इबादत दवा है
इबादत दवा है
सलाम हो ईश्वर के मेहमानों पर या दूसरे शब्दों में सलाम हो रोज़ा रखने वालों पर जो अपनी ईमान की शक्ति और अनियंत्रित आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण करके स्वयं को बुराइयों से बचाते हैं। पवित्र रमज़ान एसा महीना है जो वर्ष के सभी महीनों से श्रेष्ठ है। इसकी महानता के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि पवित्र रमज़ान के आगमन की पूर्व संध्या को ही आकाश के दरवाज़े खुल जाते हैं और यह रमज़ान के अंत तक खुले रहते हैं। सौभाग्यशाली है वह व्यक्ति जो इस महीने से लाभ उठाते हुए अपने पापों का प्रायश्चित करे। इस महीने में मनुष्य को आत्म मंथन करते हुए आत्म निर्माण करना चाहिए।
आप जानते ही होंगे कि अधिकतर दवाइयां कड़वी होती हैं। हालांकि यही कड़वी दवा मनुष्य को बीमारी से मुक्ति दिलाती हैं। इसके लिए शर्त यह है कि दवा को बताई गई मात्रा में निर्धारित समय पर ही प्रयोग किया जाए। यदि इन शर्तों के साथ दवा का प्रयोग किया जाए तो वह स्वास्थय के लिए लाभदायक होगी।
धर्मगुरूओं का कहना है कि ईश्वर की उपासना भी एक प्रकार की दवा है। यह उपासना उन लोगों के लिए कड़वी दवा की भांति है जो ईश्वर के समक्ष नतमस्तक होने से बचते हैं। ((जाड़े के मौसम में कड़ाके की ठंड के समय वुज़ू करके नमाज़ पढ़ना वास्तव में कुछ कठिन दिखाई पड़ता है। जब कोई व्यक्ति बड़ी तनमयता से बातचीत में लीन हो एसे में एकदम से कानों में अज़ान की आवाज़ सुनाई दे तो फिर बातों को छोड़कर मस्जिद जाना कितना कठिन है।
हालांकि न केवल नमाज़ बल्कि अन्य इबादतें भी हो सकता है कुछ लोगों के लिए कठिन हो। वास्तविकता यह है कि यदि कोई व्यक्ति, नमाज़ की वास्तविकता को समझ जाए तो फिर यही कड़वाहट उसके लिए मिठास में बदल जाएगी। एसे बहुत से महापुरूष गुज़रे हैं और वर्तमान समय में भी पाए जाते हैं जिनके लिए नमाज़, शांति और आराम का कारण है।
जीवन के कठिनतम समय में भी नमाज़ से उन्हें शांति मिलती है। अतः हमें अपनी प्रार्थनाओं में हमें ईश्वर से इस प्रकार विनती करनी चाहिए कि हे ईश्वर! अपनी याद की मिठास का स्वाद तू मुझे भी चखा अर्थात मुझको अपनी उपासना की पहचान प्रदान कर।
जिस प्रकार से दवा को एक निर्धारित समय पर ही खाना चाहिए उसी प्रकार से नमाज़ को भी अपने निर्धारित समय पर ही पढ़ना चाहिए। नमाज़ का अर्थ यह है कि ईश्वर की महानता को समझा जाए। इस बात को वही समझ सकता है जो नमाज़ को अपने निर्धारित समय पर पढ़ता है। जो व्यक्ति नमाज़ को उसके निर्धारित समय पर नहीं पढ़ता वह वास्तव में परोक्ष रूप से यह कहता है कि मैं ईश्वर की उपासना पर अपने कार्यों को वरीयता देता हूं।
जिस प्रकार से दवा के लिए परहेज़ आवश्यक है उसी प्रकार से नमाज़ के लिए परहेज़ ज़रूरी है अतः नमाज़ी को झूठ और बुरी बातों से बचना चाहिए एसा न करने की स्थिति में उसकी नमाज़ अपना प्रभाव खो देगी। इसीलिए कहा गया है कि जो भी यह चाहता है कि नमाज़ के प्रभाव को हाथ से जाने न दे उसे हर प्रकार की बुराई से बचना चाहिए।
एक बूढ़े व्यक्ति ने अपने युवाकाल की एक घटना इस प्रकार सुनाई। इस व्यक्ति ने बताया कि अपनी जवानी के दौरान एक बार मैं पवित्र नगर मशहद गया। वहां पर मैंने तत्कालीन साधक या तत्वदर्शी शैख़ हसन अली नोख़ोदकी से भेंट की। जब मैं उनसे मिला तो उनसे कहा कि मेरी तीन मनोकामनाए हैं। आपसे यह अनुरोध है कि आप मुझको कोई एसा मार्ग बताएं जिससे मेरी मनोकामनाएं पूरी हो सकें। अली नोख़ोदोकी ने मुझसे पूछा कि तुम ईश्वर से क्या चाहते हो? मैंने कहा कि मेरी पहली अभिलाषा तो यह है कि मैं अपनी युवा अवस्था में हज करूं क्योंकि जवानी में हज करने का मज़ा ही अलग है।
शेख ने कहा कि तुम नमाज़ को अव्वले वक़्त अर्थात उसके निर्धारित समय पर जमात से पढ़ो। फिर मैंने कहा कि मेरी दूसरी मनोकामना यह है कि ईश्वर मुझको अच्छा जीवनसाथी प्रदान करे। शेख ने फिर कहा कि तुम नमाज़ को उसके निर्धारित समय पर जमात से पढ़ो। उसके बाद मैंने कहा कि मेरी ईश्वर से यह प्रार्थना है कि वह मुझको सम्मानजनक आजीविका प्रदान करे और मैं किसी पर निर्भर न रहूं। शेख़ ने एक बार फिर कहा कि तुम प्रतिदिन निर्धारित समय पर नमाज़ जमात से पढ़ो। उस दिन से मैंने शेख नोख़ोदकी की बात पर अमल किया। लगभग तीन वर्षों के भीतर मेरी तीनों मनोकामनाएं पूरी हो गईं। मैने जवानी में हज किया। सुशील लड़की से मेरा विवाह हुआ और ईश्वर ने मुझको सम्मानीय आजीविका प्रदान की।
कितना अच्छा होता कि हम इस पवित्र महीने में अज़ान की आवाज़ सुनकर जमात से नमाज़ पढ़ने के लिए तेज़ी से मस्जिद की ओर आगे बढ़े चाहे दुनिया के काम हमें अपनी ओर क्यों न खीचें। जैसे जैसे हम ईश्वर की ओर बढ़ेंगे हमारे मन पर शैतान का नियंत्रण कम होता जाएगा। जो लोग ईश्वरीय आदेशों का पालन करते हैं उसके मार्ग पर चलते हैं वे शैतान की चालों और उसके षडयंत्रों से सुरक्षित रहते हैं। वह केवल एसी स्थिति में मनुष्य पर नियंत्रण स्थापित करता है जब वह पापों में पड़ जाता है।
पवित्र रमज़ान का महीना एसा महीना है जिसमें ईश्वर अपने बंदों को कृपा की दृष्टि से देखता है और उनकी प्रार्थना को सुनता है। इस महीने के दौरान वह रोज़ा रखने वालों की मनोकामनाओं को पूरा करता है। एसे में हमे प्रायश्चित करते हुए शैतान के बंधनों से बचना चाहिए।
यहां पर इस बिंदु की ओर संकेत करना आवश्यक है कि मनुष्य को जीवन में निराश नहीं होना चाहिए। पवित्र क़ुरआन में ईश्वर कहता है कि उसकी अनुकंपा से मनुष्य को निराश नहीं होना चाहिए। मनुष्य को दृढ़ता के साथ ईश्वर के बताए मार्ग पर आगे बढ़ते रहना चाहिए और निराशा या हताशा को स्वंय से अलग कर देना चाहिए। इसका मुख्य कारण यह है कि हताशा, शैतान का ही एक हथकंडा है।
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