकर, मांगने वाले के निवेदन को रद्द कर दूं। ईश्वर मुझ पर अपनी अनुकंपाएं भेजता है और मैं उसके बंदों की ज़रूरतों पर ध्यान देता हूं और उसकी अनुकंपाएं उन्हें देता हूं।” उसके बाद इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा, “ जिस समय कोई ज़रूरतमंद मेरे पास आता है तो उससे कहता हूं, तुम्हारा स्वागत है कि तुमने मुझे भलाई करने का अवसर दिया। एक पुरुष के लिए सबसे अच्छा दिन वह है जब उससे कोई मदद मांगे।”
प्रसिद्ध धर्मगुरु ज़मख़्शरी ने अनस बिन मालिक के हवाले से वर्णन किया है, कि मैं हसन बिन अली की सेवा में था कि एक छोटी दासी हाथ में फूल लिए आयी और उसने उन्हें उपहार दिया। हसन बिन अली ने उससे कहा, “ तुझे ईश्वर के मार्ग में स्वतंत्र कर दिया।” अनस ने जब यह देखा तो उन्होंने इमाम हसन अलैहिस्सलाम से कहा, एक छोटी दासी ने उपहार के रूप में एक मूल्यहीन फूल दिया और आपने उसे स्वतंत्र कर दिया?” इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने उत्तर दिया, “ ईश्वर ने इस प्रकार हमारा प्रशिक्षण किया है जैसा कि उसने कहा है, जब कोई तुम्हें सलाम करे तो तुम उसका उत्तर उससे बेहतर दो। इस दासी के सलाम का बेहतर जवाब उसकी आज़ादी है।”
इसी प्रकार इस्लामी इतिहास में आया है कि एक दिन तत्कालीन ख़लीफ़ा हज़रत उस्मान मस्जिद में बैठे थे। एक निर्धन व्यक्ति ने उनसे मदद मांगी। हज़रत उस्मान ने उसे मदद के तौर पर पांच दिरहम दिए। उस निर्धन व्यक्ति ने हज़रत उस्मान से कहा कि मुझे ऐसे व्यक्ति का पता बताइये जो ज़्यादा मदद कर सके। हज़रत उस्मान ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ओर इशारा किया। वह निर्धन व्यक्ति उनके पास पहुंचा और मदद का निवेदन किया। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा, “ किसी से मदद मांगना तीन अवस्था के अलावा सही नहीं है। किसी व्यक्ति पर कोई हर्जाना हो जिसे वह अदा न कर सकता हो, कमर तोड़ने वाला कर्ज़ हो, जिसे अदा न कर सकता हो या निर्धन व असहाय हो जाए कि समस्या को हल न कर पा रहा हो।” तुम इन तीन में किस श्रेणी में आते हो। उस निर्धन व्यक्ति ने कहा कि मैं इन्हीं तीन में से एक में फसा हुआ हूं। यह सुनते ही इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने उसे पचास दीनार दिए और उनके सम्मान में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उसे उनचास दीनार दिए।
वह निर्धन व्यक्ति लौटते समय हज़रत उस्मान के पास से गुज़रा तो हज़रत उस्मान ने उससे पूछा कि क्या हुआ। उसने जवाब दिया कि आपने मदद की मगर यह नहीं पूछा कि मुझे पैसे किस लिए चाहिए। हसन बिन अली ने मुझसे पैसे के ख़र्च के बारे में पूछा और मुझे पचास दीनार दिए। हज़रत उस्मान ने कहा, “ यह परिवार ज्ञान और बुद्धिमत्ता का केन्द्र और भलाई का स्रोत है। उनके जैसा कौन हो सकता है।”
इमाम हसन अलैहिस्सलाम की दानशीलता से जुड़ी दो आदतें बहुत प्रसिद हैं एक तो यह कि जब इमाम हसन अलैहिस्सलाम किसी की मदद करते और जब मदद पाने वाला उनकी तारीफ़ करता था तो आप कहते थे, “ निवेदक की महिमा ज़्यादा है कि उसने हमें ईश्वर के मार्ग में भलाई करने के योग्य समझा।”
इसी प्रकार इमाम हसन अलैहिस्सलाम की एक और विशेषता यह थी कि वह किसी ज़रूरतमंद के निवेदन करने से पहले ही उसकी ज़रूरत को दूर करने की कोशिश करते थे। इमाम हसन अलैहिस्सलाम कहते थे, “ वास्तव में दानशीलता वही है जो बिना मांगे की जाए।”
एक दिन एक बददू अरब इमाम हसन अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंचा। इससे पहले कि वह इमाम से कुछ कहता इमाम ने आदेश दिया कि जो कुछ तिजोरी में है उसे दे दिया जाए। जब तिजोरी देखी गयी तो उसमें से बीस हज़ार दिरहम निकले। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने सारे पैसे उस निर्धन बददू अरब को दे दिए। निर्धन बददू ने जो इमाम हसन अलैहिस्सलाम के इस व्यवहार से आश्चर्य में था, कहा, मेरे स्वामी आपने मुझे इस बात का भी अवसर न दिया कि मैं अपनी ज़रूरत आपसे कहता। यह सुनते ही इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा, “ हम ऐसे लोग हैं जो तुरंत दान करते हैं।”
इस्लाम और पवित्र क़ुरआन में दान-दक्षिणा पर बहुत बल दिया गया है और दानियों को बहुत बड़े पारितोषिक की शुभसूचना दी गयी है। पवित्र क़ुरआन की नज़र में इस्लामी समाज के सदस्यों का महत्वपूर्ण कर्तव्य वंचितों की सहायता करना बताया गया है। इस प्रकार से कि हर व्यक्ति को उसकी क्षमता भर ज़रूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। ईश्वर बक़रह नामक सूरे की 274 वीं आयत में दान-दक्षिणा करने वालों को मिलने वाले पारितोषिक के बारे में कहता है, “ जो लोग अपने धन में से दिन और रात को छिप कर और सबके सामने दान करते हैं, उनका पारितोषिक ईश्वर के पास है। न उन्हें किसी चीज़ का भय होगा और न वे दुखी होंगे।”
इमाम हसन अलैहिस्सलाम दीन-दुखियों की सहायता करने में अपने समय में सबसे आगे रहते थे। वे वंचितों के लिए आशा की किरण थे। कोई भी परेशान व्यक्ति नहीं था कि अपना दर्दे दिल इमाम हसन से बयान करे और इमाम उसकी सहायता न करें। बल्कि इससे पहले कि किसी ज़रूरतमंद का सिर अपनी ज़रूरत का उल्लेख करने के कारण शर्म से झुक जाए, इमाम हसन उसके कहने से पहले उसकी मदद करते थे। यही कारण था कि कोई भी उनके द्वार से ख़ाली हाथ नहीं लौटता था।
सलाम हो आप पर हे इमाम हसन! सलाम हो आप पर हे दानियों के अगुवा, पैग़म्बरे इस्लाम के नाति। सलाम हो आप पर कि आपने ईश्वर की ओर से मिलने वाले दायित्व को भलिभांति निभाया। सलाम हो आप पर कि आज भी मदीने की गलियां आपकी दानशीलता को याद करती हैं। जब भी सुंदरता, मेहरबानी, विनम्रता और दानशीलता की बात आती है तो सबसे पहले आपका नाम ज़बान पर आता है।
नई टिप्पणी जोड़ें