नमाज़ हर इबादत के साथ

नमाज़ हर इबादत के साथ

नमाज़ का जिक्र रोज़ों के साथ

सूरए बक़रा की 45वी आयत मे इरशाद होता है कि नमाज़ और सब्र के ज़रिये मदद हासिल करो। तफ़सीरों मे सब्र से मुराद रोज़ों को लिया गया है।

नमाज़ का ज़िक्र ज़कात के साथ

जैसे कि सूरए तौबा की 71वी आयत मे ज़िक्र होता है कि वह लोग नमाज़ क़ाइम करते हैं और ज़कात देते हैं।

नमाज़ का ज़िक्र हज के साथ

जैसे कि सूरए बक़रा की 121 वी आयत मे इरशाद होता है कि मक़ामे इब्राहीम पर नमाज़ पढ़ो।(यानी हज के दौरान मुक़ामे इब्रहीम पर नमाज़ पढ़ो)

नमाज़ का ज़िक्र जिहाद के साथ

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने आशूर के दिन नमाज़ पढ़ी मुजाहिदों के सिफ़ात ब्यान करते हुए क़ुरआने करीम मे ज़िक्र हुआ कि वह हम्द और इबादत करने वाले हैं।

नमाज़ का ज़िक्र अम्रे बिल मारूफ़ के साथ

जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए लुक़मान की 17वी आयत मे इरशाद होता है कि जनाबे लुक़मान अलैहिस्सलाम अपने बेटे से कहते हैं कि ऐ बेटे नमाज़ क़ाइम करो और अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुनकर करो।(अच्छाइयों की तरफ़ बुलाओ और बुराईयों से रोको)

नमाज़ का ज़िक्र समाजी अदालत के साथ

जैसे कि सूरए आराफ़ की 29वी आयत मे ज़िक्र हुआ है कि ऐ मेरे रसूल कह दीजिए कि मुझको मेरे पालने वाले ने हुक्म दिया है कि अदालत क़ाइम करूँ। और तुम इबादत के वक़्त अपनी तवज्जुह को उसकी तरफ़ करो।

नमाज़ का ज़िक्र क़ुरआन की तिलावत के साथ

जैसे कि सूरए फ़ातिर की 29वी आयत मे ज़िक्र हुआ है कि वह किताब(क़ुरआन) की तिलावत करते हैं और नमाज़ क़ाइम करते हैं।

नमाज़ का ज़िक्र मशवरे के साथ

जैसे कि सूरए शूरा की 38वी आयत मे इरशाद होता है कि वह नमाज़ क़ाइम करते हैं और अपने कामों को मशवरे से अंजाम देते हैं।

नमाज़ का ज़िक्र कर्ज़ देने के साथ भी क़ुरआन मे हुआ है।

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