क़ुरआन पढ़ने का सही तरीक़ा

क़ुरआन पढ़ने का सही तरीक़ा

चिंतन मनन के साथ क़ुरआन की तिलावतः साथियो, प्रयास करें कि हर समय विशेषकर रमज़ान के पवित्र महीने में, क़ुरआन की तिलावत न भूलें, क़ुरआन आपके जीवन से समाप्त नहीं होना चाहिए। क़ुरआन की तिलावत अवश्य किया करें, जितना भी संभव हो चिंतन मनन के साथ क़ुरआन की तिलावत करें क्योंकि चिंतन मनन के साथ क़ुरआन की तिलावत अधिक प्रभावी होती है। जल्दी जल्दी तिलावत करना अर्थात मनुष्य केवल तिलावत करे और उस आयत के अर्थ को न समझे, क़ुरआन की तिलावत का लक्ष्य नहीं है। यह नहीं है कि इसका कोई लाभ नहीं है, यही कि मनुष्य यह समझता है कि यह ईश्वरीय वाणी है, स्वयं यही बात एक रिश्ते को एक संबंध को बयान कर रही है, यही बेहतर है और किसी को इस प्रकार क़ुरआन पढ़ने से नहीं रोकना चाहिए किन्तु इस प्रकार क़ुरआन की तिलावत पसंदीदा नहीं है।

पसंदीदा क़ुरआन की तिलावत वह है कि चिंतन मनन के साथ उसकी तिलावत करे और ईश्वरीय शब्दों को समझने का प्रयास करे कि हमारी नज़र में उसको समझा जा सकता है। यदि मनुष्य अरबी व्याकरण को समझता है और वह शब्द जिनको नहीं समझ पाता उनके लिए अनुवाद देखें और उसी अनुवाद में चिंतन मनन करे। दो बार, तीन बार, पांच बार जब पढ़ लेगा तो वह व्यक्ति इस आयत के अर्थ को इतना अच्छे ढंग से समझ लेगा कि जो किसी और मार्ग से प्राप्त नहीं हो सकता। यह चीज़ अधिकतर चिंतन मनन से प्राप्त होती है, आप इसका अनुभव करके देख लें।

जब कोई व्यक्ति एक आयत की पहली बार तिलावत करता हो अर्थात एक साथ दस बार आयतों की तिलावत करता है तो एक विशेष प्रकार की भावना का आभास करता है और उस आयत का अर्थ समझने में ग़लती भी करता है। दूसरी बार, तीसरी बार, पांचवी बार, दसवीं बार जब उस आयत को ध्यानपूर्वक पढ़ता है तो उसकी दृष्टि परिवर्ति हो चुकी होती है अर्थात उसका विचार इस आयत के बारे में खुल जाता है, मनुष्य जितना चिंतन मनन करेगा उतना ही अधिक इन अर्थों को समझेगा।

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